देह ही सत्य है, तो पॉर्न ही शास्त्र है || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)

Acharya Prashant

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देह ही सत्य है, तो पॉर्न ही शास्त्र है || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)

प्रश्नकर्ता: हैलो सर, मेरा प्रश्न इंटरनेट पॉर्नोग्राफ़ी (अश्लील विषयवस्तु) से सम्बन्धित है, अभी कुछ दिनों पहले डिपार्टमेंट ऑफ टेलिकॉम (सूचना विभाग) ने तिरसठ साइट्स की सूची बनाई थी और बैन कर दिया था उन्हें। कुछ और आँकड़ों के अनुसार भारत में नवासी प्रतिशत मोबाइल फ़ोन उपभोक्ता हैं जिन्होंने कभी-न-कभी इस तरह की साइट्स को एक्सेस (उपयोग) किया है। और कोविड के दौरान जो इंटरनेट ट्रैफिक था इस आईपी एड्रेस से वो बीस प्रतिशत बढ़ा था क्योंकि वो कंटेंट देखा जा रहा था।

तो अब इसमें दो पक्ष हैं, पहला पक्ष ये कि यह एक नेसेसरी एविल (आवश्यक बुराई) है कि बहुत सारे जवान लोग हैं देश में और उन्हें एक तरह से रिलीफ़ मिल जाता है ऐसा कंटेंट देख करके और जो विकसित देश हैं पश्चिम में वहाँ पर भी इसी आवश्यक बुराई का तर्क दिया जाता है इसीलिए ये आज तक वहाँ पर भी बैन नहीं हो पाया है।

दूसरा पक्ष ये कहता है कि जो यौन सम्बन्धी अपराध हैं वो इस तरह के कंटेंट की वजह से बढ़ रहे हैं, युवाओं को प्रोत्साहन मिल रहा है। तो भारत के संदर्भ में फिर इसको कैसे देखा जाए, जो पश्चिम की नक़ल करके, आया तो वहीं से है और ‘आवश्यक बुराई’ वाला जो तर्क दिया जाता है उसके बारे में और फिर पिछले कुछ सालों में इस कंटेंट को देखने की वजह से बढ़ने वाले यौन सम्बन्धी अपराध बढ़े हैं। तो यही आपसे समझना था कि इसको भारत के संदर्भ में इसको कैसे देखें?

आचार्य प्रशांत: आप ऊँचे जीवन की, मानव आदर्श की, आर्थिक प्रगति की एक भौतिक अवधारणा रखें और पॉर्नोग्राफ़ी न हो, ये सम्भव नहीं हो पाएगा। इंसान के, संस्थानों के, सरकारों के सारे आदर्श भौतिक हैं न? आपके जितने ऊँचे-से-ऊँचे आदर्श हैं और विचारधाराएँ हैं वो सब-के-सब भौतिक हैं न, कैपिटलिज्म (पूँजीवाद) किस बारे में है? किसी भौतिक चीज़ के बारे में। कम्युनिज्म (समाजवाद) किस बारे में है? यहाँ तक कि समाजवाद भी यही तो बोलता है आदमी और आदमी में बराबरी हो वग़ैरह।

देश की तरक्क़ी हो रही है कि नहीं आप कैसे नापते हो? जीडीपी से। घर की तरक्क़ी रही है नहीं, आप कैसे नापते हो? बच्चे की तरक्क़ी आपकी हो रही है कि नहीं कैसे नापते हो? उसके मार्क्स देखकर। हर चीज़ तो भौतिक है न, हर तरफ़ से आप अपनेआप को और नई पीढ़ी को, बच्चों को, जवानों को यही सन्देश तो दे रहे हो कि जीवन पूरा-का-पूरा भौतिक मात्र है और भौतिक क्षेत्र में ही अगर आगे बढ़ जाओगे तो शान्ति, तृप्ति, सफलता मिल जाएगी। यही तो कह रहे हो न।

वो लोग जो पॉर्नग्राफ़ी विरोध करते हैं वो भी तो यही कह रहे हैं कि तुम और कोई काम करो और कोई काम करो इसमें समय क्यों ख़राब कर रहे हो? कहते हैं, तुम, तुम इतना समय तुमने अगर किसी अच्छे काम में लगा दिया होता तो देखो तुम स्टूडेंट हो, जवानों की बात कर रहे हो (प्रश्नकर्ता को सम्बोधित करके), तुम स्टूडेंट हो, तुम्हारे मार्क्स बढ़ जाते या तुम्हें कुछ पैसे मिल जाते अब मार्क्स और पैसा दोनों किससे सम्बन्धित हैं? भौतिकता से।

