दूसरे की चिंता करते रहने को प्रेम नहीं कहते

Acharya Prashant

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दूसरे की चिंता करते रहने को प्रेम नहीं कहते

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, अपनों को खो देने का डर हमेशा लगा रहता है। पति को, या बेटे को कुछ हो न जाए, ये विचार हमेशा मन में चलता रहता है। इसी से जुड़ा एक और प्रश्न फिर मन में उठता है, कि क्या खुशकिस्मती और बदकिस्मती जैसा कुछ होता है? कृपया मार्गदर्शन करें।

आचार्य प्रशांत: आपने तीन-चार प्रश्न पूछे, इन सबको लेकर मेरे पास एक ही प्रश्न है — आपके पास करने के लिए कुछ नहीं है क्या? अपने-आप को लेकर डर लगा रहता है, पति को लेकर डर लगा रहता है, बच्चे को लेकर डर लगा रहता है, खुशकिस्मती क्या होती है, बदकिस्मती क्या होती है, ये इतनी बातें सोचने के लिए आपके पास समय कैसे है?

दो बल्लेबाज़ खेल रहे हो मैदान में, वो पिच पर हैं, वो गेंदें खेल रहे हैं, विपक्षी बॉलर को झेल रहे हैं, चुनौती का सामना कर रहे हैं, लक्ष्य का पीछा कर रहे हैं। और दिल किसका थमा जा रहा है? जो दूर बैठकर के टीवी के सामने बस देख रहे हैं। कई बार तुमने खबरें पढ़ी होंगी, यूरोप में फुटबॉल का मैच हुआ, दंगा हो गया, पाँच-दस मारे गए। या विश्वकप का मैच था, अपना खिलाड़ी आउट हो गया तो किसी ने टीवी फोड़ दिया। या मैच था, अपनी टीम हार गई, तो किसी को दिल का दौरा ही आ गया।

कभी ऐसा भी पढ़ा है कि खिलाड़ी ही चिंता के मारे पिच पर मर गया हो? या ऐसा पढ़ा है कि फुटबॉल का मैच चल रहा था तो दोनों टीमों में दंगा हो गया, और इधर के ग्यारह ने उधर के ग्यारह वालों को रगेद-रगेद कर मारा, मुँह पर फुटबॉल बना दी? ऐसा पढ़ा है कभी?

ये दंगा करने वाले, टीवी फोड़ने वाले, दिल का दौरा खाने वाले, ये हमेशा कौनसे लोग होते हैं? जो खेल नहीं रहे होते, जिन्हें खेलने से कोई मतलब ही नहीं है। वहाँ लोग खेल रहे हैं, ये इधर बैठकर पकौड़ा खा रहे हैं, पॉपकॉर्न खा रहे हैं। खेलने वाले चुस्त-दुरुस्त और फिट, इनकी पौने-दो-सौ किलो की सिर्फ तोंद है। और टीवी देख रहे हैं, और हाय-हाय चिल्ला रहे हैं, और चीख रहे हैं, और थोड़ी देर में हार्ट-अटैक, मर गए।

फुटबॉल के मैच में सुना है कि खिलाड़ी दंगा कर रहे हैं? खिलाड़ियों को किससे मतलब है?

खेलने से।

ये दंगा, उपद्रव, बेवकूफियाँ, चिंताएँ, इन सब पर किसका अधिकार है?

जो खेल नहीं रहे! जो बस देख रहे हैं। देख रहे हैं और बस शोर मचा रहे हैं, चीख रहे हैं, चिल्ला रहे हैं।

अभी विश्वकप में पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान का मैच था। तो उसमें एक मैच चल रहा था मैदान में, एक चल रहा था मैदान के बाहर। पहले पाकिस्तीनियों ने अफ़ग़ानिस्तानियों को रगेदा, और ये सब बिलकुल स्टेडियम में ही हो रहा है। और कैमरे ने वो पकड़ा, "हियर समथिंग इज़ हैपनिंग (यहाँ कुछ हो रहा है), क्या हो रहा है इधर?" और थोड़ी देर बाद फिर कुछ हुआ। मैच ख़त्म हो गया था। फिर जहाँ गाड़ियों की पार्किंग होती है वहाँ दिखाया जा रहा है कि अफ़ग़ानी, पाकिस्तानियों को रगेद रहे हैं। ऐसा खिलाड़ी तो नहीं करते कभी!

आप कह रही हैं आपको हर वक़्त अपने पति और बेटे की चिंता रहती है। जहाँ तक मैं समझ रहा हूँ, आप घर पर रहती हैं, पति काम करते हैं, बेटा या तो काम करता होगा या पढ़ाई करता होगा। मैं आपके पति से पूछूँ कि क्या उन्हें अपनी पत्नी की इतनी चिंता रहती है? वो कहेंगे, "नहीं रहती! समय किसके पास है भाई? मैं वो काम कर रहा हूँ जिससे मेरा भी घर चलता है, पेट पलता है, और पत्नी का भी पेट पलता है। मैं असली काम कर रहा हूँ।" पत्नी के पास कोई काम नहीं है, तो वो बैठे-बैठे यही काम करती है कि, "सुनो जी, मुझे तुम्हारी बड़ी चिंता हो रही है!" और पति भी कोई काम न करे, बस यही बोलना शुरू कर दे कि, "सुनो जी, मुझे तुम्हारी बड़ी चिंता हो रही है!" तो पत्नी कहेगी कि, "तुम इस लायक नहीं हो कि तुम्हारी चिंता करें! अरे रोटी कैसे बनेगी?" पतिदेव चिंता करने लग जाएँ न तो घर में रोटी बनना बन्द हो जाए। घर में रोटी इसलिए बनती है क्योंकि वो चिंता कम करते हैं और काम ज़्यादा करते हैं। जब काम कुछ नहीं होता तो बैठे-बैठे चिंता करो, अपना भी दिमाग खराब करो दूसरों का भी।

बेटा अपने दोस्तों के साथ मगन है, घूम-फिर रहा है। घर पहुँचा तो माताजी अश्रुपूरित, "बेटा, मुझे तेरी बड़ी फिक्र हो रही थी! कहीं मर-मुरा न गया हो!" वो कहेगा, "मामा, आई वास् जस्ट हैंगिंग आउट (माँ, मैं तो बस घूम रहा था)" वो मज़े ले रहा है, और ये यहाँ पर गंगा-जमना बहा रही हैं, "अरे! आज मर ही गया लगता है!"

