बच्चों को सलाह देने से पहले, ये सुनें! || नीम लड्डू

Acharya Prashant

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बच्चों को सलाह देने से पहले, ये सुनें! || नीम लड्डू

जो भी लोग अपने बच्चों को ये तर्क देते हों कि, “हम बताएँगे तुमको, हमने ज़िंदगी देखी है”, उन्हें तो सबसे पहले अस्पतालों में दाखिला नहीं मिलना चाहिए। बाहर लगा होना चाहिए, ‘जिन्होंने ज़िंदगी देखी हो वो अपना उपचार ख़ुद ही कर लें।‘ भाई तुम तो ज़िंदगी देख-देख कर ही सब जान जाते हो न। “हम बताएँगे कि तुम्हें क्या पढ़ना चाहिए, हम बताएँगे तुम्हें क्या करना चाहिए, हम बताएँगे कि तुम्हारी शादी कब हो!”

तुम अपनी ज़िंदगी देखो मियाँ, साठ के हो गए तुम अपने लिए क्या कर पाए जो अपने बेटे के ऊपर चढ़े जा रहे हो! तुम अपने-आपको देखकर गौरव अनुभव करते हो क्या?

बिजली के तार तुमने ग़लत जोड़ दिए, धमाका तत्काल होगा। ज़िंदगी के तार तुमने ग़लत जोड़ दिए, अपने लड़के को पकड़ करके ग़लत लड़की से शादी करवा दी, दो तार जो जुड़ने नहीं चाहिए थे तुम ही विशेषज्ञ बनकर जोड़ आए, हो तुम कुछ नहीं, होगे साठ साल के, हो लल्लू ही। जोड़ दिए ग़लत तार को, धमाका तत्काल तो होगा नहीं। धमाका नहीं होता है, जीवन भर की यातना मिलती है। और तुममें इतनी ईमानदारी भी नहीं कि तुम स्वीकार करो कि वो जो यातना मिल रही है अब तुम्हारे ही बच्चों को वो तुम्हारी वजह से मिल रही है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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