प्रश्नकर्ता नमस्ते आचार्य जी, नीति गायकवाड़ जी है महाराष्ट्र से, उनका कहना है कि आचार्य जी कल मैं मूवीसे आ रही थी। अकेले रात को ११.४० का लगभग समय रहा होगा। और उस वक्त मुझे बहुत ज़्यादा डर लग रहा था। सारा ज्ञान जो था, उस वक्त मेरे काम नहीं आया। जो कैब ड्राइवर था वो कहीं गलत जगह न ले जाए तो मेरा सारा ध्यान इसी पर चला गया। ऐसे में मुझे लगा कि लड़कियों को शायद ज्ञान वगैरह से पहले फिजिकली और मेंटली स्ट्रांग बनना पड़ेगा। तभी ज्ञान उनकी कोई मदद कर पाएगा। क्या यह बात सही है?
आचार्य प्रशांत: ये जो आप सही पूछ रहे हो, ये भी तो ज्ञान की ही बात है न? ज्ञान का किसी भी स्थिति में अर्थ होता है सच क्या है झूठ क्या है? इसका निपटारा वो तो आप कैब में फंसे हुए हो, चाहे आप पिक्चर देख रहे हो, चाहे घर पहुँच गए हो, आपको तो हमेशा ही जानना पड़ेगा न कि सच झूठ क्या है, ज्ञान तो आपको हर क्षण में चाहिए।
आप लड़की हो तो आपको कितना पैसा होना चाहिए, आपको कितने बजे फिल्म देखनी चाहिए, आपको किस तरह से कैब करनी चाहिए आपके पास कोई हथियार होना चाहिए, आपके पास और क्या बंदोबस्त होने चाहिए ये सब भी तो ज्ञान की ही बातें है न? या ज्ञान का अर्थ बस यह होता है कि अहम ब्रह्मास्मि? आप संस्था से सत्र सुनती है, क्या नाम है उनका
प्रश्नकर्ता: नीति गायकवाड़।
आचार्य प्रशांत: नीति जी, आप संस्था से सत्र सुनती हैं। तो बस मैं उसमें जितनी वैदांतिक और शास्त्रीय बातें हैं और पारमार्थिक बातें हैं, आपका उनसे ही सरोकार है। आप मुझे अभी स्क्रीन पर सुन पा रही हैं। इसके पीछे बहुत सारा तो जो इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी का ज्ञान है वो लगा हुआ है न। वो भी तो ज्ञान के क्षेत्र में आता है कि नहीं आता?
नहीं तो बस मैं अपनी ही मेज पर बैठ कर के करता रहता, ‘युध्यस्व युध्यस्व,’ आप तक बात कभी नहीं पहुंचती। वो सब कुछ जो आपको एक सही आनंदित मुक्त जीवन जीने में सहायता दे वो ज्ञान में ही आता है। विद्या, अविद्या दोनों ज्ञान में ही आते हैं।
मुझे सिर्फ़ यह पता हो कि गीता में क्या लिखा है और मुझे यह न पता हो कि संस्था का प्रबंधन कैसे करना है तो आप ये सत्र नहीं सुन रहे होंगे। तो संस्था कैसे चलानी है जिसमें सब कुछ आता है कैसे नए लोगों को संस्था में सम्मिलित करना है, उसकी पूरी प्रक्रिया क्या होनी चाहिए, आवेदन की फिर भर्ती की एप्लीकेशन कैसे आएंगे रिक्रूटमेंट कैसे होगा, वित्तीय प्रबंधन हमारा कैसे चलना है, रुपया पैसा कहाँ से कितना आएगा कब कहाँ, कितना खर्च कर सकते हैं वो ज्ञान का हिस्सा नहीं है क्या?
