छूटता तब है जब पता भी न चले कि छूट गया

Acharya Prashant

3 min
62 reads
छूटता तब है जब पता भी न चले कि छूट गया

प्रश्नकर्ता: सर, मेरा नाम प्रशांत है। मैं आपसे मिलने नहीं आना चाहता था। पर आया हूँ। मेरा सवाल यही है।

आचार्य प्रशांत: प्रशांत ने कब चाहा है कि प्रशांत से मिले। पर प्रशांत की नियति है प्रशांत से मिलना।

मिले नहीं हो, मिले हुए थे।

प्र: नहीं समझा।

आचार्य: कभी सोये हो अपने प्रेमी के साथ? अँधेरे में? साथ होता है, आलिंगनबद्ध, ह्रदय से लगा हुआ। और तुम चैन से सो रहे होते हो उसके साथ, पूर्ण विश्राम में। पर क्या उस प्रेमपूर्ण शांति में चेतना होती है तुम्हें कि साथ में कौन है? ज़रा भी जानते हो कि तुम्हारे माथे पर किसके होंठ हैं और किसके वक्ष पर सर है तुम्हारा? नहीं जानते न? नहीं जानते क्योंकि पूरा विश्राम, पूरा भरोसा, पूरी निश्चिन्तता है। और कहीं गहराई में जानते भी हो क्योंकि कौन नहीं जानता उसे जिसमें वो समाया हुआ है। और ना जानते तो इतने चैन से सो कैसे पाते?

यही विडंबना है मन की। वो उसे जानकर भी नहीं जानता। और वो उसे भूलकर भी नहीं भूल पाता। जैसे कोई शिशु लोरी सुनते-सुनते उनींदा हो गया हो माँ के अंक में। अब लोरी सुन भी रहा है और नहीं भी। जग भी रहा है और नहीं भी। माँ को जान भी रहा है और नहीं भी।

जब तक चैन है, तब तक प्रेमी की, सत्य की चेतना नहीं हो सकती। पर यदि चैन टूटा, समाधि से छिटके, मधुरात्रि बीती, तो तुम जगते हो। अब शरीरभाव उदित होता है। अब सत्य, तुम्हारा प्रेमी, तुम्हें तुमसे अलग दिखेगा। देह है, रौशनी है, संसार है। अब प्रशांत, प्रशांत से अलग है। अब प्रशांत को लगेगा कि प्रशांत को पुनः पाना है, उससे पुनः मिलना है। कोशिश करेगा, हतप्रभ रह जाएगा।

ये दुनिया और है क्या?

प्रशांत को पाना,

प्रशांत को खोना,

प्रशांत से मेल,

प्रशांत का खेल।

प्र: जिन चीज़ों के लिए दुनिया लालायित रहती है, वो आपको सब उपलब्ध थीं। क्यों छोड़ा वो सब?

आचार्य: कोई अल्हड़ सी, पगली-सी, लड़की उन्मत्त भागी जा रही हो प्रीतम से मिलने। ना साँस की सुध ना संसार की। और दुपट्टा गिर जाए उसका रास्ते में कहीं।

और तुम पूछो कि, "क्यों छोड़ा? कहाँ छोड़ा?" तो क्या बताएगी बेचारी? उसने तो छोड़ा ही नहीं। बस छूट गया।

छोड़ने शब्द से ऐसा लगता है ज्यों छोड़ना महत्वपूर्ण था, ज्यों छोड़ी जा रही वस्तु पर ध्यान था। ऐसे नहीं छूटता। छूटता तब है जब पता भी ना चले कि छूट गया। अगर छोड़ना महत्वपूर्ण हो गया तब तुम छोड़ कहाँ रहे हो? तब तो तुमने, बस दूसरे तरीके से, और ज़ोर से पकड़ लिया है। सत्य के साथ हुआ जाता है, फिर जो छूटता हो, छूटे। परवाह तो तब हो जब हमें पता भी चले। प्रेमी से आलिंगन में दुपट्टे वैसे भी अवरोध-मात्र होते हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories