गीता आजतक पढ़ी नहीं, और करेंगे धर्म की रक्षा || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)

Acharya Prashant

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गीता आजतक पढ़ी नहीं, और करेंगे धर्म की रक्षा || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)

प्रश्नकर्ता: मैंने आपका एक वीडियो देखा ‘हिन्दू-मुस्लिम बवाल’ के ऊपर। उस पर एक टिपण्णी थी कि हिन्दू जब बचेंगे तभी तो उपनिषद्, गीता पढ़ पाएँगे। अफ़गानिस्तान में तो बचे नहीं, तो वहाँ पर तो उपनिषद् और गीता कोई पढ़ता नहीं। तो मैं आपसे ये पूछना चाहता हूँ कि हमें गीता-उपनिषद् के प्रचार से पहले क्या लोगों को बचाने के बारे में सोचना चाहिए?

आचार्य प्रशांत: जो कह रहे हैं, कहने वालों का जो तर्क है, ये इस तरह के बहुत हमारे पास आते हैं — बता देता हूँ खोलकर के। वो कह रहे हैं, ‘आप कहते हैं कि तुमको बस इससे मतलब है कि नारे लगाओ, शोर मचाओ, दंगा करो। न तुमने गीता पढ़ी है, न तुम वेदान्त जानते हो। तो तुम हिन्दू कहाँ से हो गये! और तुम हिन्दू-हिन्दू के नारे बस लगाते रहते हो। तुम हिन्दू हो कहाँ से गये!’ और ये बात विशेषकर जो हिन्दू-मुसलमान वैमनस्य है उसके सन्दर्भ में मैंने कही।

ये जिस वीडियो का यहाँ पर हवाला दे रहे हैं, वीडियो एक आया था ‘हिन्दू-मुस्लिम बवाल’ नाम से। उस पर बहुत लोगों की प्रतिक्रियाएँ आयी थीं। वो कह रहे थे कि आप सारा ज़ोर हर समय इसी पर देते रहते हो कि पहले हिन्दू बन तो जाओ। उस वीडियो में मैंने कहा था, ‘हिन्दू कहाँ तुम कह रहे हो कि सौ करोड़ हैं, सवा सौ करोड़ हैं!’ मैंने कहा था, ‘हिन्दू तो लाख-दो-लाख भी नहीं हैं। सिर्फ़ नाम रख लेने से हिन्दुओं का, कोई हिन्दू थोड़े ही हो जाता है! तुममें हिन्दू जैसा है क्या कि तुम्हें हिन्दू मान लें हम!’

तो लोग कह रहे हैं, ‘पढ़ाई-लिखाई बाद में हो जाएगी। पहले धर्म की रक्षा ज़रूरी है। गीता बाद में पढ़ लेंगे, पहले धर्म की रक्षा ज़रूरी है।' और वो कहते हैं, 'गीता तो हमने पहले भी पढ़ रखी थी न, पर गीता पढ़ने से क्या होता है, हम एक के बाद एक लड़ाइयाँ हारते गये। हमारी आधी आबादी का धर्म-परिवर्तन करा दिया गया। हमारी आधी ज़मीन छीन ली गयी, उस पर पाकिस्तान, बांग्लादेश बना दिये गये। तो गीता पढ़ने से क्या होगा! आचार्य जी, आप इतनी गीता वगैरह की बात नहीं किया करिए। धर्म की रक्षा के लिए गीता नहीं ज़रूरी है, धर्म की रक्षा के लिए शास्त्र नहीं ज़रूरी है, धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र ज़रूरी है।’ ये तर्क दिया जाता है। और ये बड़ा मूर्खतापूर्ण तर्क है।

साहब लोग फ़रमाते हैं, ‘गीता तो हम हमेशा से पढ़ते आ रहे हैं। देखिए, फिर भी हम इतनी लड़ाइयाँ हार गये। इतने सालों तक ग़ुलाम बनकर रहे, इतनी शताब्दियों तक ग़ुलाम बनकर रहे और इतनी ज़मीन हमने खो दी और इतने लोगों ने धर्म-परिवर्तन कर लिया। गीता पढ़ने से क्या हुआ? गीता को भी बचाना है तो पहले हमें बचना होगा। जब हम बचे रहेंगे तभी तो कोई गीता पढ़ने वाला बचेगा। जब हमारा ही धर्म-परिवर्तन हो गया, तो गीता कौन पढ़ेगा!’

