प्रश्नकर्ता: आचार्य जी प्रणाम। आचार्य जी आमतौर पर जो युवा हैं वो धर्म से दूर जा रहे हैं। लेकिन उत्तर भारत के जो युवा हैं उनका रुझान धर्म में बहुत तेजी से बढ़ा है। तो ये शुभ संकेत है?
आचार्य प्रशांत: किस युवा का रुझान बढ़ रहा है भाई धर्म में? कौन से युवा की बात कर रहे हो और वो युवा खासकर उत्तर भारत में ही क्यों पाया जाता है? पहली बात तो किस रुझान को धार्मिक रुझान बोल रहे हो आप? और ऐसा रुझान शेष विश्व में भी नहीं पाया जा रहा भारत के भी अन्य क्षेत्रों में नहीं पाया जा रहा सिर्फ़ उत्तर भारत में क्यों पाया जा रहा है? ये जो ज्यादातर आप युवाओं में धार्मिक रुझान देख रहे हो, जो ज्यादातर सड़कों पर नारेबाजी के रूप में और इंटरनेट पर ट्रोलिंग के रूप में दिखाई पड़ता है। द इंटरनेट धार्मिक्स ये युवा नहीं हैं। ये बेरोज़गार युवा हैं। और इनको ये एक वैकल्पिक बेरोज़गारी से मुक्ति का तरीका मिला है। रोजगार का एक अतिरिक्त एक वैकल्पिक साधन है। ये धर्म नहीं है। धर्म बहुत अलग, बहुत अनूठी, बहुत ऊँची, बहुत पवित्र बात होती है, धर्म। ये जिसको आप उत्तर भारतीय युवाओं में अचानक उठी धार्मिकता कह रहे हो। वो और नहीं है, बस कुछ उनकी बेरोज़गारी का परिणाम है, कुछ और करने को है ही नहीं। कुछ और करने को नहीं है तो — अब क्या करते हो आजकल? हम धर्म करते हैं।
कुछ करने को होता तो ये नहीं कर रहे होते धर्म, और असली धार्मिक आदमी वो है जिसके पास ज़िन्दगी में बहुत कुछ होता है करने को और जो कुछ उसके पास करने को होता है वो सब उसके धार्मिक केंद्र से आ रहा होता है। वो बहुत ऊँचे-ऊँचे काम कर रहा होता है क्योंकि वो धार्मिक है। और एक दूसरा आदमी जो करना तो ज़िन्दगी में सब साधारण और कामनाजित काम ही चाहता है। लेकिन उन कामों को करने का उसका अवसर नहीं लहरा। तो कहता है चलो अभी और कुछ करने को नहीं है तो धर्म कर लेते हैं, समय कट जाएगा। ये ज़्यादातार जो युवा आपको धार्मिक दिखाई दे रहे हैं। इनकी नौकरियाँ लग जाए तो इनका धर्म छूट जाएगा। और घर परिवार वाले भी खुश है, समाज भी खुश है, सरकार भी खुश है कि अच्छा हुआ इनको कोई तो काम मिल गया क्योंकि काम नहीं मिला होता तो ये समाज से और व्यवस्था से माँग करते कि हमको रोजगार दो। अब ये माँग भी नहीं करते कि हमें रोजगार दो।
देखिए क्या होता है समझिएगा। उत्तर भारत में जब आपको नौकरी वग़ैरह मिलती है ना, तो उससे आपको ये लाभ नहीं होता कि आपके हाथ में रुपए आने लग जाएँगे। वो जो लाभ है वो बहुत छोटा लाभ है। पश्चिम में तो आप 17-18 साल के होते हो, आप घर से निकल जाते हो तो अब आपको अपनी रोजी रोटी खुद चलानी है। भारत में युवाओं के लिए रोटी की समस्या उतनी बड़ी नहीं है। कारण क्या है? घर से आप कभी निकलते ही नहीं हो। आप 35 साल के भी बेरोज़गार हो तो भी आपके घरवाले आपको बहुत प्यार से बैठा के खिलाते हैं। ठीक है? आप 35 साल के बेरोज़गार हो। घरवाले आपका ब्याह भी करा देंगे। 35 में आपके दो बच्चे भी हो गए। आप अभी भी बेरोज़गार हो। घरवाले तो भी आपको रोटी देते रहेंगे। घरवाले ये नहीं करेंगे कि बाहर निकल जाओ। तो भारत में रोज़गार आपको मुख्यतया रोटी के लिए नहीं चाहिए होता। इज़्ज़त के लिए चाहिए होता है।