और अगर वो ज्ञान का हिस्सा नहीं है तो फिर ये भी जो अभी ज्ञान का चल रहा है खेल आदान-प्रदान, आप भी वहीं यूट्यूब पर कुछ विज्ञापन वगैरह देख कर आई होंगी। शायद बहुत ज्ञान लगता है, यह समझने के लिए। यह पूरा जो प्रचार का बजट है, उसको कहाँ कितनी सावधानी से कितना और कब तक खर्च करना है। वो भी ज्ञान ही है।
हमने ज्ञान को बड़ी एक परालौकिक चीज़ बना दिया है की ज्ञान माने आसमानों पर क्या हो रहा है। वही ज्ञान है। कभी मैंने आपसे कहा कि उपनिषद् साफ-साफ बताते हैं। विद्या और अविद्या दोनों चाहिए। और आसमानों की बात तो बाद में हो जाएगी। उपनिषद् कहते हैं कि जो ज़मीन की बात नहीं समझता, वो अगर आसमानों की बात करे तो दो चांटा लगाओ उसको।
पंडित जी थे एक बार, पंडित जी नदी पार कर रहे थे, वहाँ, वहाँ बैठा हुआ है मुल्लाह। पंडित जी ने मल्लाह को कभी पढ़ने ही नहीं दिया था। पंडित जी के तरीके बोले, ज्ञान तो बस हमारे ही पास होना चाहिए, शास्त्रीय है। सारा तो मल्लाह को काला अक्षर भैंस बराबर हो, कुछ नहीं जानता। वो बस चप्पू चलाना जानता था। पंडित जी बैठे, मल्लाह बैठा है, नाव पहुंच गई है। आधी नदी। पंडित जी पूछ रहे है मल्ला से। क्यूँ भाई, वेद कितने हैं; अरे महाराज का पूछ लिए ? हमें का पता अरे मूढ़ चलो यही बताओ उपनिषद कितने है अरे महाराज। हम तो बोलो न पाओ का बोले उपसी? दन?
अज्ञानी कुछ नहीं जानता तू, पुराण जानते हो? क्या बोल पुराण हम कहाँ से जाने सांख्ययोग जानते हो चप्पू चलाने दो, सांख्ययोग ? पंडित जी को मज़े लेने हैं। उत्तर मीमांसा पूर्व मीमांसा का अंतर जानते हो, नरक में जाओगे, नरक में मरने के बाद; तो मल्लाह बोला पंडित जी बोले तैरना जानते हो? पंडित जी बोले अधम, नारकीय असुर, दानव पिशाच, राक्षस में क्या ऊँची-ऊँची बातें कर रहा हूँ। उपनिषद्, दर्शन तू मुझसे पूछ रहा है कि मैं इस भौतिक भवजल में तैरना जानता हूँ, नहीं जानते तैरना बोले महाराज, हम तो मरने के बाद में कब जायेंगे, नहीं जायेंगे। पता नहीं। पर आप अभी ही मरने वाले हो, नाव में छेद है। पंडित जी हक्के बक्के।
नाव में बैठे हो, बेटा तो तैरना सीखो, चप्पू चलाना भी सीखो। ये कहना काम नहीं आएगा कि मैं तो महाज्ञानी हूँ, वैसे ही आप। अगर कैब में बैठी है तो लात घूंसा मुक्का चलाना सीखिए। यह कहना काम नहीं आएगा कि मैं तो गीता सत्रों में जाके ज्ञान लेती हूँ। घुसा कैसे चलाना है, गाली कैसे देनी है मुँह कैसे तोड़ना है। ये ज्ञान भी आना चाहिए। पेपर स्प्रे रखा है, चलाना आना चाहिए। पुलिस को फोन झट से कैसे करना है, आना चाहिए। गाड़ी में बैठ रहे हो। कैब में उसका नंबर नोट करना आना चाहिए। किसी को जोर से आवाज दे कर के बताना कि हाँ, इसमें बैठ गई हूँ, कैब का ये नंबर है और ड्राइवर का यह नाम है। यह आना चाहिए। ड्राइवर की फोटो लेकर भेज दो किसी को आना चाहिए। यू फोन पर बात करना शुरू कर दो चाहे दूसरे सिरे पे कोई हो ना हो, जोर जोर से आना चाहिए और दूसरे सिरे पर जैसे बात कर रहे हो।