पागलपन की बात है! और इस बात में कृष्ण के प्रति बहुत अपमान है। इस बात में जितना हो सकता है उतना अहंकार है। तुम कह रहे हो, ‘गीता तो हमेशा से पढ़ते थे, फिर भी लड़ाइयाँ हारते रहे।’ तुमने गीता पढ़ी होती तो लड़ाइयाँ तुम हारते नहीं। ये जो इतनी लड़ाइयाँ हमने हारी हैं, वो इसीलिए हारी हैं क्योंकि हमने गीता कभी पढ़ी ही नहीं।

गीता पढ़ने वाला — मैंने सौ बार बोला है — नहीं हार सकता। और बहुत बुरा संयोग अगर आ गया, एक के सामने दस खड़े हो गये, तो वो मर जाएगा, हारेगा वो तब भी नहीं। जिस गीता में केन्द्रीय सन्देश ही यही है, ‘पीछे नहीं हटना है। मन पर घाव पर लगे, तन पर घाव लगे, मोह आड़े आये, भय आड़े आये, तुम तो युद्ध करो पार्थ!' उस गीता को पढ़ने वाला, मुझे बताओ, पिछले बारह-सौ सालों से लड़ाइयाँ हारता कैसे रहा?

मतलब साफ़ है, गीता पढ़ी ही नहीं गयी कभी। लेकिन कुतर्क देखिए। कह रहे हैं, ‘गीता तो हमेशा से थी फिर भी मुसलमान आकर हमको हरा गये, धर्म-परिवर्तन करा दिया।’

धर्म कोई छोड़ कैसे देगा, धर्म तो दिली प्रेम की बात होती है, कैसे छोड़ दोगे तुम? कहते हैं, ‘हमारे गले पर तलवार रख दी थी तो हमें धर्म-परिवर्तन करना पड़ा। और धर्म-परिवर्तन ही नहीं करा, फिर हमने गौ-माँस भी खाया।’

इसका मतलब है तुम्हारे पास धर्म कभी था ही नहीं। तुम मेरी कनपटी पर बन्दूक रखकर, तुम मेरे गले पर तलवार रखकर मुझसे कृष्ण को दूर करवा के दिखा दो न! मुझे सोचना नहीं पड़ेगा। तुम तलवार चलाओगे उससे पहले तुम्हारी तलवार से मैं अपना गला रेत लूँगा। मैं अपना धर्म-परिवर्तन नहीं कर सकता। तुम कैसे कह रहे हो कि तुम गीता को पढ़ते थे फिर भी तुमने धर्म-परिवर्तन कर लिया?

बहुत सीधी सी बात है, तुम्हें कभी भी धर्म से मतलब था ही नहीं। नहीं तो तुम मरना स्वीकार कर लेते, तुम गौ-माँस कैसे खा लेते! और तुम कह रहे हो, ‘गीता तो हमने पढ़ी लेकिन हमारे पास शस्त्र नहीं थे इसलिए हम हारते गये।’ कितना झूठा और बेईमानी भरा तर्क है!

