प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, मेरी गर्लफ्रेंड (प्रेमिका) क्रिस्चियन (ईसाई) हैं, काफ़ी समय से मैं उसे आपसे मिलवाना चाहता हूँ पर असमर्थ हो रहा हूँ। मैं उसके साथ बाइबिल भी पढ़ता हूँ और समझाने की कोशिश कर रहा हूँ कि आपकी शिक्षाएँ हूबहू भगवान क्राइस्ट (ईसा मसीह) से मिलती हैं, पर वह फिर भी इसे स्वीकार नहीं कर पा रहीं। हम चार साल से रिश्ते में हैं। मेरे शुरुआती समय में उसने मेरी काफ़ी मदद की है। हालाँकि अब हमारे बीच कोई घनिष्ठ सम्बन्ध नहीं है, पर फिर भी मैं कर्तव्यवश उसके साथ हूँ। आचार्य जी, न तो मैं उसे आपके पास ला पा रहा हूँ, न उसे छोड़ पा रहा हूँ। कृपया मार्गदर्शन करें।
आचार्य प्रशांत: तुम कह रहे हो, तुम्हारी गर्लफ्रेंड क्रिस्चियन हैं, तुम उसके साथ बैठकर बाइबिल पढ़ते हो। वो भी तुम्हारे साथ बैठकर उपनिषद् पढ़ती हैं क्या? ज़ोर से बोलो न, हाँ?
प्र: नहीं पढ़ती।
आचार्य: नहीं। तो फिर ये जो तुम बाइबिल का पाठ कर रहे हो, ये धर्म नहीं अधर्म हो गया। यहाँ बैठे लोग और मुझे सुनने वाले ये अच्छी तरह जानते हैं कि मैं किसी भी संगठित धर्म का पैरोकार नहीं हूँ, कि मैं जीजस और वेदान्त को अलग-अलग नहीं देखता हूँ। लेकिन इस कहानी में जो चल रहा है वो बात धार्मिकता की है ही नहीं, वो बात तो व्यक्तिगत जिद की है।
जो वास्तव में जीजस की शिक्षाओं को समझता होगा वो वेदान्त से इनकार कैसे कर देगा, मुझे बताओ। और अगर कोई ऐसा है जो कहे कि उसको जीजस से प्यार है, पर वेदान्त नहीं पढ़ना, वो तो ऐसा ही है न, जो जीजस को भी न जानता, न समझता, जिसे ईसा से भी कोई प्यार है नहीं। तो मैं यहाँ बात बराबरी की नहीं कर रहा हूँ, मैं यहाँ बात लेन-देन की और व्यापार की नहीं कर रहा हूँ, कि मैं हिन्दू हूँ, तू ईसाई है, मैं तेरी बाइबिल पढ़ूँगा, तू मेरा उपनिषद् पढ़; मैं वो बात नहीं कर रहा हूँ, कृपया मुझे गलत न समझें। मैं कह रहा हूँ कि अगर धार्मिकता सच्ची है, तो वो एक ग्रन्थ और दूसरे में भेद कैसे कर ले रही है, ये बताओ।
हिन्दू अगर बोले कि उसको छान्दोग्य उपनिषद् तो बहुत भाता है, लेकिन ‘सरमन ऑन द माउन्ट’ (ईसा मसीह का गिरि प्रवचन) समझ नहीं आता है, तो मैं कहूँगा, ‘तू छोड़, तुझे आज तक उपनिषद् भी समझ में नहीं आया फिर।’ इसी तरह से ईसाई अगर बोले कि बाइबिल तो पढ़ती हूँ लेकिन वेदों का और उपनिषदों का मेरे सामने नाम मत लेना, तो ये झूठा ईसाई है। मैं ये इल्ज़ाम नहीं लगा रहा कि उसे उपनिषदों से प्यार नहीं है, मैं और ज़्यादा गहरी बात कह रहा हूँ। मैं कह रहा हूँ, ‘उपनिषदों को छोड़ दो, उसे तो जीजस से भी प्यार नहीं है।’ धर्म में ऐसा पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण थोड़े ही चलता है, ये बिगोट्री (कट्टरता) कहलाता है।
धर्म सब सीमाओं के उल्लंघन का नाम हैं न या अपनी सीमा को और पकड़े रहने का नाम हैं धर्म, बोलो। बोलो?
प्र: सब सीमाओं के उल्लंघन का।
आचार्य: बात तो बेटा इतनी दूर तक भी जा सकती है कि मैं एक हिन्दू के साथ रह रही हूँ, तो मैं सिनर (पापी) हो गई। जा सकती है न। गई है?
