देश की फ़िक्र! || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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देश की फ़िक्र! || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

प्रश्न: सर, हमारे देश में सभी प्रकार के संसाधन होते हुए भी हम विदेशी ताकतों पर निर्भर हैं – जैसे भाषा, प्राक्रतिक संसाधन, संस्कृति आदि।

वक्ता : तुम दूरदर्शन से आए हो? अरे अपने बारे में कुछ पूछ लो। ‘देश, प्राक्रतिक संसाधन, विदेशी ताकतें।’ अपने बारे में सवाल करो बेटा, देश का क्या अर्थ है? – तुम और मैं। देश माने क्या? उमेश जी (श्रोता को संबोधित करते हुए) बताएंगे, देश माने क्या?

मेरा बड़ा लम्बा विचार-विमर्श हुआ था। देश माने क्या होता है? ये छत देश है। ये पंखा देश है। देश माने क्या? – मैं और तुम न। तो मेरी और तुम्हारी बात करो। देश नहीं निर्भर है। हम ऐसे हैं कि उनपर निर्भर होना पड़ता है। हम और तुम बदल जाएं तो देश बदल जाएगा, कि नहीं बदल जाएगा? या मिट्टी बदलोगे देश की? कि बड़े-बड़े जाहाज़ों में भर कर मिट्टी लाई जा रही है अमेरिका की। क्यों? ये देश निर्माण का कार्येक्रम चल रहा है। मिट्टी बदल दें; कीड़े बदल दें!

मैंने सुना है कि यहाँ कैंपस में एक पेट्रोल नाम का कीड़ा आता है, उसको शिक्षा देते हैं। उसका एच.आई.डी.पी. चलातें हैं, वो बदल गया तो देश बदल जाएगा। वो बड़ा परेशान करता है। तुम्हारे कुंदन सर को दो-चार बार काट चुका है। सबको काट चुका है? तो चलो देश निर्माण करेंगे अब से।

पेट्रोल बदलेगा, देश बदलेगा!

देश माने क्या – पेट्रोल या तुम?

श्रोता १ : हम।

वक्ता : तो अपनी बात करो न। कि मैं ऐसा क्यों हूँ कि मुझे दूसरों पर निर्भर होना पड़ता है। जिस देश के लोग दूसरों पर आश्रित हैं, वो देश भी दूसरों पर आश्रित हो जाएगा। क्या ये बात सीधी नहीं है? और जिस देश के लोग स्वालम्भी हैं, उस देश को भी किसी का आव्लम्भन नहीं चाहिए? क्या ये बात भी सीधी नहीं है। तो देश और ब्रह्माण, क्यों इतनी दूर की बड़ी-बड़ी बातें करते हो? अपनी बात करो न कि ‘मैं ऐसा क्यों हूँ? मैं लगातार दूसरों पर आश्रित क्यों हूँ?’

तुम जिस दिन तक दूसरों पर आश्रित हो, और तुम किस पर आश्रित हो? तुम परिवारवालों पर आश्रित रहते हो, तुम समाज पर आश्रित रहते हो, तुम दुनिया भर के नज़रियों पर आश्रित रहते हो। तुम्हारी अपनी कोई दृष्टि नहीं रहती। जिस दिन तक तुम दूसरों पर आश्रित हो, उस दिन तक देश भी दूसरों पर आश्रित रहेगा। जिस दिन तुम अपने पांव पर खड़े हो गए, उस दिन देश भी अपने पांव पर खड़ा हो जाएगा। बात क्या सीधी नहीं है? उसको उलझाना क्यों है? कि उलझाना चाहिए? ‘सर हम तो ऐसे ही रहेंगे जैसे हम हैं, देश निखर के आना चाहिए।’ बुलाओ पेट्रोल को, उसको निखारते हैं!

तुम अगर ऐसे ही रहोगे, तो देश कहाँ से बन जाएगा? और दुनिया में सब का और ज़्यादातर भारतवासियों का कहना होता है कि ‘जी हम तो ऐसे ही रहेंगे।’ सड़क टूटी-फूटी रहेगी। सड़क किनारे खुले में मल-मूत्र चल रहे हैं। कंडक्टर बस रुकवाओ प्रेशर है और सींच दिया और अन्दर आकर कह रहे हैं कि देश साफ़ रहना चाहिए। अबे गंदे आदमी, तुम्हारे रहते देश साफ़ हो सकता है? और बात देश की करेंगे! ‘भारत बड़ा पवित्र देश है’, और नमूना दे के आ रहे हैं। ‘भारत की मिट्टी में अमृत बरसता है’, ये अमृत बरसा के आ रहे हैं। अपनी हरकत देखो। अपने काम देखो।

देश की बात क्यों कर रहे हो? अपनी बात करो।

‘भारत को भ्रष्टाचार से मुक्त करना है, बस मेरे घर में घूस आती रहे। हटा दो भ्रष्टाचार, ले आओ लोकपाल। चलो इंडिया गेट, नारे लगाओ। भारत को भ्रष्टाचार मुक्त देश बनाना है, मेरा घर चलता रहना चाहिए लेकिन। भारत को बलात्कारियों से मुक्त करना है। फांसी दे दो उन चार लोगों को, सोलह दिसम्बर वाले, पर मैं वैसा ही रहूँगा जैसे हूँ। चलियो ज़रा शाम का मौसम है, घूम रही होंगी बाहर दो-चार। पर देश को बलात्कार मुक्त करना है। मैं वही करता रहूँगा जो मुझे करना है, देश लेकिन महिलाओं के लिए बिलकुल सुरक्षित हो जाए।’

तुम्हारे रहते सुरक्षित हो सकता है? देश को महिलाओं के लिए अगर सुरक्षित करना है तो सबसे पहले तुम्हें निकालना पड़ेगा। पर नहीं, बात देश की करेंगे।

‘भारत देश में सदा से महिलाओं का सम्मान हुआ है। हमने नारी को देवी की तरह पूजा है। लगालो ज़रा आइटम नंबर, पूजा कर लें देवियों की।’ भारत में कहा जाता है कि जहाँ महिलाओं को सम्मान मिलता है वहां देवी-देवता बसते हैं। और क्या तो सम्मान देते हो तुम, पर देश सम्मान बहुत देता है। कहाँ है देश भाई? देश कहाँ है? तुम्हारे और मेरे अलावा देश कहाँ है? कहाँ है?

एच.आई.डी.पी. तुम्हारे बारे में है। जीवन भी तुम्हारा है।

तुम बदल जाओ, देश अपने आप बदल जाएगा।

अपनी फ़िक्र करो, देश की नहीं। देश अपनी फ़िक्र कर लेगा। जहाँ पर नागरिक स्वस्थ है, जगा हुआ है, वो देश भी स्वस्थ होगा और जगा हुआ होगा।

अपनी फ़िक्र करो।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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