शस्त्र नहीं जिताते युद्ध में, गीता जिताती है।

इससे मेरा मतलब ये नहीं है कि गीता लेकर चले जाओगे और गीता में से कोई दिव्य रोशनी या दिव्य अस्त्र निकलेगा जो जाकर दुश्मनों को मार देगा। शस्त्र तो अर्जुन के पास भी थे न, जीत रहा था क्या वो लड़ाई? गांडीव का क्या हो रहा था? थरथरा रहा था, ज़मीन पर गिरा जा रहा था। युद्ध अर्जुन को गांडीव ने बाद में जिताया, पहले गीता ने जिताया। और अर्जुन यदि युद्ध से पलायन करता या युद्ध हार जाता तो उसमें फिर कमी गांडीव की नहीं होती। कमी ये होती कि अर्जुन को गीता नहीं मिली।

हम भी अगर युद्ध हारते रहे हैं तो इसलिए नहीं कि हमारे पास शस्त्रों की कमी थी। हम युद्ध इसलिए हारते रहे क्योंकि हमारे मन में वेदान्त के लिए कोई सम्मान नहीं था। हाँ, धर्म के नाम पर उल्टी-पुल्टी परम्पराएँ, फ़िज़ूल के कर्मकांड और अंधविश्वास हमने खूब पकड़ रखे थे। उन कर्मकांडों से, उन परम्पराओं से युद्ध नहीं जीते जाते। युद्ध उपनिषद् जिताते हैं, युद्ध भगवद्गीता जिताती है, जिसके लिए आपके पास कोई सम्मान नहीं है।

और तर्क देखिए, कह रहे हैं, ‘हम बचेंगे तब तो गीता बचेगी न! हिन्दू बचेगा तो गीता को पढ़ने वाला कोई बचेगा!’

बात उल्टी है और सूक्ष्म है, समझना। हिन्दू बचकर के गीता नहीं पढ़ेगा; जो गीता पढ़े वो हिन्दू कहलाता है। ये अन्तर साफ़ समझो। तुम ये नहीं कहोगे कि हिन्दू तो हम पहले ही थे, फिर हम बच गये तो हमने गीता पढ़ी। अगर तुमने अभी तक गीता पढ़ी ही नहीं थी, तो तुम हिन्दू कैसे थे? तुम हिन्दू थे कैसे, अगर गीता पढ़ी ही नहीं थी? किस तरह से हिन्दू थे? जवाब तो दे दो।

कोई पात्रता चाहिए होती है न या बस नाम से हिन्दू बन जाओगे? दुनिया में हर छोटी-मोटी चीज़ के लिए पात्रता चाहिए होती है, लेकिन अपनेआप को सनातनी कहलाने के लिए कोई पात्रता नहीं चाहिए? पात्रता चाहिए। और पात्रता का नाम है वेदान्त।

होली-दिवाली मनाने से सनातनी नहीं हो जाओगे तुम। दसवीं पास कहलाने के लिए भी कुछ पढ़ना पड़ता है, कुछ पात्रता दर्शानी पड़ती है। और अपनेआप को सनातनी तुम यूँही कह देते हो? सनातनी होना दसवीं पास होने से भी नीचे की बात हो गयी? जो गीता पढ़े, वो हिन्दू कहलाता है। 'हिन्दू बचेगा तो गीता पढ़ेगा', ये बेकार की बात है।

हाँ, गीता पढ़ोगे तो बच भी जाओगे और हिन्दू भी कहलाओगे। गीता पहले आती है, हिन्दू बाद में आता है। तुम हिन्दू को पहले रख रहे हो, गीता को बाद में रख रहे हो। ये तुम्हारा अहंकार है, क्योंकि तुम अपनेआप को हिन्दू बोलते हो तो कह रहे हो, ‘मैं तो पहले आता हूँ; गीता तो मेरा ग्रन्थ है, वो बाद में आता है।’ ये कृष्ण की अवमानना है। गीता पहले आती है।

गीता जब तक रहेगी तब तक हिन्दू रहेंगे, भले ही वो किसी भी नाम में रहें, किसी भी रूप में रहें। क्योंकि गीता अमर है। और यदि तुम्हें भी बचे रहना है, तुम्हें भी अमर रहना है, तो तुम्हें गीता का ही आश्रय लेना होगा। सबका तर्क यही है — ‘बाद में पढ़ लेंगे ग्रन्थ वगैरह! अभी ज़रा मुझे मुसलमानों से निपट लेने दो।’

