बच्चों की ज़िंदगी में कितना दखल देना ठीक है?

Acharya Prashant

15 min
54 reads
बच्चों की ज़िंदगी में कितना दखल देना ठीक है?

प्रश्नकर्ता: नमस्कार आचार्य जी, मैं भावना हूँ। और अक्टूबर दो-हज़ार-तेईस (2023) से गीता सत्र के साथ जुड़ी हुई हूँ। और मेरा अट्ठारह साल का बेटा है और एमबीबीएस फ़र्स्ट ईयर में है। जब वो हॉस्टल में गया, हॉस्टल में जाने से पहले दो-तीन साल कोविड के चक्कर में वो बिलकुल अकेले घर में था, सिंगल। और हॉस्टल में वो एडजस्ट नहीं हो पाया और बीमार भी पड़ गया। तो और थोड़ा उसको एंग्ज़ायटी, डिप्रेशन जैसा फ़ील होने लग गया। तो उसने कहा कि मैं अकेले नहीं रह पाऊँगा हॉस्टल में, कोई भी घर का बन्दा मुझे साथ चाहिए ।

तो मैं उसकी स्थिति को देखते हुए मैं उसके साथ शिफ़्ट हो गयी जहाँ उसका कॉलेज था। और इस माइंडसेट के साथ कि चलो पाँच साल मैं उसके साथ ही रहूँगी। और सच कहें तो मैं भी यही सोचकर आयी कि पाँच साल शान्ति का मिलेगा, मैं अपने लिए उस पर कुछ सोचूँगी, करूँगी। ये सोचकर के भी एक तरह से मैं आयी। यहाँ आने के बाद पहले से तो वो बहुत बेटर है। कॉलेज में अब फ़्रेंड्स हो गये हैं, कॉलेज क्लासेज़ करता है, इग्ज़ाम देता है। अब वो कॉलेज से बहुत हैप्पी है लेकिन मेरे से वो बहुत परेशान है कि क्यों आ गयी, अब तुम जाओ, तुम्हारी ज़रूरत नहीं है, मुझे फ़्रेंड्स मिल गये हैं। लेकिन इस दौरान मैंने नोटिस किया है कि इंटरफेअरेंस (दखलंदाज़ी) बढ़ने का रीज़न है कि उसका वज़न ज़्यादा है, तो अपने वज़न को लेकर वो हमेशा बहुत परेशान रहता है कि मैं मोटा हूँ इसलिए मुझे कोई पसन्द नहीं करता है— एक तरफ़ तो वो रहता है। और दूसरी तरफ़ वो अन्धाधुन्ध खाना, खाने में कोई परहेज़ नहीं, कोई एक्सरसाइज नहीं करना।

अभी रिसेंट्ली मुझे पता चला है वो सिगरेट्स भी पीने लग गया है। इंटरनेट, मोबाइल, सीरीज़, मूवीज़ सब में पूरा, इग्ज़ाम के समय थोड़ा-बहुत पढ़ लेता है। अदरवाइज़ (अन्यथा) उन चीज़ों में ही बस लगा रहता है। तो मैं इन्हीं चीज़ों में मैं उनको रोकती हूँ।

आज नौ बजे वो मेरे से लड़ाई करके पता नहीं कहाँ चला गया है। और ये आपके सत्र का और श्रीमद्भगवद्गीता की अनुकम्पा है कि मैं अभी रात के बारह बज रहे हैं वो कहाँ होगा। लेकिन ‘मैं’ अभी तक तो बिलकुल काम-कम्पोज़्ड (शान्त), सब ठीक था। मेरे से जो हो सकता था मैंने किया है, मैंने पुलिस में जाकर के इन्फ़ॉर्म कर दिया है, उसके दोस्तों को बता दिया है, आसपास के पार्क में देख लिया है। लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि वो मेरे से परेशान है मैं बहुत ज़्यादा इंटरफेयर कर रही हूँ। तो कहाँ तक, कहाँ तक इंटरफेअरेंस चाहिए, कहाँ पर रुक जाना चाहिए?

आचार्य प्रशांत: ये शहर कौनसा है जहाँ आप हैं?

प्र: मैसूर। साउथ इंडिया, बैंगलोर के पास, मैसूर।

आचार्य प्रशांत: और आप लोग रहते कहाँ थे पहले, जहाँ पढ़ाई हुई है उसकी?