अब इतनी अक़्ल तो उस किशोर में या नौजवान में है न, वो कहता है कि हम अच्छे से जानते हैं पापा आप हमें पढ़ने को क्यों बोल रहे हैं। पापा आप पढ़ने को इसलिए बोल रहे हो कि पढ़ूँगा तो पैसा कमाऊँगा, पैसा कमाऊँगा तो अच्छी नौकरी लगेगी, अच्छी नौकरी लगेगी तो अच्छी बीवी आएगी, अच्छी बीवी आएगी तो अच्छा सेक्स होगा तो वो सेक्सुअल प्लेजर (यौन सुख) मैं अभी ही क्यों न ले लूँ। पढ़ाई भी तो अल्टीमेटली सेक्सुअल प्लेजर (अंततः यौन सुख) के लिए ही है।

ख़ासतौर पर सरकारी नौकरी के जो दीवाने हैं अच्छे से जानते हैं ये बात कि अगर नौकरी नहीं लगी तो उनकी शादियाँ होंगी नहीं। ये खूब चलता है यूपी-बिहार में, राजस्थान में, एमपी में, लड़की का बाप पाँच साल से खोजने में लगा हुआ है कि सरकारी नौकरी वाला कोई मिल जाए।

देख नहीं रहे हो पढ़ाई का सीधा सम्बन्ध सेक्स से है। कई जो ये यूपीएससी की तैयारी वाले होते हैं उनके बाप आकर बोलते हैं, “अगर ये सेलेक्ट नहीं हुआ तो वंश आगे बढेगा नहीं हमारा अब पता है, कुल दीपक यहीं बुझ जाएगा”। देख नहीं रहे हो पढ़ाई का भी सम्बन्ध सेक्स से है। और तुम उसको बोल रहे हो तू पॉर्न मत देख, तू पढ़ाई कर। तुम उसको बोल रहे हो पॉर्न मत देख दिन में तू चार घंटे पॉर्न देखता है, इतने में तू पढ़ाई कर लेगा तो टॉप कर जाएगा। वो कहता है टॉप कर जाऊँगा तो भी जो चीज़ मिलेगी उस पॉर्न से बेहतर तो नहीं है। टॉप करके भी तुम मुझे सेक्स ही तो दिलवाने वाले हो, वो मैं सीधे ही ले लेता हूँ।

जीवन के जब सारे आदर्श ही भौतिक हैं तो भौतिक सुखों में जो अव्वल आदर्श है व्यक्ति सबसे पहले उसी की ओर भागेगा, भागेगा-ही-भागेगा ये तो प्राकृतिक बात है। जब आप पूरे जीवन को भौतिक बनाए हुए हो, आप कहते हो अमेरिका बहुत मज़बूत देश है, क्यों? क्योंकि उसकी सेना बहुत बड़ी है और उसकी अर्थव्यवस्था बहुत बड़ी है। और दोनों बातें क्या? भौतिक माने मटीरियल जिनको हिंदी (हिन्दी समझने में कठिनाई हो जिन्हें) भौतिक माने मटीरियल। अमेरिका बड़ा देश क्यों है? जीडीपी और मिलिट्री और आप गिनते हो कि उसके पास कितने न्यूक्लियर बॉम्ब हैं ।

रूस यूक्रेन पर भारी पड़ रहा है, क्यों ज्ञानी ज्यादा है? हथियार ज्यादा हैं न, पूरी दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है वो एक जवान आदमी को क्या सन्देश दे रहा है? ऑनली द मटीरियल काउंट्स , सिर्फ़ जो भौतिक है उससे ही फ़र्क पड़ता है, वही असली चीज़ है। और भौतिक सुखों में सबसे ऊपर का सुख तो यही लगता है जवानी में कि सेक्स मिल जाए, तो वो अपना उसमें लगा हुआ है।