अगर आपके पास रोज़गार नहीं है तो समस्या रोटी की नहीं आएगी। रोटी तो मिल जाएगी। हाँ, ये हो सकता है कि अच्छे कपड़े, महंगे कपड़े ना खरीद पाओ। ये तो हो सकता है कि अभी लड़का कमाता नहीं है तो अच्छे कपड़े नहीं पहनता या अह अपनी बाइक पर नहीं चलता, उधारी की बाइक पर चलता है या बाइक पर ही चलता है गाड़ी नहीं खरीद सकता क्योंकि कमाता नहीं है, ये तो हो सकता है। लेकिन ये नहीं होने वाला कि वो भूखा मर रहा है। घर आपके पेट का ख़्याल कर लेता है। आपकी पत्नी के पेट का भी ख़्याल कर लेता है और आपके बच्चे का भी ख़्याल कर लेता है। माँ-बाप इतना देख लेते हैं। तो क्या चीज़ है जो सिर्फ़ नौकरी से ही मिला करती है? इज़्ज़त। और इज़्ज़त पाने के लिए पिछले अब कुछ सालों में या कुछ दशकों में ये एक नया रोज़गार पैदा हुआ है धर्म।
वैसे घर में बैठा रहता है, बोलता बेरोज़गार है। तो कौन इज़्ज़त देता? अब वो कहता है कि मैं फलानी धार्मिक कमेटी का जिला प्रबंधक हूँ। कहीं से किसी की उधारी की कोई पुरानी जीप ले ली उस पे ऐसे 8-10 जिला प्रबंधक एक साथ बैठ जाते हैं वो और इधर-उधर नारा लगाते गाली देते निकलते हैं। इज़्ज़त मिल जाती है। ये चल रहा है। अगर वास्तविक धार्मिकता आई होती हमारे युवाओं में तो उसके लक्षण तो बहुत सुंदर बहुत अद्भुत बड़े प्यारे होते हैं। वास्तविक धार्मिकता आई होती तो हम पाते कि हमारे युवा बैठकर के उपनिषदों का पाठ कर रहे हैं, गीता पढ़ रहे हैं, नए तरीके के जीवन में प्रयोग कर रहे हैं। स्वरोज़गार की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, नए काम करने से, नए परीक्षणों से, नए मार्गों से घबरा नहीं रहे हैं। क्या ऐसा हो रहा है?
वास्तविक धार्मिकता आई होती तो उसका एक बहुत बड़ा लक्षण ये होता कि उत्तर भारत में जाति प्रथा समाप्त हो रही होती। क्या ऐसा हो रहा है? जातीयता की भावना तो और ज़्यादा प्रगाढ़ होती जा रही है उत्तर भारत में तो धार्मिकता कहाँ आ रही है? कौन कह रहा है कि हमारी वो और धार्मिक हो रहे हैं। अगर वास्तविक धार्मिकता आ रही होती तो महिलाओं की स्थिति सुधर रही होती। हमें तो महिलाओं की स्थिति पहले जैसी ही दिखाई दे रही है।