क्या समस्या है, अगर थानेदार हो, कोई समस्या है जीजाजी थानेदार है। अभी फोन लगाया है। हाँ जीजू बैठ गयी हूँ। ये चला रहा है। गाड़ी भाया नाम क्या है आपका? एसएचओ साहब को बताना है भाया और इतने में वो जो भी है, मनसुख पटवारी, ड्राइवर एकदम संट हो जाएगा। ये ज्ञान आना चाहिए। ये थोड़ी है की वहाँ पीछे बैठ करके कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। उसके बाद बोलो आचार्य जी ने सिखाया ही नहीं।
मैं सिर्फ़ तुमको वही थोड़ी सिखा रहा हूँ जो यहाँ दो घंटे सत्रों में बोलता हूँ। ये जो पूरी संस्था है और इसका जो पूरा इन्फ्रास्ट्रक्चर है, इसके पूरे जो कार्यकलाप हैं, और इसका जो पूरा प्रबंधन है, वो मैं नहीं सिखा रहा हूँ क्या आपको? कहीं से कोई बड़ी फंडिंग नहीं, हमारे पीछे, न परंपरा की कोई ताकत, न कोई आश्रम, न कोई सेठ, न कोई राजनेता, उसके बाद भी इतना बड़ा, ये हमने अभियान खड़ा कर दिया। यह आप हमसे नहीं सीखोगे? या बस यही सीखोगे, आचार्य जी तो बस गीता जानते हैं!
आचार्य जी व्यावहारिक रूप से क्या कर रहे हैं, वो आपको नहीं दिखाई देता? वो एक मैनेजमेंट मिरेकल है, वो नहीं सीखोगे। अभी न्यूज24 में बीते हफ्ते रिपोर्ट छपी है कि सिर्फ 2024 में अनुमान है कि आपकी संस्था ने लगभग 10 लाख पशुओं की जान बचाई है। बस आपको संस्कृत बांचना हैं? व्यावहारिक तल पर, पार्थिव तल पर, मटीरियल, भौतिक तल पर जो हम कर रहे हैं, वो भी तो हम से सीखो न! इतनी किताबें छप रही हैं। हम अपने आप में एक पब्लिशिंग हाउस है। अच्छा खासा बड़ा ये जो आप ऐप चला रहे हो, ये ट्विटर फेसबुक, इनके समकक्ष है।
सोचो आपकी संस्था कितनी चीजे हैं, ऑडीओबुक्स आने जा रही हैं, वह ऑडिबल के समकक्ष कड़ी हो जाएगी, किताबे हैं तो जो अमेज़न की पब्लिकेशन डिवीज़न बुक्स डिवीज़न हैं उसके समकक्ष खड़े हैं, ये जो सेशन चल रहे हैं लाइव और कितने लोगों तक पहुँच रहा है, वो अच्छे से जानते हो तुम अपने आप में एक विश्वविद्यालय है। यह सब ज्ञान नहीं है। क्या यह व्यवहारिक ज्ञान भी तो सीखो न। और क्या क्या है हम हम अपने आप में 1 यूनिवर्सिटी है, हम, हम ऑडिबल हैं, हम ट्विटर हैं, हम फेसबुक हैं। और क्या क्या है।
हाँ, हम वीडियो कोर्सेज सॉलूशंस का है, इतने वीडियो कोर्सेज हैं और वही विडियो कोर्सेज की जो वेबसाइट होती है, उनको वो स्टैंडअलोन होती है। हमारे वीडियो कोर्सेज वो भी चल रहे हैं। हम एक पब्लिशिंग हाउस है, हमने कहा और पब्लिशिंग हाउस भी। हम सिर्फ यही नहीं है कि प्रिंट बुक्स आ रही है, उसमें ई बुक्स भी हैं और हम एक सोशल रिफॉर्म ऑर्गेनाइजेशन भी हैं। और हम एक सोशल मीडिया ऑर्गेनाइजेशन भी हैं। और संस्था का कॉलम भी छप रहा है। यह सब ज्ञान में नहीं आता क्या?
