अवतारों की सच्चाई जानो || आचार्य प्रशांत (2021)

Acharya Prashant

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अवतारों की सच्चाई जानो || आचार्य प्रशांत (2021)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, धर्म के किस्से-कहानियों में एक नायक की तरह, एक सर्व शक्तिमान वीर या ज्ञानी की तरह बार-बार अवतारों का उल्लेख आता है। अवतार का क्या मतलब होता है? नरसिंह अवतार ने प्रहलाद को बचाया, वामन अवतार छोटे थे, बौने थे, परशुराम क्रोधित रहते थे, मत्स्य अवतार मछली थी तो जिस तरीके से अवतारों का निरूपण है, उसमें भी बहुत विविधता है। श्रीराम हैं, श्रीकृष्ण हैं, इनसे तो हम परिचित हैं हीं। तो अवतार मतलब क्या?

आचार्य प्रशांत: सबसे पहले यह समझना पड़ेगा कि हम कौन हैं। हम यह जान जाए कि हम कौन हैं, तभी तो यह समझ आएगा न कि अवतार कौन है; क्योंकि अवतार तो कोई विशेष है, कोई ख़ास है। अवतार अगर विशेष है तो वो विशेष जो हम साधारण जन मानस हैं, हमारी पृष्ठभूमि में ही है न विशेष वो। हम जैसे हैं, हमारी पृष्ठभूमि में ही अवतार कुछ अलग है, कुछ विशेष है। तो हम कैसे हैं? हम वो हैं जिनका मन उनकी आत्मा से अलग हस्ती बनाकर के जीता है।

अभी बिलकुल सरलता से समझा दूँगा, पहले इस बात को थोड़ा-सा समझेंगे। हम वो हैं जिनका मन आत्मा से बिलकुल अलग हस्ती बनाकर जीता है; और मन माने क्या? मन माने हमारी सब धारणाएँ, हमारे सब भ्रम, हमारी सब मान्यताएँ, हमारे सब झूठ; उसको क्या बोलते हैं? मन। मन माने वो सबकुछ जो हमने मान रखा है, उसको बोलते हैं- मन। मन काल्पनिक है, मन बस एक मान्यता है। ठीक है न?

हम किसमें जीते हैं? मन में। हम जीते हैं मन में इसीलिए फिर हम जीते हैं झूठ में। और आत्मा माने क्या? आत्मा माने सच्चाई। आत्मा माने वो चीज़ जिसको कितना भी जाँच-परख लो, तुम्हें अगल-अलग परिणाम नहीं मिल सकते। आत्मा माने कुछ ऐसा जो समय के साथ बदल नहीं सकता, आत्मा माने कुछ ऐसा जो तुम्हें कभी धोखा नही देगा, जो अपने अलग-अलग चेहरे या रंग कभी नहीं दिखाने वाला। और मन माने क्या? जो लगातार अपने रंग बदलता रहता है, जिसका कभी कोई भरोसा नहीं किया जा सकता, जो कभी एक जगह पर टिकता नहीं; और उससे बिलकुल विपरीत आत्मा है।

आत्मा वो, जो चीज़ बदल नहीं सकती। आत्मा वो जिसके आगे कुछ और नहीं है, जहाँ पर जाकर के सारी खोज़ सारी सोच, सब समाप्त हो जाती है, उसको बोलते हैं- आत्मा। और मन क्या है? जो लगातार खोज़ और सोच में ही लगा रहे, उसे बोलते हैं- मन। मन क्या है? जो लगातार बेचैन रहे और डरा हुआ रहे, उसको बोलते हैं- मन। और आत्मा क्या है? जहाँ पर चैन-ही-चैन है, शांति-ही-शांति है, आनंद है बिलकुल, वो है आत्मा।

हम में से ज़्यादातर लोग कहाँ जीते हैं, मन में या आत्मा में? मन में जीते हैं न। अपनी ज़िंदगी को देख लीजिए, प्रमाण मिल जाएगा। बेचैनी रहती है, उलझन रहती है, मान्यताएँ रहती हैं, यही सब रहता है तो हम मन में जीते हैं। जबकि सच्चाई में, चैन में, शांति में जीने का विकल्प हमारे पास उपलब्ध है। तो वो विकल्प उपलब्ध है लेकिन वो विकल्प रखा रहता है, हम कभी उस विकल्प को स्पर्श नहीं करते। हम एक बिलकुल दूसरे विकल्प में जीते हैं। और उस दूसरे विकल्प का नाम दोहराइएगा क्या है? मन।

