प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, जब तक हम ऐसे माहौल में रहते हैं, ऐसी चर्चा में रहते हैं , तब तक ये सारी बातें हमें बिलकुल समझ में आती हैं, बिलकुल ठीक लगती हैं , पर जैसे ही हम इससे उठकर के बाहर जाते हैं तो सब गायब हो जाता है।
आचार्य प्रशांत: मैं तुमसे कहना चाहता हूँ कि बिना तुम्हारी अनुमति के कुछ भी गायब नहीं होता। बिफोर इट वैनिशेश इट टेक्स योर कंसेंट (इससे पहले कि ये गायब हो जाए, ये आपकी सहमति लेती है)। तुम यहाँ से उठकर के बाहर जाओगे ही, अभी ये सब खत्म होने वाला है और जब बाहर जाओगे, और बाहर शोर हो रहा होगा, और तुम पाओगे कई लोग कह रहे होंगे— यार, ह्म्म्म..ह्म्म्म..हम्म.. हम्म… ।
वही पुराना ढर्रा, वही पुराना संसार चालू हो जाएगा। एक क्षण के लिए तुम्हारे पास मौका होगा अपनेआप को रोक लेने का। ये सबकुछ पूर्णतया अनजाने में भी नहीं हो जाता है। एक क्लिक सेकण्ड का मौका तुम्हारे पास रहता है, उसमें तुमसे अनुमति ली जाती है। तुम्हारा मन तुमसे अनुमति लेकर ही फिसलता है।
सो, डू नॉट से दैट इट जस्ट हैपन्स मेकैनिकली औटोमैटिकली , नो इट डज नॉट हैपन टोटली औटोमैटिकली। यस, वंस इट स्टार्टस् इट इज मेकैनिकल। इट इज दैट जस्ट लाइक एन इन्सट्रुमेंट, अ मशीन बट वन डज नॉट स्लिप फ्रॉम अटेंशन टू इनअटेंशन जस्ट लाइक दैट। ( ये नहीं कहो कि ये तो यन्त्रवत् अपने आप घटित होता है,ऐसा पूरी तरह से नहीं होता। हाँ, लेकिन एक बार शुरु होते ही ये यान्त्रिक है। ये बिलकुल एक उपकरण की तरह एक मशीन है लेकिन ध्यान-से-अध्यान ऐसे ही नहीं खिसक जाता।)
अगर अभी तुम ध्यान में हो। इफ ऐट दिस मोमेंट यू आर अंडरस्टैंडिंग, इफ ऐट दिस मोमेंट यू आर अटेंटिव (यदि इस क्षण तुम समझ रहे हो, यदि इस क्षण तुम चौकस हो)। तुम सोचकर देखो न, अगर अभी समझ रहे हो तो कुछ घटेगा ज़रूर जिसके कारण ये समझना बन्द हो जाएगा और जब अभी समझ रहे हो तो जब वो घट रहा होगा तो उसको भी समझोगे, और वही तुम्हारा मौका होता है कि अब ये हो रहा है, और अब होने नहीं देना है।
तुम यहाँ से बाहर निकलोगे। तुमने जो दोस्त-यार पाल रखे हैं तुम्हारे पास आएँगे। हैं भाई ! और अभी तुम ध्यान में हो। अभी तुमने अपनेआप को खो नहीं दिया है, अभी तुम होश में हो। और जब वो आ रहा है तुम्हारे पास तो क्यों आने दे रहे हो ? क्यों नहीं ठिठककर खड़े हो जाते कि तू कर क्या रहा है ? तू भी वहीं से आ रहा है जहाँ से मैं आ रहा हूँ। तू सब भूल गया। तुम अनुमति देते हो कि इस तरह की चीज़ें तुम्हारे साथ हो सकें। ये अनुमति देना बन्द करो। * ऐम आई मेकिंग माइसेल्फ़ क्लियर?* (क्या मैं अपनी बात समझा पा रहा हूँ?)
बात आ रही है समझ में?
श्रोता: जी सर।
प्र: सर, इतना बड़ा क्राउड (भीड़) कैसे इनसे अफेक्ट (प्रभावित) होता है?
आचार्य प्रशांत: अफेक्ट होने के लिए क्राउड ही चाहिए। क्राउड ही अफेक्ट होता है। इंडीविजुअल (व्यक्ति) कभी अफेक्ट नहीं होता। तुमने कभी एक आदमी को दंगे करते देखा है?