या आचार्य जी बस यही करते हैं कि दो घंटे आपको ज्ञान दे देते हैं। देखिये कैसा प्रश्न पूछा आपने क्या आचार्य जी, ज्ञान कैसे काम आएगा मैं कैब में बैठी हुई थी, कैब वाला अगर हिंसक हो जाता। तो अरे तू सीखो न निपटना। वो भी तो सिखा रहे हैं न। आप इतनी आफतें हमको देते हैं, हम उन आफतों से नहीं निपटते हैं क्या?
आफतें हमें कोई बस बाहरी दुनिया से थोड़ी आती है हमारे अपने लोग इतनी आफते दिन रात देते हैं, उनसे नहीं निपटते है। क्या जैसे हम आफतों से निपट रहे हैं, हमसे सीख कर। आप भी जानो आफतों से कैसे निपटते हैं। और आफत बस यही नहीं होती की सुक्ष्म है भीतरी है, मानसिक है स्थूल आफतें भी आती हैं। हम स्थूल आफतों से भी तो निपटते हैं। आप भी स्थूल आफतों से निपटना सीखो। लोग आते है। लोगों को लगता है यह संस्था तो बस यही है कि लोग यहाँ बैठ कर के ज्ञान बांच रहे होंगे।
हमारे संदेश जाते है, कॉल जाती है कि भाई साहब इतना समय हो गया, क्या कर रहे हो आप पहले तो इतनी कम, आपकी कुल सहयोग राशि है, इतनी कम जितने में आप जा कर के पिक्चर देखते पॉपकॉर्न खाते हो उससे भी कम। और उसके बाद भी आपको सौ संदेश भेजने पड़ते हैं। और सौ बार कॉल करनी पड़ती है। तो लोग जवाब देते है। अरे पैसों की किल्लत है संस्था समझती क्यों नहीं?
नहीं, हम तो जानते ही नहीं पैसों की किल्लत का मतलब। हमें तो अमेरिका से सौ करोड़ की फंडिंग मिली है। हमें तो पता ही नहीं पैसे की किल्लत क्या होती है, आपको ही पता है। बस, हम तो बस ये जानते है की संस्कृत बांचनी है, ये पूरी संस्था है, जो ढाई-सौ लोग हैं संस्था में। ये सब लोग बैठ कर के सुबह से शाम तक श्लोक ही तो बांचते हैं। हम व्यावहारिक तल पर थोडी को जानते हैं। व्यावहारिक तल पर। तो आप जानते हो। तो आप बताते हो।
अरे संस्था वालों को क्या पता हमें पैसे की किल्लत है। आप मुझ से कुछ नहीं सीख रहे। अगर आप मुझ से बस वो सीख रहे हो जो मैं आपको दो घंटे सत्रों में बता रहा हूँ; आपको हमारा जीवन, हमारा संघर्ष नहीं दिखाई देता, क्या हम कोई आसमानी लड़ाई भर नहीं लड़ रहे हैं। हम जमीन के योद्धा हैं, हम। व्यावहारिक तल पर संघर्ष कर रहे हैं।
और कोई स्क्रीनशॉट ले लो यह बोलते बोलते ये आ गया है। स्क्रीन पर, मुझे उदित की शक्ल नहीं दिखाई दे रही है। यहाँ लिखा हुआ आ गया है। एंटी वायरस प्रोटेक्शन एक्सपायर्ड, क्योंकि उसका पैसा नहीं दिया गया है। और ले लो इसका स्क्रीनशॉट। हमें थोड़ी कोई व्यवहारिक समस्याएं आती हैं। वो तो बस आपको आती है। और स्क्रीनशॉट लिए बिना ये भाग गए। उनको लगा मैं मजाक कर रहा हूँ।
आचार्य जी, ड्राइवर मेरे साथ, पता नहीं क्या कर सकता था। और आचार्य जी ने कितनी बार अपनी जान जोखिम में डाली है। वो बताए क्या और जान जोखिम में डाल कर के किस ज्ञान से उस जोखिम का सामना करा। वो मुझसे नहीं सीखोगे। क्या आपके पास जो व्यावहारिक समस्याएं आती हैं न बहुत आपसे, मैं विनम्रता के साथ कह रहा हूँ, उससे कई कई कई गुना बड़ी, व्यावहारिक समस्याएँ हमारे सामने भी आती है।