देश के जिन प्रांतों में सेक्स रेशियो लिंगानुपात सबसे बुरा है उनमें उत्तर भारत के तो कई राज्य आते हैं। उत्तर भारत में तो सबसे ज़्यादा बुरा है। और मज़ेदार बात ये है, क्या बोलूँ मज़ेदार बहुत दुखद बात ये है! कि उत्तर भारत के जो सबसे ज्यादा धार्मिक जिले हैं वहाँ सेक्स रेशियो बहुत ही बुरा है। ये कौन सी धार्मिकता उठ रही है हमारे जवान लोगों में कि यो अपनी बच्चियाँ मार देते हैं। ये धार्मिकता के लक्षण है? या धार्मिकता का लक्षण यही होता है कि — अब मंदिर ज़्यादा जाने लग गया है, और फलानी यात्रा पर जाता है और पैदल-पैदल चल के फलानी जगह पर जाता है, पानी लेकर आता है। यही सब बस धार्मिकता का लक्षण है क्या? या धार्मिकता रोज़मर्रा के जीवन में दिखाई देनी चाहिए? रोज़मर्रा के जीवन में तो धार्मिकता दिखाई नहीं दे रही है।
धार्मिकता के नाम पर वही है। ट्विटर पर ज़बरदस्त सक्रियता है। ये धार्मिकता है। ट्विटर पर जाकर के इधर-उधर जो मिले उसको गाली दो — ये धार्मिकता है? तथ्यों से छेड़छाड़ करो, इतिहास को तोड़ मरोड़ दो ये इंटरनेट धार्मिकता है। बल्कि ये समझ लो तुम कि जो इस तरह धार्मिक हो रहा है वो अब धर्म से बहुत दूर चला गया। तो अपने सवाल को बिल्कुल पलट दीजिए आप — उत्तर भारत से धार्मिकता विलुप्त होती जा रही है — जो व्यक्ति धर्म के नाम पर अंधविश्वास को स्वीकार कर रहा है, कट्टर होता जा रहा है, सत्य से और ज्ञान से दूर होता जा रहा है। वो पहले तो हो सकता है थोड़ा बहुत धार्मिक रहा भी हो। अब एकदम धार्मिक नहीं रहा। आपको आज अगर कोई अधार्मिक आदमी खोजना हो जाकर खोज के लाना हो कि एक अधार्मिक आदमी चाहिए तो जाना देखना — जो लोग अपने आप को धार्मिक बोल रहे हो उनमें से किसी को ले आना।
अधार्मिक आदमी खोजने के लिए कोई बहुत मेहनत की जरूरत नहीं है। जहाँ धार्मिक लोगों की भीड़ लगी हो उसमें से किसी को भी ले आना वही सब — सबसे ज्यादा अधार्मिक हो चुके हैं। जितना अंधविश्वास आज से 20-40 साल पहले रहा होगा उससे ज़्यादा अंधविश्वास आज है उत्तर भारत में। देश में अन्य जगहों पर भी है — पर उत्तर भारत में तो विशेष तौर पर और वो बढ़ता ही जा रहा है, बढ़ता ही जा रहा है। उसको बहुत आयोजित व्यवस्थित तरीके से बढ़ाया जा रहा है। ये धर्म के लक्षण है? युवा के पास ऊर्जा है जो न जाने कितने सृजनात्मक, सकारात्मक कामों में लग सकती है। उस ऊर्जा को हम बेबसी में बर्बाद जाते देख रहे हैं। बहुत व्यर्थ तरीके के उपक्रमों पर ये प्रोजेक्ट्स हैं — प्रोजेक्ट सुपरस्टिशन। तो हम उस ऊर्जा को बिल्कुल व्यर्थ जाते देख रहे हैं।
आज ये कुछ कर रहे होते हैं इनको मैं बोलता हूँ कि जो तुम कर रहे हो भाई ये कहीं गीता, वेदांत, उपनिषद में कहीं लिखा है? तो अब ये धड़ल्ले से जानते हो क्या जवाब देते हैं? ये बोलते हैं — “अजी साहब सिर्फ गीता ही है क्या हमारे इधर ऐसे ही चलता है यही धर्म है।” देखो ये कहाँ तक आ गए — ये अब कृष्ण के ज्ञान और कृष्ण के वचन को भी एकदम धड़ल्ले से ठुकराते हैं। आप कह रहे हो उत्तर भारत में युवाओं में धार्मिकता बढ़ रही है। ये सीधे बोलते हैं, बोलते हैं — “नहीं लिखा होगा उपनिषद में, गीता में, वेदांत में हमारी तरफ ऐसे ही चलता है, यही धर्म है।”
