प्रश्नकर्ता: आचार्य जी मेरा सवाल है, परम के विस्मरण के क्षणों को कैसे मिनीमाइज़ (कम) किया जाए?
आचार्य प्रशांत: वास्ताव में परम का न तो कोई स्मरण होता है, न कोई विस्मरण होता हैI चीज़ों का, वस्तुओं का ख़्याल किया जा सकता है और जिसका ख़्याल किया जा सकता है, सिर्फ़ उसी को भुलाया जा सकता हैI
जब आप कहते हैं कि मैं फ़लानी चीज़ भूल गया या फ़लानी बात भूल गया, तो उसमें ये निहित होता है न कि वो बात मुझे कभी पहले याद भी थीI होता है न? जो चीज़ याद ही नहीं करी जा सकती, जो चीज़ स्मृति के कटघरे में खड़ी ही नहीं की जा सकती, वो भुलाई कैसे जा सकती है?
तो परम माने सत्य का स्मरण-विस्मरण इत्यादि नहीं होता, हालाँकि आध्यात्मिक साहित्य में इस तरह की भाषा बहुत प्रयोग में लायी जाती हैI अध्यात्म है, उन सब चीज़ों का महत्व कम करने के बारे में जो वास्तव में हैं तो महत्वहीन ही, पर भ्रमवश और अज्ञानतावश हमको लगने लगती हैं बड़ी क़ीमती, बहुत मूल्यवानI
हम जैसे पैदा होते हैं, हम जैसे बड़े होते हैं, हम पूरे नहीं होते हैंI मैं भौतिक या शारीरिक रूप से पूरे होने की बात नहीं कर रहा, मैं आन्तरिक, मानसिक, साइकोलॉजिकल (मनोवैज्ञानिक) रूप से पूरे होने की बात कर रहा हूँI हम पूरे नहीं होते हैंI
तो इंसान को कुछ चाहिए स्वयं को पूरा करने के लिएI ये हर आम इंसान की दशा होती हैI और ये दशा बचपन से ही उसे लगी होती हैI ऐसा नहीं कि उसे समाज ने बिगाड़ दियाI हम पैदा ही ऐसे होते हैंI
हमें कुछ चाहिए, जो हमें आन्तरिक रूप से पूरेपन का एहसास करा सकेI अब जो हमें चाहिए उसे हम खोजते हैं और खोजने के लिए हमें पहला विकल्प ज़ाहिर है, क्या दिखाई पड़ता है?—वो सब जो आमने-सामने है, आगे-पीछे है, दाएँ-बाएँ है, सर्वत्र बिखरा हुआ है—माने संसारI
हमें लगता है— दुनिया में से ये लेलें तो भीतर से कुछ अच्छा लगेगा, भरा-भरा लगेगा, भीतर जो खटपट चलती रहती है, भीतर जो खोट बैठी हुई है, वो मिटेगीI फ़िर लगता है ये लेलें, फ़िर लगता है ये लेलेंI अब लगता तो ये सभी को है और सभी अपनी-अपनी बुद्धि अनुसार कोशिश भी करते हैंI सभी हाथ आज़माते हैंI
कोई कुछ पकड़ता है, कोई कुछ पकड़ता हैI कोई इस चीज़ का इस्तेमाल करके अपनेआप को आनन्दित देखना चाहता है, कोई उस चीज़ का इस्तेमाल करके अपनेआप को भर लेना चाहता हैI है न? लेकिन देखा यही जाता है कि इतनी कोशिशों के बाद भी ज़्यादातर लोग मानसिक रूप से अतृप्त ही रहते हैंI आँखें सूनी और अंतर्जगत शुष्क, प्यासा सा ही रहता हैI
तो अध्यात्म फ़िर इसलिए है कि हमें बताये कि क्या है दुनिया में जो बिलकुल महत्वहीन है, जिसकी चाह में समय गुज़ारना मूर्खता है या जिसको पाने में ऊर्जा लगाना मूर्खता हैI
आप समझ रहे हैं?
