प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, मेरा नाम दृष्टि है और आज मैं एक न्यूज पढ़ रही थी जिसमें कि यह कहा जा रहा था कि साउथ कोरिया जिसकी फर्टिलिटी रेट अभी ०.६ (पॉइंट सिक्स) रह गई है और २१०० तक उसके अस्तित्व पर संकट आ सकता है, जिसको रोकने के लिए सरकार फाइनेंसियल सपोर्ट वगैरह दे रही है और यह जो फर्टिलिटी रेट कम हुई है, इसका मेन कारण है कि वहाँ की जो यूथ है वो करियर ओरिएंटेड हो गई है और दूसरा और भी कई कारण है, जैसे कि वहाँ की लिविंग कॉस्ट महँगी है और इनकम इनइक्वलिटी है, तो इन सब के कारण सरकार कुछ फाइनेंसियल सपोर्ट दे रही है ताकि लोग बच्चे पैदा करें ज़्यादा।
यही सेम कंडीशन जापान, चाइना, यूरोप की कुछ कंट्रीज़, यूएस ये सब जगह पे देखने को मिल रहा है, जहाँ की फर्टिलिटी रेट गिरती जा रही है और वहाँ एजिंग पॉपुलेशन, डिक्लाइनिंग बर्थ रेट को लेकर चिंता है। चिंता है सरकार को, तो मेरा सवाल यह है कि जब क्लाइमेट चेंज जैसे बड़ी समस्या हमारे पूरे मानव जाति के अस्तित्व पर इतना बड़ा संकट है, उस समय यह फर्टिलिटी रेट और पॉपुलेशन बढ़ाने की कोशिश पर कितना ज़ोर देना चाहिए, मतलब कितना ध्यान देना ज़रूरी है, और यह जो हम मतलब आए दिन फर्टिलिटी रेट और रिप्लेसमेंट रेट जैसे फैंसी वर्ड्स यूज़ करते हैं, जिसको देखो सब यही यूज़ करके बोल रहा है कि अरे हम खत्म हो जाएँगें या फिर हमारा अस्तित्व मिट जाएगा तो इन सब वर्ड्स का क्या रेलीवेंस रह गया आज के टाइम पे?
आचार्य प्रशांत: कुछ नहीं रह गया। किसने कह दिया कि अभी जितनी जनसंख्या है, उसको बनाए रखना ज़रूरी है, बहुत मूर्खता की बात है, जनसंख्या गिर रही है तो ख़तरा नहीं है, यह तो उत्सव की बात है। किसने कह दिया कि अभी २०२४ में जो जनसंख्या कर ली है, उस जनसंख्या के आंकड़े में कोई जादू है, वह कोई खास विशिष्ट दैवीय आंकड़ा है और उसको बचा के रखना ज़रूरी है किसने कह दिया? गिर रही है तो अच्छी बात है, गिर रही है। बढ़ी कैसे थी यह देखो ना, बढ़ी ऐसे थी कि महिलाओं का अपने शरीर पर नियंत्रण ही नहीं था, उनको पकड़-पकड़ के प्रेगनेंट कर दिया जाता था, तो बढ़ गई थी।
ठीक वैसे जैसे गायों, भैंसों का फोर्स्ड इनसेमिनेशन होता है, लगभग वैसे ही महिलाओं का होता था। अब टेक्नोलॉजी वहाँ पहुँच गई है, जहाँ मींस ऑफ प्रोडक्शन बाहुबल पर निर्भर नहीं करते। आप बहुत पैसा कमा सकती हैं कोडिंग करके। पहले पैसा कमाना हो तो हल चलाना आएगा, हल चलाना कहाँ से करोगे, आपके इतनी मसल्स ही नहीं हैं, आप लड़की हो। घोड़े पर यात्रा करनी पड़ेगी अगर ट्रेडिंग करनी है तो, अब ट्रेडिंग भी ऑनलाइन हो जाती है। आप घोड़े पर कैसे यात्रा करोगी, आपके लिए घोड़ा संभालना थोड़ा मुश्किल पड़ेगा आपका महिला का शरीर है।