प्र: नहीं सर।
आचार्य प्रशांत: सिर्फ़ भीड़ ही पागल हो सकती है।
प्र: सर, जब कोई फिल्मी स्टार की मृत्यु हो जाए तो बड़ी भीड़ होती है, जैसे आपने जो अभी थिंकिंग बनाई हमारी, उसके अकॉर्डिंग तो ये हुआ कि सिस्टम के अकॉर्डिंग ही वो गलत तरीके से चल रहे हैं।
आचार्य प्रशांत: मैंने कोई थिंकिंग नहीं बनाई है और जो मैं बात बोल रहा हूँ, ये कोई बड़ी नयी बात भी नहीं है। अगर तुम जागरुक हो तो तुम्हें ये बात खुद दिख जाएगी। और मैं कोई पहला नहीं हूँ जिसे ये बात दिख रही है। हज़ारों लोग इस बात को समझ चुके हैं।
उन हज़ारों से फर्क नहीं पड़ता है, ये बात तुम्हें अपने लिए खुद जाननी होगी और खुद समझना पड़ेगा कि जब मैं कुछ कर रहा हूँ तो मैं क्या कर रहा हूँ। *वॉट ऐम आई डूइंग व्हेन ऐम आई डूइंग ऑल दिस। आई एम यंग, आई हैव वन प्रेशियस लाइफ * (मैं क्या कर रहा हूँ जब मैं, ये सब कर रहा हूँ। मैं जवान हूँ, मेरे पास एक अनमोल जीवन है)।
मैं उस जीवन को कैसे बिता रहा हूँ। ये तुम्हें खुद देखना होगा। इस चक्कर में मत रहो कि भीड़ क्या कर रही है। भीड़ हमेशा अन्धी होती है। अगर अन्धी न होती तो भीड़ ही न होती। भेड़ें ही तो चलती है न भीड़ में और भीड़ होने का क्या अर्थ होता है? अपनी बुद्धि नहीं है। सामने वाले के पीछे चलना है तो अगर कोई भीड़ में है तो इसका अर्थ ही यही है कि वो मूर्ख है।
भीड़ बाई डेफिनेशन (परिभाषा से) बेवकूफ़ ही होती है। जहाँ कहीं भी भीड़ लगी देखना तो बहुत ज़्यादा उसपे विचार करने की भी ज़रुरत नहीं है। जहाँ कहीं भी भीड़ देखना तो उसका अर्थ ही यही है कि ये मूर्खों का ही जमघट होगा। चाहे किसी भी चीज़ के लिए भीड़ लगी हो। शादी-ब्याह हो, मेला-ठेला हो, कुछ भी हो।
प्र: तो सर, भीड़ अगर अन्धी होती है तो भीड़ वहाँ पर भी बदल सकती है।
आचार्य प्रशांत: भीड़ तो तब बदलेगी न जब भीड़ की अपनी कोई मर्ज़ी हो, हवा का रुख बदला जा सकता है। बट आई कैन चेंज ओनली व्हेन आई अंडरस्टैंड, आई कैन चेंज ओनली व्हेन देयर इज माई ओन डिजायर टू चेंज (लेकिन मैं केवल तब ही बदल सकता हूँ जब मैं समझता हूँ। मैं सिर्फ तब बदल सकता हूँ जब मेरी खुद को बदलने की अपनी इच्छा है)। भीड़ के पास कोई समझ नहीं होती, बिना समझे आप बदलोगे क्या। आप ये पँखा समझते नहीं, आप इसे बदल सकते हो?
