बच्चों को बाप चाहिए? || आचार्य प्रशांत (2022)

Acharya Prashant

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बच्चों को बाप चाहिए? || आचार्य प्रशांत (2022)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मेरा प्रश्न बच्चों के परवरिश के संदर्भ में है। जैसे हमेशा से कहा जाता है कि एक बच्चे की परवरिश में उसके माता और पिता दोनों की ही बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। और अगर दोनों में से कोई एक पैरेंट (अभिभावक) भी अगर अनुपस्थित है, तो बच्चे में बहुत बिहेवियरल इश्यूज (व्यवहार सम्बन्धी मुद्दे) पाए जाते हैं।

और इसका समर्थन करने के लिए वेस्टर्न साइकोलॉजी (पश्चिमी मनोविज्ञान) में भी बहुत सबूत हैं कि अगर एक भी अभिभावक अनुपलब्ध है तो बच्चों की पर्सनैलिटी (व्यक्तित्व) अच्छी तरह से नहीं होती है। उनमें बहुत ज्यादा रिसेंटमेंट (रोष) पाया जाता है। बहुत लो कॉन्फिडेंस होते हैं , बहुत इंटिमिडेटिंग पर्सनैलिटी (डराने वाला व्यक्तित्व) होती है। तो मेरा प्रश्न यह है कि एक पिता के अभाव का एक बच्चे के विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है?

आचार्य प्रशांत: आप कुछ समझ भी रहे हैं हम यहाँ क्या बातें कर रहे हैं? कुछ भी समझ रहे हैं? अर्जुन अपने पिता के साथ कितने साल रहे थे? अर्जुन के पिता कौन थे?

श्रोता: पांडू।

आचार्य: उनका क्या हुआ था? आप बोल रही हैं कि वेस्टर्न रिसर्चर्स (पश्चिमी शोधकर्ताओं) ने बताया है कि माँ और बाप होते हैं तब बच्चा अच्छा बढ़ता है। अर्जुन को अच्छा, माँ-बाप बना रहे हैं? कौन बना रहा है? बच्चे को माँ-बाप चाहिए कि कृष्ण चाहिए? अर्जुन के पास बाप थे? अर्जुन के पास बाप थे क्या? तो? युधिष्ठिर धर्मराज हो गये, बाप थे उनके पास?

बच्चे को भी वही चाहिए जो हर अतृप्त चेतना को चाहिए — पूर्णता, तृप्ति। न माँ चाहिए, न बाप चाहिए। माँ तो फिर भी कुछ दिनों तक चाहिए, क्योंकि शारीरिक रूप से जो आदमी का बच्चा होता है वो कई सालों तक शारीरिक देखभाल माँगता है। तो माँ तो फिर भी चाहिए; बाप तो दो दिन भी नहीं चाहिए। ये कहाँ से हम उठा लाए हैं कि माँ हो, बाप हो, ये हो, वो हो।

उसको जो वास्तव में चाहिए वो दीजिए न। वो हम दे नहीं पाते। उसकी जगह हम उल्टी-पुल्टी बातें करते हैं। गीता अर्जुन को अर्जुन के बाप ने दी है क्या? कौन दे रहा है?

श्रोता: श्रीकृष्ण।

आचार्य: वही असली बाप हैं, उन्हीं को बाप माना करो! यूँही नहीं उनको परमपिता कहते हैं। सत्य को परमपिता किसी वजह से कहा जाता है न! तो फिर ये माँ-बाप, शारीरिक माँ-बाप का क्या चक्कर है? कुछ नहीं है, अहंकार है। 'मेला बेबी!' आपका नहीं है बेबी। आपके शरीर से पैदा हो गया — अलग बात है — बहुत प्राकृतिक सी बात है। कई बार तो पूरी बेहोशी की बात है, आपको पता भी नहीं होता कि पैदा होने वाला है, कई महीने बाद ख़बर आती है, 'अच्छा!'