तुम उसे उस भौतिक सुख से आगे का तो कुछ दो, तो वो कहे कि यार पॉर्न तो ठीक है, सुख मिल रहा है लेकिन और कुछ मिल रहा है जो इससे भी आगे का है। पॉर्न से आगे का अध्यात्म होता है, वो जब तक नहीं रहेगा तब तक पॉर्न रहेगी। आपकी मोरैलिटी (नैतिकता) को जितनी चोट लगती हो लगती रहे, कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला।

तुम आज बोल रहे हो इंटरनेट का ट्रैफिक , मैं जब आईआईटी में गया वहाँ इंटरनेट नहीं होता था तब मैगजींस चलती थीं और वो एक कमरे से दूसरे कमरे में सर्कुलेट (घूमती) होती रहती थी, वो ऐसी हो जाती थी कि छूने का मन न करे। लेकिन तब भी उनके चीथड़े, और बड़ा कोऑपरेशन था लड़कों में; इस्तेमाल करके दूसरे के दरवाज़े से नीचे खिसका देते थे। कहते थे, ले अब तेरा नम्बर। कारण वही है, गिव देम समथिंग हायर देन दैट, बियोंड दैट (उन्हें कुछ ऊँचा, कुछ दूर का दो)। तो वो सुनें भी तुम्हारी।

नहीं तो मन तो परेशान ही रहता है न अपनी दुखी और बेचैन हालत से, उसको जिधर भी सुख दिखेगा वो भागेगा, तुम रोक नहीं सकते। कैसे रोकोगे? वो भी जब एकदम सस्ता डेटा हो, मुफ़्त में मिल रहा है, हज़ारों वेबसाइट्स हैं, ट्रैफिक बता रहे हो अस्सी-नब्बे प्रतिशत, सब उधर को ही भाग रहे हो, भागेंगे ही वो जब आसानी से मिल रहा है।

कुछ और है? यहाँ बैठे हो, कितनी बार पॉर्न का ख़्याल आया? कुछ को तो आया भी होगा। पर ज़्यादातर को नहीं आया होगा, जिन्हें अक्सर आता है, बार-बार आता है उन्हें भी यहाँ बैठकर तो नहीं आया होगा या मुझे धोखा हो रहा है, नहीं आया न? मेरा दिल रखने के लिए बोल दो नहीं आया। क्यों नहीं आया? कुछ और चल रहा है न वो ख़्याल ही नहीं आया।

ऐसा नहीं कि आपने दमन कर दिया उस इच्छा का, ऐसा नहीं कि आपको ख़्याल आ रहा था और आपने कहा कि छि, गन्दी बात! ख़्याल आया ही नहीं और सिर्फ़ यही एक तरीक़ा है। जब आप एक ऊँची ज़िन्दगी जीने लगते हो न, तो निचले ख़्याल आने ही कम हो जाते हैं।

ऐसा नहीं कि आपको कोई सूत्र मिल जाता है डर को जीत लेने का, आपके पास फ़ुरसत नहीं बचती डरने की, ऐसा नहीं कि आपको लालच के विरुद्ध कोई विधि मिल गई है, बस आपके पास फ़ुरसत नहीं होती लालच में आने की। वही बात वासना पर भी लागू होती है। अचानक आपको याद आएगा, अरे! तीन महीने हो गए पॉर्न देखी ही नहीं और ये होता था। जब एग्जाम्स चल रहे होते थे उन दिनों पर डेबोनियर वग़ैरह की माँग कम हो जाती थी, फ़ुरसत किसको है? समझ आ रही है बात!

फ़ुरसत कम दो अपनेआप को और किसी ऐसी चीज़ में लगो जो बहुत गहराई से तृप्त कर देती है, तो इन झंझटों से बचोगे। देखो, पॉर्न तो चलो मुफ़्त मिल जाती है, सेक्स हरदम मुफ़्त नहीं मिलता, उसके लिए बहुत बड़ी क़ीमत चुकाते हो और ये अंज़ाम होता है ग़लत ज़िन्दगी का।

सम्बन्ध समझना, आप ग़लत जीवन जियोगे, उसमें बेचैनी रहेगी। बेचैनी जितनी बढ़ेगी तुम्हें सेक्स उतना ज़्यादा चाहिए, उसके लिए तुम ग़लत शादी-ब्याह करोगे, ग़लत सम्बन्ध बनाओगे। कोई ठीक-ठाक भी साथी मिल गया तो तुम उसको अपनी हवस के लिए ही इस्तेमाल करोगे, अपनी ज़िन्दगी ही ख़राब कर लोगे किसी और की भी ख़राब करोगे।