तो पहले आमदनी के जो ज़रिए थे, वह बाहुबल पर बहुत निर्भर करते थे, चाहे वह कोई भी ज़रिया हो, ज़्यादातर तो कृषि ही थी, दुनिया में सब देश कृषि प्रधान थे और कृषि के अलावा क्या होता था, व्यापार होता था। अब व्यापार भी बहुत बाहुबल माँगता था पहले, वास्कोडिगामा आ रहा है, इधर कोलंबस जा रहा उधर, ये सब व्यापार के लिए गए थे।
पहला जो इनका ऑब्जेक्टिव था, वह व्यापार ही था, और देखो व्यापार के लिए कितनी शारीरिक आफत झेल कर गए थे। उतनी शारीरिक आफत झेलना लड़की के लिए मुश्किल होता तो व्यापार में भी लड़कियाँ पीछे रह जाती थी, कृषि में तो पीछे रहेंगी, कैसे वो बैल संभालेंगी, कैसे वो हल संभालेंगी, और व्यापार में भी पीछे रह जाती थी। और जो तीसरा ज़रिया होता था तब किसी प्रकार के संसाधन जुटाने का, वह होता था युद्ध, वॉर कि और कुछ नहीं, किसी तरीके से पैदा कर सकते तो लूट खसोट के पैदा करो और लूटने खसोटने में महिलाएँ पीछे रहती थीं, उसके लिए भी यही चाहिए, मांसपेशियों का ज़ोर, वह नहीं है उनके पास।
अब ऐसा नहीं है, अब आप उन तरीकों से कमा सकते हो जिनमें इसका ज़ोर लगता ही नहीं। तो अब आपको आज़ादी मिल रही है, जब आपको आज़ादी मिल रही है तो आपका अपने शरीर पर अधिकार वापस आ रहा है, पहले आपका अपने शरीर पर अधिकार ही नहीं था, क्योंकि जो कमाएगा, उसी का हक चलेगा।
पुरुष ही कमाता था, पुरुष ही लड़ाइयाँ करने जाता था, पुरुष ही लंबी-लंबी यात्राएँ करता था व्यापार के लिए, जंगली जानवर होते थे, अब आज तो तमाम तरीके की सुविधाएँ आ गई हैं, जानवर आपको नहीं खाने आ रहा। पहले जंगली जानवर थे, अब जंगली जानवरों से भी पुरुष ही रक्षा करता था। ना जाने कितने तरीके की आफतें थी, और उन सब आफतों का जवाब क्या होता था? बाहुबल और बाहुबल पुरुष के पास ज़्यादा रहता था, और महिला के पास एक तो बाहुबल कम है, ऊपर से उसके पास गर्भ भी है, और वो लगभग लगातार वो गर्भवती रखी जाती थी।
तो एक तो शरीर से थोड़ी कमज़ोर है, ऊपर से जब प्रेगनेंट है तो और कमज़ोर हो जाती है, वो क्या जान दिखाएगी, क्या वह लड़ाई करेगी? तो एकदम ही पीछे हो जाती थी शारीरिक कमज़ोरी की वजह से, अब आगे बढ़ते-बढ़ते-बढ़ते आप वहाँ पहुँचे हो जहाँ कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप शरीर से कमज़ोर हो कि नहीं हो, आप आज वो बिल्कुल उपलब्ध है कि आप चार फीट आठ इंच की एक लड़की हो सकती हो, बिल्कुल दुबली पतली पैंतीस किलो की, लेकिन वो मोटा पैसा कमा रही हो, आज संभव है, पहले नहीं हो सकता था।
तो आज यह संभव हुआ है, तो महिलाओं ने कहा है, भैया हमारा शरीर इसलिए थोड़ी है कि हम बच्चे ही पैदा करते रहे, तो फिर जो फर्टिलिटी रेट है, वो गिर रहा है, पूछा यह जाना चाहिए कि जब बढ़ा इतिहास में तो कैसे बढ़ा?
