आचार्य प्रशांत: अभी एक फ़िल्म आई थी ‘बोहेमियन रहैप्सोडी’। कुछ लोगों ने देखी होगी। उसका नायक जो है जैसा कि जानते ही हो, फ्रेडी मर्करी, उसे एड्स है – कैंसर नहीं, एड्स! कैंसर में तो एक बीमारी होती है, एड्स में तो दस कैंसर होते हैं। कैंसर तो एक बीमारी है, एड्स में न जाने कितनी बीमारियाँ लग जाती हैं, कैंसर भी लग सकता है।
और उसके जीवन के आख़िरी कुछ महीने बचे हैं। और जो लोग इस व्यक्ति की जीवन-कथा से परिचित होंगे, उन्हें पता होगा कि मरते-मरते भी वो संगीत रचित कर रहा था। और यह कोई आध्यात्मिक आदमी नहीं, यह तो एक प्रचलित रॉकस्टार है। यह प्रेम की बात है; उसके सामने कैंसर, एड्स, सब भूल जाते हैं।
और फ्रेडी जैसे-जैसे मृत्यु के करीब आ रहा था, जैसे-जैसे उसका जिस्म और इकहरा होता जा रहा था, दुबलाता जा रहा था, वैसे-वैसे वो कहता था, “और-और म्यूज़िक (संगीत), और बनाओ, मुझे और गाने दो। बस रिकॉर्ड कर लो। जब मैं चला जाऊँगा, फिर काम पूरा करके तुम उसका टेप बनाते रहना। पब्लिक बाद में कर लेना!”
साधारण गायक भी प्रेम को इतना जानता है। उसको प्रेम परमात्मा से नहीं हो गया है, उसको प्रेम संगीत से ही हुआ है। साधारण रॉक (संगीत) से प्रेम भी भय से मुक्ति दे जाता है।
एक साधारण गायक का साधारण संगीत से प्रेम, उसे दुःख से कम-से-कम क्षणिक मुक्ति दे देता था। तो तुम सोचो कि अगर तुमको ‘उसी’ से प्यार हो जाए, तो तुम्हें दुःख याद रह जाएगा क्या? फिर तुममें देहभाव ज़रा भी बचेगा क्या?
और यह १९९१ की बात है। उस समय पर एड्स के उपचार के लिए बहुत दवाईयाँ उपलब्ध नहीं थी। बीमारी नई सामने आई थी, अनुसन्धान हो रहा था। तो कष्ट बहुत था इस व्यक्ति को – पाँव गल रहा था, अंदर के सारे अवयव बेकार हो रहे थे। और यह गाए जा रहा था। नाच भी रहा था! देहभाव कहाँ गया?
और यह ऐसे व्यक्ति की हम बात कर रहे हैं जो देहभाव पर ही जीवित रहा और आश्रित रहा। रॉकस्टार कितना देहाभिमानी होता है, जानते हो न? रॉकस्टार से ज़्यादा देह पर आश्रित कोई होता नहीं! तो ऐसा व्यक्ति जो देह पर ही जीता था, वो भी देह को भूल गया, क्योंकि उसे प्यार हो गया था।
तुम्हारी सारी चिंताएँ, तुम्हारे सारे डर, और देह के प्रति तुम्हारा सारा तादात्म्य हवा हो जाएगा, अगर किसी चीज़ के ऊपर समर्पित हो पाओ तो। यही प्रेम मार्ग है, यही समर्पण है, यही इश्क़ है। ज़िन्दगी में किसी चीज़ के आगे सिर झुका कर तो देखो। ज़िन्दगी में किसी को अपने से ज़्यादा बड़ा मान कर तो देखो, ज़िन्दगी में तुम्हारी कुछ तो ऐसा हो जो तुम्हारी ज़िन्दगी से भी ज़्यादा कीमती हो, तब जीने का मज़ा आएगा! जीवन में तुम्हारे कुछ तो ऐसा होना चाहिए जिसकी ख़ातिर तुम मरने को तैयार हो। और ऐसा अगर कुछ नहीं है, तो बड़ा खोखला और बड़ा ग़रीब है तुम्हारा जीवन।
अधिकांश लोगों से पूछा जाए कि, "क्या है जिसके लिए मर सकते हो?" तो बहुत कुछ बता नहीं पाएँगे। और बताएँगे भी, तो कोई कह देगा ‘खुद्दारी’, कोई कह देगा ‘अभिमान’, कोई कह देगा ‘शांति’। कुछ ऐसा नहीं होगा जो सृजनात्मक हो, कुछ ऐसा नहीं जिससे खुशबु आती हो।
तुम्हारे जीवन में अगर कुछ हो विराट, सुन्दर, सत्य, आना-जाना सब छोटा रहे, ऐसा कि उसके आगे जीना-मरना, उठना-बैठना… फिर कैसा देहभाव?
फिर देह बड़ी छोटी चीज़ हो जाती है!