और सबकुछ मूल में किस बात से निकल रहा है? मूल में इस बात से निकल रहा है कि हमारे पास कोई आदर्श नहीं है भौतिक के अलावा।‌ मैंने पूछा था, एक-दूसरे को कभी बधाई दी है किसी भी ऐसी चीज़ पर जो भौतिक न हो? किन चीज़ों पर दूसरे को बधाई देते हो? गाड़ी ख़रीद ली, घर बना लिया, बच्चा पैदा हो गया, नौकरी लग गयी, प्रमोशन हो गया, लॉटरी लग गयी, यही तो सब होता है न?

तो देखो न तुम बच्चों को सन्देश क्या दे रहे हो कि यही सब कुछ है, इन्हीं बातों पर तो खुशी होनी है। तो वो कहता है यही सब कुछ है तो इसमें भी जो सबसे आगे की चीज़ है मैं वही पकड़ लेता हूँ, सेक्स।

सेक्स इतना चाहिए ही इसलिए होता है क्योंकि भीतर तकलीफ़ बहुत ज़्यादा है। जितना दिन भर गड़बड़ काम करके तनाव बटोरोगे उतना ही ज़्यादा फिर उस तनाव को किसी तरह से रिलीज़ करने की ज़रूरत पड़ेगी। ज़िन्दगी ऐसी जियो जिसमें तुम्हारा तनाव ही तुम्हारी ऊर्जा बन जाए। हमारा तनाव हमारे भीतर बस बेचैनी बनकर इकट्ठा होता रहता है, जैसे प्रेशर कुकर में प्रेशर, प्रेशर अगर बढ़ ही रहा है तो विस्फोट होने दो न और वो फिर एक सकारात्मक, सृजनात्मक विस्फोट हो, कुछ करके ही दिखा दो।

धूमिल कहते थे, “अपनी आदतों में फूलों की जगह पत्थर भरो, अब वक़्त आ गया है कि तुम उठो और अपनी ऊब को आकार दो। मासूमियत के हर तक़ाज़े को ठोकर मार दो, अब वक़्त आ गया है कि तुम उठो और अपनी ऊब को आकार दो।“

ऊब को आकार नहीं दोगे तो ऊब यही बनेगी बस सेक्स, पॉर्न, हस्तमैथुन यही करते रहोगे बस, ये ऊब के परिणाम हैं। ऊबे हुए हो, ऊब को आकार नहीं दे रहे, भीतर जो तनाव है उसको एक सही चैनल एक अच्छी दिशा नहीं दे रहे। मस्त ज़िंदगी जियो और जी भरके जियो, थकना सीखो, थकते क्यों नहीं हो, थकते क्यों नहीं हो? किसके लिए ऊर्जा बचा के जी रहे हो?

थकोगे नहीं और समय बचाकर रखोगे और फिर कह रहा हूँ, पॉर्न छोटी बीमारी है इस छोटी बीमारी से विवाह वाली बड़ी बीमारी जन्म लेगी। विवाह और क्या होता है, सुनने में बहुत भद्दा लगेगा लेकिन कहना ज़रूरी है विवाह हमारे लिए पॉर्न की लाइफ़ लॉंग सप्लाई (आजीवन आपूर्ति) होती है, अस्योर्ड, गारंटीड (सुनिश्चित, आश्वस्त)।

कि भारत सरकार जैसे कह रहे हो कि सूची जारी करती है, उसमें (विवाह में) तो कोई सूची भी नहीं जारी कर सकता। रोककर दिखाओ, अब तो हक़ है हमारा, इसीलिए इतना मैरिटल रेप (विवाहित दुष्कर्म) होता है। क्योंकि वो बीवी थोड़ी ब्याही है उसने, वो तो अपने घर अनलिमिटेड लाइफ़ लॉन्ग अस्योर्ड सप्लाई ऑफ पॉर्न (कभी ना खत्म होने वाला जीवन भर चलने वाला दुष्कर्म की सामग्री) लेकर आया है।

और संस्कृतिवादियों को बड़ी इसमें तकलीफ़ होती है वो कहते हैं, “पर पति पत्नी का बलात्कार थोड़ी कर सकता है।“ दुनिया में पिचानवे प्रतिशत बलात्कार पतियों द्वारा किए जाते हैं पागल। या तो तुम पागल हो या ढोंगी हो या खुद भी बलात्कारी हो और इसीलिए कह रहे हो कि नहीं-नहीं पति कैसे बलात्कार करेगा? और ये वही पति है जो अपनी जवानी में पॉर्न एडिक्ट (अश्लील वीडियो देखने का आदी) था, अब पत्नी आ गई है अब पॉर्न की ज़रूरत नहीं अब तो लाइव परफॉर्मेंस , स्क्रीन क्यों?