खाली बैठे रहो तो ऐसे ही विचार आते हैं। हमारे मन में शुभ विचार तो कभी आते नहीं न? खाली बैठे हो तो हमेशा कैसे विचार आएँगे? अनिष्ट के ही आएँगे — कहीं इसको कुछ न हो गया हो, कहीं एक्सीडेंट न हो गया हो, ऐसा न हो, वैसा न हो। और इस बात पर हम गौर ही नहीं करते कि जिनको लेकर हमारे मन में अनिष्ट के विचार आते हैं, वो मौज मना रहे हैं।

"एक बज गए, बिटिया अभी तक घर नहीं लौटी, अरे, अरे, अरे! आज ज़रूर कुछ हो गया है!" और बिटिया कहाँ है? अरे भाई, वीकेंड है, बिटिया पब में है! तुम सोच रहे हो उसको कुछ हो गया है? वो तो चाह रही है कि आज कुछ हो ही जाए। सैटरडे नाईट है, आज भी कुछ नहीं होगा तो कब होगा?

पर जो खाली बैठा है, उसका यही हाल! वो आराम से सुबह आएगी अपना चार बजे, टकीला शॉट लेकर। और यहाँ माताजी दस बजे से चार बजे तक, जितने देवी देवता है — हिंदुओं ने इसीलिए लाखों रचे, समय कैसे कटेगा? — एक-एक करके सबके मंत्र, सबकी उपासना, सबका नाम लिया जा रहा है, सबको याद किया जा रहा है, "हे पहाड़ा वाली माता, ये वो... तू बचा ले, तू बचा ले!" तो फिर चौरासी में से बयालीस लाख देवी देवताओं ने कुल मिलाकर के जब जोर लगाया, तब पब बन्द हुआ, और बिटिया रानी निकलीं, और उनके बी.एफ. ने उनको घर पर छोड़ा और वो मज़े में आईं, बहके कदमों के साथ घंटी बजाईं, और यहाँ अंदर माताजी बिलकुल, कयामत का दिन है आज! घंटी बजी, दरवाज़ा खुलता है, ये पाठ कर रही हैं हनुमान चालीसा का, वो बोल रही है (एक प्रचलित गाने के बोल दोहराते हुए), "आई जस्ट लव योर बॉडी ! (मुझे तुम्हारे शरीर से प्यार है!)" अब ये दोनों आमने-सामने खड़े हैं, दृश्य देख लो बिलकुल।

फिर कहेंगी, "बड़ी बदकिस्मती थी जो ये इतनी देर तक नहीं आई, और मेरी बड़ी खुशकिस्मती है जो ये अंततः आज वापस आ गई।" ये है खुशकिस्मती और बदकिस्मती, दिमागी फितूर! पूछा है न आपने, "क्या होती है खुशकिस्मती, क्या होती है बदकिस्मती?" यही है। दोनों में ही कुछ नहीं रखा है!

जीवन को कोई सार्थक उद्देश्य दीजिए, इसी में पति और बेटे की भी भलाई है। उनकी आपको चिंता रहती है न? मैं समझता हूँ आप उनसे प्रेम करती हैं। आप उनसे अगर प्रेम करती हैं, तो उनके लिए आप ऊँचे-से-ऊँचा काम, प्यारे-से-प्यारा काम यही कर सकती हैं कि आप अपने जीवन को एक ऊँचे दर्ज़े की व्यस्तता दीजिये। बेकार कामों में मत जूझ जाइए, बेकार कामों में लिप्त हो जाने, व्यस्त हो जाने को नहीं कह रहा हूँ। मैं कह रहा हूँ, एक ऊँचे दर्ज़े की व्यस्तता दीजिए, यही पति के प्रति आपका प्रेम होगा, बेटे के प्रति आपका वात्सल्य होगा।

उनकी आप चिंता ही करती रहेंगी, तो वो भी आपसे उकताए ही रहेंगे, कि जब देखो तब ये यही पूछती रहती हैं, "कहाँ हो? कैसे हो?"

जो भी लोग काम जानते हों, और व्यस्तता जानते हों, वो भली-भांति जानते हैं कि कैसी ऊब और चिढ़ उठती है, जब आप किसी काम में व्यस्त हों, और पीछे से कोई बार-बार फ़ोन करके और संदेश करके पूछ रहा हो, "ठीक तो हो?" तो फिर जी यही करता है कि बोल दें, "मर चुके हैं! अब फ़ोन मत करना दोबारा।" वो पूछ रहा है, "ठीक तो हो?" तो जवाब क्या दिया? "मर चुके हैं, दोबारा फ़ोन मत करना।" मुर्दे जवाब नहीं देते। "अरे भाई बार-बार क्या पूछ रहे हो कि ठीक हैं कि नहीं हैं, हम काम कर रहे हैं, हमें परेशान मत करो। तुम भी कोई काम करो!"

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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