तो एक ज्ञान वो भी है जिससे हम उन समस्याओं का सामना करते हैं। हमसे वो ज्ञान भी सीखो। नहीं तो यही सोचते रहे हो की आचार्य जी और करते क्या हैं आ कर के दो घंटे ऐसे बोल जाते है तो कोई भी बोल सकता है नत्थू हलवाई बोल देगा। हमारे फूफा जी भी अपने आप को संस्कृत का प्रकांड शास्त्री बोलते है। वो भी आके बोल जायेंगे।
लोगों के घरों पर भी उनको ताने पडते हैं। अरे नौकरी कैसे पानी है यह तुमको गीता बताएगी क्या या वो आचार्य बताएगा हाँ मैं बताऊँगा और सिर्फ नौकरी कैसे पानी है यह नहीं बताऊंगा। दूसरों के लिए भी नौकरियाँ कैसे तैयार करनी है, वो भी बताऊंगा और बता रहा हूँ। सीखने वाले सीख भी रहे हैं।
आज देश के इतने शहरों में बुक स्टॉल लग रहे हैं। मैं उनका समर्पण देख कर के, उनकी सहृदयता देख कर के बिल्कुल विनीत हो जाता हूँ। एक बार एक किसी ने तस्वीर डाली अपनी यही नोएडा से, वो भाई बैठ ही गया था सड़क किनारे एक छोटे से प्लास्टिक के टब जैसी चीज में किताबें लेकर के मैंने उसको देखा, मैं रो पड़ा सचमुच रो पड़ा मैंने कहा यह मुझे कुछ नहीं जानता, लेकिन कितना भरोसा है इसे मेरे ऊपर और कितना बड़ा इसने मेरे ऊपर दायित्व रख दिया कि मैं इसका भरोसा कभी टूटने न दूँ।
और मैं इस बात को जैसे भी विनम्रता से कहा तो वैसे ही अब आपसे गौरव से भी कह सकता हूँ की हम इतने कम दामों पर लोगों तक किताबें पहुँचा पाते हैं कि ये सब बंधु हमारे जो अपना समय, अपनी ज़िन्दगी, अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगते हैं, और स्टॉल पर खड़े होते हैं, चार रुपया, उनको भी बच जाए।
इतने कम दामों पर लोगों तक किताब पहुंचा पाना। यह यूँ ही नहीं हो रहा है किताब इतनी सस्ती छपती नहीं है भाई पर आप कभी सोचोगे नहीं आप तक इतने सस्ते में कैसे पहुँच जाती है।
वो भी एक ज्ञान है कि किस तरीके से ऐसे करना लोगों तक इतने कम दाम में पहुँच जाए की फिर जब वो उसको आगे वितरित करे तो कम से कम उनका खर्चा पानी कुछ निकाल लो । अब जब ताऊजी ताना मारे न की नौकरी आचार्य देगा, क्या तो कहो ढाई सौ को तो दे रखी है। और अगर संयोग भांजी न मार दे तो हजारों तक भी जाएगी संख्या।
हमको लगता है तो बस वेग, नेबुलस, स्प्रिचुअल थ्योरी की बातें हो रही हैं, इसका कोई प्रैक्टिकल डायमेंशन तो होता ही नहीं है। ऐसा ही है न। अरे पढ़ने लिखने पर ध्यान लगाओ, ये गीता वगैरह बुढ़ापे में देखना, हमने गीता बुढ़ापे में नहीं देखी, हमने जवानी में देखी। उसका नतीजा यह है कि शायद आज देश का सबसे बड़ा और सबसे शुद्ध समाज-सुधार कार्यक्रम हम चला रहे हैं।
पर ये बड़ा आरोप लगता है, इन लोगों को क्या पता, ये लोग तो बस बैठे हैं, डोनेशन आती है, और ये लोग कुछ ग्रंथ वगैरह बांच देते हैं। नहीं साहब, व्यावहारिक जीवन भी क्या होता है, और व्यावहारिक संघर्ष भी क्या होते है। वो भी मैं आपसे फिर कह रहा हूँ, विनम्रता के साथ, शायद हमें आपसे ज्यादा पता है। तो इसलिए हमें यह भी पता है की व्यावहारिक संघर्षों से भी कैसे जूझा जाता है, ये ज्ञान भी है। और आप चाहें तो ये ज्ञान भी हमसे ले सकते हैं, सीख सकते हैं। और यह व्यावहारिक ज्ञान भी गीता की कृपा से ही आया है।
