हिन्दू कौन? || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

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हिन्दू कौन? || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

आचार्य प्रशांत : आप ये तो बताने को तैयार हो जाते हैं कि नहीं हिन्दू धर्म वैसा नहीं है जैसा कि उसके विरोधी प्रचार करते हैं। फिर मैं पूछ रहा हूँ कि हिन्दू धर्म की असलियत क्या है? वो बताइये? वो असलियत आप बता नहीं पाते क्योंकि ज़्यादातर हिन्दुओं को पता ही नहीं है कि उनका धर्म है क्या? धर्म के नाम पर निन्यानवे दशमलव नौ-नौ प्रतिशत हिन्दू बस एक परम्परा जानते हैं। रूढ़ियों का पालन कर रहे हैं, प्रथाओं का पालन कर रहे हैं, परम्पराओं पर चल रहे हैं और इसी को वो धर्म समझ लेते हैं।

हमारे लिये धर्म अधिक-से-अधिक एक चली आ रही संस्कृति का नाम है। हमने धर्म और संस्कृति को बिलकुल जैसे एक ही समझ लिया है। उनमें सम्बन्ध ज़रूर है पर वो एक नहीं हैं। और हमने कौनसी संस्कृति पकड़ ली है? जो हमको एक संस्कृति का रूप पता है, जो अभी मध्यकाल में प्रचलित था।

हम कहते हैं कि यही हिन्दू धर्म है, मैं आपसे पूछूँ, एक हिन्दू कौन है? आपके पास ज़वाब होगा नहीं, बड़ी दिक़्क़त होगी। आप कहेंगे जो होली-दिवाली मनाता है वो हिन्दू है। आप ये बोल ही नहीं पाऍंगे कि हिन्दू वो है जिसका एक विशेष तरह के दर्शन में विश्वास है, जिसे एक तरह के दर्शन का ज्ञान है। नहीं, आप नहीं बोल पाऍंगे क्योंकि ऐसा कोई दर्शन आप जानते ही नहीं। आप कहेंगे जो होली-दिवाली मनाता है, जो तिलक लगाता है वो हिन्दू है, जो राखी बाॅंधता है वो हिन्दू है।

इस तरह की आप बातें करेंगे। एक हिन्दू पहचाना भी और कैसे जाता है? ऐसे ही तो पहचाना जाता है। हिन्दू ऐसे थोड़ी पहचाना जाता है कि जिसको फलानी किताब का ज्ञान हो, जो फलानी पुस्तक को सम्मान देता हो, जो फलानी विचारधारा का या फलाने दर्शन का ज्ञाता हो उसको हिन्दू कहेंगे? हिन्दू ऐसे नहीं जाना जाता है, हिन्दू हमारे यहाँ ऐसे जाना जाता है कि जो जाकर के रंग उड़ाता है होली में, वो हिन्दू है।

और हिन्दुओं के साथ कौनसी चीज़ें जुड़ी होती हैं? कि जो रोटी खाते हैं, जो करी बनाते हैं वो हिन्दू हैं। जो गाय की पूजा करते हैं वो हिन्दू हैं। आप कहेगें— नहीं-नहीं-नही, हिन्दू ये सब मात्र थोड़े ही है, हिन्दू तो इससे आगे की बात है। मैं इनसे से पूँछता हूँ कि इससे आगे की बात क्या है? वो तो बताइये? आगे की बात आपको ख़ुद नहीं पता। जब आपको ख़ुद नहीं पता तो आप उनका विरोध कैसे करेंगे जो हिन्दू धर्म को बदनाम करते हैं? आप मुझे बताइए तो? ये जो आप कुछ परम्पराओं का पालन कर रहे हैं, ये जो आपने एक कल्चर (संस्कृति) पकड़ रखा है एक तरह की संस्कृति, उसके अलावा और उसके आगे हिन्दू धर्म क्या है?

हिन्दू धर्म का मूल क्या है? हिन्दू धर्म की जड़ क्या है? मर्म क्या है हिन्दू धर्म का?