बढ़ा ऐसे कि औरतों का दमन कर कर के बढ़ा। अब वही दमन वापस आए, उसके लिए दुनिया के बहुत सारे देश औरतों को लालच दे रहे हैं, तुम घर पर बैठो, यह फेमिनिज्म वगैरह बेकार की बात है, यह स्वतंत्रता या इंडिपेंडेंस इसमें कुछ नहीं रखा।
घर में बैठो, आराम की ज़िन्दगी जिओ, तुम घर में बैठो, बच्चे पैदा करो, हम तुम्हें मुफ़त का पैसा देंगे। काहे के लिए पैदा करो वो, इतने लोग क्यों होने चाहिए? मैं फिर पूछ रहा हूँ, २०२४ में इतनी जनसंख्या कर ली है आपने, आठ अरब, एट बिलियन, आठ सौ करोड़ से ऊपर की, इतनी बचाए रखना ज़रूरी क्यों है? यह तो सस्टेनेबल वैसे भी नहीं है। अभी मैं कल ही कह रहा था कि दुनिया में जो सस्टेनबल लिमिट है, मटेरियल कंज़म्शन की, हर तरह का मटेरियल ले कर के, वो है आठ टन पर कैपिटा और दुनिया आठ से ज़्यादा अभी ही कंज़्यूम कर रही है औसतन।
लेकिन दुनिया के अस्सी प्रतिशत लोग चार टन से भी कम कंज़्यूम कर रहे हैं, तो माने उनका कंज़म्शन बढ़ना चाहिए उनकी वेलफेयर के लिए तो कंज़म्शन बढाओगे तो पृथ्वी के पास रिसोर्स नहीं है। तो कैसे करें कि कंज़म्शन बढ़ा लें और रिसोर्स भी रहे? उसके लिए तो जनसंख्या ही कम करनी पड़ेगी ना। मैं किसके कंज़म्शन बढ़ाने की बात कर रहा हूँ? अमीरों के कंज़म्शन की नहीं, गरीबों के, जिनको ठीक से खाने को नहीं मिलता। अभी चार फीट, आठ इंच लड़की की मैंने बात करी, उसका तो कंज़म्शन बढ़ना चाहिए ना और भारत में सब ऐसे ही हैं।
१५० करोड़, ये जो ८०० करोड़ की हमने बात करीं, उसमें १५० करोड़ तो भारत में ही हैं। उसमें सब जो गरीब, ऐसे कुपोषण वाले मुल्क हैं, सबको जोड़ दो, तो ये आंकड़ा पहुँच जाता है ४०० करोड़ तक, और भारत आ जाएगा, इधर पाकिस्तान, इधर बांग्लादेश है, उधर नाइजीरिया है, बहुत सारे ऐसे देश हैं, बहुत आबादियाँ हैं इनकी, और इनको तो अभी कंज़म्शन बढ़ाने की ज़रूरत है, और अभी ये जितना कंज़म्शन कर रहे हैं, उतना ही पृथ्वी नहीं संभाल सकती तो कंज़म्शन बढ़ तो सिर्फ़ एक सूरत में ही सकता है ना, कि आबादी कम हो।
पर हम मान के बैठे हैं जितनी आबादी है अभी, ये तो कोई सेक्रेड फिगर है, 'सेक्रेड' — यह कम नहीं होनी चाहिए, कम होनी चाहिए। आठ अरब नहीं, दुनिया की जो सस्टेनेबल आबादी है, वह चार अरब से भी कम होनी चाहिए। किसी को मारने-वारने की जरूरत नहीं है, वह चीज़ अपने-आप हो जाती है।