बहुत छोटी चीज है। व्यावहारिक ज्ञान कृष्ण अर्जुन को उच्चतम ज्ञान बता रहे हैं, आत्मज्ञान। उसके बाद व्यवहार की चीजें बहुत सरल हो जाती है। जो आखिरी बात जान गया न उसको बाकी बातें समझाना बहुत आसान हो जाता है। जो ब्रह्म विद् होता है उसके बारे में कहते हैं कि अब दुनिया की कोई भी और विद्या उसके लिए बहुत आसान हो गई क्यूंकि कठिनतम विद्या ब्रह्म विद्या होती है। और जिसने ब्रह्म विद्या साध ली उसको अब और कुछ भी साधना मुश्किल नहीं पड़ेगा।
तो अब दुनिया में अगर निकलेगा तो बिल्कुल छत्रपति हो जाएगा, उसको हराना असंभव हो जाएगा। क्योंकि उसने अब स्वयं को हरा लिया, ब्रह्म विद्या माने स्वयं को हरा देना। जिसने स्वयं को हरा लिया उसको हराना फिर बहुत मुश्किल हो जाता है। तुम मार-वार दो तो ही ठीक है, हरा नहीं पाओगे उसको।
बिल्कुल भी अपने मन में यह बात मत लाइएगा कइयों का आता है, वो अभी हम एक महीने दो महीने परीक्षा आ रही है तो दो महीने की हम परीक्षा दे ले, उसके बाद हम फिर गीता सत्रों में दोबारा जुड़ेंगे। भाव उनका बिल्कुल वही है जो आज के प्रश्नकर्ता का है कि गीता अलग बात है और ये जो संसारी संघर्ष होते हैं और संसारी परीक्षा होती है, अलग अलग बात नहीं है। जो गीता का हो गया न वो जान जाता है भली भांति की सांसारिक परीक्षाएँ भी कैसे पार करनी है।
और वो कोई मूरख ही होता है जो कहता है की अभी मुझे जरा संसार की कुछ समस्याओं से जूझना है। इसलिए अभी गीता को मैं चार महीने के लिए छोड़ रहा हूँ, इससे मूर्खता का वचन नहीं हो सकता। आचार्य जी रात में अकेली थी तो एक अंजाने पुरुष को देखा तो मेरे मन में यह भाव आया कि गीता वगैरह का ज्ञान तो सब व्यर्थ है। क्यों? क्योंकि गीता में तो बताया ही नहीं गया है कि ऐसे पुरुष का क्या करना है। गीता में यह बताया गया है कि अपनी वृत्तियों से सावधान, गीता ये थोड़ी बताने आएगी चावल पका रहे हो, दाल पका रहे हो तो कुकर कितनी सीटी देगा।
हाँ गीता तुम्हें ध्यान समझा देगी, सजगता बता देगी। गीता ये भी बता देगी के जब भीतर कामनाएं उबल रही होती है, अज्ञान होता है, मान्यताएं होती है, धारणा होती है तो ध्यान बिल्कुल छितराया होता है। गीता ये भी बता देगी कि जहाँ नहीं डरना चाहिए वहाँ भी डर रहे हो। और ये कैसी विचित्र बात होगी। गीता में यह तो लिखा ही नहीं है कि दाल कितनी सीटी पर उतारनी थी।
मैं आपका स्वागत करता हूँ सबका यह समझने के लिए भी कि जहाँ तक अविद्या के क्षेत्र की बात है, वहाँ आपकी संस्था और आपके आचार्य जी क्या कर रहे हैं। विद्या वाली जो बात है वो तो आप रोज देख ही लेते हो, सत्र सुन लेते हो, परीक्षा दे लेते हो, थोड़ा अविद्या पर भी गौर करो। हम पक्के वेदान्ती है, हम विद्या अविद्या को साथ लेकर चल रहे हैं। और विद्या किसी काम की नहीं अगर अविद्या के क्षेत्र में झंडे नहीं गाड़ दिए।