प्र: नोएडा में रहते थे। और इनफ़ैक्ट मैं पूरे संस्था से बहुत माफ़ी चाहूँगी कि मैंने संस्था ज्वॉइन करने के लिए अप्लाई किया था, मेरा सिलेक्शन भी हो गया था। और जिसको कहते हैं न, उस समय मुझे अहसास हुआ कि मेरा तोता जो है वो मेरा बेटा है। और संस्था ज्वॉइन करने के बजाय मैं…..।

आचार्य प्रशांत: आप हॉस्टल में रही हैं खुद कभी?

प्रः हाँ, मैं स्टैंडर्ड थर्ड से टेन्थ तक हॉस्टल में रही हूँ।

आचार्य प्रशांत: कॉलेज, कॉलेज के समय माने जवानी के समय में?

प्रः नहीं उसके बाद बिहार से होने के कारण मेरी पढ़ाई प्रॉपर कॉलेज में नहीं, ईग्नू से हुई है। तो उसके बाद मैंने सारा डिस्टेंस एजुकेशन से किया है।

आचार्य प्रशांत: बेटा पहले कभी हॉस्टल में रहा है?

प्रः कभी नहीं रहा है।

**आचार्य प्रशांत ** तो उसकी पहली बार तो घोंसले से बाहर जाकर के मिला है कि चूजा थोड़ा सा पंख खोले, इधर-उधर जाए। मम्मी लेके कौन हॉस्टल आता है?

क्या कर रहीं हैं आप? नोएडा से आप उसके साथ चली गयी मैसूर।

प्र: उसने बोला मुझे।

आचार्य प्रशांत: वो शुरू में सब बोलते हैं। लगता है वहाँ जाएँगे, रैगिंग-वैगिंग होगी, घर में बैठे होते हैं, थोड़ी मोह होता है। वहाँ पहुँच जाओ, पन्द्रह दिन बाद वो घर हो जाता है। वो उसका घर है अब, वो नोएडा वाला घर अब घर नहीं है और इसके लिए…..।

प्र: अब वो बोलता है मुझे नोएडा नहीं जाना।

आचार्य प्रशांत: नहीं आएगा, आना भी नहीं चाहिए। काहे को आएगा? अच्छा-खासा शहर है मैसूर। नोएडा से बेहतर शहर है। आप देख ही रही होंगी।

प्र: इनफ़ैक्ट अभी वो अपने बैग में अपनी किताबें लेकर कुछ गया है। मुझे लगता है वो एक वीडियो मैंने उसको आपका दिखाया था जिसमें आपने बताया था कि एक लड़का-लड़की किताब लेकर घर से बाहर चले गये थे। तो वो अपने बैग में, मोबाइल नहीं है, पैसे नहीं हैं, कुछ भी नहीं लेकर गया है लेकिन किताबें लेकर गया है।

आचार्य प्रशांत: भारत में आमतौर पर बच्चे बारहवीं तक बहुत ज़्यादा संरक्षित और सुरक्षित रहते हैं। तो उसके फिर दो परिणाम होते हैं। पहला जब उन्हें निकलने को मिलता है तो सबसे पहले डर लगेगा। क्योंकि हमेशा घर में रहे हो तो बाहर निकलना हो तो डर लगेगा। लेकिन जैसे ही बाहर की हवा लगेगी फिर वो घर की ओर मुड़के नहीं देखेगा, कम-से-कम अभी कुछ महीनों तक। फिर वो धीरे-धीरे अपनेआप छुट्टियाँ होंगी, कुछ होगा, दिवाली होगी, सेम ब्रेक होगा, घर आ जाएगा। पर आपका वहाँ पर रुकना मुझे नहीं लगता किसी भी दृष्टि से उपयोगी है। मोटा है, मोटों को तो हॉस्टल में खासतौर पर पसन्द किया जाता है। वो न हों तो मज़ा कैसे आएगा। और एक सेमेस्टर लगता है मोटे को पतला होने में। कोई ऐसा नहीं था मेरे बैच में जिसकी कमर कम-से-कम चार इंच न घट गयी हो, पहले ही सेमेस्टर में। सबको नयी जींस और दूसरी चीज़ें करवानी पड़ गयी थीं।