दो लोग हैं, जो मिलकर यह काम कर रहे हैं, एक महिलाएँ और दूसरे यमराज। महिलाएँ कह रही हैं, हम पैदा नहीं करेंगे, यमराज कह रहे हैं, हम मार देंगे।
तो जो बुड्ढा होगा, वह मर तो रहा ही है, और महिलाएँ कह रही हैं, हम पैदा करेंगे नहीं, तो अपने-आप दुनिया की आबादी अब कम होगी, और इस बात से वह लोग घबराए हुए हैं जिनके बड़े-बड़े स्वार्थ हैं भारी आबादी में।
जैसे कैपिटलिस्ट, लोग कम हो जाएँगें, तो उनका माल कौन खरीदेगा? जितने बड़े-बड़े दुनिया के कैपिटलिस्ट हैं, एलोन मस्क जैसे, इनको आप बहुत सुनोगे बोलते हुए कि आबादी बढ़ाओ, आबादी बढ़ाओ, आबादी बढ़ाओ। एक दिन वो किसी से बोल रहे थे, बोले, सोचो दुनिया की जो अभी आबादी है, अगर इसकी सौ गुना हो जाए तो कितने सौभाग्य की बात होगी? जितनी अभी आबादी है, उसमें एक मोजार्ट पैदा हुआ, अगर सौ गुनी आबादी हो गई, तो सौ मोजार्ट पैदा होंगे। मैंने कहा, मेरे सामने बोला होता तो मैं कहता, कि सौ गुनी आबादी हो गई, तो सौ मस्क भी तो पैदा हो जाएँगें। तो सौभाग्य है कि दुर्भाग्य है?
पर ऐसी-ऐसी बिल्कुल मूर्खता पूर्ण बातें करी जा रही, आबादी बढ़ाओ, आबादी बढ़ाओ, जबकि अभी जितनी आबादी है, उसको खिलाने के लिए पृथ्वी के पास संसाधन नहीं है। उसी का नतीजा है कि बहुत बड़ी आबादी कुपोषित है। लेकिन वह लोग जो अपने कोटे से कहीं ज़्यादा कंज्यूम कर रहे हैं, वही लोग हैं जो कह रहे हैं, आबादी बढ़ाओ, आबादी बढ़ाओ, आबादी बढ़ाओ। नहीं बढ़ानी भाई। और भी जो प्रजातियाँ हैं पृथ्वी पर, उनको जीने का कोई हक है कि नहीं है? या तुम ही अपनी आबादी बढ़ाते रहोगे?
प्रतिदिन हज़ार प्रजातियाँ सदा के लिए विलुप्त हो जाती हैं। पिछले पचास सालों में दुनिया भर के सत्तर प्रतिशत जीव-जन्तु हमने विलुप्त कर दिए, सिर्फ पचास साल पचास साल कुछ भी नहीं होता। पचास साल के अंदर-अंदर दुनिया भर के सत्तर प्रतिशत हमने प्रजातियाँ विलुप्त कर डाली। तुम ही जीते रहोगे, तुम ही अपनी बढ़ाते रहोगे, और महिलाओं के पीछे पड़े हो कि बच्चा पैदा करो, बच्चा पैदा करो। जिए नहीं बच्चा पैदा करे।
मैं तो और आगे जाकर कहता हूँ, मैं कह रहा हूँ, यह बच्चा पैदा करने का कार्यक्रम ही महिला के शरीर से निकाल दो, क्योंकि यह महिला की ज़िन्दगी पर बहुत बड़ा बोझ होता है, वह कुछ नहीं कर पाती। एक बार बच्चा पैदा हो गया, वह ज़िन्दगी में कौन-सा और काम करेगी?
