इतिहास में बहुत गलत हुआ, ज़ालिमों ने बड़ी चोट दी' – अब बदला लेना है? || आचार्य प्रशांत (2022)

Acharya Prashant

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इतिहास में बहुत गलत हुआ, ज़ालिमों ने बड़ी चोट दी' – अब बदला लेना है? || आचार्य प्रशांत (2022)

प्रश्नकर्ता: नमस्कार, आचार्य जी। जब मैं भारत का इतिहास पढ़ता हूँ, विशेषकर मुसलमान आक्रांताओं को लेकर। तो जो स्कूल में इतिहास पढ़ा था, वो देखकर मुझे ये लगता है कि काफ़ी कुछ दबाया गया। जैसे ब्रिज अंडर द कारपेट (सच्चाई छुपाना) बोलते हैं, वैसा किया गया।

तो अब ये देखने के बाद मेरे भीतर एक अपील रहती है। एक कम्युनल (साम्प्रदायिक) विचारधारा वाले लेखकों को, यूट्यूबर्स को, नेताओं को, इनकी ओर थोड़ा एक अट्रैक्शन टाइप (आकर्षण जैसा) का रहता है। आपको सुनने के बाद यह लगा कि वो लोग थोड़े शैलो (उथले) हैं। पर फिर भी आन्तरिक रूप से एक टर्मोयल (उथल-पुथल) जैसा रहता है कि कभी उनकी बात सही लगती है, कभी- कभार लगता है कि वो बहुत क्षुद्र बात कर रहे हैं, कंफ्यूजन (संशय) रहता है। तो एक कम्युनल माइंड के लिए सॉल्यूशन (समाधान) क्या होना चाहिए?

आचार्य प्रशांत: देखो, बिलकुल सम्भव है कि अतीत में हिंदुओं पर अत्याचार हुए, वाक़ई हुए भी हैं, एकदम हुए।

प्रश्नकर्ता: उसके साथ डिनायल (इन्कार) का भी है, अभी उसको डिनाय करने की बहुत कोशिश...।

आचार्य प्रशांत: यह भी अत्याचार का ही हिस्सा है कि अत्याचार की घटना को दबाने की कोशिश की जाए। ठीक है। तो अत्याचार हुए, ये भी ग़लत हुआ आपके साथ, और अत्याचार के तथ्य को बहुत लोग अब दबा देना चाहते हैं, झुठला देना चाहते हैं, वो भी अत्याचार का ही हिस्सा है।

प्रश्न ये है कि आपको अतीत में जीना है क्या, बस इतनी छोटी सी बात है। कोई भी व्यक्ति अतीत में जी सकता है? अतीत में जी सकते हो क्या? ये तो बात पता ही है एक हज़ार सालों की ग़ुलामी है और उसमें बेशक अत्याचार हुए ही हैं। और एक पक्ष द्वारा ही नहीं, न जाने कितने दलों, समूहों, राजाओं, बादशाहों द्वारा, आक्रांताओं द्वारा; ज़्यादातर वो बर्बर लोग थे।

तो अपने स्वार्थ के लिए, अपने मद में उन्होंने अत्याचार करे हैं, बहुत तरह के करे हैं। तो अब क्या करना है, अब क्या करना है? सोलहवीं शताब्दी में वापस जाना है? बारहवीं शताब्दी में जाना है, सौ साल पीछे भी जाना है? क्या करोगे अब? तुम्हे आज ज़िन्दगी जीनी है न, या आज नहीं जीनी है, पीछे जीनी है? मैं बहुत व्यावहारिक दृष्टि से पूछ रहा हूँ। बता दो, क्या करना है, क्या कर सकते हैं अब?