क्योंकि वहाँ तो ये था कि घर में बैठकर सबने तैयारी करी थी जेईई (JEE) की। जेईई (JEE) की तैयारी के समय कौन कहाँ बहुत खेलता-कूदता है। कुछ लोग उधर से आये थे, कोटा वगैरह से, वहाँ वो दो-दो, तीन-तीन साल से वहाँ रहते थे, वो सब ऐसे ही गोलगप्पा होकर आये थे। पहले ही सेमेस्टर में वहाँ उनको दौड़ा-दौड़ाकर, कुछ सीनियर्स ने दौड़ा दिया, कुछ ये था कि हॉस्टल से जो मल्टी स्टॉरी (बहुमंज़िला) थी हमारी इंस्टिट्यूशनल बिल्डिंग वो बड़ी दूर थी। और फ़्रेशर्स को पैदल ही जाना-आना होता था। और लिफ़्ट दो ही लगी हुई थी उसमें। जब क्लास का टाइम हो तो सब लोग चढ़ना चाहें, लिफ़्ट में इतनी जगह नहीं। तो बाकी लोग सातवीं मंज़िल तक भागके जाएँ। कितनी बार मैं, एक बार में दो सीढ़ी लाँघते हुए सातवीं मंज़िल तक, वज़न तो ऐसे खट से कम हुआ। इतनी चीज़ें होती हैं करने को। कैम्पस अच्छा है उसका, वहाँ सुविधाएँ हैं?

प्र: हाँ, बहुत अच्छा है।

आचार्य प्रशांत: हाँ, तो वो सुविधाएँ घर में थोड़े ही थी। वहाँ वो खेलेगा, सीखेगा, सबकुछ करेगा। आप वहाँ पर क्या कर रहे हो?

प्र: मुझे उसने ऐसे बोला कि…।

आचार्य प्रशांत: भाव-ना।

भाव-ना। वापस आना। कहीं नहीं जाएगा। यही दिन हैं जब वो रातों को थोड़ा घूमेगा, थोड़ा उसको बहक लेने दीजिए, थोड़ा भटक लेने दीजिए। और सिगरेट के दो-चार पफ़ मार लेने से उसको लंग कैंसर नहीं हो जाएगा। कुछ चीज़ें ऐसी हैं जिन्हें छोड़ने के लिए भी उनका पता तो हो कि सबलोग काहे को इसको मुँह में डालते रहते हैं, थोड़ा डाला, हाँ ठीक है। उसका हऊआ नहीं बनाना चाहिए।

कोई हॉस्टल में गया हो और उसने कभी, कभी भी एक-दो भी सिगरेट न फूँकी हो, तो मैं कहूँगा, ‘मुक्त पुरुष यही है।’ या कहूँगा कि एकदम ही राघव है (संस्था के स्वयंसेवक)। और फिर जो कुछ नहीं करते कैम्पस में, वो फिर ऐसे हो जाते हैं। कुछ कर लेने दीजिए उसको कैम्पस में। हमारे बन्धु आइआइटी रूड़की से हैं। वहाँ पर मेरी टॉक हुई, उनलोगों ने बुलाया तो ये वापस गये पास आउट होने के कई साल बाद अपने कैम्पस। पर अब यहाँ संस्था में रह चुके थे, फिर अपने कैम्पस गये, तो रात में गायब हो गये। जैसे आप कह रहीं हैं न, ‘वो रात में गायब है।’ तो ये भी रात में गायब हैं, वहाँ मेरा ओवरनाइट स्टे (रातभर रहना) था उन्हीं के गेस्ट हाउस में। तो बाद में ये मिले कहाँ, आइआइटी रूड़की के जिम में। पूछा यहाँ क्यों घुसे हुए हो? बोले, ‘क्योंकि मैं यहाँ चार साल रहा, कभी आया ही नहीं। कभी आया ही नहीं।’

अच्छा है, अभी उसको रातों को कैम्पस नाप लेने दीजिए। कौनसी जवानी जवानी है अगर वो कुछ वर्जित काम न करे? और माँ के सामने तो वर्जित काम करे जाएँगे नहीं। मैं नहीं कह रहा हूँ कि वो कुछ कानूनन अपराधी वगैरह बन जाये, सारे वर्जित काम कर दे, वो नहीं बोल रहा हूँ। पर बचपने से जवानी के आने में कुछ वर्जनाएँ तो टूटती-ही-टूटती हैं। और वो सब जब हो रहा होता है, वहाँ मम्मी की कोई जगह नहीं होती।

मेरा भाई था छोटा, मैं मना करा करूँ, अब ये लोग आ जाएँ हर दस-पन्द्रह दिन में गाड़ी लेकर के। भाई छोटा, मैं मना करूँ कि मेरे कमरे में नहीं आना है तुमको, मेरे कमरे में नहीं आना है। वो बार-बार आ जाए। उसको मज़ा आये कि ये सब बड़े भैया लोग हैं, इनका चलता क्या है। तो मेरे माता-पिता तो बाहर रहें गाड़ी में, ये भाई साहब उतरकर के हॉस्टल में घुस आये। और इधर झाँक रहे, उधर देख रहे, ‘अच्छा ये चल रहा, यहाँ ये चल रहा, ये चल रहा।’ मैंने माना करा कई बार कि अन्दर नहीं आना, बाहर रहा करो, मैं बाहर आ जाऊँगा, वो अन्दर घुस आये।

