Acharya Prashant is dedicated to building a brighter future for you
Articles
फ़ातिमा शेख - जीवन वृतांत
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
3 min
186 reads

इन्होंने पिछड़े वर्ग व महिलाओं की शिक्षा के लिए काम किया, लेकिन अधिकतर लोग इन्हें भूल चुके हैं। इन्होंने आधुनिक भारत के सबसे बड़े शिक्षा आंदोलनों में से एक को, फलने-फूलने की ज़मीन दी, लेकिन आज लोगों को उनका नाम भी नहीं पता। इन्हें भारत की पहली मुस्लिम महिला अध्यापिका कहा जाता है, क्या आप इन्हें जानते हैं?

हम बात कर रहे हैं — फ़ातिमा शेख की। जिन्होंने श्री ज्योतिबा व श्रीमती सावित्रीबाई फुले के शिक्षा आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी।

फ़ातिमा शेख की सावित्रीबाई जी से दोस्ती तब हुई जब दोनों ने अमेरिकी मिशनरी 'सिंथिया फर्रार' के एक शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया था।

कार्यक्रम में रहते हुए, दोनों ने उन लोगों को शिक्षित करने के लिए काम करने का ठाना, जिन्हें पारंपरिक रूप से ज्ञान और शिक्षा से वंचित किया गया था।

फ़रार, जो उस समय अहमदनगर में रहती थीं, उनकी मदद से सावित्रीबाई और फ़ातिमा ने वहाँ लड़कियों के एक छोटे समूह को पढ़ाने का काम संभाला। आगे जाकर उन्होंने दलितों और महिलाओं के लिए और भी स्कूल खोले।

उस वक्त फातिमा और सावित्रीबाई शहरभर में घूम-घूमकर लोगों को मनाया करती थीं, जिससे वे अपने बच्चों को स्कूल भेजने लगें।

हालाँकि, मराठी संस्कृति और परंपरा के गढ़ रहे पुणे में, उनकी शिक्षित करने की कोशिश से ही हंगामा मच गया।

ऐसा कहा जाता है कि दोनों महिलाएँ जब सड़क पर निकलती थीं तो अक्सर उन पर पत्थर और गोबर के टुकड़े फेकें जाते थे।

और देखा जाए तो फ़ातिमा का काम और भी मुश्किल था। क्योंकि उन्हें ना सिर्फ़ तथाकथित उच्च जाति के हिंदुओं का, बल्कि रूढ़िवादी मुसलमानों के क्रोध का भी सामना करना पड़ा था।

रूढ़िवादी लोगों के दबाव में, ज्योतिबा के पिता ने 1840 के दशक के अंत में सावित्रीबाई और ज्योतिबा को परिवार के घर से बेदखल कर दिया। उस वक्त फुले दंपति को फ़ातिमा और उनके भाई 'मियां उस्मान शेख' के घर में आश्रय मिला, वहीं उन्होंने सबसे पहला स्कूल भी खोला। वे वहाँ 1856 तक रहे।

जिस वक्त उनके ही परिवार ने उन्हें छोड़ दिया था, तब फातिमा शेख और उनके भाई, फुले दंपति के लड़कियाँ और बहुजनों को शिक्षित करने के मिशन के साथ दृढ़ता से खड़े रहे।

फ़ातिमा जी के विषय में और अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। उनका उल्लेख सिर्फ़ सावित्रीबाई जी के पत्रों में मिलता है। आज इस बात का सिर्फ़ अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है कि उन्हें अपने काम में कितने विरोध का सामना करना पड़ा होगा।

Have you benefited from Acharya Prashant's teachings?
Only through your contribution will this mission move forward.
Donate to spread the light
View All Articles