पहले नौ महीने पेट में रहेगा, उसके बाद कम से कम पाँच साल उसको फुल टाइम अटेंशन देना पड़ता है। पाँच साल भी कम बोल रहा हूँ, हमारे यहाँ तो भारत में ममता इतनी ज़्यादा होती है कि पंद्रह साल तक उसे फुल टाइम अटेंशन देती है, और एक पर रुकते भी नहीं, दो-तीन-चार होते हैं। अब वो क्या ज़िन्दगी में कला बढ़ाएगी, साहित्य बढ़ाएगी, विज्ञान बढ़ाएगी, खेल बढ़ाएगी, राजनीति बढ़ाएगी, कुछ नहीं बढ़ाती, वो बस आबादी बढ़ाती है।
तो मैंने तो बोला है कि यह जो बच्चा पैदा करने वाली चीज है, यह महिला के शरीर में होनी ही नहीं चाहिए। तकनीक इतनी विकसित हो चुकी है, यह पूरा जो काम है, क्या करना है, आपको एक एग सेल चाहिए और एक स्पर्म सेल चाहिए, उनको तो आप शरीर से बाहर भी मिला कर के बच्चा पैदा कर सकते हो। क्यों महिला की जान ले रहे हो?
कितनी महिलाएँ तो प्रसव में ही मर जाती हैं, उनकी ज़िन्दगी इतनी सस्ती है? और प्रसव में जो पीड़ा होती है, वह बयालिस हड्डियों के टूटने के बराबर होती है।
पुरुष जो कह रहे हैं, आबादी बढ़ाओ, उनको कहो, तुम्हारी पहले बयालिस हड्डियाँ तोड़ के दिखाते हैं, दर्द कितना होता है बच्चा पैदा करने में। बयालिस हड्डियाँ एक साथ टूट रही हो, इतना दर्द होता है चाइल्ड बर्थ में, और महिला को कहा जा रहा है, तुम पैदा करो, तुम पैदा करो। काहे को पैदा करे वो?
उसको दर्द अगर झेलना भी है, तो किसी ऊँचे उद्देश्य के लिए झेलेगी ना? या यही करने के लिए पैदा हुई है वो? कि पहले वह बच्चा पैदा करे, फिर टट्टी साफ करे, फिर यह करे, फिर दोबारा वह प्रेगनेंट हो जाए, काहे के लिए भाई? इंसान है मशीन है गाय है भैंस है दूध देने का यंत्र है, क्या है वो?
इन चक्कर में बिल्कुल मत पड़ो। अरे, बहुत बड़ी कैटास्ट्रोफीज़ कम हो रही हैं, बहुत लोग इस तरह का प्रोपेगेंडा कर रहे हैं।
आबादी कम हो रही है तो ये सेलिब्रेशन की बात है जितनी कम हो रही है, उससे ज़्यादा गति से और कम होनी चाहिए। पृथ्वी ८-१० अरब मनुष्यों का बोझ नहीं उठा सकती, आबादी कम होना ज़रूरी है, कम हो रही है, अच्छी बात है, ख़तरे की बात नहीं है, साधारण गणित है, अर्थमेटिक। कितने रिसोर्स चाहिए और पृथ्वी कितना दे सकती है, सीधा-सीधा गणित है।
आपको एक डिगनिफाईड ज़िन्दगी जीने के लिए जितना रिसोर्स चाहिए, उतना देने के लिए सात पृथ्वियाँ लगेंगी। कहाँ से लाए साथ पृथ्वियाँ? दुनिया के जितने लोग हैं, सबको मैं नहीं कह रहा कि उनका अमेरिका जितना पर कैपिटा कंज़म्शन हो जाए पर एक गरिमा युक्त जीवन अगर उन्हें जीना है, एक डिगनिफाईड लाइफ़ तो कुछ तो कंज़म्शन करोगे न? उतना कंज़म्शन अगर हर आदमी, सारे आठ सौ करोड़ करने लगें तो उनको चाहिए आधा दर्जन पृथ्वियाँ, कहाँ से लाओगे? तो आबादी तो कम करनी पड़ेगी बाबा, और भूलो नहीं कि इस ग्रह पर जीने का सबका साँझा हक है।