वो लोगों को ख़ुद ही नहीं पता। यहाँ तक कि जो लोग सबसे बड़े पैरोकार बनते हैं, सनातन धर्म के, शायद वो स्वयं भी कम ही जानते हों कि ‘सनातन मानें क्या?’ तो फिर इसीलिए आप जब विरोध करने निकलोगे तो आप दो-चार, इधर- उधर की कुछ लिबलिबी सी बातें बोलकर रह जाओगे। या आप नारेबाज़ी कर लोगे। या आप कुंठाग्रस्त होकर हीनभावना में आकर के कुछ गाली-गलौज कर लोगे। पर आप कोई ठोस बात नहीं बोल पाओगे क्योंकि आप स्वयं ही नहीं जानते कि हिन्दू धर्म माने क्या?

ये सवाल ऐसा है, जिसपर आपने शायद कम ग़ौर किया है और मैं फिर पूछ रहा हूँ, मैं पूँछ रहा हूँ कि मुझे बताइये कि आप ऐसा क्या करेंगे कि फिर आप हिन्दू नहीं कहला पाऍंगे? और अगर आप कुछ भी करके हिन्दू रह सकते हैं तो फिर तो हिन्दू का कोई अर्थ ही नहीं हुआ न? आप दाॅंयें जाऍं, बाॅंये जाऍं, आप हिन्दू हैं। आप ऊपर जाऍं, आप नीचे जाऍं, आप हिन्दू हैं।

आपको बहुत कुछ पता हो, आपको कुछ न पता हो, आप तब भी हिन्दू हैं। तो फिर तो, हिन्दू होने का कोई मतलब ही नहीं रह गया न? जबकि जो बहुत उदारवादी लोग हैं वो हिन्दू धर्म की व्याख्या कुछ इसी तरह से करना चाहते हैं। वो कहते हैं, आप कुछ भी करिये, आप हिन्दू हैं। तो फिर तो इसका मतलब है कि हिन्दू कुछ है ही नहीं।

बात समझ में आ रही है? और हो भी यही रहा है। लोग कुछ भी कर रहे हैं, हिन्दू तब भी कहला रहे हैं। ऐसे कैसे? और मैं करने भर की बात नहीं कर रहा हूँ। जब मैं कह रहा हूँ करना तो मैं करने से पहले जानने की बात करता हूँ। कुछ आपको पता तो होना चाहिए, कुछ आपके मन में सामग्री तो होनी चाहिए, कुछ आपका ज्ञान तो होना चाहिए। तब तो आप सनातनी कहलाओगे न? या बस ये कह दोगे कि नहीं साहब! हम तो फलाने त्यौहार मनाते हैं और फलाने तरीक़े की परम्पराएँ रखते हैं, फलाने तरीक़े के हमारे विश्वास हैं तो हम हिन्दू हैं।

और ये आप जिन प्रथाएँ, परम्पराएँ और ये आप जो विश्वासों की बात करते हैं वो भी लगातार बदलते रहते हैं। तो फिर हिन्दू हुआ कौन? और ये जो बदलते रहते हैं उसमें ऐसा नहीं है कि उनमें जितने नास्तिक हैं और जो पश्चिम के लोग हैं या जो दूसरे धर्मों के लोग हैं। उन्होंने साजिश करके हमारे प्रथाओं को और परम्पराओं को बदल दिया है।

बिहार में छठ चलती थी, उत्तरप्रदेश में और मध्यप्रदेश में तीज चलती थी, हरतालिका तीज। पंजाब की तरफ बस करवाचौथ मनाया जाता था। पर फ़िल्मों ने करवाचौथ दिखाया, करवाचौथ दिखाया और ये गाने चल रहे हैं और उसपर कमसिन सुन्दरियाॅं नाच रहीं हैं तो अभी स्थिति ये है कि उत्तरप्रदेश में और बिहार में और मध्यप्रदेश में भी हरतालिका तीज पीछे होती जा रही है और सब नई-नवेलियाॅं कहती हैं कि हमें भी करवाचौथ मनाना है। तो ये प्रथाएँ-परम्पराऍं भी लगातार बदलती जा रही हैं तो हिन्दू माने क्या?

