आचार्य प्रशांत: तुम जो इतना विचार करते हो कि पति क्या कर रहा होगा, पत्नी क्या कर रही होगी; और क्या है माथे का भार? दिन भर और क्या सिर पर चलता रहता है? नात, रिश्तेदार, काम, सम्बन्ध, पति, पत्नी, बच्चे, माता, पिता — यही मन है। इसी को कबीर घर की नारी कह रहे हैं।
एक दिन ऐसा होयगा, कोय काहू का नाही। घर की नारी को कहै, तन की नारी जाहि।।
~ कबीर साहब
इनको जो मन पर लादे हो, यह मन तुम्हारा नहीं है, 'उड़ जाएगा हंस अकेला!'
करना रे होय सो कर ले रे साधो थारो मानख जनम दुहेलो है लख चौरासी में भटकत भटकत थारे अब के मिल्यो महेलो हैं लख चौरासी में भटकत भटकत।
~ कबीर साहब
और दूसरा जो तुम्हारी आसक्ति रहती है, तादात्म्य रहता है शरीर से, नहीं रहने वाला है। और जो यह याद रख सके कि शरीर नहीं रहने वाला है, उसका जीवन बिलकुल बदल जाएगा, बिलकुल दूसरे तरीक़ों से चलेगा।
संतो ने बार-बार हमें मृत्यु का स्मरण कराया है। कबीर तो कबीर हैं, कबीर से ज़्यादा फ़रीद।
देखु फरीदा जु थीआ दाड़ी होई भूर। अगहु नेड़ा आइआ पिछा रहिआ दूरि।।
~ बाबा शेख फ़रीद
फ़रीद लगातार, लगातार बुढ़ापे की ही बात करते हैं। क्यों कराते हैं बार-बार मौत का स्मरण? जिसे मौत लगातार याद है, सिर्फ़ वही जीवन में धोखा नहीं खाएगा। जिसे मौत लगातार याद है, सिर्फ़ वही जी सकता है।