हमने सारे समुद्र बर्बाद कर दिए, हमने पहाड़ बर्बाद कर दिए, हमने जंगल सारे काट दिए। क्लाइमेट चेंज अच्छे तरीके से जानते हो, हम ही हम जिएँगें क्या? यह मछलियाँ, यह पक्षी, यह पेड़, यह इतनी प्रजातियाँ, इनका कोई हक नहीं है? अब मामला बर्दाश्त की हद से बहुत आगे जा चुका है। फिर से याद करो, मैंने कहा, हम रोज़ हज़ार प्रजातियाँ साफ कर रहे हैं, हज़ार मैं नहीं कह रहा हूँ, जानवर काट रहे हैं, जानवर तो हम रोज़ करोड़ों में काट रहे हैं मछलियाँ मिलाकर। मैं कह रहा हूँ एक्सटिंक्शन कर रहे हैं हम हज़ार प्रजातियों का हमेशा के लिए, क्योंकि हमारी आबादी इतनी ज़्यादा है, तो आबादी तो कम करनी पड़ेगी।
जहाँ-जहाँ आबादी कम हो रही है, उनको बधाई दो। आज बधाई का पात्र वह नहीं है, जिसके घर में बच्चा पैदा हो गया है। आज बधाई के पात्र वह है जिन्होंने बच्चा नहीं पैदा करा है।
उनको जाकर बोलना चाहिए, कांग्रेचुलेशन, कांग्रेचुलेशन। आज बधाई इसमें नहीं कि कोई बच्चा हाथ में लेकर अपनी तस्वीर डाल रहा है, कह रहा है, ओ माय एंजल, माय बंडल ऑफ जॉय हैज़ जस्ट डिसेंडेड। आज बधाई उसको दो, जिसके हाथ में बच्चा नहीं है किताबें हैं।
बल्कि अगर कोई बच्चे के साथ अपनी फोटो डाल रहा है, तो उसको जाकर के इमोजी यह वाला बनाओ (हाथ से थम्ब्स डाउन इमोजी बनाते हुए) या वो जो होता है ना, लाल-लाल गुस्से वाला चेहरा। किसी ने डाला कि मेरा पैदा हुआ; खास तौर पर चलो पहला तो ठीक भी है, बहुतों को बड़ी चाहत होती है, बच्चा हो, तो एक बच्चा तो चलो ठीक भी है, पर जहाँ किसी ने अपने दूसरे बच्चे का डाला, तहाँ उसको तो यही दिखाना चाहिए (हाथ से थम्ब्स डाउन इमोजी बनाते हुए)। और तीसरे वाले को तो यह होना चाहिए कि एफआईआर करो इसकी।
भारत देश भी १५० करोड़ लोगों का बोझ नहीं झेल सकता। यह देश ही मिट जाएगा अगर १५० करोड़ की आबादी रह गई तो, या अगर बचा भी रहेगा तो वैसे जैसे कोई स्लम होता है, जहाँ पर भारी आबादी ठूसी होती है, अमानवीय स्थितियों में। हमें स्लम बनाना है क्या भारत को? अगर भारत को एक गरिमा पूर्ण राष्ट्र बनाना है तो १५० करोड़ की आबादी नहीं चलेगी। इसे कम होना होगा।
कहाँ से लाओगे रोज़गार? टेक्निकल प्रोग्रेस का मतलब ही होता है कि जिस काम को करने के लिए पहले सौ लोग लगते थे, वह काम अब दस लोग कर देते हैं। आबादी बढ़ा रहे हो और जिस काम में पहले सौ लोगों को नौकरी मिलती थी, वहाँ दस लोगों में काम चल जाएगा, तो रोज़गार कहाँ से आएगा? दंगे और होंगे रोज़। प्रदूषण की हालत देख रहे हो, आबादी बढ़ाओ तो प्रदूषण और बढ़ेगा, ना रोज़गार रहेगा ना रोटी रहेगी और हवा में रहेगा ज़हर। यह भविष्य दोगे क्या अपने बच्चों को? यह होगा अगर बच्चे ही पैदा करे जाओगे तो।