ये कर सकते हो कि आज तुम पर कोई अत्याचार न करने पाये। और आज तुम पर कोई अत्याचार न करने पाये, इसके लिए आत्मिक और सांसारिक बल चाहिए होता है। ठीक है। और आत्मिक बल न होने की एक बड़ी निशानी होती है कि आदमी हमेशा ये दिखाना चाहता है कि मैं तो शोषित हूँ। ये बात देखो घूमकर कहाँ जा रही है, बात घूमकर यहाँ जा रही है कि आज तुम पर अत्याचार न हो इसके लिए सबसे पहले आत्मबल चाहिए।

और अगर तुम पुरानी घटनाओं की दुहाई देते रहोगे। उनको लेकर छाती पीटोगे, रोओगे और बार-बार बोलोगे मैं विक्टिम (पीड़ित) हूँ, मेरा शोषण हुआ है, तो ये पक्का प्रमाण है कि आज भी तुम में आत्मबल नहीं है। और अगर आत्मबल नहीं है तो क्या होगा? आज भी शोषण हो जाएगा। अतीत में तो जो तुम्हारे साथ बुरा हुआ वो हुआ ही, आज और बुरा हो जाएगा।

मुझे इस बात का बहुत अफ़सोस रहता है। लोग इस बात को समझना नहीं चाह रहे। लोग सोच रहे हैं बुरा वो है जो तुम्हारे साथ अतीत में हुआ। मैं कह रहा हूँ अतीत में जो हुआ वो गुज़र गया है, बुरा वो है जो तुम्हारे साथ आज हो रहा है। लेकिन तुम अतीत में इतना खोये हुए हो कि तुमको दिखायी ही नहीं दे रहा कि आज तुम्हारे साथ क्या-क्या बुरा हो रहा है। और आज जो तुम्हारे साथ ग़लत हो रहा है वो बिलकुल वैसा नहीं है जैसा अतीत में ग़लत हुआ।

अतीत में जो कुछ भी अन्याय हुआ, शोषण हुआ वग़ैरह-वग़ैरह, वग़ैरह वो एक तरह का था, और आज जो तुम्हारे साथ ग़लत हो रहा है, बिलकुल दूसरे तरीक़े का है और उसकी ओर आँखें मूँदे बैठे हो। वर्तमान की ओर आँखें मूँदे बैठे हो। जो आदमी अपनी भलाई चाहेगा, वो रोएगा कि पीछे क्या नुक़सान हो गया या रोकेगा कि आज नुक़सान न हो? जल्दी बोलो।

हमारी हालत ऐसी है कि जैसे हम नोटों की गड्डियाँ लेकर के चले जा रहे हों, चले जा रहे हों। ठीक है? बड़े मूल्य की कोई चीज़ हमारे पास हो तो उसमें से एक गड्डी हमें पता चलता है पीछे गिर गयी है। हम कहते हैं, ‘अच्छा, नुक़सान हो गया, पीछे हमारा नुकसान हो गया। पीछे एक गड्डी गिरा आयें हैं नोटों की। तो कहते हैं, ‘ज़रा उसको ढूँढना है और अभी अपने हाथ में जो बहुत सारी गड्डियाँ हैं, उनको ही ज़मीन पर रखते हैं और पीछे वाली ढूँढने निकल जाते हैं।

पीछे वाली तो नहीं ही मिल सकती अब। पीछे तुम घंटा-दो-घंटा पहले सड़क पर गड्डी छोड़ आये हो, मिल सकती है क्या अब? वो तो नहीं ही मिलेगी लेकिन उस पीछे वाली के चक्कर में ये आगे वाली, आज वाली गँवा दोगे और आज वाली गड्डी बहुत बड़ी है। आज वाली गड्डी ही तुम्हारा तथ्य है, तुम्हारी हक़ीक़त है। पीछे वाली तो खो गयी। आज वाली हाथ में थी, तुम आज वाली भी गँवाए दे रहे हो पीछे की बातें रो-रोकर।