धर्म का अर्थ होता है गहरी, अथक, निर्मम जिज्ञासा। सत्य से पहले कहीं भी ना रुकने का नाम धर्म है।
और जिज्ञासा के नाम पर ये कर क्या रहे हैं — कि जो भी अपने पुरानी रूढ़ियाँ हैं उनको और आगे बढ़ाओ। ये तो धर्म का विपरीत हुआ ना। ये धर्म किस तरीके से है? और ऐसा नहीं कि ये लोग ये बात जानते नहीं है। यही सब जो धार्मिक बनके घूम रहे हैं मैं फिर बोल रहा हूँ इनकी अच्छी नौकरियाँ लग जाए तो यह सब जो कुछ कर रहे हैं सब छूट जाएगा इनका — ये वैकल्पिक रोजगार है बस। हमें वास्तविक धर्म चाहिए, उत्तर भारत को ही नहीं समूचे भारत को।
भारत को ही नहीं पूरे विश्व को आज सच्चे धर्म की अध्यात्म की बहुत-बहुत जरूरत है। हम जहाँ खड़े हुए हैं वहाँ पर धर्म के अलावा अब पूरे विश्व को कोई नहीं बचा सकता। आज सुबह मेरी बात हो रही थी। अमेरिका में एक बैचमेट है मेरा। तो लाइफ साइंसेस में अपनी एक नई कंपनी खोल रहा है यूएस गवर्नमेंट की ही फंडिंग से। तो उसने कहा कि “लोगों को अभी पता नहीं है — लेकिन जिसको आप साधारण एलर्जी वग़ैरह बोलते हो ना — ये दुनिया के कई देशों में एक नया एपिडेमिक है।” मैंने कहा एलर्जी तो एलर्जी होती है। एलर्जी में क्या हो गया? बोला — “नहीं आप समझ नहीं रहे हो एलर्जी कितनी दूर तक जा सकती है। एलर्जी मौत ला सकती है। और ये नया एपिडेमिक है।” मैंने कहा कैसे?
बोले “दुनिया के सब देशों में औसत तापमान क्लाइमेट चेंज की वजह से 2 डिग्री बढ़ चुका है। उससे जो ये फूलों के पॉलंस हवा में रहते हैं वो प्रक्रिया एकदम बदल चुकी है।” और उसका शब्द था — “इंटेंसिफाई” (बहुत तेज हो चुकी है) — “और उससे जबरदस्त किस्म की एलर्जीज़ हो रही हैं। और वो “एलर्जीज़” सिर्फ ऐसा नहीं कि आँख बह रही है, नाक बह रही है — फेफड़ों का इनफ्लेमेशन और उसके लिए हमारे पास अभी कोई उचित दवाइयाँ भी नहीं है।”
ये क्लाइमेट चेंज, ये वनों का विनाश, ये प्रजातियों का विलुप्त होना कहाँ तक जाएगा ये हम अभी कल्पना भी नहीं कर पा रहे हैं। हम सोच रहे हैं कि हम बच जाएँगे। हम नहीं बचेंगे। हमें आज धर्म की जरूरत है। धर्म ही है। जो मनुष्य की प्रजाति को, सब प्राणियों की प्रजाति को और पृथ्वी को बचा सकता है। लेकिन धर्म की जगह हमारे हाथ में झुनझुना दे दिया गया है वो झुनझुना हम बजा रहे हैं।
अभी एशियन गेम हुए, आप में से किसी ने जिज्ञासा करी कि इज़राइल भी तो एशिया में आता है। इज़राइल की टीम क्यों नहीं दिखाई दे रही हैं एशियन गेम्स में? किसी ने भी जिज्ञासा ही नहीं करी होगी। इज़राइल और कहाँ आता है? एशियन कंट्री है ना? तो इज़राइल क्यों नहीं खेल रहा है एशियन गेम्स में? अभी चल रहे हैं एशियन गेम्स। कल उनकी क्लोज़िंग सेरेमनी है। इज़राइल क्यों नहीं दिखाई दे रहा है? जिस कारण से इज़राइल नहीं दिखाई दे रहा है उसी कारण से आज हमस ने इज़राइल पर 5000 मिसाइलें दागी हैं! 5000! वो मिसाइलें नहीं है रॉकेट हैं छोटे पर 5000 दागे हैं!