पृथ्वी बार-बार बोल रहा हूँ, पृथ्वी अब इस हालत में नहीं है कि और मनुष्यों का बोझ उठा सके। त्राहिमाम कह रही है, पृथ्वी माँ।
यह अतिशय मूर्खता की बात है कि आबादी अभी और बढ़ाओ। यह लोग या तो विक्षिप्त हैं, या बहुत स्वार्थी हैं, या फिर इतने मूर्ख हैं कि इन्हें साधारण गणित भी नहीं आती। जो कहते हैं, बढ़ाओ, बढ़ाओ, बढ़ाओ।
प्रश्नकर्ता: एक पता नहीं कहाँ से एक फैक्ट पकड़ लिया है कि फर्टिलिटी रेट २.१ होनी चाहिए।
आचार्य प्रशांत: वह रिप्लेसमेंट रेट होता है। उतना हो जाए ना, तो फिर आबादी गिरती नहीं है। तो इसलिए पकड़ के बैठे हैं कि २.१, २.१। पर गिरना ज़रूरी है बाबा, अगर नहीं गिरेगी तो भयानक गरीबी बनी रहेगी। गरीबी अगर हटानी है तो आबादी कम करनी पड़ेगी। आपको गरिमा से जीना है कि नहीं? या कुपोषित जीवन ही बिताना है, और गरीबी का ही जीवन, और अशिक्षा का ही जीवन बिताना है?
सब लोगों को पर्याप्त संसाधन, खाना-पानी, कपड़ा-लत्ता, घर-द्वार, सड़क, साफ हवा-पानी मिल पाए, इसके लिए ज़रूरी है कि आबादी कम हो। आबादी अगर इतनी ही रहेगी या और बढ़ेगी तो भयानक गरीबी से हमें मुक्ति नहीं मिल सकती, और उस भयानक गरीबी का एक कारण और समझना।
वही लोग जो बार-बार बोल रहे हैं ना, आबादी बढ़ाओ, आबादी बढ़ाओ, वही वो लोग हैं, जिन्होंने सारा पैसा अपने पास कंसंट्रेट कर रखा है। या तो उनके पास पैसा बहुत होगा, या पावर बल बहुत होगा, या तो धन, या सत्ता। वही लोग कहते हैं, आबादी बढ़ाओ।
गरीबों का इसमें कहीं से भला नहीं है कि आबादी बढ़ाए, और जब भी आबादी बढ़ाने की बात आती है, उसमें सबसे आगे गरीब ही रहते हैं। कितनी अजीब बात है ना?
इन्वर्सली प्रपोर्शनल है, व्यक्ति जितना ज़्यादा शिक्षित होता है, वह उतने कम बच्चे पैदा करता है। व्यक्ति के पास जितना पैसा होता है, वह उतने कम बच्चे पैदा करता है खासकर महिला। महिला जितनी शिक्षित होती है, यह आंकड़े हैं, उतने कम बच्चे पैदा करती है।
महिला जितनी सबल होती है, एंपावर्ड होती है, उतने कम बच्चे पैदा करती है, और जितना वह बेचारी गरीब होगी, अशिक्षित होगी, दुर्बल होगी, उतना वह ज़्यादा बच्चे पैदा करेगी। पैदा करेगी नहीं, उससे करवाए जाएँगे।
ठीक वैसे जैसे ये जो गाय-भैंस होती है, उनको जा जाकर उनका आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन करते हैं। ज़बरदस्ती उनके यौनांग में हम वीर्य प्रवेश करा देते हैं कि एक बच्चा तू और कर तुझे करना पड़ेगा, ऐसे ही महिलाओं के साथ होता है। ये एनालॉजी बहुत गलत नहीं है मेरी। जिस महिला का अपने शरीर पर हक ही नहीं, वह गरीबन पड़ी हुई है, उसका पति आता है, अपना हक जमाते हुए रात में, और उसको इंप्रेग्नेट कर देता है, वह क्या कर लेगी? उसका हक ही नहीं है।