जो फ़िल्म देखकर के अपनी प्रथाएँ बदल देता है वो हिन्दू हो गया? और प्रथाओं का तो ऐसा ही होता है। वो कभी जन्म लेती हैं और फिर समय के साथ बदलती चली जाती हैं, आप मुझे आज एक परम्परा बता दीजिए जो शाश्वत रही है? सत्य शाश्वत होता है, कोई प्रथा, कोई परम्परा तो शाश्वत होती नहीं। कोई भी अपनेआप को हिन्दू तब कह सकता है, जब उसके पास कम-से-कम कुछ तो ऐसा हो जो सनातन हो।

सनातन माने जानते हैं क्या होता है? सनातन माने वो जो कालातीत है, जो समय के साथ बदलता नहीं। आपके पास अगर सिर्फ़ रूढ़ियाँ हैं और परम्पराएँ हैं और कुछ ऐसा है जिसको आप बहुत मुखर होकर और गौरवान्वित होकर सांस्कृतिक विरासत बोल देते हो। तो ये जितनीं चीजे़ें हैं, ये सब बदल जाती हैं, संस्कृति कोई बड़ी भारी बात नहीं है, संस्कृतियाँ आती-जाती रहती हैं, बदलती रहतीं हैं।

जिसको आप हिंदू संस्कृति या भारतीय संस्कृति भी बोलते हो वो लगातार परिवर्तनशील रही है। सत्य कहाँ है जो कभी बदलता नहीं? उस सत्य से हिन्दुओं का बहुत कम लेना-देना है। जबकि अगर कोई आपके सामने आता है जो हिन्दू धर्म को, सनातन धर्म को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है तो उसका सामना सिर्फ़ सत्य के साथ ही किया जा सकता है।

उस सत्य का आपको कुछ अता-पता नहीं; फिर आप बिलबिला जाते हो कि अरे! अमेरिका में कॉन्फ्रेंस हो रही है। वहाँ हम लोगों को बदनाम किया जा रहा है, क्या करें ,क्या करें, क्या करें। क्या करोगे? जाकर पहले होमवर्क करो, गृहकार्य। कुछ समझो! तब तो दूसरे को समझा पाओगे न? अब बात समझने वाली क्या है वो भी बता देता हूँ, क्या है हिन्दू धर्म में, जो कालातीत है? ग़ौर से समझिएगा। हिन्दू धर्म की मैंने, मर्म की बात की, मूल की बात की, वो मर्म, वो मूल क्या है?

देखिए— 'सनातन धर्म मूलतः वैदिक है', ठीक है। वो वेदों से अपनी अभिव्यक्ति पाता है। और वेदों में दो हिस्से हैं, मोटे तौर पर। एक कर्मकाण्ड का हिस्सा है और एक ज्ञान का हिस्सा है, ठीक है। जो कर्मकाण्ड वाला हिस्सा है उसके अन्तर्गत आप कह दीजिएगा, संहिता आती है और ब्राह्मण आते हैं। मैं ब्राह्मण जाति की बात नहीं कर रहा, ये ‘ब्राह्मण’ वेदों के हिस्से हैं। तो संहिताएँ हैं, मंत्र हैं, जो देवियों को, देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बोले गए हैं, उन्हें समर्पित हैं वो सब संहिताओं में आते हैं। और ब्राह्मण हैं, जहाँ पर विधियों की बात की गई है, आप उनको ( देवी-देवताओं को) प्रसन्न कैसे करोगे? यज्ञ कैसे करोगे? पूजा कैसे करोगे? इत्यादि-इत्यादि। ये कर्मकाण्ड में आता है। ये जो सारी बातें होतीं हैं ये कालातीत नहीं होतीं, ये समय के साथ सब बदल जातीं हैं।

फिर जो दूसरा हिस्सा होता है, वेदों का। उसमें आते हैं आरण्यक और उपनिषद्। उसमें वो बात कही गई है जो समय के साथ नहीं बदलती, उसमें वो बात कही गई है जो वैदिक धर्म का मूल है। कहाँ कही गयी है वो बात? आरण्यक में और उपनिषद् में। और उसमें भी, इन दोनों में भी प्रमुखतया उपनिषदों में। तो अगर आपको हिन्दुओं के ख़िलाफ़ हो रहे किसी भी तरह के दुष्प्रचार का सामना करना है तो बहुत ज़रूरी है कि आपके पास उपनिषदों का बोध होना चाहिए क्योंकि हिन्दू धर्म, सनातन धर्म के केन्द्र में उपनिषद् ही बैठे हैं। आप बात समझ रहे हैं?

YouTube Link: https://www.youtube.com/watch?v=Rf2yqsSsivg

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