किसी को भी कभी ऐसे कहते सुनिए न कि स्पिरिचुयालिटी वगैरह थ्योरी, वगैरह सब ठीक है। लाइफ में प्रैक्टिकल होना चाहिए। जान जाइए कि वो आदमी कुछ नहीं समझता, कोई आदमी अगर सच्चे अर्थों में व्यावहारिक है, आध्यात्मिक हैं। व्यावहार क्या है, प्रैक्टिकैलिटी क्या है, ये आप जाकर, उससे सीख सकते हैं।
श्रीकृष्ण को देखिये न, महाभारत में ही, अभी अर्जुन को गीता दी है। श्रीकृष्ण द टीचर, श्रीकृष्ण द थ्योरीटिशियन और अगले ही पल वो हो जाते हैं, श्रीकृष्ण द टैकटिशियन, द स्ट्रैटेजिस्ट, कैसे हो जाते हैं? कैसे हो जाते हैं? बोलिए न।
जिसको गीता आती है, वो सब जानेगा कि जीवन के सारे युद्ध कैसे जीतने है। वो यह नहीं कि हमें तो गीता पता है, पर उधर कर्ण खड़ा हो गया है। और उसके पास एक जबरदस्त शक्ति है, जो अर्जुन को मारने के लिए है, तो क्या करें श्रीकृष्ण द टैकटिशियन, रणनीतिकार मात्र गीताकार ही नहीं, रणनीतिकार भी। वो कहते हैं बुलाओ घटोत्कच को। और ऐसी मार बजाओ की कर्ण मजबूर हो जाए। जो शक्ति उसने बचा कर रखी थी, अर्जुन को मारने के लिए, घटोत्कच पर चला दे। ये देखो टैक्टिक्स अपना ही योद्धा, अपना ही बंदा, अर्जुन का ही भतीजा लगा वो घटोत्कच भीम का बेटा था, उसको मरवा दिया।
और कोई छल करके नहीं, कोई षड़यंत्र करके ही उसको बोला करती है। उसको कहा तू लड़ तू लड़ इतना मार दुर्योधन। वगैरह को इतना मार कर्ण मजबूर हो जाए। और जिस क्षण शक्ति लगती है घटोत्कच को, कृष्ण मुस्कुराते हैं। कृष्ण कहते हैं ये अर्जुन को अब अभय दान मिल गया, अब अर्जुन जिएगा, नहीं तो कर्ण जान ले लेता है अर्जुन की।
ऐसा होता है गीताकार।
वो टैक्टिक्स भी जानता है, वो तरीके भी जानता है, वो जितना भी जानता है, वो हराना भी जानता है, वो जीवन के हर युद्ध को जानता है। और आप कैसे लोग हो। लड़ के हमें छोड़ गया। आचार्य जी गीता काम नहीं आई, नहीं मान रहे द्रोण तो धर्मराज को जा कर के कृष्ण ने कहा, तुम्हे बोलना पड़ेगा “नरो वा कुंजरो वा अश्वत्थामा हतो।“
अट्ठारह दिनों में न जाने कितनी बार एक ब्रिलियंट टैक्टिशियन की तरह कृष्ण अर्जुन का मार्गदर्शन करते हैं। अविद्या, मैनेजमेंट, स्ट्रैटजी ये थोड़ी फिर कहते हैं कि अर्जुन अभी जो तुमको मैंने बताया था, पांचवें अध्याय के तेरहवें श्लोक में, उसके अनुसार काम करो। ये सब कुछ नहीं है।
और अभिनय करना भी खूब जानते हैं, सारी कलाओं में पारंगत है, देख रहे हैं कि गीता ज्ञान के बावजूद अर्जुन की भावना और आसक्ति नहीं जा रही है। और वो भीष्म से नहीं लड़ेंगे। तो कहते हैं कुछ करना पड़ेगा, ‘ये भी सब आर्ट ऑफ वार का हिस्सा होता है, फेकिंग।‘ रथ का पहिया, उठा के दौड़ पड़ते हैं भीष्म की ओर, कि पितामह, हमारे ही हांथो होगा आपका। तो अर्जुन कहते हैं नहीं नहीं, वापस आ जाइए, मैं लड़ूंगा। कृष्ण से गीता ही भर सीख रहे हो क्या?
और ये तो मैं सिर्फ अट्ठारह दिनों के युद्ध की बात कर रहा हूँ। पांडव युद्ध तक पहुँचने के लिए बचे ही नहीं होते अगर कृष्ण ने पल पल उनका टैक्टिकल मार्गदर्शन नहीं किया होता, अपनी जवानी में ही। पांडव किसी लाक्षाग्रह में नहीं तो कहीं अज्ञातवास में निपट गए होते। अब कथा तो ये कहती है कि चीरहरण होना था द्रौपदी का तो वो आ गए और उन्होंने द्रौपदी की साड़ी बिल्कुल अनंत लम्बी कर दी तो दुःशासन परेशान हो गया, साडी उतरी ही नहीं पूरी पर धरातल पर, तथ्य में ऐसा तो नहीं हुआ होगा।
ये तो बताने का एक तरीका है, तो काव्यात्मक तरीका है बताने का कि आसमान से साड़ी उतरती रही है और द्रौपदी को निर्वस्त्र नहीं होने दे रही है। वास्तव में क्या हुआ कुछ तो हुआ होगा, कृष्ण ने कुछ तो करा होगा। तो ये भी करना जानते है, उन्होंने ये नहीं कहा कि दुःशासन तुझे गीता सुनाता हूँ जमीन पर, सड़क पर, सभा में किसी महिला का अपमान हो रहा है, उसको निर्वस्त्र करा जा रहा है तो उसको बचाना कैसे कृष्ण ये भी जानते हैं।
कोई खुली बद्तमीजी कर रहा है, शिशुपाल जैसा गालियाँ ही दिए जा रहा है, गालियाँ ही दिए जा रहा है तो कृष्ण यह भी जानते हैं की कब तक उसकी उपेक्षा करनी है और फिर कब पकड़ कर के उसको तोड़ देना है, उसको गीता नहीं सुना रहे आप ये नहीं सीखोगे क्या?
जी ये कोई अदर वर्ल्डली हम कार्यक्रम नहीं चला रहे हैं, हम इसी जिंदगी को गरिमा के साथ, ठसक के साथ, निर्भयता के साथ, शान और समर्पण के साथ जीने का अभियान चला रहे हैं। हमें इसी जमीन पर जीना है, ज्ञान और गौरव के साथ, हम आसमानों की बातें नहीं करते हैं पर आप लोगों का उल्टा हिसाब चलता है।
आप कहते हो कि नहीं आचार्य जी तो आसमानों की बातें सिखा रहे हैं, ज़मीन का तो कुछ बताते नहीं तो ज़मीन का तो हम फिर अपने हिसाब से देखेंगे। यह आज कल हमारा जो ज़मीन का कार्यक्रम है, ज़मीनी कार्यक्रम मे आपकी दुनियावी मसले आज कल जो हमारा ज़मीन का कार्यक्रम थोड़ा फंसा हुआ है तो आज कल हम गीता सत्र नहीं देखते हैं।
पहले भोजन, फिर भजन, हा हा हा गजब लोकोक्ति सुनाइ हैं यह लोकसंस्कृति अपनी जेब में रखिए की पहले भोजन, फिर भजन अभी तो हम भोजन का जुगाड़ कर ले, उसके बाद देखेंगे गीता वगैरह करनी है कि नहीं? भोजन का जुगाड़ भी कैसे करना है ये गीता सिखाएगी, ऐसा है गीता में? बताए कौन अध्याय कौन सी श्लोक में है? तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा तुम्हारा बाकी गीता से कोई मतलब नहीं जरा बता देना गीता के कौन से श्लोक में इम्प्लोयमेंट स्कीम है?