इंसान हूँ, पैदा हुआ है भोगने के लिए

Acharya Prashant

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इंसान हूँ, पैदा हुआ है भोगने के लिए
इंसान के भीतर जो यह भाव है कि मैं एक इंसान हूँ जो पैदा हुआ है भोगने के लिए, जो दुनिया से अलग अपने हित साध सकता है, दूसरों को बर्बाद कर के खुशी पा सकता है, जब तक इंसान के भीतर ये चीज रहेगी तब तक इसका मुकाबला करना बहुत मुश्किल है यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, जैसे अब हम बुक स्टाल्स ऑर्गेनाइज करते हैं अपनी, अपनी सिटीज में। अब आपने इतना बड़ा ये इशू जो बताया है लेकिन जब ग्राउंड पर काम करते हैं न, तो पता नहीं ये जो हमसे ऊपर की एक जनरेशन है या हमारी भी यह थोड़ी अनअवेअर है चीजों को लेकर। तो हम फ्यूचर जनरेशन की तरफ कैसे फोकस कर सकते है। क्योंकि ये जो जनरेशन है यह बदलने को तैयार ही नहीं है। बचेंगे ही नहीं। तो बदलेंगे कैसे तो फ्यूचर की तरफ। हम संस्था के बाहर है, तो संस्था के बाहर रह के अपना पूरा जोर कैसे लगा सकते हैं। आप हमसे क्या एक्सपेक्ट करते हैं कि आपने हमें ये बात बता दी, हम कैसे अपने आसपास इस बात को और जोर हुए रेट बढ़ा दे उसका बहुत ज़्यादा।

आचार्य प्रशांत: देखो, बात उम्र की भी इतनी नहीं होती है। वरना होने को ये भी हो सकता है कि कोई 70 साल का हो, यह मुद्दा बहुत सीधा है। इसमें कोई बड़ी जटिलता नहीं है कि किसी ने इंजीनियरिंग पढ़ी होगी या मैथस पढ़ी होगी या साइंस पढ़ी होगी या क्लाइमेट साइंस पढ़ा होगा तो यह समझेगा। इसमें ऐसा कुछ है नहीं।

बात नीयत की है और नीयत की खराबी मालूम है। क्या है मैं कुछ भी तब करूँ न जब मुझे उससे कुछ लाभ होता हो।

इसमें मुझे क्या मिलेगा। मैं 70 साल का हो गया हूँ, मुझे पता है 5 साल में मर जाऊँगा तो मैं अपना कंजम्शन कट करूं। तो किसके लिए मान लो। मैं कह रहा हूँ की मैं आने वाली पुश्तों के लिए रोक रहा हूँ न। तो मैं तो मर जाऊँगा, उनसे मुझे क्या मिलेगा। मैंने उन्हें कुछ दे दिया, बदले मुझे क्या मिला? बात बस ये हैं, इतनी सी बात है।

इंसान के भीतर जो यह भाव है कि मैं एक इंसान हूँ जो पैदा हुआ है भोगने के लिए, जो दुनिया से अलग अपने हित साध सकता है, दूसरों को बर्बाद कर के खुशी पा सकता है, जब तक इंसान के भीतर ये चीज रहेगी तब तक इसका मुकाबला करना बहुत मुश्किल है।

देखो और किसी तरीके से हो सकता है न बेटा तो मैंने करा होता। अध्यात्म के अलावा कोई तरीका नहीं है, कोई तरीका नहीं है। अब आपको यह तरीका मुश्किल लग रहा है तो क्या करें?

प्रश्नकर्ता: नहीं मुश्किल नहीं,

आचार्य प्रशांत: चुनौती मुश्किल है तो तरीके भी मुश्किल ही होंगे न। आसान तरीके होते तो सबसे पहले मैंने ले लिए होते।

प्रश्नकर्ता: हमें अभी सलूशन यही है कि जिनको ये बात थोड़ी समझ में आ रही है वो अपने डरों को बिल्कुल पीछे छोड़कर उतरना पड़ेगा।

आचार्य प्रशांत: उतरना पड़ेगा। आपको ये बात बोलनी पड़ेगी डंके की चोट पर बोलनी पड़ेगी आप बोल नहीं रहे हो, नहीं तो इसमें से काफी कुछ तो ऐसा है जो अलग अलग मौकों पर मैं पहले भी बता चुका हूँ। और ये सारी पब्लिकली अवेलेबल इंफॉर्मेशन है, आप खुद भी इसको लेकर के क्या करना है प्रिंट आउट ही तो निकालने है लेकर कहीं पर लगा दो या बांट दो और क्या करना है?