पीछे से सीख ली जाती है, पीछे को दोबारा जिया नहीं जाता। अतीत से अधिक-से-अधिक क्या ली जा सकती है? सीख। अतीत में वापस जाकर के थोड़े ही जियोगे। अतीत में जो कुछ ग़लत हुआ था, उसे आज ठीक करूँगा। अतीत में जो ग़लत हुआ था, वो अगर ठीक हो सकता था तो अतीत में ही हो सकता था, आज नहीं ठीक हो सकता, बाबा। आज लड़ने के लिए आज की चुनौतियाँ हैं। अतीत की चुनौतियों से तुम आज नहीं लड़ सकते।

अतीत के युद्ध तुम आज नहीं लड़ सकते। वो युद्ध अगर तुम जीत गये अतीत वाले, तो जीत चुके हो पहले ही, और वो अतीत के युद्ध अगर तुम हार चुके हो अतीत में, तो हार चुके हो पहले ही। उन युद्धों को अब तुम दोबारा लड़कर, उनको रिविज़िट करके हार को जीत में नहीं तब्दील कर सकते। अब वो नहीं होगा सम्भव लेकिन अतीत के युद्ध दोबारा लड़ने की कोशिश में तुम आज की प्रस्तुत लड़ाइयाँ हार रहे हो। आज की लड़ाइयाँ हार रहे हो लगातार।

“तेरी गठरी में लागा चोर मुसाफिर।“ गठरी में चोर लगा हुआ है और मुसाफिर पीछे मुड़कर अतीत की ओर देख रहा है, और चोर अभी लगा हुआ है। तुम आज लुट रहे हो और तुम्हें पता भी नहीं। तुम्हें आज कौन लूट रहा है और आज लूटने वाले का नाम-पता, शक़्ल वैसा नहीं है जैसा अतीत में होता था। आज के ख़तरे दूसरे हैं, आज की चुनौतियाँ दूसरी हैं, आज का माहौल दूसरा है, ये युग दूसरा है।

बलवान आदमी की निशानी यह होती है कि वो कभी नहीं कहता कि मुझे बड़ी चोट लगी हुई है; ये पौरुष का लक्षण होता है। और आज हम पाते हैं कि एक बहुत बड़ी सेना बन गयी है। उनको क्या नाम दूँ, उनको छाती पीटन बोल दें छटपिटनों की। उनका लगातार काम ही यही है कि वो खड़े होकर के रुदाली समान छातियाँ पीटते हैं बस। ‘हमारे साथ बहुत ग़लत हो गया था, बहुत ग़लत हो गया था, बहुत ग़लत हो गया था।‘ ये बल का सूचक है? ये बल का सूचक?

तुम्हारा कोई दोस्त हो, वो हर समय रोता ही रहता हो। ‘अरे! जब मैं छोटा था तो मेरा मोलेस्टेशन (छेड़छाड़) हो गया था।‘ ऐसे के साथ रहना चाहोगे, बोलो? ऐसे के साथ रहना चाहोगे?

पर आज ऐसे लोग बड़े प्रसिद्ध हुए जा रहे हैं। उनका काम ही यही है बस, बार-बार बोलना, ‘देखो, जब मैं छोटा था तो मेरे साथ क्या हो गया था‘, और ऐसे लोग देखे हैं कि नहीं देखे हैं? उनकी जो पूरी आइडेंटिटी (पहचान) है वो इसी बात पर आश्रित होती है कि जब मैं छोटा था तो मेरे साथ किसी ने कुछ बुरा कर दिया था।

वो अभी बहुत कुछ बन भी गये होंगे, वो तो भी इंटरव्यू देंगे — कोई भी हो सकता है, कोई, कोई सिने तारिका हो सकती है। मैं जब आठ साल की थी तो मेरे एक रिश्तेदार ने मेरा मोलेस्टेशन (छेड़छाड़) किया था। अब क्यों बता रहे हो, कोई लाभ? अब क्यों बता रहे हो? हर आदमी को विक्टिम बनना है और विक्टिम बनकर के मुआवज़ा लेना है, कॉम्पन्सेशन।