तो यह दो हमारे पास विकल्प उपलब्ध होते हैं जीने के लिए। एक यह कि चैन में जियो, सच्चाई में जियो, शांति में जियो और दूसरा यह कि झूठ में जियो, कल्पनाओं में जियो, मान्यताओं में जियो, डर में जियो, बैचेनी में जियो इत्यादि-इत्यादि। ठीक है न? हम इनमें से आमतौर पर यह जो दूसरा सस्ता-आसान विकल्प है, इसी को चूने बैठे रहते हैं। यह एक आम जीव की स्थिति है। इसके बाद हम समझेंगे अवतार क्या होता है। तो एक आम जीव अपनी सच्चाई से दूरी बनाकर चलता है। यही बात हमने शुरू में बोली थी कि जिसका मन अपनी एक अलग हस्ती बनाकर के चल रहा है आत्मा से दूर, उसको बोलते हैं- साधारण मानव, मनुष्य या जीव।

तो मन अलग है, आत्मा अलग है और हम मन बने बैठे हैं, और जहाँ आत्मा है उधर सच है, उधर हम जाना नहीं चाहते। झूठ हमने पकड़ रखा है क्यों? क्योंकि झूठ सस्ता होता है, आसान होता है, उसमें हमें सुविधा मिल जाती है। सच की ओर जाओ तो कुछ चीज़ें छोड़नी पड़ती हैं तो डर लगता है, मेहनत करनी पड़ती है, तो हम सच की ओर जाते नहीं, माने मन आत्मा की ओर जाता नहीं।

आत्मा तो अपनी जगह है, आत्मा उठकर के नहीं आएगी क्योंकि आत्मा क्या है? अचल है, वो चल नहीं सकती। वह इतनी बड़ी है कि वो चल नहीं सकती या यह कह दो कि वह इतनी ज़्यादा मौजूद है हर जगह कि वह और कहीं को जा नहीं सकती। कोई ऐसी चीज़ हो जो हर जगह मौजूद हो, इतनी सच्ची हो कि उसका कोई अंत ही न आता हो, वह हर जगह हो तो क्या वह कहीं जा सकती है? तो आत्मा अचल है, वह कहीं नहीं जा सकती। मन ही चंचल है। आत्मा अचल है और मन चंचल है, तो यह जो चंचल मन है इसी को उठकर के जाना पड़ता है आत्मा तक। लेकिन यह जाता नहीं, लेकिन यह उस विकल्प को कभी स्वीकार करता नहीं, डरता है।

अब समझते हैं अवतार कौन हुआ? अवतार वह मन हुआ जिसने अपनी निजी हस्ती को छोड़कर आत्मा को स्वयं में अवतरित होने दिया। वह मन अवतार है जो कहता है कि मुझे अब अपनी व्यक्तिगत-निजी हस्ती से कोई मोह, लगाव, जुड़ाव नहीं रहा; मैं आत्मा ही हो जाऊँ, एकदम आत्मा हो जाऊँ, मैं खाली हो जाऊँ। जो खाली हो गया, जिसका अब कोई व्यक्तिगत वजूद बचा नहीं, उसे अवतार बोलते हैं। क्योंकि जो खाली हो गया, वह आत्मा से भर गया, तो अब उसे तुम कह सकते हो कि अब वह आत्मा का अवतार हो गया। अब उसके माध्यम से आत्मा ही प्रकट हो रही है क्योंकि और तो उसके पास कुछ है ही नहीं।

वह अगर चल-फिर रहा है, खा रहा है, कुछ कर रहा है, कुछ बोल रहा है, कहीं जा रहा है, कुछ भी कर रहा है, तो उसके पास अब कुछ व्यक्तिगत नहीं है। वह जो कुछ भी कर रहा है उसको करवाने वाली अब आत्मा है, सच्चाई है क्योंकि उसने अपने झूठों से तो नाता तोड़ ही लिया है। अपनी व्यक्तिगत दुनिया को तो उसने छोड़ ही दिया है, तो वह जो कुछ भी कर रहा है, उसमें वो एक माध्यम, निमित्त मात्र है बस। कराने वाला कौन है उससे? एक सच्चाई। क्योंकि जब झूठ नहीं है तो जो शेष है उसी को सच्चाई बोलते हैं। सच्चाई कहीं खोजने थोड़ी जानी पड़ती है, तुम झूठ छोड़ दो, सच्चाई तो मौजूद है ही। आत्मा अनंत है, आत्मा माने ही सत्य, वो अनंत है| झूठ तुम पकड़े रहते हो, उस झूठ की माया के कारण सत्य मौजूद होते हुए भी छुपा रहता है। समझ में आई बात?

