आचार्य प्रशांत: समय वर्तमान से भविष्य की ओर बहता है या भविष्य से वर्तमान की ओर?
प्रश्नकर्ता: वर्तमान से भविष्य की ओर।
आचार्य: है न? वर्तमान के आधार पर भविष्य बनता है न?
प्र: हाँ, सर।
आचार्य: भविष्य के आधार पर वर्तमान नहीं बनाया जा सकता। वर्तमान वास्तविक है, इसके आधार पर भविष्य अपने आप बनेगा। भविष्य सिर्फ तुम्हारी एक कल्पना है। तुम कोशिश कर रहे हो कि भविष्य के आधार पर वर्तमान बना लोगे।
बीज तुम्हारे पास में है, तुम उस बीज की देखभाल करोगे, उससे दोस्ती कर लोगे, पानी दोगे, खाद दोगे तो पेड़ अपने आप निकलेगा। या पेड़ की कल्पना करने से पेड़ निकलता है? हम ज़िंदगी कैसे जी रहे हैं? हम कहते हैं कि भविष्य का लक्ष्य पहले बना लो और उसके आधार पर वर्तमान में कर्म करना है।
तुमने कभी सोचा है कि जब तुम भविष्य का लक्ष्य तय कर रहे होते हो तो वर्तमान का क्या हो जाता है? अभी मेरी बात ध्यान से सुन रहे हो तो क्या भविष्य का लक्ष्य चल रहा है मन में? और अगर अभी तुम्हारे मन में लक्ष्य चलने लगे तो क्या तुम मेरी बात सुन पाओगे? जैसे ही भविष्य का ख्याल मन में आया तो वर्तमान का क्या होता है?
प्र: वर्तमान से ध्यान चला जाता है।
आचार्य: वर्तमान नष्ट हो जाता है। पेड़ का ख्याल मन में आया तो बीज का क्या होता है? नष्ट हो जाता है। और जब बीज नष्ट हो गया तो पेड़ कहाँ से आएगा? बीज हो तो पेड़ अपने आप आएगा क्योंकि समय वर्तमान से भविष्य की ओर बह रहा है। पर जो पेड़ की कल्पना में खोया हुआ है वो तो बीज को भी नष्ट कर लेगा। पेड़ कैसे मिलता है? पेड़ की कल्पना कर करके या बीज के साथ रह कर?
प्र: बीज के साथ रह कर।
आचार्य: जब तुम अपना सारा ध्यान भविष्य की कल्पना में लगा रहे हो तो तुम वर्तमान से तो हट गए न? जीवन वर्तमान में है, जो कुछ तुम कर सकते हो वो अभी है, वर्तमान में। उससे तुम हट गए तो तुम्हें भविष्य भी कैसे मिलेगा? कोशिश तुम्हारी यही है कि तुम्हें बड़ा अच्छा भविष्य मिले पर उस भविष्य के लिए जैसे ही तुम सोचना शुरु करते हो, तुम वर्तमान से हट जाते हो। अब तुम सपनों में हो, और सपनों में थोड़े ही कुछ मिल जाता है।
जो भविष्य में खोया हुआ है वो वर्तमान को खो देता है। सारा जीवन सिर्फ वर्तमान में है।
तुम अगर भविष्य के बारे में सोच रहे हो तो कब सोच रहे हो? अभी। तुम साँस कब ले रहे हो? अभी। तुममें से ऐसा कोई है जो भविष्य में जा कर साँस ले सकता है? सारा जीवन कब है? अभी।
देखो, जो भविष्य में खोया हुआ है वो वर्तमान को खो देता है। सारा जीवन सिर्फ वर्तमान में है, तो जो भविष्य में खोया हुआ है वो जीवन खो देता है।
तुम में से क्या कोई भी ये सोच सकता है कि वो भविष्य में फ्रेंच बोल रहा है? सोचो कि तुम फ्रेंच बोल रहे हो। तुम भविष्य के बारे में वही सोच सकते हो जो तुम्हारे अतीत में हो। तुम जिस भविष्य की कल्पना करते हो वो सीधे तुम्हारे अतीत से निकल कर आता है। वो नया होता ही नहीं, बासी होता है, पुराना।