और फिर इसमें ऐसा भी नहीं है कि पति शोषक ही रह जाता है, वही पति फिर चालीस-पैंतालीस की उम्र में फिर, “आचार्य जी, डायन है, खा गयी पूरा हमको”। (व्यंग्य करते हुए) और जब तुम उसको खा रहे थे शारीरिक तौर पर पन्द्रह साल पहले, तुमने उसे शारीरिक तौर पर खा लिया उसने तुमको मानसिक तौर पर खा लिया, हिसाब बराबर।

तुम्हें लग रहा है जो सैनिक लड़ाई के मोर्चे पर लगा हुआ है और जिसके कान के पास से गोलियाँ निकल रही हैं साँय-साँय; वो सोच रहा होगा सेक्स के बारे में? तो वैसे योद्धा बन जाओ न और मैदान पुकार रहा है, पूरी धरती को तुम्हारी ज़रूरत है, हम नष्ट होने की कगार पर खड़े हैं, जानते हो न अच्छे से?

सौ बार तो समझा चुका हूँ, यहाँ पृथ्वी ही नष्ट हो रही है और हमारे जवान लोग क्या कर रहे हैं? (फ़ोन में लगे रहने का इशारा करते हुए) तो तुम्हारी ऊर्जा की किसी और रणक्षेत्र में आवश्यकता है, वहाँ चले जाओ और वहाँ जब गोलियाँ बरसेंगी, धमाके हो रहे होंगे, खून बह रहा होगा तो वीर्य बहाने की नहीं सोचोगे।

इससे और भी नुकसान होते हैं। स्त्री-पुरुष के बीच जो सहजता होती है सेक्स में, वो नष्ट हो जाती है। कोई है जो पन्द्रह, अब तो और बच्चे बारह, चौदह की उम्र से ही देख रहे हैं। उस उम्र से पॉर्न देखना उसने शुरू कर दिया है, उसका आगे जिस लड़की से सम्बन्ध बनेगा वो उसके साथ शारीरिक रूप से भी सहज नहीं रह पाएगा। वो कहेगा, वही सब जो मैंने देखा है स्क्रीन पर वही दोहराना है। और वो तुम दोहरा नहीं पाओगे वहाँ प्रोफेशनल्स बैठे होंगे। उनका धन्धा है, वो एडल्ट एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री (वयस्क मनोरंजन उद्योग) कहलाती है, वो एक इंडस्ट्री है प्रॉपर।

तो उसमें जब इंडस्ट्री है तो प्रोफेशनल्स (पेशेवर) भी होते हैं। वो उनको महारत हासिल है, वो यही करते हैं। इसमें उन्होंने विशेषज्ञता उनकी भी कोचिंग, ट्रेनिंग सब होता होगा और तुम कहते हो नहीं, जो मैंने वहाँ देखा वही मुझे अपनी ज़िन्दगी में भी करना है, कैसे कर लोगे? तो जो एक सहज सीधा-साधा सेक्स होता है उससे भी वंचित रह जाओगे।

प्र: नमस्ते सर, मेरा प्रश्न इसी से रिलेटेड है। जैसे काम की बात चल रही है तो आपको सुनता हूँ तो ये बात समझ में आती है कि जो भीतर का जानवर है, जितने भी उपद्रव नज़र आते हैं अन्दर, तो उनका एक ही समाधान आप बोलते हैं कि खुद को किसी कार्य में झोंक दो, ये बात समझ में आती है। पर सर जैसे फिर यह आता है कि कुछ काम ऐसा मिले मेरे को जिसमें मैं डूब जाऊँ।

आचार्य: किसी कार्य में झोंक दो मैंने कब बोला?

