मुझ से तुम्हारा परिचय,
सिमट कर रह गया
बस एक क्षण तक का,
और बसी है मेरी आँखों में,
बस उसी क्षण की,
एक,
छवि तुम्हारी ।
और,
संतुष्ट हूँ मैं।
उस एक क्षण से
आगे जाना भी नहीं चाहता
क्योंकि डरता हूँ
आगे जाने में
छिन न जाए मुझ से,
सलोनी वही
छवि तुम्हारी।
~ प्रशान्त (३ अक्टूबर, ९६)