तुम अगर चाहते हो कि तुम्हें एक खास तरीके की नौकरी चाहिए तो उसमें और कुछ नहीं है, बस अतीत में तुमने देख लिया है, सुन लिया है उसके बारे में। खुद तो अनुभव है नहीं, कुछ परिस्थितयाँ ऐसी हैं जिन्होंने तुम्हारे दिमाग में भर दिया है कि तुम्हें इस प्रकार की नौकरी करनी है। अब दावा तुम सबका यही रहता है कि, "हमें एक नया भविष्य चाहिए।" लेकिन तुम जिस भविष्य के सपने देखते हो वो भविष्य कहाँ से आता है? अतीत से।
हमारे सारे भविष्य के सपने हमारे अतीत की परछाईंयाँ हैं।
तो तीन तरफ से मार पड़ रही है।
पहला, जब तुम भविष्य की सोच रहे हो तो वर्तमान को खो रहे हो।
दूसरा, वर्तमान को खो दिया तो ज़िंदगी को खो दिया।
तीसरा, जिस भविष्य को तुम पाना चाहते हो वो भी अतीत से आ रहा है, तो उसमें है भी नहीं कुछ पाने लायक।
तीन तरफ से चोट पड़ रही है। तो सपने लेना तो बड़ी बेवकूफी का सौदा है। जो तुम्हें मिला हुआ है, वर्तमान, उससे तो तुम हाथ धो ही लेते हो और जो तुम माँगते हो वो किसी काम का नहीं है क्योंकि वो पुराना है, अतीत से आ रहा है।
यही कारण है कि तुम जो ये सपने बनाते हो इसकी तरफ भाग भी नहीं पाते। तुम कह रहे हो न कि, “घर जाता हूँ, कोशिश करता हूँ पढ़ने की पर मन कहीं और भाग लेता है”। वो इसलिए ही होता है क्योंकि किसी भी दिशा में तुम तब चल पाओगे जब वो दिशा तुम्हारी अपनी हो, तुम्हारी समझ से निकली हो। ‘अभी क्या हो रहा है?’ उस बात से निकली हो।
ये जो तुमने लक्ष्य बनाया है ये भी बाहर किसी प्रभाव से आ रहा है अतीत के। इसके पीछे तुम अपनी ताकत नहीं दे पाओगे क्योंकि ये लक्ष्य तुम्हारा अपना है ही नहीं। तुम्हारे लिए बड़ा ही मुश्किल हो जाएगा इस लक्ष्य को एकाग्र होकर पकड़ पाना, और यही तो होता रहता है हमारे साथ। एक के बाद एक संकल्प लेते रहते हैं, लक्ष्य बनाते रहते हैं, पर उन पर हम चल नहीं पाते क्योंकि जो तुमने लक्ष्य बनाए होंगे वो अतीत के प्रभावों से आ रहे होते हैं, तुम्हारे अपने होते ही नहीं।
अब मैं एक छोटा बच्चा हूँ और मैंने देखा कि जो सरकारी ऑफिसर (अफसर) है उसकी बड़ी शान है, और उसी दिन मेरे मन में बात बैठ गई कि मुझे तो लाल-बत्ती वाली गाड़ी चाहिए। तुम्हारा पूरा मोटिवेशन (प्रेरणा) ही यही है। ये लक्ष्य तुम्हारी समझ से नहीं निकल रहा है, ये तुम्हारे ऊपर बाहरी प्रभाव पड़ गया है उससे निकल रहा है। तुम कैसे इसके पीछे अपनी ऊर्जा लगा पाओगे? ऊर्जा तो नहीं ही लगा पाओगे पर वर्तमान से भी हाथ धो लोगे।
तुम्हें अभी पता क्या है कि जीवन जीने के क्या-क्या विकल्प हो सकते हैं, कितने तरीकों से जीवन जिया जा सकता है, ये तुम्हें पता नहीं है। पर तुम अभी से मन बना कर बैठ गए हो कि, "मुझे आई.ए.एस अफसर बनना है।" निश्चित रूप से ये जो तुमने लक्ष्य बनाया है ये तुम्हारा अपना नहीं है, ये तुम्हारे ऊपर कुछ प्रभाव है।
क्या ये तुम्हारी उम्र है कि तुम अभी से लक्ष्य निर्धारित कर लो? या ये तुम्हारा समय है दुनिया को जानने का, परखने का, अपने आप को जानने का? तुम्हें इतनी जल्दी क्या है अभी से तय करने की, कि जीवन इस तरह से जीना है?