कैन यू चेंज द डिजाइन ऑफ दिस इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक मोटर इफ यू डू नोट अंडरस्टैंड इट? (यदि आप नहीं समझते तो क्या आप इस इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक मोटर का डिज़ाइन बदल सकते हैं?) भीड़ कुछ समझती ही नहीं, वो बदलेगी क्या। और दूसरी बात भीड़ की अपनी कोई मर्ज़ी होती ही नहीं है। भीड़ तो दूसरे की मर्ज़ी का गुलाम होती है। द् क्राउड डज नॉट हैव एनी डिजायर ऑफ़ इट्स ओन। इट इज ऑलवेज ए स्लेव टू समबडी एल्सेज डिजायर। (भीड़ की अपनी कोई इच्छा नहीं होती है, यह हमेशा किसी और की इच्छा की गुलाम होती है।)
देयर आर सो मेनी ओफ़ यू सिटिंग ओवर देयर, राइट? (वहाँ बहुत सारे लोग बैठे हैं, ठीक है?) दिखने में तो ये भी एक भीड़ ही है। दिखने में ये भी भीड़ है तो क्या इसका ये अर्थ है कि जितने भी लोग यहाँ बैठे हैं सब अन्धे हैं? नहीं, इसका ये अर्थ नहीं है। इसका ये अर्थ बिलकुल भी नहीं है कि हम जितने भी लोग यहाँ भीड़ में बैठे हैं, हम अन्धे हैं। यहाँ पर दो तरह के लोग बैठे हैं। एक वो जो समझ रहे हैं और दूसरे वो जो सिर्फ़ फॉलो कर रहे हैं, अनुकरण कर रहे हैं।
एनीबडी हू अंडरस्टैण्ड्स इवन इफ इट अपीयर्स दैट फ़िज़िकली ही इज इन क्राउड, ही इज नॉट एक्चुअली ए पार्ट ऑफ द् क्राउड, ही इज ऐन इंडीविजुअल एंड द फेलो हू डज नॉट अंडरस्टैण्ड इवन व्हेन ही अपीयर्स टू बी स्टैंडिंग अलोन, ही इस स्टिल अ पार्ट ऑफ द क्राउड (कोई भी व्यक्ति जो समझता है भले ही ऐसा लगे कि वह शारीरिक रूप से भीड़ में है, असल में वह भीड़ का हिस्सा नहीं है, वह व्यक्तिगत है और जो व्यक्ति समझता नहीं, वह अकेला खड़ा दिखाई देता है, वह अब भी भीड़ का हिस्सा है)।
इससे फ़र्क नहीं पड़ता कि आप दस लोगों के साथ दिखाई पड़ रहे हो कि नहीं। अगर आपकी अपनी जागृति नहीं है, अगर आपकी अपनी दृष्टि नहीं है, अगर आपकी अपनी इंटेलीजेंस नहीं है तो अगर आप अकेले भी खड़े हो कहीं पर तो आप भीड़ का हिस्सा ही हो क्योंकि भीड़ कहाँ होती है। भीड़ यहाँ नहीं होती मेरे आसपास।
भीड़ में होने का अर्थ है मेरे मन में भीड़ घुसी हुई है। भीड़ में होने का अर्थ है कि मेरे मन में ज़बरदस्त रूप से कंडीशनिंग हुई पड़ी है। मेरी अपनी कोई विचारणा नहीं है। आई एम थरली इन्फ्लूएंसड बाय अदर्स। अदर्स, अदर्स, अदर्स। आर यू गेटिंग इट? डू यू अंडरस्टैण्ड वाट अ क्राउड मीन्स? क्राउड इज नॉट रिअली ए फ़िज़िकल क्राउड। अ क्राउड इज व्हेन योर माइंड हैज बीन रेडेड बाई अ क्राउड (मैं सचमुच दूसरों से प्रभावित होता हूँ। अन्य, अन्य, अन्य। क्या आप इसे समझ रहे हैं? क्या आप भीड़ का मतलब समझ रहे हैं? भीड़ वास्तव में भौतिक भीड़ नहीं है। भीड़ तब होती है जब आपके दिमाग में भीड़ का समावेश हो जाता है।)
हमारे मनों पर भीड़ ने कब्ज़ा कर रखा है। हम जो भी कुछ बोलते हैं, उसमें हमारा अपना कुछ होता नहीं है। हमारे परिवार वाले बोल रहे होते हैं, समाज बोल रहा होता है, टीचर्स बोल रहे होते हैं, दोस्त बोल रहे होते हैं, आइडियोलॉजीज (विचारधारा) बोल रही होती हैं पर हम नहीं होते हैं। इन मल्टीपल इन्फ्लुएंसेस को मैं भीड़ का नाम देता हूँ। ये सब लोग हैं जो मेरे भीतर घुसे बैठे हैं, और मेरे मुँह से ये बोल रहे है। इसको मैं भीड़ का नाम देता हूँ। बात आप समझ रहे हैं? भीड़ क्या है! वॉट इज क्राउड, इज इट क्लीयर? (भीड़ क्या है ये स्पष्ट है?)
श्रोता: जी सर।
आचार्य प्रशांत: यस। एनीथिंग एल्स दैट हैस कम ऑफ इन द् प्रोसेस ऑफ राइटिंग। कुछ है जो आप बोलना चाहेंगे?