ज़ोर से बोलो, हाँ। गई है न?
प्र: हाँ।
आचार्य: शाबास बेटा! शाबास! क्या प्रेमिका चुनी है! मैं हिन्दू के साथ रह रही हूँ, तो मैं सिनर हो गई। तो फिर उस सिन (पाप) का फिर रिपेन्टेंस (पछतावा), प्रायश्चित भी होता होगा किसी तरीके से, कैसे होता है? दे दो, हाथ में दे दो (संस्था के सदस्य की ओर माईक देने के लिए इशारा करते हुए)। या तो सवाल पूछते नहीं, मेरे पास आये हो तो मैं तो खोदता हूँ।
प्र: आचार्य जी, मैंने ही स्टार्टिंग (शुरुआत) में कमिटमेंट (वायदा) की; लाइफ़ के रिगार्डिंग क्लैरिटी (जीवन के सम्बन्ध में स्पष्टता) कुछ थी नहीं और उसने काफ़ी पेन (दर्द) फेस (सामना) किया लाइफ़ (जीवन) में, और ऊपर से कंडीशनिंग (अनुकूलन) जो होती है क्रिस्चियन, कंडीशनिंग होती है। एक कनवर्जन (धर्म-परिवर्तन) की थ्योरी (सिद्धान्त) रहती है कि यू विल ऑल्सो बिकम क्रिस्चियन (तुम भी क्रिस्चियन बन जाओ)।
आचार्य: क्या क्रिस्चियन, क्या कनवर्जन ?
प्र: एक गुड न्यूज़ (अच्छी खबर) फैलाने का उनमें जो…
आचार्य: हाँ, कि दूसरों को भी कनवर्ट करें। हाँ प्रोसेलिटाइज़ेशन (धर्मान्तरण)।
प्र: मुझे तो ये था कि मेरे तो इतने सारे भगवान हैं एक और एड (जोड़) कर दूँगा। (सब हँसते हैं)
(आचार्य जी आश्चर्य में देखते हैं)
आचार्य: गजब है भाई! गजब है! (आचार्य जी मुस्कुराते हुए)। तो फ़िलहाल देवी जी की जिद है कि मैं क्रिस्चियन हूँ, तो मेरी कनवर्जन की मान्यता है। क्योंकि भाई वो तो धर्म ही कनवर्जन पर आगे बढ़ता है, और लोगों का धर्मान्तरण करा कर के अपनी तादाद बढ़ाओ। और तुम इतने गाय आदमी हो कि तुमने कहा, ‘मैं हो ही जाता हूँ कनवर्ट , छियासठ करोड़ देवी देवता हैं, छियासठ करोड़ एक सही।’
(श्रोतागण हँसते हैं)
मुझे कोई आपत्ति नहीं है। तुम छियासठ करोड़ देवी देवताओं में बहुत ऊपर की जगह दे दो जीजस को। जीजस वास्तव में बहुत ऊपर की जगह के हकदार भी हैं, लेकिन इतना समझ लो कि जो कोई तुमसे ये करवा रहा है वो प्यार नहीं करता तुमसे; न तुमसे प्यार करता है, न जीजस से प्यार करता है। ये कौन सी शर्तें हैं भाई इश्क में, कि तू अपना धर्म बदल, अपना मज़हब बदल, फिर मैं तेरे साथ रहूँगी। ये कौनसा खेल है भाई। और कोई इस तरह की शर्त रखता हो किसी के सामने, सरपट भाग लेना, एकदम रुकना मत।
प्यार दीवारें गिराने का नाम है या अपनी ही दीवारों में दूसरे को भी कैद कर लेने का, बोलो।
कि जैसे कोई अपनी ही स्वरचित मानसिक कैद के भीतर हो, और तुम उसे आवाज़ दो कि आ, बाहर आ, खुला मैदान, खुला आसमान। और वो तुमसे कहे, ‘मैं तो बाहर आने से रही, अगर प्यार है तुम्हें मुझसे तो तुम अन्दर आ जाओ न।’ तुमने कहा, ‘बिलकुल, अभी तुझे अपनी आशिकी का सबूत देता हूँ।’ हिन्दुस्तानी हूँ भाई, कुछ और न आता हो हमको, हमें प्यार निभाना आता हैं (व्यंग्य)।