आप बुक स्टॉल पर जाते हो, मैं उस उस बात से भी समझ रहा हूँ और जो बोलने में तेवर है उससे भी समझ रहा हूँ कि साहस है और वो साहस हमारे यहाँ भी बहुत कम लोगों में है, बहुत ज़्यादा डरे हुए लोग हैं हमारे, वो ऐसा ही है, जैसा अभी है न की मैं इधर देख रहा हूँ और सब इधर देख रहे हैं। एक साथ नहीं देख रहे हैं किसी दिशा में।

प्रश्नकर्ता: मुझे तो अभी बस यही समझ में आता है की जान बिल्कुल हथेली पे रख के आपको बाहर ही।

आचार्य प्रशांत: वो नहीं है, सब वैसा नहीं है। अभी हम बहुत होशियार लोग है न, बचेंगे नहीं हम ने आप को है, हम अपने आप को बहुत स्मार्ट समझते हैं, कहते हैं कि नहीं नहीं फिफ्टी-फिफ्टी करके चलने का, रिस्क नहीं लेने का, इधर भी बना के चलने का, उधर भी नाराज नहीं करने का, तो वो उसके साथ ज़्यादा कुछ हो नहीं सकता।

मैं व्यक्तिगत रूप से अपने आप को ये दिलासा दे लूँगा कि मैं अधिकतम जो कर सकता था मैंने करा। पर जब मैं ये सब देखता हूँ, इधर कहाँ चला गया। जब इधर देखता हूँ तो मुझे भी पता होता है कि .... और किसी को न सिर्फ़, वो आंकड़े समझाने से भी नहीं होगा क्योंकि ये आंकड़े भी जिनको पता भी है, वो भी कोई अपना चाल-चलन ढर्रा थोड़े ही बदल रहे हैं। जब तक इंसान का केंद्र ही नहीं बदलोगे, उसका सेंटर ही नहीं बदलोगे, तब तक पहली बार तो वो ये आंकड़े जानना नहीं चाहेगा। और अगर जान भी गया तो कहेगा सो वॉट? मुझे क्या फर्क पड़ता है मौज करो।

अभी आपका ये चल रहा है कार्यक्रम, इसमें आप खुद ही आपको संस्था से कितने लोग दिखाई दे रहे हैं? ढाई सौ लोगों की संस्था हैं अभी, जिसमें से लगभग आधे लोग तो सिर्फ़ आपकी काउंसिलिंग का काम करते हैं। उनमे से आपको यहाँ 6 भी ना दिख रहे होंगे। देखिये कितने दिख रहे हैं? अपने अपने काउंसिलर खोजने की कोशिश करिए अगर मिल जाए तो। ये तो छोड़िए आप हमारे साथ हैं। आज 29 तारीख है, 29 तारीख को भी संस्था ये सेशन नहीं अटेंड कर सकती वो सब मिल कर के लगभग 40 प्रतिशत लोग हैं अभी भी, जो भागने को तैयार हैं वो उनका पीछा कर रहे हैं, फोन कर रहे हैं कि एनरोलमेंट कर लो, एनरोलमेंट कर लो। ऐसे थोड़े ही मिशन चलता है।

आप सोचिए न, आप इतनी दूर से यहां पर आए हैं और जो यहीं के हैं उनको यह गुंजाइश नहीं है कि वो यहां आके बैठ सके। मैं संस्था के लोगों की बात कर रहा हूँ, वो इस वक्त भी फोन पर लगे हुए है । और उससे क्या हो जाएगा? डेढ़ सौ करोड़ लोगो का देश है, साढ़े आठ सौ करोड़ लोगों का विश्व है ये। मेरे सौ, सवा सौ लोग कितने लोगों से संपर्क साध लेंगे और दस से संपर्क करो। तो 1 को बात समझ में आती है। यह बहुत बहुत छोटी संख्या है मैं जिसके साथ काम कर रहा हूँ, बहुत छोटी संख्या। और जिनको मेरे साथ होना चाहिए, वो साथ नहीं है, वो बोझ है, वो चुनौती है, वो बहुत बड़ा बोझ है, हर महीने उनको ढोना पड़ता है और बहुत श्रम जाता है संस्था का उनको साथ लेकर चलने में।

एक ही तरीका है। जैसे आपने समझा, वैसे ही कोई और समझ पाएगा और अगर कोई वैसे ही समझेगा जैसे आपने समझा उसी माध्यम से, उसी जरिए से तो आपको उसको वहाँ ही लाना पड़ेगा जहाँ आप खड़े हो। अब आप चाहो तो ये सोच लो की मैं अपने स्वार्थ के लिए बोल रहा हूँ, मुझे अपना कोई भव्य मकान, बंगला बनवाना है। या आप ये सोच लो की यही एक मात्र समाधान है जो मुझे दिख रहा है। आपको पूरी जान लगा के लोगों को गीता में लाना पड़ेगा। आप ये नहीं कह सकते कि आप ग्राहक हो और संस्था की दुकान है। आप आए आपने यहाँ से चीज खरीद ली है और आप चले गए।

