15 नवंबर को गीता सत्र से कुछ घंटे पहले, देश की बड़ी पशु कार्यकर्ता, गौरी मौलेखी जी का एक संदेश आया। उन्होंने आचार्य जी से नेपाल में होने वाले ‘गढ़ीमाई महोत्सव’ के विषय पर बिहार के, मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और प्रेस से बातचीत के लिए पटना आने का अनुरोध किया। यह एक गंभीर मुद्दा था—हजारों जानवरों की जान बचाने का और एक सदियों पुरानी कुप्रथा के विरुद्ध आवाज़ उठाने का।
गौरी जी ने पूछा, “16 तारीख़ की सुबह 8 बजे की फ्लाइट है, क्या आचार्य जी आ सकते हैं?” हमें सुनते ही प्रस्ताव नामुमकिन-सा लगा। क्यों?
क्योंकि 15 की रात को गीता सत्र था, जो सुबह 2 बजे तक चलता। सुबह 8 बजे की फ्लाइट के लिए आचार्य जी 4 बजे बोधस्थल से निकलना पड़ता है। और उसके बाद 16 तारीख़ को गीता छात्रों की परीक्षा थी, और 17 तारीख़ को संस्था विश्व की सबसे बड़ी ओपन गीता परीक्षा आयोजित कर रही थी, जिसके बाद एक और गीता सत्र था जो देर रात तक चलता।
लेकिन जब बात आचार्य जी तक पहुँची तो उन्होंने तुरंत सहमति दे दी।
हमने कहा, “क्या सत्रों का या परीक्षा का कार्यक्रम थोड़ा बदल दें?”
तो उन्होंने अपना काम करते-करते पूछा, “क्यों?”
हम ख़ुद को रोक नहीं पाए, चकितभाव के साथ हमारे मुँह से निकला, “आप ऐसे मौसम में, और ऐसी तबीयत के साथ, 2 दिनों के अंदर अंदर – एक गीता सत्र, एक गीता परीक्षा, ग्रेटर नोएडा से दिल्ली और दिल्ली से पटना की यात्रा, वहाँ मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और प्रेस से बातचीत, और फिर वहाँ से वापिस आकर फिर एक गीता सत्र, एक गीता परीक्षा करने की बात कर रहे हैं?”
“डॉक्टर ने 10 दिन की छुट्टी पर जाने को कहा है जिससे आपके गले को आराम मिल सके, और आप दो दिन अंदर कम-से-कम 8 घंटे बोलने का बंदोबस्त कर रहे हैं?”
पिछले पांच महीनों से उन्हें गले में बहुत दर्द रहता है, अक्सर वे खून की छींटों से सने तकिए पर जागते हैं या घंटों सत्र में बोलने के बाद उनका गला खून थूकता है।
इन सब बातों के बावजूद उनका जवाब था, “सिर्फ़ मेरी बात नहीं है, हजारों जानवरों की जान बच सकती है। जाना होगा।”
रात को, आचार्य जी ने सत्र लिया, जो देर रात 2 बजे तक चला। सत्र समाप्त होने के बाद, अधिकांश लोग सोने चले गए, लेकिन आचार्य जी ने रात भर काम करना जारी रखा। उन्होंने गीता परीक्षा के प्रश्न तैयार किए और छात्रों के अवलोकन सुने। सुबह 4 बजे, बिना एक पल आराम किए, वे पटना की फ्लाइट के लिए रवाना हुए। एयरपोर्ट पर, जहाँ थकावट उनके चेहरे पर साफ झलक रही थी, लेकिन वहाँ भी उन्होंने सुरक्षा कर्मियों और यात्रियों से गर्मजोशी से मुलाकात की।
पटना पहुँचने के बाद, उन्होंने सबसे पहले बिहार के मुख्य सचिव से मुलाकात की और गढ़ीमाई महोत्सव के दौरान हजारों पशुओं की बलि और भारत-नेपाल सीमा पर अवैध पशु तस्करी के मुद्दे पर बात की। 2022 में, बिहार के बांका जिले में दशहरा के दौरान 2 लाख से अधिक बकरों की बलि दी गई थी।
आचार्य जी ने बिहार के मुख्यमंत्री को एक ज़रूरी पत्र लिखकर इन चिंताजनक संख्या की ओर ध्यान आकर्षित किया। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का हवाला देते हुए, आचार्य प्रशांत ने तस्करी विरोधी कानूनों के सख्त क्रियान्वयन और भारत के अहिंसा के सांस्कृतिक मूल्यों के अनुरूप मानवीय भविष्य के निर्माण की बात कही।
समस्या गंभीर है – 21वीं सदी में भी धार्मिकता के नाम पर लाखों पशुओं की बलि दी जा रही है। और दुर्भाग्य से धर्म व अध्यात्म के क्षेत्र में आचार्य जी की अलावा कोई मुखर आवाज़ नहीं दिखाई देती।
इसके तुरंत बाद, होटल में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने गढ़ीमाई महोत्सव के दौरान होने वाली क्रूरता पर विस्तार से बात की। एक समय पर, यह महोत्सव 5 लाख पशुओं की बलि के लिए कुख्यात था।
आज, पशु कल्याण संस्थाओं की संयुक्त प्रयासों के कारण, यह संख्या 60-70% तक घट चुकी है, लेकिन यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई। “सच्ची धार्मिकता हिंसा नहीं माँगती,” उन्होंने कहा। “धार्मिकता और करुणा साथ चलते हैं, धार्मिकता और हिंसा नहीं।”
हालाँकि 36 घंटे से अधिक जागने और काम करने के बाद वे बेहद थक चुके थे, फिर भी उन्होंने गीता समागम के छात्रों से मिलने का समय निकाला, जो उनसे मिलने के लिए होटल आए थे। 1.5 घंटे तक, वे उनके साथ हँसे, बात की, और उन्हें प्रेरित किया। थकावट के बावजूद, उनके चेहरे पर करुणा और ऊर्जा स्पष्ट दिख रही थी।
शाम को, जब वे दिल्ली के लिए उड़ान भरने वाले थे, फ्लाइट में देरी हुई। इस दौरान भी, एयरपोर्ट पर जो लोग उन्हें पहचानते थे, उनसे मिलने का सिलसिला जारी रहा। फ्लाइट के दौरान, उन्होंने गौरी जी के साथ जानवरों के लिए और क्या किया जा सकता है, इस पर चर्चा की।
दिल्ली पहुँचने के बाद भी उनका काम खत्म नहीं हुआ। उन्होंने तुरंत दुनिया की सबसे बड़ी गीता ओपन परीक्षा, जिसमें विश्वभर से हजारों श्रोता हिस्सा लेने जा रहे थे, उसके प्रश्नपत्र पर काम किया। यह केवल एक परीक्षा नहीं थी; यह लाखों लोगों को गीता के गहरे सत्य से जोड़ने का एक प्रयास था। और जब परीक्षा समाप्त हुई, तो रात के 10 बज चुके थे। और तब एक और गीता सत्र शुरू हुआ।
उस सत्र में, उन्होंने कहा, “कामनाओं में कल का भरोसा होता है, लेकिन श्रद्धा में केवल वर्तमान होता है। अगर वर्तमान ठीक है, तो भविष्य का विचार आएगा ही नहीं।” उनका हर वाक्य एक नया आयाम खोल रहा था, संस्था से बाहर बैठा कोई व्यक्ति शायद उनकी बात को अव्यवहारिक कहकर टाल देगा। लेकिन हमने उन्होंने अपनी सीख को सबसे पहले ख़ुद जीते देखा है।