ये सत्र शुरू होने से पहले तक कम से कम 300 लोग मर चुके थे। इज़राइल और फिलिस्तीन के मिलाकर। हम ऐसी जगह पर खड़े हुए हैं जहाँ पर — विनाश कभी भी हो सकता है यकायक हो सकता है और कुछ नहीं पता लगेगा। इज़राइल जैसे इंटेलिजेंस नेटवर्क बहुत कम देशों के होंगे और फिलिस्तीन, गाज़ा, वेस्ट बैंक इन सब क्षेत्रों में तो इज़राइल एकदम घुसा हुआ है सब कुछ पता है। उसके बाद भी ये जो स्ट्राइक थी इज़राइल इसके लिए तैयार नहीं था। इसके बाद अब इज़राइल का काउंटर मेजर आया है तो — बॉम्बिंग, बॉम्बिंग, बॉम्बिंग जितनी देर में शत्रु उतनी देर में और ना जाने कितनी बॉम्बिंग कर दी होगी एरियल बॉम्बिंग। किसी भी क्षण कुछ भी शुरू हो सकता है क्योंकि हम गहरे आत्म अज्ञान में डूबे हुए हैं।
धर्म चाहिए आत्मज्ञान के लिए और मैं बार-बार बोलता हूँ आत्मज्ञान के अलावा और कोई धर्म नहीं होता।
ये जो हमने 800 करोड़ की विश्व की जनसंख्या कर दी है। आत्मज्ञान नहीं होगा तो ये लोग सिर्फ एक चीज मांगेंगे। क्या? — भोग, भोग, —*कंज़म्पशन, कंज़म्पशन, कंज़म्पशन*और भारत विश्व के युवा लोग देशों में से एक है। ये भारतीय युवा सब मांगेंगे — और दो और दो मुझे भोगना है, मुझे भोगना है, मुझे भोगना है। पृथ्वी के पास इतना है ही नहीं कि सब युवाओं को इतना भोग करा सके। सबको उतना ही भोगना है जितना कि कोई दुबई में या जर्मनी में या अमेरिका में औसत नागरिक भोग रहा है। कैसे भोग लोगे? पृथ्वी के पास उतना है ही नहीं। आपके भोग के लिए 10 पृथ्वीयाँ भी कम पड़ेंगी।
धर्म की तो हमको बहुत जरूरत है ताकि हमें समझ में आए हम हैं कौन? धर्म का मूल प्रश्न होता है “कोहम।” मैं कौन हूँ? और क्या भोग-भोग करके मुझे पूर्णता या तृप्ति मिलेगी या मेरे जीवन का कुछ और उद्देश्य है? क्या मैं साहस पूर्वक उस उद्देश्य को पूरा करने निकल सकता हूँ? ये धर्म का मूल प्रश्न होता है। इस प्रश्न की जगह हमारे पास धर्म के नाम पर हमारे हाथों में न जाने कौन से व्यर्थ के मुद्दे थमा दिए गए हैं। कुछ आ रही है बात समझ में? धर्म कोई बस व्यक्तिगत संतुष्टि की चीज नहीं होता है। समाज भी बचाना है तो धर्म चाहिए। राष्ट्र को बचाना है तो धर्म चाहिए। और आज विश्व को भी अगर बचाना है तो धर्म चाहिए बाबा।
धर्म के अभाव से ज्यादा खतरनाक होता है धर्म का दूषित या विकृत हो जाना।
जाइएगा पढ़िएगा गूगल करिएगा म्युनिख मेसेकर इज़राइल क्यों नहीं है एशियन गेम्स में जानिएगा तो पता चलेगा कि धर्म के नाम पर हम क्या-क्या नहीं कर सकते। यूनिक ओलंपिक्स हुए थे — उसमें धर्म के ही नाम पर इज़राइल के 11 एथलीट थे और कोच वग़ैरह थे और रेफरी थे कुछ — उनको पहले बंधक बनाया गया और फिर उनकी हत्या कर दी गई। तो ये कहानी तब से शुरू होती है जो एशियन गेम्स वाली कहानी है। आज भी इज़राइल एशियन गेम्स में नहीं दिखाई देता। ओलंपिक्स में दिखाई देता है। इज़राइल का इसलिए बोल रहा हूँ क्योंकि ताज़ा-ताज़ा आज इस समय बॉम्बिंग चल ही रही होगी। बड़ी बात नहीं है हम उठे तो जो आंकड़ा है मृतकों का वो 500 पार कर चुका हो।