कोई नहीं मिलेगा जो कहे, ‘नहीं मेरे साथ नहीं कुछ ग़लत हुआ और ग़लत हुआ भी तो जिगर है हमारा, झेल लेंगे।‘ कोई ऐसा मर्द मिल ही नहीं रहा है जो कहे कुछ हुआ भी होगा ग़लत तो जिगर है हमारा झेल लेंगे। सब छाती पीटने को तैयार हैं और छाती पीटने के चक्कर में आज जो ज़बर्दस्त नुक़सान हुआ जा रहा है, उसकी किसी को सुध नहीं है।

सिखाता क्या है अध्यात्म, श्रीकृष्ण का, गीता का सन्देश क्या है? ‘न हन्यते हन्यमाने शरीरे।‘

शरीर पर लग सकती है चोट, यहाँ (दिल की ओर इशारा करते हुए) नहीं लग सकती। तो तुम कैसे रोते रहते हो दिन-रात कि बड़ी चोट लग गयी, बड़ी चोट लग गयी। कह रहे हो हिन्दू हैं हम और हिन्दूओं के साथ इतना कुछ अतीत में बुरा हुआ है। हिंदू हो तुम तो श्रीकृष्ण को कैसे भूल गये? श्रीकृष्ण तो बोल रहे हैं बार-बार, शरीर विनष्ट हो सकता है, तुम वो हो जिसे खरोंच तक नहीं आ सकती — ‘नैनं दहति पावकः नैनम छिदंति शस्त्राणी’।

आग तुम्हें जला नहीं सकती, शस्त्र तुम्हें काट नहीं सकते और तुम रो रहे हो हमारे साथ बुरा हो गया, हमारे साथ बुरा हो गया। वहाँ श्रीकृष्ण क्या समझा रहे हैं। वो तुमको सुनना ही नहीं है।

कुछ समझ में आ ही है बात?

ये मज़बूत आदमी के लक्षण नहीं हैं बार-बार अतीत को लेकर के सिर धुनना, रोना। ये काइयाँ आदमी के लक्षण हैं। ये आदमी मुआवज़े की फ़िराक़ में है। ये आदमी अतीत की बात कर-करके वर्तमान में कोई गुप्त लाभ लूटना चाहता है; इससे बचो।

मज़े की बात यह है कि कोई ये बोलता नहीं की हम शोषक थे। हर आदमी शोषित बना हुआ है। सब शोषित हैं तो शोषण किसने किया भाई? आसमान से उतरा था शोषण करने वाला? जिसको देखो उसका यही रोना है मेरे साथ ग़लत हो गया, मेरे साथ ग़लत हो गया, तो ग़लत कर कौन रहा था?

सब कमज़ोरी की और धूर्तता की निशानियाँ, बस कुछ नहीं और। और हम इस बात से इनकार नहीं कर रहे हैं कि अतीत में ग़लत हुआ है। हम बिलकुल मानते हैं अतीत में ग़लत हुआ है, साथ-ही-साथ हम कह रहे हैं, यहाँ, यहाँ फौलाद है यहाँ पर (छाती की तरफ़ इंगित करके)। हुआ होगा ग़लत, हम पर खरोंच नहीं आती; सब झेल जाएँगे।

और मैं बताऊँ, अतीत में जो ग़लत भी हुआ वो क्यों हुआ। ठीक वैसे जैसे आज तुम्हें श्रीकृष्ण की नहीं सुननी, तुम अतीत में भी नहीं सुन रहे थे श्रीकृष्ण की; नहीं तो इतनी लड़ाइयाँ हारे नहीं होते। हर तरह की लड़ाई हम हारे हैं। समर भूमि पर ही नहीं, विज्ञान में भी, कलाओं में भी, शिक्षा में भी।

अंग्रेजों के आने से पहले के एक हज़ार सालों में भारत में एक यूनिवर्सिटी नहीं बनी। एक यूनिवर्सिटी हमने नहीं बनायी। हर क्षेत्र में तो हम पिछड़ते चले गये। श्रीकृष्ण के प्रति हमने कुछ निष्ठा दिखायी होती तो हम इतना पिछड़ जाते? श्रीकृष्ण के प्रति निष्ठा न हममें तब थी, न आज है। दिल बड़ा रखो।