प्र: सर, जैसे आपने अभी शुरु किया था, क्या आपने भी स्टार्टिंग रीडिंग से करी थी?
आचार्य प्रशांत: ये सवाल है या आरोप है?
प्र: नहीं सर, मैं ये कह रहा हूँ आपको कैसे पता था?
आचार्य प्रशांत: तुम्हें कैसे पता? मैं बार-बार बोल रहा हूँ। अदर्स, अदर्स, अदर्स, दैट इज अ साइन ऑफ बाँडेज ( दूसरे ही बंधन के प्रतीक हैं) मैं कौन हूँ तुम्हारे लिए? अदर नहीं हूँ क्या?
प्र: जी।
आचार्य प्रशांत: मैं बार बार बोल रहा हूँ अदर्स की ओर मत देखो, अपनी ओर देखो और तुम मेरा इतिहास जानना चाहते हो। मेरा इतिहास मैं तुम्हें बता भी दूँ तो उससे क्या हो जाएगा। मैं अदर (अन्य) ही तो हूँ न? तुम दस और लोगों से इन्फ्लुएंस्ड हो ग्यारहवाँ मैं बन जाऊँगा तुम्हें इनफ्लुएंस करने वाला। रहूँगा तो मैं अदर ही न।
मैं तुमसे कह रहा हूँ अपनेआप को देखो, अपने जीवन में देखो। जो आदमी अपनेआप को नहीं समझता, वो मुझे समझ लेगा। आई डू नॉट अंडरस्टैंड माई सेल्फ कैन आई अंडरस्टैंड एनीबडी एल्स। (मैं खुद को नहीं समझता, क्या मैं किसी और को समझ सकता हूँ?) समझने वाला तो मैं ही हूँ न। जब मुझमें समझने की क्षमता ही नहीं तो मैं किसी और को क्या समझूँगा। अपनेआप को समझो।
इवन आई टेल यू समथिंग अबॉउट माईसेल्फ यू प्रौबेबली वुड नॉट बी एबल टू अंडरस्टैंड। (अगर मैं अपने बारे में कुछ बता भी दूँ तो सम्भावना यही है कि तुम समझोगे नहीं)। तुम समझोगे नहीं। अगर खुद को समझ लोगे, तो फिर मुझे समझने की कोई ज़रूरत नहीं। ठीक है? हाँ, बिलकुल ठीक है। दिस क्योश्चन इज देन व्हाई डू यू रीड ऑटोबायग्राफीज़ (अब सवाल ये है कि कोइ जीवनी क्यों पढ़े ?)
ऑटोबायोग्राफी (जीवनी) पढ़कर के आप कुछ सीख नहीं सकते। अगर हम ऑटोबायोग्राफी पढ़कर ये सोच रहे हो कि हम कुछ सीख जाएँगे तो हम धन्य हैं। हाँ, ऑटोबायोग्राफी पढ़ के एक वेरिफिकेशन ज़रूर हो सकता है, एक सबूत ज़रूर मिल सकता है। किस बात का? कि मैं पहला नहीं हूँ जिसके साथ ये हो रहा है।
अच्छा ऐसा यहाँ भी हुआ था। ऐसे समझो कि मैंने चाय पी रखी है और मैं जानता हूँ चाय का स्वाद क्या है। फिर मैं किसी की ऑटोबायोग्राफी पढ़ता हूँ। उसमें लिखा है कि चाय पी और चाय में इलायची डली हुई थी। अब मैं समझ सकता हूँ कि इसका अर्थ क्या है? ठीक है न? पर मेरे जीवन में मैंने कभी चाय चखी ही नहीं है। मुझे कुछ नहीं पता चाय का स्वाद क्या होता है। न मैं जानता इलायची क्या होती है। अब मैं किसी की ऑटोबायोग्राफी पढ़ता हूँ। उसमें चाय और इलायची का जिक्र आता है। मुझे कुछ भी समझ में आएगा क्या?
इवेन टू अंडरस्टैंड ऐन ऑटोबायोग्राफी इवेन टू अंडरस्टैंड एनी नैरेटिव बाई एनीबडी बाई एनी अदर, आई नीड टू फर्स्ट हैव अंडरस्टुड माय ओन लाइफ (यहाँ तक कि आत्मकथा, किसी की भी कोई कथा समझने के लिए भी, मुझे सबसे पहले अपने जीवन को समझना होगा)। जो खुद को जानता है, वही गाँधी की ऑटोबायोग्राफी से भी कुछ समझ सकता है, वरना फिर सिर्फ़ यही होगा कि अपना पता नहीं माई एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रुथ पढ़ा और उसका अनुकरण करने लग गये। बात समझ रहे हैं?