अब आइए स्मरण परI स्मरण हम किन चीज़ों का करेंगे आमतौर पर? हम उन्हीं चीज़ों का स्मरण रखेंगे न, जो हमें महत्वपूर्ण लगती हैंI आज सुबह से अभी तक आपने बहुत कुछ होगा जो देखा होगा, सुना होगा, अनुभव करा होगा; क्या आपको हर चीज़ का स्मरण है? नहींI जबकि बात हम बस आज के दिन की कर रहे हैंI यही पूरे महीने की बात कर लीजिये, तो हज़ारों-लाखों विषय और वस्तुएँ आपकी इन्द्रियों के क्षेत्र से होकर गुज़रें होंगे, उनमे से स्मरण आपको दस-बीस चीज़ें ही होंगीI
हम सबकुछ तो याद नहीं रखते न। तो याद हम फ़िर क्या रखते हैं? स्मरण हम किसका रखते हैं? सिर्फ़ उसका जिसको हम महत्व देते हैंI तो जब हम कहते हैं कि जगत में सबकुछ महत्वपूर्ण नहीं है, इस तरह कि सबकुछ हमारी अपूर्णता नहीं मिटा देगा, तो वास्तव में हम कह रहे हैं, जगत में सबकुछ याद रखने लायक नहीं हैI छोड़ो उसको, मिटाओ उसको, भुलाओ, आगे बढ़ो, अपेक्षा करोI
प्रभु के स्मरण का अर्थ यही है कि दुनिया में जो कुछ भी लाभदायक नहीं है, उसका विस्मरण करते चलोI कोई परमात्मा ऐसा है नहीं जिसका स्मरण करा जा सकेI कोई सत्य ऐसा है नहीं जिसको आप याद रख सकेंI
तो याद रखने के लिए तो भई कुछ है नहीं, हाँ भुलाने के लिए बहुत कुछ हैI क्या है भुलाने के लिए? वो सबकुछ जो आज तक याद रखा, याद रखा माने महत्व दिया उसको और याद रखकर उसको कुछ पाया नहीं, उसको महत्व देकर के कोई लाभ नहीं हुआI वो सब भुलाना हैI
तो अध्यात्म ये नहीं है कि आपने पाँच-दस चीज़ें और याद कर लीं कि जबसे हम आध्यात्मिक हुए हैं तबसे हमने इतने श्लोक और याद कर लिए हैं, इतने मन्त्र और रट लिए हैं और ये नये सिद्धान्त हैं, ये पता चल गये हैं और ये कुछ गीत हैं; ये कंठस्थ कर लिए हैं। अब बहुत सारी नयी-नयी बातें हमको याद हैंI अध्यात्म इसलिए नहीं है कि आप और नयी-नयी बातें याद कर लेंI
अध्यात्म इसलिए है ताकि आपने जो कुछ याद कर ही रखा है, आप उसकी व्यर्थता को देख पायें। अध्यात्म आपको भुलक्कड़ बनाने के लिए हैI भूल जाओI अध्यात्म इसलिए है ताकि आपकी स्मृति पर पोछा मारा जा सके, वहाँ बहुत गन्दगी बैठ गयी हैI एकदम सब साफ़ कर दिया जाएI अध्यात्म वास्तविक अर्थ में ब्रेनवाश (दिमाग धोना) है, मन की सफ़ाई, ब्रेनवाश नहीं तो माइंडवाश बोल दीजिएI सफ़ाईI
हमारे मन बहुत गन्दे हैंI उनमें वो सबकुछ बैठा हुआ है जो महत्व का नहीं हैI गन्दगी आप किसको कह देते हैं? आप कैसे कह देते हैं कि एक पदार्थ का नाम है गन्दगी और दूसरे का नाम गन्दगी नहीं हैI घर में इतनी चीज़ें हैं, कुछ चीज़ों को आप कह देते हैं, ये तो गन्दगी है।
और कुछ चीज़ों को कह देते हैं गन्दगी नहीं हैI पानी की बोतल होती है जब तक उसमें पानी भरा हुआ है तो आप उसे गन्दगी नहीं बोलते, पर जैसे ही आपने पानी पी लिया और बोतल खाली हो गयी आप बोलते है वेस्ट (कचड़ा)I
तो गन्दगी शब्द की परिभाषा क्या है फ़िर? क्या है जिसे आप गन्दा कह सकते हैं? वो जो अब उपयोग का न हो, उसे कहते हैं गन्दा, वेस्ट , कूड़ाI उसे बोलते हैं कि अब ये त्यक्त पदार्थ है, इसका त्याग कर देना चाहिएI जब तक पानी था उस बोतल में, उसे आप नहीं कहेंगे कि गन्दगी है, वेस्ट (कचड़ा) नहीं बोलेंगेI पर ज्योंही पानी उसका पी लिया अब वो बोतल क्या है? वो वेस्ट (कचड़ा) हैI है न?