अभी कहीं पर था, मैं कर्ण की बात कर रहा था। मैंने कहा बंदा ऐसा चाहिए, दमदार। देखो, कितना ग़लत हुआ है उसके साथ। तुम बोलते हो तुम्हारे साथ अन्याय हो गया, उसकी पूरी ज़िन्दगी…। उसका क्या दोष था अगर बिन ब्याही माँ ने जना उसको तो, उसमें बच्चे का दोष है? पहले तो माँ ने ब्याह नहीं करा, सूर्यदेव को बुला लिया, कर्ण पैदा हो गये, और फिर माँ को लोकलाज की इतनी फ़िक्र कि उसको बहा दिया पानी में।

और फिर वो जो घोड़ा चलाने वाला एक व्यक्ति है, उसके द्वारा पाला-पोसा गया। सूत-पुत्र सब उसको बोल रहे हैं बार-बार। प्रतिभा का धनी, संकल्प का धनी, वो कह रहा है ‘मुझे सीखना है’, और सारी शिक्षायें ले रहा है। वो सिर्फ युद्ध कला या धनुर्विद्या में नहीं माहिर था, वो सब शास्त्रों में भी पारंगत था। हल्का आदमी नहीं था और दुनिया उसको सम्मान नहीं दे रही है। अन्याय हो रहा था न उसके साथ, हो रहा था नहीं हो रहा था? हो रहा था, बिलकुल हो रहा था।

उसके बाद जाता है, सब पांडव अपनी शिक्षा पूरी करके आये हैं। एक तरह का उनका दीक्षान्त समारोह हो रहा है। वहाँ पर प्रदर्शन कर रहे हैं, क्या सीखा सुनाने अपना। वहाँ पर जाता है तो कहते है, ‘राजपुत्रों के लिए है यह सभा, तुम कहाँ से आ गये अनाड़ी कहीं के? तुम्हारी क्या पृष्ठभूमि है?’ ये अपमान है कि नहीं है? पर ये अपमान भी इसलिए हो रहा था क्योंकि उस समय भी जो अपमान कर रहे थे उन्होंने उपनिषद् नहीं पढ़े।

उपनिषद् तो सीधे-सीधे बोलते हैं कि चेतना हो तुम, देह नहीं हो। तो अपमान करने वालों ने कर्ण की देह को इतना महत्व कैसे दे दिया? कर्ण की जाति को इतना महत्व कैसे दे दिया? उपनिषद् हम तब भी नहीं पढ़ रहे थे, महाभारत काल में भी नहीं पढ़ रहे थे। न महाभारत काल में पढ़े, न मध्य काल में पढ़े, न आधुनिक काल में पढ़े। हम कभी नहीं पढ़ रहे। और कर्ण के साथ अन्याय होता चल रहा है।

उसके बाद द्रौपदी ठुकरा रही। शिक्षा चाहिए। परशुराम बोले हम तो सिर्फ ब्राह्मणों को पढ़ाते हैं साहब; चल रहा है जातिवाद बढ़िया। मरता क्या न करता, उसने बोल दिया, ‘मैं ब्राह्मण ही हूँ।‘ गुरु एक दिन बैठे हुए हैं। बोलते, ‘सोना है।‘ कर्ण पालथी मारकर बैठ गये। बोले, ‘आप सो जाइए, यहीं मेरी जांघ पर सिर रखिए और सो जाइए।‘

गुरु सो गये और कर्ण गुरु को देख रहे हैं एकदम बड़े स्नेह से, बड़े प्रेम से। गुरु सो रहे हैं, कर्ण को बड़ा अच्छा लग रहा है कि मैं पालथी मारकर बैठा हुआ हूँ, गुरु ऐसे सिर रखकर अपना सो रहे हैं। शायद कर्ण ने धीरे-धीरे गुरु के बालों में उंगलियाँ फिरानी शुरू कर दी होंगी। धीरे-धीरे उनका माथा दबाना शुरू कर दिया गया होगा। स्नेह की बात है।