प्र: सही कार्य में उच्चतम कार्य में।

आचार्य: हम कुछ नहीं करते पूरे वाक्य में से बस एक शब्द बदल देते हैं और फिर कुछ नहीं बचता वाक्य उल्टा हो जाता है। किसी कार्य में तो सबने झोंक रखा है अपनेआप को।

प्र: उच्चतम कार्य में।

आचार्य: अब तो पूरी बात पलट गयी न, अपनी समझ से जो भी उच्चतम लगता हो उसमें डटो और नहीं कोई विधि है।

प्र: आचार्य जी मतलब इसी विषय में ये था कि उच्चतम कार्य जैसा आशय यही था कि वो उच्चतम कार्य नज़र कैसे आएगा, कि यह उच्चतम कार्य है?

आचार्य: सबके लिए अलग-अलग होता है। कोई एक उच्चतम कार्य नहीं है कि मैं कर रहा हूँ कि वही करोगे। जो जिस स्थिति में है अपनी जगह पर खड़ा होकर के अपने अनुभव, ज्ञान, बुद्धि के आधार पर जो तुम्हें सबसे ऊँचा समझ में आता है वो करना शुरू करो। उसको करोगे तो उससे भी थोड़ा और ऊँचा कुछ दिखाई देगा। फिर और बेहतर, और बेहतर।

मैं कह रहा हूँ अपने ही साथ धोखा मत करो, जिस काम को जानते हो कि घटिया है, जानते हुए भी उसमें मत घुसो और जो काम जानते हो करने लायक है उसमें कितनी भी चुनौतियाँ हैं स्वीकार करो।

उच्चतम माने कोई एक काम थोड़ी बोल रहा हूँ, उच्चतम से ये सब मत अर्थ लगा लेना कि, कि मैं जो कर रहा हूँ वही उच्चतम है तो संस्था में ही चले जाना है वही उच्चतम काम है। आवश्यक नहीं, आप कहाँ रहते हो, क्या आपका अतीत है, किस तरह की आपकी क्षमताएँ हैं और क्या आपकी बुद्धि बता रही है आपको।

अपने ज्ञान के आधार पर जितना भी जाने, पढ़े-लिखे; उसके आधार पर क्या लग रहा है कि आज करने लायक आपके लिए सबसे ऊँचा काम कौन सा है। और फिर रास्ता तलाशो की वो काम कैसे करें। इसमें कोई जटिलता, कुछ समझ में नहीं आ रहा? बहुत सीधी बात बोल रहा हूँ न।

बैठ जाओ और पूछो अपनेआप से क्या-क्या है जो करा जा सकता है? और उसमें ये मत देखो कि कौन सा काम कितना व्यवहारिक (प्रैक्टिकल) लग रहा है बस एक लम्बी सूची बनाओ की क्या-क्या है जीवन में जो करा जा सकता है, फिर पूछो अपनेआप से इनमें से महत्वपूर्ण कौन से काम हैं। फिर जो सबसे महत्वपूर्ण दो-तीन काम लगें अपनेआप से पूछो, ये कैसे कर सकता हूँ, कैसे? अब तरीक़ा लगाओ, अब चलाओ न बुद्धि, अब करो जुगाड़। कि अब इन्हें करना तो है ही क्योंकि दिख गया है कि करने लायक तो यही काम है ज़िन्दगी में। पर इन्हें अब कैसे करना है, कैसे करना है, बताओ कैसे करना है?

शुरू करो न, ये लिखो, लिखो, एक बनाओ पूरी सूची। बनानी पड़ेगी, मैं नहीं बता पाऊँगा अन्यथा। आप भारत में रहते हो आपके लिए एक काम, आप अमेरिका में रहते हो आपके लिए दूसरा काम। भारत में भी आप बम्बई में रहते हो आपके लिए एक काम होगा, आप झारखण्ड के किसी अंदरूनी इलाके में रहते हो आपके लिए दूसरा काम होगा।

उच्चतम माने कोई एक विशिष्ट काम नहीं होता, उच्चतम माने आपकी स्थिति के अनुसार जो उच्चतम है, आपके लिए जो उच्चतम है और उच्चतम माने सदा के लिए कोई काम पकड़ लेना भी नहीं होता कि यही तो उच्चतम है।

उच्चतम भी बदलता रहेगा, आज जो उच्चतम है कल उससे भी ऊपर का कुछ आपको दिख सकता है, दिखना चाहिए। बस इतना ही है, आगे का खुद।

YouTube Link: https://youtu.be/E-gN8ZiIXsI

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