और हमारा मीडिया ऐसे दिखा रहा है। इज़राइल के जो फाइटर जेट्स हैं उनमें कैमरा लगे हुए हैं। वहाँ पर वो अपना रिकॉर्डिंग कर रहे हैं कि देखो बम गिर रहा है तो नीचे से कैसे धुएँ उठ रहे हैं और — वो जो रिकॉर्डिंग है वो मीडिया के पास पहुँच रही है। मीडिया उसको दुनिया भर में दिखा रहा है। सब उसे मनोरंजन की तरह ले रहे हैं। धर्म मनोरंजन ही तो बन गया है। धर्म माने खिलौना। कबीर साहब ने कहा था ना — “लोगन राम खिलौना जाना।” तो राम को तो खिलौना बना दिया — “लोगन राम खिलौना जाना।” धर्म माने मनोरंजन। ये गुरु ग्रंथ साहिब में है। वो जो पूरा वक्तव्य यही है वो बहुत सुंदर है। उसमें लगभग अंत में आता है कि “लोगन राम खिलौना जाना।”
धर्म अगर विकृत हो गया तो धर्म से ज्यादा खतरनाक कुछ नहीं होता। धर्म अगर शुद्ध है तो धर्म का अर्थ है प्रेम, करुणा, सद्भावना, बोध, मुक्ति। और धर्म अगर वृिकृत है तो धर्म का अर्थ है बॉम्बिंग, लाशें, बर्बादी, हत्या, खून, मांसाहार, दुनिया के सब प्राणियों के प्रति बर्बरता, जंगलों की अंधाधुंध कटाई ये फिर धर्म से निकलता है।
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी आज सुबह ही बात हो रही थी। मेरे एक मेरे मित्र हैं सिक्किम के तो वहाँ पर बाढ़ आई है ना सिक्किम में तो उनसे बात हो रही थी। तो अभी आपने जो ये बात बोली कि अगर जो कुछ चीज मनोरंजन में बदल गया धर्म तो फिर उसकी ऐसे ही विकृति हो जाती है। तो आपका एक वीडियो आया था अमरनाथ यात्रा पर जो उस टाइम में भूस्खलन हो रहे थे — उत्तराखंड में जिस पर आपने बोला था — तो उसी वीडियो को देख के उन्होंने मुझे कॉल किया था सुबह। तो वही बता रहे थे कि अब उनको भी नहीं पता कि उसका रीजन क्या है? वहाँ पे जो बाढ़ आई है क्या वजह है? लेकिन बता रहे थे कि — जो आचार्य जी उसमें बात बोल रहे हैं अगर उस चीज पे लोगों ने अमल कर ली होती तो शायद आज वहाँ पर हजारों लोगों की जाने बच गई होती।
आचार्य प्रशांत: हम बिल्कुल नहीं समझ पा रहे हैं। पूरी दुनिया में आग लगी हुई है और हम बच्चों वाले खेल, खेल रहे हैं। जैसे घर में आग लगी हुई हो और घर के दो बच्चे आपस में इसलिए लड़ रहे हो — दो बच्चे ले लीजिए, पाँच बच्चे ले लीजिए बड़े भी सब बच्चे ही जैसे हैं। अब और घर के ये सब बच्चे आपस में लड़ रहे हैं कि तूने मेरी गुड़िया चुरा ली, तूने मेरा लट्टू चुरा लिया, तू मेरी चड्डी वापस कर दे, अरे मेरी थाली का चम्मच वो ले भाग गया। इस बात पे ये घर के बच्चे लड़ रहे हैं — और घर में भयानक आग लगी हुई है ये हमारी हालत है।
हमें कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है। और जो चीज़ हमको समझा सकती है उसको हम बर्बाद करने पर तुले। क्या हमें समझा सकता है? — उसको अध्यात्म बोलते हैं। अध्यात्म का अर्थ ही होता है — आत्मज्ञान। धर्म माने आत्मज्ञान। आत्मज्ञान के अलावा बाकी जो कुछ है धर्म के नाम पर — वो सब मिथ्या है और पाखंड है। धर्म माने मात्र आत्मज्ञान और ये जितनी हम दुनिया की बर्बादी देख रहे हैं ये कुछ और नहीं है। आत्मज्ञान की कमी का नतीज़ा है। आत्मज्ञान जितना कम होगा इंसान अपनी ज़िन्दगी में और दुनिया में उतनी ज़्यादा आग लगाएगा।