एक कीड़ा आ जाता है भारी और वो कर्ण को काट ले रहा है, पैर में ही काट ले रहा है और बड़ा दर्द है। कभी चींटी ने भी काटा आपको, काटा होगा, दर्द होता है। क्या करते हैं तुरन्त? पाँव को झटक देते हैं। करते हैं, नहीं? चींटा भी एक लिपट जाता है, पाँव झटकते हैं, नहीं झटकते हैं? बड़ा कीड़ा है, वो कर्ण को काट रहा है, कर्ण नहीं झटक रहे पाँव। कर्ण कह रहे हैं, ‘गुरु सो रहे है, हिला भी तो जग जाएँगे गुरु। ये कर्ण की गुरुनिष्ठा है।

ऐसा ख़रा आदमी और खून की धार बह रही है। और कीड़ा बिलकुल घुसकर माँस में काट रहा है। थोड़ी देर में गुरु की नींद खुलती है। देखते हैं, पूरा खून ही फैला हुआ है। गुरु बोलते हैं, ‘बेटा, इतना संयम ब्राह्मणों में नहीं होता है, हो कौन तुम?’ कर्ण ने बता दिया कौन हूँ। गुरु ने आशीर्वाद देने की जगह श्राप दे दिया। अन्याय हुआ कि नहीं हुआ? मिलना क्या चाहिए था? आशीर्वाद। दे दिया श्राप।

क्या श्राप दे दिया। बोले, ‘ये जो ब्रह्मास्त्र है तुम्हारे काम नहीं आएगा, ठीक तब काम नहीं आएगा जब तुम्हें इसकी सबसे ज़्यादा आवश्यकता होगी; भूल जाओगे इसको। अन्याय है न? उसके बाद महाभारत की लड़ाई आती है। भीष्म लड़ने ही नहीं देते कर्ण को। महाभारत का पूरा नतीजा दूसरा होता अगर भीष्म, द्रोण और कर्ण ये तीनों कंधे-से-कंधा मिलाकर के लड़ रहे होते।

भीष्म न तो स्वयं खुलकर लड़े, न कर्ण को लड़ने दिया। आधी से ज़्यादा लड़ाई में कर्ण क्या कर रहे हैं? वो बाहर वहाँ बैठे हुए खेमे में, वो देख रहे हैं — जैसे क्रिकेट में तुम्हारा जो टॉप बैट्समैन हो उसको तुम कहो सिट इन दा पवेलियन एंड कूल योर हील्स (खेमें में बैठो और अपनी एड़ियाँ ठंडी करो)।

सबसे ख़तरनाक तुम्हारा मैच चल रहा हो ऑस्ट्रेलिया से और तुम तेंदुलकर को वहाँ बैठा दो। बोलो, ‘नहीं तू नहीं खेलेगा, तू ट्वेल्थ मैन है।‘ ये काम भीष्म ने करा कर्ण के साथ। अन्याय किया कि नहीं किया? और उससे भी पहले आकर के, इन्द्र आते हैं अपने बच्चे को बचाने के लिए। इंद्र का बेटा कौन, बेटा कौन? अर्जुन।

इन्द्र बोलते हैं, ‘ये सब अपना दे देना। ये जो कान में लटकाए हो कुंडल-वुंडल।‘ उसमें शक्ति थी कर्ण की, वो ले गये। फिर ब्राह्मण बनकर आते हैं एक जने, उनका कवच माँगकर ले गये। कवच फाड़कर दे दिया। बोले, ‘कवच भी ले जाओ।‘

समझ में आ रही है बात?