तुम अपने इतिहास पर विचार करके कुछ सबक नहीं लेते? मध्यकालीन भारत में ऐसा क्या था जो इतनी हारें झेलनी पड़ीं? मध्यकालीन भारत में यही था — गपोड़संखई, पोंगा-पंडितों का राज, पुरोहितों का भ्रष्टाचार, धर्म के केन्द्र से, विशुद्ध अध्यात्म से दूरी; परम्पराओं का, कुरीतियों का, कर्मकांडों का बोलबाला। नहीं तो कोई इतना हारता है क्या!

दुनिया का कोई देश है जो इतना ग़ुलाम रहा हो? गिनती करते-करते थक जाता हूँ मैं। अंग्रेज़, फ्रेंच, पुर्तगाली, डच — स्पेनियार्ड्स को मौक़ा नहीं मिला, नहीं तो वो भी ताक लगाए हुए थे। रूसियों को मौक़ा नहीं मिला, नहीं तो वो भी ताक लगाए हुए थे — मंगोल, अफ़गान, अरब, तुर्क। कौन नहीं है जिसने यहाँ आकर हराया न हो। कोई तो वजह होगी!

पर वजह मानने को तैयार नहीं होते। तैयारी किसकी पूरी है? कि आज हम प्रचंड बहुमत में है, हम अस्सी प्रतिशत हैं, मुसलमान तो पन्द्रह-बीस प्रतिशत ही हैं तो चलो इनको दबा दें।

पहले अपनी कमज़ोरियाँ देखो, पहले अपनी ग़लतियों से सबक लो। और जिसने वो सबक ले लिया, वो कभी हार नहीं सकता। वो युद्ध में भी जीतेगा, वो विज्ञान में भी जीतेगा, वो कलाओं में भी जीतेगा, वो मानव गतिविधि के हर क्षेत्र में अग्रणी रहेगा। गीता तुम्हारे साथ है, तुम किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं रहने वाले। क्योंकि पीछे हमें कौन रखता है? पीछे रखती हैं हमारी दुर्बलताएँ, हमारा अहंकार, हमारे भ्रम। गीता का काम है हमारी दुर्बलताओं को हटा देना, अहंकार को शान्त कर देना, भ्रमों को साफ़ कर देना।

जिसका अहंकार हट गया, जिसकी कमज़ोरियाँ हट गयी, वो जीतेगा-ही-जीतेगा। उसे कौन हरा सकता है! कौरवों-पांडवों में भी सेना किसकी ज़्यादा थी? पांडवों ने भी न जाने थोड़ी-बहुत सेना जुटा कैसे ली! उस समय का सबसे बड़ा राज्य था हस्तिनापुर और दुर्योधन उसका शासक। तो ज़्यादातर राजे-रजवाड़े सब तैयार थे दुर्योधन का ही साथ देने को।

दुर्योधन से काफ़ी छोटी सेना थी पांडवों की। पर उनके पास एक चीज़ थी जो दुर्योधन के पास नहीं थी, क्या? गीता, गीता, गीता।

महाभारत का युद्ध गीता ने जितवाया है। शोर मचाने से नहीं जीत जाओगे लड़ाइयाँ। मैं भी चाहता हूँ कि सनातनी आगे बढ़ें, जीतें, दुनिया भर को रास्ता दिखाएँ, भारत विश्वगुरु बने, भारत का उत्थान हो, समस्त जगत का कल्याण हो, मैं भी चाहता हूँ। मुझे भी इस बात का बहुत क्षोभ है कि भारत को क्यों इतना कष्ट, इतनी परतन्त्रता झेलनी पड़ी। और चूँकि इस बात से मुझे बहुत कष्ट है, चूँकि मुझे भारत से प्रेम है, इसलिए मैं कोई झूठा बहाना नहीं पकड़ना चाहता। क्योंकि झूठा बहाना अगर पकड़ोगे तो इतिहास अपनेआप को दोहराएगा, जैसे तुम अतीत में हारे थे वैसे ही फिर हारोगे।

और जिस तरीक़े के तुम्हारे लक्षण हैं, प्रतिक्रिया करने वालों, तुम हार की ही तैयारी कर रहे हो। जिन्हें जीतना होता है वो सबसे पहले अपने भीतर जाकर के अपनी ताक़त बढ़ाते हैं, अपनी दुर्बलताओं को हटाते हैं। फिर कहते हैं कि आओ कौन हमसे युद्ध करता है।

जो अपनी दुर्बलताओं पर पर्दा डालता हो, जो झूठ-मूठ के उल्टे-पुल्टे कुतर्क करता हो, उसको ज़िन्दगी में किसी भी क्षेत्र में कोई विजय मिलेगी? और विजय का न — सुनिए ध्यान से — ये जो अभी सब हिन्दू समाज के अगुआ बने हुए हैं, विजय का इनका कोई इरादा भी नहीं है। विजय से मेरा आशय है दुनिया के ऊपर विजय, दूसरों के ऊपर विजय। इन्हें कौनसी विजय चाहिए, ध्यान से समझिए। ये बाहर वालों पर निशाना नहीं साध रहे, ये निशाना हिन्दुओं पर ही साध रहे हैं।

इनका उद्देश्य है हिन्दुओं की नेतागिरी करना। ये क्या कर रहे हैं, इनकी विधि समझिए। ये कह रहे हैं, ‘सुनो, सुनो, सुनो सारे हिन्दुओं, देखो तुम पर बहुत ख़तरा है। वो जो हैं न, वो सब पराये लोग, वो बहुत ख़तरनाक हैं। तुम पर बहुत ख़तरा है, तो तुम लोग एक काम करो, तुम सब मेरे पीछे-पीछे लग जाओ, मेरे अनुयायी बनकर।’

अब जिससे ख़तरा है वो हारे चाहे नहीं हारे, ये जो नेताजी हैं इनका काम सध गया। ये क्या बन गये? ये नेता बन गये, सौ करोड़ लोगों के।

इनका निशाना कभी वो बाहर वाला था ही नहीं। इनका निशाना हमेशा से हिन्दू समाज ही था। इन्हें हिन्दू समाज पर अपनी धौंस चलानी थी, चला ली। ये बात हिन्दुओं को समझ में नहीं आ रही कि निशाना मुसलमान नहीं हैं, निशाना हिन्दू हैं। यही काम पाकिस्तान में किया गया और पाकिस्तान का हश्र देख लीजिए आप।

पाकिस्तान में जो पूरा मिलिट्री एस्टाब्लिश्मेंट (सैनिक तन्त्र) है और वो जो डीप स्टेट (एक प्रकार का शासन) है वहाँ का, आइएसआइ वगैरह, उन्होंने हमेशा एक हौवा खड़ा करके रखा कि भारत बहुत बड़ा दुश्मन है और भारत को पाकिस्तान पर राज करने से सिर्फ़ हम रोक सकते हैं। तर्क समझिएगा, ‘भारत बहुत बड़ा दुश्मन है और हम’, माने मिलिट्री , ‘हम ही हैं जो भारत को रोके हुए हैं।’ भारत माने हिन्दू, ‘हम ही हैं जो भारत को रोके हुए हैं, नहीं तो भारत आकर हमारे देश पर, हमारे मुल्क’, माने पाकिस्तान, ‘पर चढ़ जाएगा।’ ये वहाँ की मिलिट्री का और आइएसआइ का तर्क रहा है, प्रचार रहा है, बड़ा प्रचार।

तो अगर तुम चाहते हो कि हम हिन्दुओं की फ़ौज को रोककर रखें, ताकि वो पाकिस्तान पर कब्ज़ा न कर लें, तो हमारे हाथ मज़बूत करो। हमारे हाथ कैसे मज़बूत करो? कि पाकिस्तान की बजट का बहुत बड़ा हिस्सा किसको जाता है? फिर सेना को जाता है।