नहीं नहीं नहीं। जो भी बात हो रही है, अगर समझ में आ रही है तो जाओ और लोगों को ले आओ, उन्हें पकड़ पकड़ के सत्र दिखाओ। भागने मत दो और नहीं कोई तरीका है। जब तक ये सौ डेढ़ सौ लोग ही संस्था की आवाज हैं और हाथ पाँव हैं, तब तक काम में बहुत गति नहीं आ पाएगी। और इन सौ डेढ़ सौ लोगों को भी बहुत विरोध झेलना पड़ता है आप लोगों से ही। तो ये भी टूट टूट कर के फिर बिखरते हैं। ये संख्या बढ़े तो फिर इनमें विरोध को झेलने का दम भी बढे। अभी तो इनको ये दिखाई देता है कि its us vs the world, its the 150 of us vs the entire world and in the entire world includes gita community also.

सबसे ज़्यादा तकलीफ तो उनसे ही होती है। मेरी दृष्टि में इसके अलावा कोई तरीका नहीं है। हो सकता है कि मैं गलत फहमी में हूँ, बिल्कुल हो सकता है पर जितना मैंने इस मुद्दे को समझा है आपको मैं बहुत ऊपर ऊपर की बातें बता रहा हूँ जितना एक घंटे में समझाया जा सकता है पर इसमें गहराई में भी जाकर के दुनिया में और जितने तरीके काम हो रहे हैं उनको भी देखा है कि क्या पता वहाँ पर कोई समाधान सम्भव हो कहीं कोई समाधान नहीं है।

एक स्टार्ट अप है अभी वो कह रही है कि हम डीकार्बोनाइज कर देंगे एटमॉसफेयर को उसके बारे मे विस्तार से पढ़ा तो पता चला कि ये जो कर रहे हो पूरा नकली काम है कुछ नहीं होने का इससे। बस फण्ड इकट्ठा कर लेंगे, बहुत सारे लोगों को बेवकूफ बना लेंगे और इस तरह की बहुत सारी बातें हो रही हैं टेक्नोलॉजिकल सॉल्यूशन निकाल देंगे, कुछ कर देंगे।

एक मात्र समाधान जो मुझे दिखाई दिया जो काम करता है कर रहा है और हमारे पास प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट है। मैं अगर उन लोगों को लूं जो सचमुच मेरे साथ जुड़े हुए हैं तो उनका जो पर कैपिटल एमिशन है उनके वो सारे काम है जो पृथ्वी को नुकसान पहुंचाते हैं वो कम से कम 70-80 प्रतिशत कम हो जाते हैं। तो मेरे पास प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट भी है।

जो गीता में आता है वो इस ग्रह के लिए सभी प्रजातियों के लिए वरदान बन जाता है। मैं जानता हूँ और ये सिद्ध होता है, लगातार सिद्ध होता है।

लेकिन वो संख्या बहुत छोटी है सारी समस्या संख्या की आ रही है द नंबर्स, द नंबर्स, द रिसोर्सेज एंड द नंबर्स। वहीं पर सब अटक जा रहा है।

जो जानते है संस्था को, उन्हें ये बोलते हुए बिल्कुल भी झिझक नहीं होती कि आपकी संस्था इस वक्त दुनिया का सबसे जरूरी काम कर रही है। और शायद हम अकेले हैं जो उस काम को उस तरह से कर रहे हैं कि सफलता मिल रही है लेकिन यह जरूरी काम बहुत छोटे पैमाने पर हो रहा है क्योंकि बाकी लोग कहते हैं कि काम संस्था का है, हमारा थोड़ी है। आप जाने अपने आप को संस्था का ग्राहक समझते हैं क्या समझते हैं मालूम नहीं। मत करो भाई संस्था के नाम पर, अपने नाम पर कर लो पर करो।

(आचार्य जी को समर्पित, एक श्रोता द्वारा एक कविता।)

भटको भूलियो डर अब, दर्वजे पर दस्तक नहीं देतो भटको भूलियो डर अब दर्वजे पर दस्तक नहीं देतो मौज है गई प्रेमी मेरो गल बहिया ही रहतो मौज है गई प्रेमी मेरो गल बहिया ही रहतो पकड़ा पकड़ी घेरा घेरी को नाही यो खेलो भय जीव जगत एक है आत्म अब फैला यो उज्यालो साचो सुख बरनो नहीं जावे अंतस में गहराइयों साहस प्रेम गठ जोड़ कियो गुरु मंत्र यो दीप जलायो साहस प्रेम गठ जोड़ कियो गुरु मंत्र यो दीप जलायो

सर आपका एक है कि जहां प्रेम होता है वही साहस होता इसके ऊपर मन में आया।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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