अन्याय चल रहा है न खुला। फिर कुन्ती आ जाती है, युद्ध से ठीक पहले बताने के लिए कि तुम तो मेरे ही लाडले हो। बोलते हैं, ‘बहुत देर कर दी माँ।‘ और कर्ण की अवस्था तब तक पचपन-साठ की हो चुकी थी। भूलिएगा नहीं कि कर्ण अर्जुन से उम्र में बड़े हैं काफ़ी और अर्जुन के ही बेटे की उम्र सोलह साल की है और अर्जुन के बेटे से भी फिर आगे वंश चला है परीक्षित वग़ैरह। तो कर्ण कोई उस समय तीस-पैंतीस के नहीं हो सकते। पचपन-साठ के हो चुके हैं कर्ण जब महाभारत का युद्ध है।

कर्ण बोले, ‘ज़िन्दगी तो अब बीत गयी माँ, अब क्या बताने आयी हो? हाँ, अब तुम आयी हो तो दानवीर हूँ मैं। झोली फैलाकर आयी हो, इतना कहे देता हूँ, ‘तुमने पाँच कर दिये न पांडव, छ: थे, माँ। तुमने ग़लत करा, तुमने पाँच कर दिए तो पाँच ही रहेंगे। किसी को नहीं मारूँगा, एक को मारूँगा। अधिक-से-अधिक तो संख्या पाँच ही रहेगी। या तो ख़ुद मरूँगा, या एक है उनमें से, एक है जिसको मारना है, नाम है अर्जुन। और मारूँगा नहीं किसी को।‘

ये माँ ने भी अन्याय करा कि नहीं करा? इतना अन्याय सह रहा है एक आदमी। सहता ही जा रहा है, सहता ही जा रहा है और फिर आख़िरी, रथ का पहिया जाकर के गिर गया है, फँस गया है कहाँ पर? कीचड़ में, गड्ढे में और कर्ण कहते हैं अर्जुन से, ‘उतर रहा हूँ। थोड़ा सा पहिया बाहर निकालूँगा, रुक जाओ।‘ और युद्ध के नियमों के बिलकुल विपरीत है कि जो रथी रथ से उतरा हुआ हो, आप उस पर बाण चलाएँ। तो अर्जुन रुक जाते हैं, साधारण सी बात है, रुकना होगा।

श्रीकृष्ण कहते है कि बेटा अर्जुन, तुम हो किस फेर में। वो कर्ण है, तुम ऐसे ही उसको मार लो तो मार भी सकते हो। नहीं तो ज़िन्दगी में नहीं मार पाओगे। वो कर्ण है। अर्जुन कहते हैं, ‘पर ये तो ग़लत होगा, अधर्म होगा।‘ श्रीकृष्ण कहते है, ‘तुम्हें ख़ुद बचना है कि नहीं, तुम्हें जान बचानी है, युद्ध जीतना है कि नहीं? अधर्म वग़ैरह तो ठीक है, पर वो कर्ण है। वो बच गया तो तुम्हे कहीं नहीं छोड़ेगा।‘

थोड़ी ही देर पहले उसने अभी शक्ति चलायी थी, तुम्हारा सिर ले गयी होती शक्ति। वो तो मैंने रथ को नीचे कर दिया तो शक्ति बस तुम्हारा मुकुट लेकर के गयी; नहीं तो गर्दन पर लगती आकर के, ऐसा है कर्ण। और भूलो नहीं कौन है कर्ण?

एक और वो शक्ति लेकर के बैठा था। वो मैंने घटोत्कच पर चलवा दी तो बच गये तुम। नहीं तो उसने तुम्हारे लिए ही आरक्षित कर रखी थी कि तुम्ही को मारेगा। ऐसा है कर्ण। तुम्हें क्या लग रहा है कि सामने की लड़ाई में तुम कर्ण को हरा लोगे? अभी मार दो।‘

यह अन्याय हुआ कि नहीं हुआ? और छूटता है अर्जुन का बाण और कर्ण की छाती… और कर्ण अब लहुलुहान पड़े हुए हैं, रात हो गयी है। और ये वो आदमी है जिसने जीवनभर अन्याय, अत्याचार के अलावा कुछ नहीं पाया है। कुछ नहीं। छाती में बाण लगा है लेकिन छाती विराट है।

देवता भी परीक्षा लेना चाहते हैं। एक ब्राह्मण आ जाता है। रात के समय युद्ध रुक जाता था। तो वो वहाँ भटकता हुआ आ जाता है। कहता है, ‘कहीं कुछ मिलेगा, कहीं कुछ मिलेगा।‘ वो ब्राह्मण नहीं है, वो स्वयं श्रीकृष्ण महाराज ही हैं। वो ब्राह्मण आ गया है। कह रहा, ‘कुछ मिलेगा क्या, कुछ मिलेगा क्या?’ कर्ण पड़े हुए हैं, आख़िरी साँसें गिन रहे हैं। ब्राह्मण आता है — कुछ मिलेगा क्या। फिर कहता है, ‘अरे-अरे! ये क्या देंगे ये तो ख़ुद मर रहे हैं?’

कर्ण कहते हैं, ‘रुको। रुको, हमें कुछ नहीं हुआ है।‘ ये जिगर होता है मर्द का। हमें कुछ नहीं हुआ है, हम मर रहे है पर हमें हुआ कुछ नहीं है। गीता श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सिखायी थी, सीखी कर्ण ने।

‘न हन्यते हन्यमाने शरीरे‘ सीखा कर्ण ने। हमें कुछ नहीं हुआ है, तुम माँगने आये हो न, हम अभी भी देंगे। तो कहते हैं कर्ण का एक जो दाँत था, वो सोने का था। और दाँत आपका ज़रा सा हिल भी जाए तो कैसा होता है? दर्द कितना होता है, कितना होता है? डेंटिस्ट (दंत चिकित्सक) के पास कौन-कौन गया है। रूट कैनाल वग़ैरह किसकी हुई है कभी, कैसा मज़ा आता है!

और ये एक मरता हुआ आदमी है, वो अपने हाथों से अपना दाँत निकालता है और वो ब्राह्मण के पात्र में डाल देता है। कहता है, ‘ले जाओ।‘ ये इंसान चाहिए। वो रो नहीं रहा है कि मेरे साथ तो जीवन ने मात्र अन्याय ही अन्याय करा, ताउम्र नाइंसाफ़ी करी। रो रहा है क्या कर्ण? ये इंसान चाहिए।

ऐसे लोगों के हम वंशज हैं और हर समय छाती पीटते रहते हैं। हमें शोभा देता है, हमें शोभा देता है? कितना एक सुन्दर सफ्रेज़ है — वुंडेड बट नॉट हर्ट (घायल लेकिन आहत नहीं)। कैसी भी चोट लग गयी हो ज़िन्दगी में, शरीर पर, मन पर, कहीं लग गयी हो, क्या बोलना है— वुंडेड नॉट हर्ट।

वेदों ने, वेदान्त ने हमें सिखाया है कि हम अमृत की औलाद हैं। कौन हमें हर्ट कर सकता है, कौन हर्ट करेगा? कैसे आप इतनी जल्दी आहत हो जाते हो और रोना शुरू कर देते हो? बोलो? चोट लगी, बहुत ज़ोर की लगी; दर्द हो रहा है, बिलकुल हो रहा है। तो? कुछ नहीं, कुछ नहीं।

हम झूठ नहीं बोल रहे हैं। चोट भी लगी है, खून भी बह रहा है, दर्द भी हो रहा है, सब हो रहा है लेकिन कुछ नहीं। कुछ नहीं। शरीर को चोट लगी है, मन को दर्द हो रहा है। आत्मा हैं हम, हमें कुछ नहीं। ऐसे जियो तो फिर जीने में मज़ा आये। नहीं तो रोने के बहाने तो लाखों हैं। एक नहीं सौ आँसू टपकाओ, नदियाँ बहाओ।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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