तो मैंने कहा, ‘अब बताता हूँ।’ एक दिन मैंने कुछ ऐसी सामग्री रख दी अपनी अलमारी में, कपड़ों के बीच में कि ये एकदम स्कैंडलाइज़ (गुस्सा होना) हो गये। ऐसे, ‘भैया, आप ये!’ बोला, ‘हाँ।’ फिर जाकर चुगली करी, ‘मम्मी, भैया के कमरे में न वो था!’ अब आप मम्मी हैं तो आपको नहीं बता सकता। जवान लड़के हों, पूछेंगे, ‘वो माने क्या?’ तो उनको बताऊँगा विस्तार से कि मैंने ‘वो’ क्या-क्या जुगाड़ कर रखा हुआ था कमरे में। वो सब इसलिए था क्योंकि हम नहीं चाहते कि हॉस्टल लाइफ़ में पेरेंट्स आएँ, कोई नहीं चाहता।

आपको ससम्मान बुलाया जाएगा दीक्षान्त समारोह में, कॉन्वोकेशन में आइएगा, गौरव से आइएगा। और उससे पहले बच्चा घर आया करेगा जब छुट्टियाँ हुआ करेंगी। मैं नहीं कह रहा हूँ कि उसको बिलकुल हाल पर उसके छोड़ दीजिए और कोई खबर नहीं लीजिए। लीजिए, खबर लीजिए। पर उसकी जवानी का सम्मान करते हुए। हमारे समय तो मोबाइल फ़ोन भी नहीं थे, अभी तो मोबाइल हैं, मैसेज डाल दीजिए और प्रतीक्षा करिए कि जवाब आ जाएगा। ये मत करिए कि रोज़ पूछ रहें कि बेटा खा लिया, बेटा कपड़े बदल लिए। कोई फ़ायदा नहीं, वो झूठ बोलेगा आपसे, पाखंडी हो जाएगा, आपकी कॉल्स इग्नोर करना शुरू कर देगा।

हर दो-तीन दिन, चार दिन में बात कर लीजिए। उसकी दोस्त बन जाइए, मम्मी नहीं। फिर वो खुद ही आपको फ़ोन कर-करके बताया करेगा, ऐसा चल रहा है, वैसा चल रहा है। कई तरह की चीज़ें चलेंगी अभी। आपको बड़ा अच्छा लगेगा कि अपने नुन्नू की ज़िन्दगी कि बातें पता चल रही हैं, पर मम्मी बनेंगी तो कुछ पता नहीं चलेगा, दोस्त बन जाइए। वो कहावत है न कि जब बाप और बेटे के जूते का नम्बर एक हो जाए तो बेटे को दोस्त मान लेना चाहिए। दोस्त मान लीजिए उसको। और मैं बिलकुल समझ रहा हूँ, आप माँ हैं, चिन्ता होती होगी, बिलकुल समझ रहा हूँ। अभी बारह बज रहा है, उसका कुछ नहीं पता है तो कर लीजिए पता, फ़ोन कर लीजिए, मैसेज कर लीजिए, उसके दोस्त-यार होंगे उनसे बात कर लीजिए। लेकिन एक बात और समझिए कि कैम्पस लाइफ़ में बारह बजे का समय बहुत साधारण होता है। हम गृहस्थ लोग हैं तो हमको लगता है, ‘आधी रात हो गयी।’ कैम्पस में आधी रात पर दिन शुरू होता है।

समझ रही हैं या बस भावना है?