रूई जब तक आपने अपने शरीर पर लगा रखी थी तब तक उसका उपयोग थाI ठीक? आपके कोई छोटा सा घाव है, उसपे आपने रूई लगा रखी हैI जब तक आपने रूई लगा रखी है तब तक उसका उपयोग था, जिस क्षण आपने अपने घाव से वो रूई हटा दी, अब वो क्या कहलाती है? वेस्ट I है न? कचरा, मूल्यहीन वस्तुI
हमारा जीवन मूल्यहीन वस्तुओं से भरा हुआ है, मूल्यहीन इस तरह से कि उनसे हमें कुछ मिलता नहीं हैI मिलता कुछ नहीं है, पर हमने उसको घर में भर रखा हैI जैसे किसी ने अपने घर में तमाम ऐसी चीज़ें इकठ्ठा कर रखी हों, जो शायद कभी काम की रहीं होंगी, आज जिनकी कोई हैसियत नहीं, पर वो व्यक्ति मोह के मारे, स्मृतियों के मारे उन व्यक्तियों को त्याग ही नहीं रहाI
जैसे कोई अस्पताल ऐसा हो जिसमें जितने भी इस्तेमाल किए हुए पुराने डिस्पोज़ेबल इंजेक्शन हैं, सब रखे हुए हैंI और पुरानी रूइयाँ रखी हुई हैं और पुराने तमाम तरह की दवाइयों के छिलके रखे हुए हैंI यहाँ तक की रोगियों ने जो वमन करा है और लैबोरेटरी (प्रयोगशाला) के जो पुराने सैंपल (नमूने) हैं वो भी रखे हुए हैंI
आप अपने खून का नमूना देते हैं जाँच के लिए तब उसकी बहुत उपयोगिता हैI है कि, नहीं है? आपका जीवन-मरण हो सकता है उसपर निर्भर करेI इंजेक्शन लगाकर आपका खून लिया जाता है उसकी बड़ी उपयोगिता हैI
लेकिन जैसे ही जाँच हो गयी, तो अब वो जो सैंपल है,अब वो क्या कहलाता है? अब वो वेस्ट कहलाता है और कोई कहे कि नहीं, देखो कभी ये मेरे कितने काम आया था, इसी की जाँच करके तो मेरी बीमारी पकड़ी गयी थीI मैं इसको सहेज के रखूँगा, तो फ़िर तो चल चुका कामI ऐसा अस्पताल मुर्दाघर बन जाएगाI
हमने भी जीवन को मुर्दों की जगह बना लिया हैI उन सबको पकड़ कर बैठाए हुए हैं जिनकी उपयोगिता कब की ख़त्म हो गयीI जिनका अब होना एक झूठ मात्र हैI तो अध्यात्म विस्मरण की लिए हैI अध्यात्म इसलिए है कि इन सबको भुला दोI गन्दगी साफ़ करदोI कुछ रहा होगा कभी प्राणदायक, आज तो वो प्राण लेवा हो चुका हैI काहे चिपके हुए हो?
समझ रहें हैं?
तो प्रभु का निरन्तर स्मरण रखना हैI इसका मतलब है जगत में वो सबकुछ निरन्तर विस्मरित करते चलना है जो मूल्यहीन हैI कान्टीनुअस रेमेम्बेरेंस (निरन्तर स्मरण), सतत सुमिरन का अर्थ यही है, भुलाते चलोI प्रभु याद नहीं किए जा सकते, पर जो व्यर्थ है उसको भुलाया जा सकता है, यही है प्रभु सुमिरनI