यहाँ तक कि पाकिस्तान की बहुत बड़ी-बड़ी इंडस्ट्रीज़ भी किसके हाथ में हैं? सेना के हाथ में हैं, कभी सीधे-सीधे और कभी छुपे तरीक़े से। भारत का हौवा दिखाकर पाकिस्तान की सेना ने पाकिस्तानियों पर हुकूमत कर लिये।

फिर से सुनो। हौवा किसका दिखाया गया है? भारत का। भारत और हिन्दू तुम पर चढ़े आ रहे हैं, इसका डर दिखाया गया है और ये डर दिखाकर हुकूमत किस पर करी गयी है और शोषण किसका किया गया है? पाकिस्तानियों का। सारा पैसा पाकिस्तानियों का लूट लिया पाकिस्तान की सेना ने।

मुझे मालूम है ये एक बहुत स्वीपिंग (अतिरंजित) वक्तव्य है। लेकिन आशय समझिए, इशारा समझिए। भारत का हौवा दिखा-दिखाकर पाकिस्तान की सेना कई दशकों तक वहाँ सत्ता में भी रही है, राजनीति में भी रही है। बस तर्क यही था, ‘देखो, हम ही तो हैं जो तुम्हें हिन्दुओं से बचा सकते हैं। तो तुम हमें राष्ट्रपति बनने दो न।’

वही काम अब भारत में हो रहा है। एक हौवा खड़ा करा जा रहा है ताकि हिन्दुओं पर राज करा जा सके। और वो जो राज किया जाएगा उसमें हिन्दुओं का शोषण ही होगा, जैसे पाकिस्तानियों का शोषण हुआ है उधर।

आपको धर्म से प्रेम है, आप मेरे भाई हैं फिर। लेकिन आपको धर्म से प्रेम है तो कृष्ण के पास आइए न! आइए साथ में बैठकर उपनिषद् पढ़ते हैं। आइए गीता समझते हैं। आइए जीवन में ज़रा प्रकाश, स्पष्टता और बल लाते हैं।

ये नारेबाज़ी, पत्थरबाज़ी! ये क्या हैं घटिया हरकतें! सनातनी किसको बोलना चाहते हो? जिसके हाथ में गीता है या जिसके हाथ में पत्थर है? और मैं ये बिलकुल नहीं कह रहा हूँ कि जो गीता पढ़ने वाला होता है वो गीता ही पढ़ता रह जाता है, जब उस पर आक्रमण होगा तब वो क्या करेगा। क्योंकि यही तर्क आता है कि गीता पढ़ते रह जाएँगे, उधर से वो लोग आ करके हमको तबाह करके चले जाएँगे।

जब दुर्योधन की सेना आयी थी तो कृष्ण ने अर्जुन को ये सीख दी थी कि वॉक ओवर (आसान जीत) दे दो? जो गीता पढ़ता है वो युद्ध करना भलीभाँति जानता है। और वो अंधा युद्ध नहीं करता, वो सही युद्ध करता है, वो धर्म युद्ध करता है। और फिर वो ऐसा घनघोर युद्ध करता है कि मैं कह रहा हूँ कि उसको हराया नहीं जा सकता।

संसार के, जीवन के सब युद्धों में अगर जीतना चाहते हो तो वेदान्त की तरफ़ आओ।

दो प्रमाण साफ़ बता देता हूँ इस बात के कि हमने कभी गीता पढ़ी नहीं। पहला, यदि गीता पढ़ी होती तो हिन्दू समाज में धर्म का मतलब ये इतने सारे कर्मकांड नहीं हो सकते थे। क्योंकि कृष्ण स्वयं कर्मकांडों का बड़ा विरोध करते हैं गीता में। ये पहला प्रमाण है। दूसरा प्रमाण, यदि हिन्दू समाज ने वास्तव में गीता पढ़ी होती तो उसमें जातिप्रथा नहीं हो सकती थी। हिन्दू समाज में कर्मकांड भी खूब है और जातिप्रथा भी खूब है। बल्कि यही दोनों हिन्दुओं की पहचान बन गये हैं। इसी से प्रमाणित होता है कि गीता कभी यहाँ पढ़ी ही नहीं गयी।