तो मेला बेबी क्या है! वो उसी का बेबी है जहाँ उसको पहुँचना है अंततः। परमपिता के बच्चे हो, बाक़ी ये सब यहाँ झूठे माँ-बाप घूम रहे हैं। उन्होंने देह दी है, देह का उनका ऋण है — मातृ ऋण भी है, पितृ ऋण भी है — उतना ही सम्बन्ध है।

बाक़ी अगर माँ ऐसी हो पाए जो महामाँ के पास ले जा सके, तो ये माँ सम्मान की पात्र है। पिता ऐसे हो पाएँ जो परमपिता के पास ले जा सकें, तो ऐसे पिता सम्मान के पात्र हैं। कोई भी माँ-बाप इसलिए इज़्ज़त का हक़दार नहीं हो जाता कि उसने बच्चे को जन्म भर दे दिया है — बिलकुल कोई सम्मान नहीं; शून्य, ज़ीरो।

आपके तो शास्त्र ऐसे उदाहरणों से भरे पड़े हैं। जो ऊँचे-से-ऊँचे महापुरुष हैं उनके पास कभी माँ नहीं थी, कभी बाप नहीं थे, कभी दोनों ही नहीं थे। तो? और माँ-बाप दोनों होते भी हैं तो क्या हो जाएगा?

आम आदमी के बारे में आपका क्या कहना है, कितना विकसित होता है? एक आम तीस-पैंतीस साल के आदमी और उतनी ही उम्र की स्त्री के खोपड़े का स्तर कितना होता है? कितना होता है? अरे! बोल दीजिए, इतना क्या शर्माना है! तो ये क्या बच्चा पैदा करके, कौनसा उसको बड़ा पोषण दे देंगे, परवरिश दे देंगे? बोलिए।

यह बात कितनी सीधी है न, पर हमें नहीं समझ में आती। आप अच्छी तरह जानते हो कि सड़क पर एक आम आदमी चल रहा है पच्चीस साल, तीस साल, पैंतीस साल का, इसी उम्र में बच्चे पैदा करते हैं न लोग? आपको अच्छी तरह पता होता है वो किस श्रेणी का है, लेकिन अगर वो बाप होता है या माँ होती है, तो वो बस यूँही, ऑटोमेटिकली (अपनेआप) सम्मान का हक़दार हो गया। ऐसे कैसे? यह चमत्कार बताओ हुआ कैसे?

इसलिए शास्त्रों में और वेदांत में, न जाने कितने ऐसे उदाहरण हैं जिनमें माँ-बाप के स्तर को बहुत ऊपर नहीं रखा गया है। और जहाँ माँ-बाप को ऊपर रखा गया है वहाँ कारण विशेष है, वो माँ-बाप इस लायक़ हैं फिर। वो माँ-बाप फिर ऐसे हैं कि गुरु हो पाएँ, तो फिर उनको सम्मान निश्चित रूप से मिलना चाहिए।

शास्त्रों का उदाहरण बोल रहा हूँ, समझ में ही नहीं आ रहें। (व्यंग करते हुए)। पढ़े ही नहीं तो कहाँ से समझ में आएँगे! कई लोग यहाँ पर घर-घर उपनिषद् की प्रति बगल में रख कर बैठे हैं।

कहाँ से दूँ उदाहरण? 'केजीएफ़ टू' (एक चलचित्र) से उदाहरण दूँगा (मुस्कुराते हुए)। मैंने देखी और बहुत मज़ेदार है। एक दृश्य ख़ास तौर पर जब वो अपने बाप से अपने माँ की समाधि पर झाडू लगवाता है। आपने नहीं देखी? आध्यात्मिक लोग हैं क्या आप सब? (व्यंग करते हुए मुस्कुराते हैं)। गंदी-गंदी पिक्चरें नहीं देखते? गुटखा-खैनी वाला तो पूरा देख आते हो। (श्रोतागण हँसते हैं)

उसका बाप होता है, वो कहीं दारू पी रहा होता है। तो वो उसका बाप ऐसे ही होता है पियक्कड़, कहीं घूम रहा है, कुछ कर रहा है। तो किसी को भेज कर अपने बाप को बुलवाता है, बोलता है इसको नौकरी दो। और उसको नौकरी यह देता है कि ये मेरी माँ की समाधि है इसको साफ़ रखा करो। ये इसी लायक़ है। जीवन भर इसने मेरी माँ का साथ नहीं दिया, कुछ नहीं किया। अब माँ मर गई है, तो कम-से-कम इतना ये करेगा मेरी माँ के लिए। 'चल उसकी समाधि साफ़ रखा कर।'

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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