“है प्रीत जहाँ की रीत सदा, मैं गीत वहाँ के गाता हूँ।” — इससे ज़्यादा मूर्खतापूर्ण बात हो सकती है? कुछ और न आता हो हमको, हमें प्यार निभाना आता हैं। जब तुम्हें कुछ आता ही नहीं, तो तुम प्यार जानते क्या हो, पगले। फिर तो तुम प्यार के नाम पर कुछ मूर्खतापूर्ण काम कर रहे होगे, उसको प्यार समझ रहे हो और निभाये भी जा रहे हो, निभाये भी जा रहे हो।
ये मैं जो यहाँ बात करता हूँ इस भवन में, क्या वेदान्ती या हिन्दू होने के नाते करता हूँ, मैं आपसे पूछ रहा हूँ।
प्र: नहीं।
आचार्य: आप एक हिन्दू को सुनने आते हैं क्या? मैं किस कोण से आपको हिन्दू नज़र आता हूँ।
श्रोता: नाम से।
आचार्य: हाँ, नाम।
रही ईसाइयों की बात, पिछले चार साल से हर साल जाड़ों में ऋषिकेश में एमडीटी (मिथ डिमोलिशन टूर) होता है, उसमें सब विदेशी ईसाई ही आकर बैठते हैं, सैकड़ों की तादाद में; वो तो नहीं कहते कि इस आदमी के सामने बैठेंगे तो उनका धर्म भ्रष्ट हो जाएगा। कोई इस जगह पर आने से ये कहकर इनकार करे कि वो एक हिन्दू के सामने नहीं जाना चाहता। तो झूठ बोल रहा है, हकीकत ये है कि वो यहाँ इसलिए नहीं आ रहा क्योंकि वो सच के सामने नहीं जाना चाहता।
मैं यहाँ हिन्दुत्व नहीं बघार रहा हूँ, मैं सच बोल रहा हूँ। जिन्हें सच सुनना है वो सब यहाँ आते हैं, दुनिया के हर कोने से आते हैं, हर पन्थ से आते हैं, हर मज़हब से आते हैं। न जानें कितने ईसाई; भारतीय भी, विदेशी भी आते हैं, सुनते हैं, हाथ बटाते हैं, स्वयंसेवक बनते हैं। ईसाई, मुसलमान, जितनी धाराएँ हो सकती हैं, सब यहाँ मौजूद रहती हैं क्योंकि उनको पता है कि यहाँ पर हिन्दू धर्म का थोड़े ही प्रचार-प्रसार हो रहा है। सच की बात हो रही है भाई, हाँ! ये अलग बात है कि हिन्दुस्तान में पैदा हुआ हूँ, तो भाषा वेदान्ती है, हिन्दी में बोलता हूँ।
कुरान पर मैंने नहीं बोला? बाइबिल पर मैंने नहीं बोला? अभी क्रिसमस बीता है तो उस पर इन लोगों ने प्रीमियर (प्रथम प्रदर्शन) करा था, जीजस पर जितनी वार्ताएँ हैं मेरी, उनका। जीजस पर मैंने कम बोला है क्या? और जीजस के प्रति मेरा कम प्रेम रहा है क्या?
बचो! खतरे में हो।
यहाँ पर जो जिद है वो धर्म के खिलाफ़ नहीं, सच के खिलाफ़ है। जो लड़की सच के खिलाफ़ जिद पकड़ कर बैठी हो, उसकी संगत ठीक नहीं। उसके साथ अगर रहना है, तो उसकी जिद छुड़वाओ।
प्र: आचार्य जी, उसमें मेरी भी हरकतें रहती हैं। तो उसी बेसिस (आधार) पर जज (निर्णय) करती है कि मैं कहाँ जा रहा हूँ। वो अब इम्प्रूव (सुधार) हो रहा है, तो उसमें भी थोड़ी ओपनिंग (खुलापन) आ रही है कि इंसान..
आचार्य: अरे! तो यहाँ पर वो तुम्हारी हरकतें देखने थोड़ी आएगी, मेरी हरकतें देखने आएगी न। और फिर मेरी हरकतों का तुमसे क्या ताल्लुक, तुम कैसे मध्यस्थ बन गये। इंटरनेट पर सारा मामला मौजूद है, खुद देखे। या तुम सर्विस प्रोवाइडर (सेवा प्रदाता) हो?
इंसान हूँ, यूँही बीच-बीच में कोई भूल-चूक हो जाती हो तो मैं नहीं जानता। वरना यहाँ एक-एक बात जो होती है, वो विशुद्ध खरा सोना है, उससे कोई भी इनकार नहीं कर सकता। बात हिन्दू, मुसलमान, क्रिस्चियन की नहीं हैं।