ज़्यादातर लोगों ने पढ़ी नहीं। क्यों नहीं पढ़ी? क्योंकि उन्होंने धर्म के नाम पर और दूसरी किताबें पढ़ लीं। पुराण पढ़ रहे हैं, कुछ और पढ़ रहे हैं और सोच रहे हैं यही तो हैं। या स्मृतियाँ पढ़ ली और सोच रहे हैं यही तो धर्म है।

हिन्दू धर्म पौराणिक नहीं है। हिन्दू धर्म स्मृतियों से भी नहीं चलेगा, मनुस्मृति वगैरह से। हिन्दू धर्म वैदिक है न! तो हिन्दू धर्म वेदान्त से चलेगा।

तो ज़्यादातर ने तो पढ़ा ही नहीं। जिन्होंने पढ़ा भी उन्होंने दूसरी इधर-उधर की किताबें पढ़ लीं। सोचा यही धर्म है। और फिर हज़ार में कोई एक जो गीता की तरफ़ आया भी, उसने न जाने किस गुरु से गीता का कौनसा अर्थ पढ़ लिया! तो उसने भी नहीं पढ़ा।

हज़ार में से नौ-सौ-नब्बे हैं जिन्हें पढ़ने से कोई मतलब ही नहीं। उनके लिए धर्म का क्या मतलब है? उनके लिए धर्म का मतलब है फ़लाने पेड़ पर धागा बाँध दो, सिर घुटा लो, शिखा रख लो; उनके लिए धर्म का ये मतलब है। उन्होंने पढ़ा ही नहीं, उनके लिए पढ़ने का क्या मतलब! फ़लाना त्यौहार मना लिया, यही तो धर्म है।

तो नौ-सौ-नब्बे ने कुछ पढ़ा नहीं। बाक़ी बचे दस, उसमें से छः-सात ने पढ़ा। उन्होंने क्या पढ़ लिया? उनमें से कोई जाकर के गरुड़ पुराण पढ़ रहा है, कोई भविष्य पुराण पढ़ रहा है, कोई कुछ और पढ़ रहा है। सौ तरीक़े की किताबें हैं, वो सब पढ़ रहे हैं और सोच रहे हैं कि हमने पढ़ तो लिया सब।

बाक़ी बचे हज़ार में से दो-तीन। उनमें से कोई एक-दो उत्सुक भी हुए कि हमें गीता पढ़नी है, तो वो कौनसे गुरुजी के पास बैठ गये, गुरुजी ने गीता का बिलकुल गुड़-गोबर कर दिया! न जाने कौनसा गीता का अर्थ निकाल कर बता दिया। आज भी गीता की जो सबसे ज़्यादा प्रतियाँ वितरित हो रही हैं — आप देखते होंगे सड़कों पर — उनमें जो गीता का अर्थ है वो बिलकुल विकृत है।

तो जाकर के हज़ार में से कोई एक बचा जिसने गीता पढ़ी भी और समझी भी। वो एक ही है जो भारत का लाल हुआ। फिर उसी एक के दम पर भारत ने कुछ लड़ाइयाँ जीतीं भी और कुछ उपलब्धियाँ हासिल भी करीं। पर हज़ार में से बस एक। और ‘एक’ बहुत छोटी संख्या होती है।

वो ‘एक’ फिर ऐसा होता है कि अपने दम पर जूझता रहा, जूझता रहा, जितना हो सका उसने करा और फिर चला गया कृष्ण के पास ही।

YouTube Link: https://www.youtube.com/watch?v=ukQuyN8BhX4

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