यह भी हुआ है। जितना ज़्यादा जो चाइल्ड मोर्टालिटी रेट होता है ना, जितना वह कम होता जाता है, जैसे-जैसे स्वास्थ्य सेवाएँ बेहतर होती जाती हैं, चाइल्ड मोर्टालिटी कम होती जाती है, वैसे-वैसे जो प्रेगनेंसी रेट, फर्टिलिटी रेट होता है, वह भी कम होता जाता है।
मालूम है आखिरी बात क्या निकल के आई? एजुकेशन इज द बेस्ट कॉन्ट्रासेप्टिव। जनसंख्या नियंत्रण का काम सबसे बेहतर तरीके से होता है ज्ञान से, शिक्षा से।
महिला तक अगर ज्ञान पहुँच गया तो आबादी बढ़नी अपने आप रुक जाती है। और महिला जितनी अज्ञानी रहेगी, वह उतनी आबादी बढ़ाएगी या वह उतनी मजबूर रहेगी, आबादी बढ़ाने के लिए।
इसीलिए पुरुषों का बहुत बड़ा वर्ग है, जो महिलाओं को अज्ञानी ही रखना चाहता है। और महिलाओं का भी बहुत बड़ा वर्ग है, जिसको यही लगता है कि अज्ञानी रहे तो ठीक है, क्या हो गया, घर में बैठते हैं, मौज करते हैं, प्रेग्नेंट होते हैं, हम ही तो घर की लक्ष्मी है, हम ही से तो घर में बरकत है, देखो ना, हमने घर में कितनी खुशहाली ला दी है, आठ पैदा कर दिए हैं।
यह मूर्खता है। आने वाला समय आबादी का नहीं है, वह पुरानी बात थी, संख्या बल। आने वाला समय बुद्धि बल का है। मैं ध्यान दिलाया करता हूँ, इज़राइल के पास कितनी संख्या है, कुछ नहीं है, और इतने बड़े-बड़े अरब देश हैं, वह सबसे जुझा हुआ है और बार बार सबको परास्त भी कर देता है। संख्या से क्या होगा? आबादी बढ़ा के क्या होगा?
इज़राइल की कुल आबादी एक करोड़ भी नहीं है, दिल्ली एनसीआर की एक तिहाई आबादी है इज़राइल की। दिल्ली की एक तिहाई आबादी है इजराइल की। दुनिया में कुल लगभग ८० लाख यहूदी हैं, इजराइल में है करीब ७३ लाख, बस इतने ही है कुल। और उधर इजिप्ट से लेकर इधर ईरान तक, सबको बिल्कुल सीधा करके रखता है इज़राइल। कैसे? संख्या बढ़ाने से नहीं होता ना, इज़राइल के पास कोई संख्याएँ हैं? टेक्नोलॉजी है, बुद्धि है, ज्ञान है।
आने वाला समय संख्याओं का नहीं होगा कि किसकी संख्या ज़्यादा है, किसकी संख्या ज़्यादा है? अरे फलान की आबादी बढ़ रही है, हमें भी तो आबादी बढ़ानी होगी।
आबादी बढ़ाने से नहीं होता, ज्ञान बढ़ाने से होता है, ताकत बढ़ाने से होता है।
एक जगा हुआ व्यक्ति सौ सोते हुए लोगों पर भारी पड़ता है। एक शेर सौ भेड़ों पर भारी पड़ता है। एक मिसाइल एक लाख तलवारों पर भारी पड़ती है। एक लाख लोग लेकर आ जाओ, वो पुरानी टेक्नोलॉजी की तलवार भांज रहे हैं, और तुम्हारे पास विज्ञान है, एक मिसाइल एक लाख तलवारों पर भारी पड़ेगी। तुम संख्या क्या करोगे बढ़ा के? संख्या में क्या रखा है?