प्र: नहीं, समझ रही हूँ। मैं भी यही सोच रही थी कि मुझे इसको छोड़ना अब चाहिए।

आचार्य प्रशांत: हाँ, और क्या। और पतला-वतला अपनेआप हो जाएगा, आप देखिएगा।

प्र: नहीं वो खुद परेशान रहता है।

आचार्य प्रशांत: परेशानी की ज़रूरत ही नहीं है। सारी परेशानी अब कैम्पस दूर कर देता है।

प्र: कैम्पस तो बहुत अच्छा है, जिम और सारे स्पोर्ट्स।

आचार्य प्रशांत: जिम की ज़रूरत ही नहीं पड़ती, कैम्पस ऐसे ही पतला कर देता है।

प्र: हाँ, हॉस्टल से कॉलेज का डिस्टेंस बहुत ज़्यादा है।

आचार्य प्रशांत: हाँ, तो वो उसी में अपना पैदल जाएगा, साइकिल चलाएगा पतला हो जाएगा। लड़कियाँ भी तो होंगी? वो पतला कर देती हैं।

प्र: लड़कियाँ हैं। ज़्यादा लड़कियाँ ही हैं।

आचार्य प्रशांत: हाँ, तो वो सब पतला कर देंगी, खट से पतला हो जाएगा। कोई चिन्ता की बात नहीं। और स्कैंडलाइ मत हो जाइएगा कभी पता चल जाए कि अरे! सिगरेट पी ली, बियर पी ली, इसमें कुछ नहीं हो गया। क्या करे बस खिचड़ी खाता रहे? मैं नहीं कह रहा हूँ, ‘वो चेन स्मोकर बन जाए या रोज़ बियर पिये।’ पर ये सब जवान होने की प्रक्रिया में हॉस्टल लाइफ़ के हिस्से होते हैं, ये हो जाता है। इसमें बहुत चिन्ता नहीं करनी चाहिए। बस ये चीज़ आगे न जाए, लत न बन जाए, ऑब्सेशन न बन जाए, दिनचर्या का हिस्सा न बन जाए।

प्र: यही डर लगता है।

आचार्य प्रशांत: क्या डर लगता है?

प्र: कि शुरुआत में रोक देने से शायद आगे ज़्यादा …।

आचार्य प्रशांत: हाँ, बिलकुल। वो है, बिलकुल। उतना तो आपको माँ होने के नाते देखना पड़ेगा। और उसके तरीके हैं, उसके दोस्तों का भी पता रखिए, पूछती रहिए। क्योंकि कॉलेज वगैरह में ड्रग्स वगैरह ज़्यादा चलने लग गयी हैं अब। उसका आपको खयाल रखना चाहिए कि कहीं उस दिशा में तो नहीं चला जा रहा, वो सब देखना होगा। लेकिन ये भी समझना होगा कि चिड़िया हमेशा घोंसले में नहीं रहने वाली, ये भी समझना होगा।

अब आप अपना जीवन देखिए, वो अब देख लेगा। अब वो वहाँ घुसा है, वहाँ से उसका प्लेस्मेंट भी लग जाएगा, वहाँ से वो कहीं और चला जाएगा जॉब करने। अब हो गया उसका, उसकी गाड़ी चल पड़ी। एक के बाद अब वो पटरी बदलती रहेगी। आप अपना जीवन देखिए न अब। भारत में माँओं को एक नया जन्म मिलता है जब बच्चे स्वतंत्र हो जाते हैं। क्योंकि उससे पहले वो सिर्फ़ माँ होती है। उसकी अपनी कोई हस्ती नहीं होती, उसकी हस्ती बच्चे पर आश्रित होती है। अब बच्चा अपना उड़ गया, तो अब आप अपना जीवन एक नये सिरे से शुरू करिए। देखिए क्या करना है।

होना तो ये चाहिए कि आप इतनी व्यस्त हो जाएँ कि वो कॉल करे, आप कहें कि कम ऑन, माँ के ही आँचल से बँधे रहोगे क्या, मुझे मेरी लाइफ़ देखने दो। बार-बार फ़ोन करे, बोलिए, ‘गो गेट अ लाइफ़। ये दिन गर्ल्फ़्रेंड को फ़ोन करने के हैं, मम्मी को क्यों फ़ोन कर रहे हो।’ मज़ाक कर रहा हूँ। मुझे पता ही नहीं चलता कि कब वो कोई पन्द्रह सेकंड का निकालकर के, और अब तो डीप फ़ेक आ गया है, तो जो नहीं भी बोला हो, जो नहीं भी करा हो, कहा हो वो सब चल जाता है। खूब चल रहा है दुनिया में। भावना जी भाव समझिएगा मेरा। ठीक है? उम्मीद करता हूँ सकुशल ही होगा, इतना परेशान होने की कोई बात नहीं, घंटे-दो-घंटे में आ जाएगा। नहीं आये, तो फिर उसके दोस्त-यारों को फ़ोन-वोन कर लीजिए। ये सब कोई बड़ी घटनाएँ नहीं होती है । चलिए।

प्र: थैंक यू। थैंक यू सर।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories