गुस्से में चीखने-चिल्लाने की समस्या || (2018)

Acharya Prashant

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गुस्से में चीखने-चिल्लाने की समस्या || (2018)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मैंने बचपन से ही देखा है कि यदि कोई लड़ाई हो जाती है, तो लोग चिल्लाकर बात करते हैं, और साबित करने में लग जाते हैं कि हम सही हैं। घर में अगर मेरी भी किसी से लड़ाई हो जाती है, तो मैं भी वैसी ही हो जाती हूँ। पर बाद में मुझे एहसास होता है कि मैं सही नहीं कर रही हूँ। मगर फिर भी यह आदत नहीं जा रही है। क्या करूँ? कुछ समझ नहीं आता।

आचार्य प्रशांत: जहाँ से शुरू कर रहे हो, वो जगह ही ठीक नहीं है। बात यह नहीं है कि गुस्सा ग़लत नहीं है, पर हमारे व्यक्त करने का तरीका ग़लत है – यहाँ से शुरू किया है तुमने। अभिव्यक्ति की बात नहीं है। बात है कि – कौन है जिसे ग़ुस्सा आ रहा है? किस बात पर ग़ुस्सा आ रहा है? तुमने तो यह कह दिया कि बीमारी बुरी नहीं है, बीमारी का प्रकट होना बुरा है।

"ग़ुस्सा बुरा नहीं है, चिल्लाना बुरा है।”

“अच्छा! चिल्लाएँगे नहीं। बस तुम्हारा एक लाख रुपया गायब कर देंगे, बिना चिल्लाए। गुस्से में हैं!”

यह तो ठीक होगा फिर, क्यों? उसमें कोई अभद्रता नहीं, बिलकुल शालीन तरीके से। नमस्कार करके!

गुस्सा माने – कामना पूरी नहीं हुई। भीतर से ऊर्जा उठी है। वो कह रही है, “कामना पूरी करनी है। मैं ज़ोर लगाऊँगी।”

गुस्सा माने – ज़ोर लगाना। “मैं जो चाहता हूँ, वो हो नहीं रहा, तो चाहत पूरी करने के लिए मैं ज़ोर लगाऊँगा।” इसका नाम होता है – गुस्सा। क्या चाह रहे थे? ज़ोर लगाना आवश्यक है? सुसंस्कृत होकर, सभ्य होकर, ज़ोर लगाना आवश्यक है? या सर्वप्रथम यह जानना आवश्यक है कि चाह ही क्या रहे थे? घटिया चीज़ चाहो, और शालीन बने रहो, यह बहुत अच्छी बात हो गई? चाहते क्या हो? पहले यह तो बताओ कि गुस्सा आ किस बात पर जाता है?

क्या चाहते हो?

प्र: यही कि गुस्से में वो ना चिल्लाएँ।

आचार्य: और वो चिल्लाते हैं, तो तुम्हें क्यों बुरा लग जाता है? इज़्ज़त नीचे हो जाती है?

प्र: ऐसा लगता है कि वो क्यों चिल्ला रहे हैं। तमीज़ से बात क्यों नहीं कर सकते?

आचार्य: उन्होंने तमीज़ से बात नहीं की, तो तुम्हारा क्या बिगड़ गया? कोई तुम्हारे ऊपर चिल्लाए, तो इससे तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा?

प्र: मेरे भाई की शादी की तैयारियों में बहुत पैसा खर्च हो रहा है। मेरी मम्मी अपने इलाज में पैसे ना खर्च करके, शादी में पैसे खर्च कर रही हैं, तो मुझे यह देखकर गुस्सा आता है। और मैं उनपर चिल्ला कर गुस्सा करती हूँ।

आचार्य: क्या गुस्से में चिल्लाकर, तुम उनके लिए कुछ अच्छा कर दोगी? अगर आप एक सीमा तक वैसे ही हो, जैसी आपकी मम्मी हैं, तो वो आपकी बात नहीं सुनेंगी न। उनको भी नहीं पता है कि वो सही निर्णय की जगह, यह क्यों कर रही हैं। उनको भी यही लगता है कि वो जो कर रही हैं, वो सही ही है। ठीक वैसे ही, जैसे तुम्हें लग रहा है कि – “मैं जानती हूँ कि क्या सही है, मम्मी ग़लत हैं।” मम्मी से जाकर पूछो, वो तुम्हारी तरह ही अडिग रहेंगी और कहेंगी कि – “मैं जानती हूँ कि क्या सही है।”

जिसे दूसरे को समझाना हो कि क्या सही है, क्या ग़लत है, उसे अपने सारे दोष साफ़-साफ़ पता होने चाहिए। अगर अपने ही मन की ख़बर नहीं, तो तुम वैसे ही हो जैसे दूसरा है। उसे भी अपने मन की ख़बर नहीं। इसलिए समझा नहीं पाओगे।

दूसरे को जब समझाने निकलना, तो ये साफ़-साफ़ समझना – दूसरा तुम्हारे शब्दों से कम, तुम्हारी हस्ती से ज़्यादा समझता है।

तुम्हारी बात बहुत ऊँची होगी, पर तुम उतने ऊँचे दिखते ही नहीं, तो वो तुम्हारी बात की कद्र नहीं करेगा।

उपनिषद् का एक श्लोक उपनिषद् के ही ऋषि बोलें, और उपनिषद् का एक श्लोक कोई भी और आकर बोल दे, श्लोक में वज़न रह जाएगा क्या?

शब्दों को वज़न देता है वो जिससे वो शब्द आ रहे हैं। अन्यथा, शब्द बहुत हल्की चीज़ हैं। शब्द तो ऐसे ही हैं, बिलकुल, पंख की तरह हल्के। जिसके वो पंख हैं, अगर उसमें वज़न है, तो पंखों में भी वज़न है। वज़न बढ़ाओ!

तुम देखोगे अकसर, जब संतों के पास जाओगे, तो उन्होंने जो बात बोली होगी, वो बहुत सीधी-साधी होगी, बहुत ही सरल। तुम्हें लगेगा ही नहीं कि बहुत दूर की बात बोल दी।

"बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।"

बोली किसने है? और ये बात ब्रांड या लेबल की नहीं है, बात उसकी हस्ती की है। वो अगर बोल रहा है, तो छोटी-से-छोटी बात, ब्रह्मवाक्य हो जाती है। और अगर छोटा आदमी ब्रह्मवाक्य भी बोल रहा है, तुम कहोगे, “भक्क।”

अभी थोड़ी ही देर पहले कोई गुरजेफ़ की बात कर रहा था। गुरजेफ़ की भाषा बहुत सुसंस्कृत नहीं थी। गुरजेफ़ भाषा के बहुत विद्वान् नहीं थे। तो इसलिए जब उनके वाक्यों को पढ़ो, तो कई बार ऊपर-नीचे लगते हैं। लेकिन उन्हीं वाक्यों को गुरजेफ़ जब बोलते थे, तो उनकी बात ही कुछ और होती थी, उनका दम ही कुछ और होता था। उन्हीं वाक्यों को जब तुम कागज़ पर पढ़ते हो, तो वो उतने दमदार नहीं लगते। उनकी ताक़त क्षीण हो गई।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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