और तुम अपने आप को दोष भी दे रहे हो कि, "मैं अपने लक्ष्य का पीछा नहीं कर पा रहा हूँ।" तुमने शब्द ही बड़ा खतरनाक इस्तेमाल किया कि, "मैं अपनी प्रोग्रामिंग नहीं कर पा रहा हूँ।" प्रोग्रामिंग जानते हो किसकी होती है? मशीन की होती है और मशीन मुर्दा होती है। तुम मशीन बन जाना चाहते हो? किस-किस को शौक है मुर्दा होने का? मनुष्य के लिए प्रोग्रामिंग नहीं होती, जो प्रोग्राम हो गया वो मशीन बन गया, गिर गया मनुष्य से नीचे।
इतनी हड़बड़ी क्या है? जीवन को जियो, देखो पूरे तरीके से, जो कुछ उपलब्ध है समझो उसको, जानकारी इकठ्ठा करो, अपने आप को विकसित होने का मौका दो और फिर जो होना होगा सो होगा।
प्र: अपने कहा कि चीज़ें हैं वो बाहर से आती हैं, हमारी कल्पना से नहीं आती।
आचार्य: सारी कल्पनाएँ ही तो बाहरी हैं। मैंने तुमसे कहा कि तुम फ्रेंच बोल रहे हो वो कल्पना कर लो, पर तुम नहीं कर पाओगे। जो तुम्हारे अतीत में नहीं है तुम उसकी कल्पना नहीं कर सकते क्योंकि सारी कल्पनाएँ बाहरी हैं।
प्र: सर, जैसे मोटरसाइकिल है, पानी से नहीं चलती है, लेकिन एक कल्पना है कि पानी के अंदर हाइड्रोजन होता है और हाइड्रोजन से रॉकेट चल सकता है, तो मोटरसाइकिल क्यों नहीं? तो यदि मैं ये काम करना चाहता हूँ तो ये भी नहीं हो पाता है। मन कहता है कि चलो छोड़ो बाद में देख लेंगे।
आचार्य: तुमसे किसने कह दिया कि मोटरसाइकिल पानी पर नहीं चल सकती? आज से १५० – २०० साल पहले से पानी ही है ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत। स्टीम-इंजन और क्या होता है? तो तुम्हारी ये कल्पना भी देखो अतीत से ही आ रही है।
प्र: सर, मुझे नहीं पता था इसके बारे में।
आचार्य: नहीं पता था ये हो नहीं सकता। ये सारी की सारी बातें कहीं-न-कहीं कान में पड़ चुकी हैं।
याद रखना, मन का जो भी विचार होगा उसका कुछ-न-कुछ आधार अंदर बैठा हुआ है, वरना वो विचार उठ ही नहीं सकता था।
पानी की शक्ति से एक वाहन को चलाना, जेम्स वाट ने पहला काम ही यही किया था। पानी लिया, उबाला और इंजन चल पड़ा। तुम जो भी कुछ कहते हो न कि, "ये मेरा नया है", उसमें नया वास्तविक रूप से होता नहीं। नया पता है कहाँ होता है? नया होता है अभी में, अभी की जागरूकता में। विचार में कुछ नया नहीं होता।
तुम सोच रहे हो कि, "मैं जो सोच रहा हूँ उसमें कुछ नया है।" सोच-सोच कर कुछ नया नहीं पाओगे। नया पाओगे ध्यान दे कर। अगर अभी मुझे सुन रहे हो तो इसमें कुछ नया मिल जाएगा। ऐसा नहीं है कि मैं जो कहा रहा हूँ उसमें कुछ नया है। ये बातें मैं दस बार दस अलग-अलग स्थानों पर लोगों से बोल चुका हूँ। मेरे कहने में कुछ नया नहीं है पर तुम्हारे सुनने में कुछ नया है।
जो भी कुछ नया है, वो हमेशा अभी है। और मैं कह रहा हूँ कि उस नये में तुम रहो। अभी जैसे जीते हो, दिन भर जो भी कुछ करते हो उसे डूब कर जीयो। उससे तुम्हें जानकारी भी मिलती रहेगी, अपने आप को भी जानते रहोगे और धीरे-धीरे ये स्पष्ट होता जाएगा कि अगला कदम कैसे उठाना है। तुम्हें किसी हड़बड़ाहट की ज़रूरत है ही नहीं कि अभी से निर्धारित करके रख लिया।
मैं जानता हूँ कि बात पूरी तरह से पची होगी नहीं क्योंकि जितने तरीकों से तुम जीते हो, जितने संदेश चारों तरफ से तुम्हें मिलते हैं, ये बात उन सबके बिलकुल विपरीत जाती है। आसानी से इसको पचा नहीं पाओगे। पर फिर भी इसको साथ रखो, धीरे-धीरे समझ में आएगी।