कि किसी के पद चिन्हों पर चलने लग गये। और आपने अकसर लोगों को सुना होगा कि हम फ़लाने के दिखाये रास्ते पर चल रहे हैं। क्यों? तुम खुद अन्धे हो। तुम फ़लाने के दिखाये रास्ते पर चल रहे हो। फ़लाना चला था तुम्हारे दिखाये रास्ते पर? उसने अपना रास्ता खुद बनाया और तुम उसके बनाये रास्ते पर चल रहे हो तो क्या तुम वाकई उसका अनुसरण भी कर पा रहे हो!
इफ आई रिअली वॉन्ट्स; देयर इज ब्यूटिफुल नॉवेल बाई हरमन हेस्स । और अभी मैंने आपसे बात करी कि अच्छे टेक्स्ट (लेख, किताबें) पढ़ना शुरू करिए। सिद्धार्थ कैन बी वन ऑफ देम । सिद्धार्थ बाई हरमन हेस्स। नोट कर लीजियेगा। तुम नोट भी तब कर रहे हो जब मैं कह रहा हूँ।
तो इसमें सिद्धार्थ नाम का जो कैरेक्टर (चरित्र) है वो जाता है, वो बुद्ध से मिलता है। वो बुद्ध के पास एक दिन रहता भी है। बुद्ध को सुनता है। अगले दिन वो बुद्ध को छोड़कर के चल देता है। तो उससे कोई पूछता है कि ये तुमने क्या किया? बड़े भाग्य की बात थी कि तुम साक्षात बुद्ध के सामने आये। एक दिन तुमने इन्हें सुना भी। तुम इन्हें छोड़कर के क्यों चल दिये।
तो कहता है कि मैं वो क्यों करूँ जो बुद्ध कह रहे हैं। मैं वो करूँगा जो बुद्ध ने खुद भी किया। बात समझिएगा। वो कहता है कि मैं वो क्यों करूँ जिसकी ये बात कर रहे हैं। मैं वो करूँगा जो इन्होंने खुद भी किया। इन्होंने खुद क्या किया था। इन्होंने किसी की नहीं सुनी। जब इन्होंने किसी की नहीं सुनी और किसी की न सुनकर के ये बुद्ध बने तो मैं इनकी भी क्यों सुनूँ।
बात आ रही है समझ में?
सो वॉट इज द प्वाइंट इन ऑटोबायोग्राफीज़? बिकम समबडी, बी समबडी फाइंड दैट एनटीटी आउट (तो फिर आत्मकथाओं का क्या मतलब है? कुछ बनो, कुछ हो जाओ, उस इकाई का पता लगाओ)। और जो इस काबिल है कि उसकी बायोग्राफी लिखी जा सके। किसी और की पढ़-पढ़ के क्या हो जाएगा। उसका उपयोग बस इतना ही है कि उससे आपको जैसा मैंने शुरू में कहा, वेरिफिकेशन मिल सकता है, सबूत मिल सकते हैं। ठीक है?
और जानना तो आपको खुद पड़ेगा। और जानना अपने ही जीवन में पड़ेगा। उसका कोई सब्स्टीट्यूट (विकल्प) नहीं है कि किसी की ऑटोबायोग्राफी पढ़ ली। मैंने खुद तो कुछ नहीं किया है। मैं खुद घर से बाहर नहीं निकला पर मैंने अराउंड द वर्ल्ड इन फोर्टी डेयज (एक किताब का नाम) पढ़ ली है। उससे क्या हो जाएगा।
खुद मुझमें छिपकली को भी भगाने की सामर्थ्य नहीं है पर मैंने सिकन्दर के बारे में बड़ी कहानियाँ पढ़ी हैं कि बड़ा बहादुर था। उससे क्या होगा? तुम पहले भी छिपकली से डरते थे, अभी भी डरोगे। सिकन्दर ने जीती होगी पूरी दुनिया तो जीती होगी तो तुमने बहुत जान लिया सिकन्दर के बारे में। उससे क्या हो जाएगा। तुम पहले सिकन्दर को छोड़ो छिपकली की फ़िक्र करो। बात ठीक है कि नहीं है?
श्रोता: जी सर।
YouTube Link: https://www.youtube.com/watch?v=lL0Hx2L_a34