कृष्ण कहते हैं गीता में कि जैसे गर्भ में बचा ढ़का रहता है या धुएँ से आग ढ़की रहती है। उपनिषद् कहते हैं कि कुछ ऐसा-सा है मामला जैसे पात्र हो एक और उसका मुख ढका हुआ हो। और जिस चीज़ से उस पात्र का मुँह ढ़का हुआ है, वह चीज़ सोने की है। हमारे झूठ सोने के हैं, हमारे झूठों में हमें बहुत कीमत लगती है, उसके कारण सच ढ़का रहता है। हमें यह तो दिखाई देता है कि वह जो आवरण है, जो ढके हुए है सच को, वह सोने का है। हमें उस सोने की कीमत तो दिखाई देती है लेकिन हमें यह नहीं दिखाई देता कि उस सोने ने जिस चीज़ को ढक रखा है, माने हमसे दूर कर रखा है, वह चीज़ कितनी कीमती थी। उस चीज़ की कीमत पता लग जाए तो पता चल जाएगा कि वो चीज़ सोने से हज़ार गुना ज़्यादा कीमती थी। सोना माने हमारी सब सुविधाएँ, वह चीज़ें जो हमको मूल्यवान लगती हैं, कीमती लगती हैं।

तो अवतार समझ में आ रहा है कौन हुआ? जो अपने लिए कुछ नहीं करता वह अवतार है। जो अपनी शारीरिक वृत्तियों, जो अपने मानसिक आवेगों, भावनाओं को, विचारों को, अब महत्व नहीं देता वह अवतार है। जिसने अपना तन और मन दोनों अब बिलकुल खाली कर दिए, वो अवतार।

किस अर्थ में खाली कर दिए? उसी अर्थ में जैसे जब तुम किसी ऑटो वाले से पूछते हो, भैया खाली हो? क्या मतलब होता है इसका? खाली कर दिए से यही अर्थ है, समझ जाओगे। जब तुम किसी ऑटो वाले से पूछते हो कि भैया खाली हो तो उसका क्या अर्थ होता है कि तुम्हारी पेट्रोल की टंकी खाली है? हाँ! क्या? कि क्या तुम उपलब्ध हो मुझे मेरी जगह ले जाने के लिए, बिना यह सोचे कि तुम मुझे जहाँ ले जा रहे हो उस जगह से तुम्हारा क्या रिश्ता नाता है। अब तुम समझ रहे हो?

क्या तुम खाली हो अपनेआप को भूलकर के किसी और का काम करने के लिए? इसको कहते हैं खाली हो जाना। ऑटो वाला यह थोड़ी करता है कि तुम उसके ऑटो में बैठे हो और वह तुम्हें अपने घर ले जाए। कहता है, मेरा ऑटो है, मैं अपने घर ही तो जाऊँगा। वह कहता है, मुझे आपने व्यक्तिगत मंजिल से कोई मतलब नहीं है–होता है, मतलब अब कुर्तक मत करने लग जाना कि ऑटो वाला तो पैसे लेता है या ये-वो। उदाहरण को उदाहरण की तरह समझो। बात समझ रहे हो?

ऑटो खाली है, खाली है माने उसे अब अपना घर नहीं देखना है, कोई और है जो उसके पीछे बैठा है, जो मालिक जैसा हो गया, जो बोलता है- वहाँ चल! तो वो चल देगा। बिना यह पूछे कि वहाँ क्यों ले जा रहे हो। पूछता है तुमसे कभी? क्यों जा रहे हो, क्या करोगे, वहाँ क्यों जा रहे हो, चलो तुम्हें कहीं ओर लेकर चलता हूँ? नहीं न? तो यह अवतार हो गया|

अब फिर कुर्तक नहीं चाहिए कि आचार्य जी आप ऑटो वाले को अवतार बोल रहे थे। मैं तुम्हें कुछ समझा रहा हूँ, समझो उसको! ऑटो वाले हम सभी हैं लेकिन हम बहुत ही बेकार ऑटो वाले हैं। पीछे कोई भी बैठा हो और उसका कितना भी ज़रूरी काम हो, हम उसको ले उस जगह जाते हैं जहाँ हमारा जाने का मन है। अब मान लो कोई पियक्कड़ ऑटो वाला है और पीछे एक मरीज़ बैठा हुआ है उसको अस्पताल जाना है, उसको ठेके ले जाकर के खड़ा कर देगा। कहेगा- दारू ही दवाई है, पी!

अवतार अलग होता है, उसका शरीर अब किसी ऊँचे लक्ष्य की सेवा करने के लिए है। वह अपना निजी हित नहीं देखता, वह कुछ ऐसा करता है जो समष्टि के काम आए, सबके काम आए। कृष्ण कहते हैं न कि जब-जब धर्म की हानि होगी तब-तब मैं आऊँगा। काहे के लिए आऊँगा? ख़ुद को पुजवाने के लिए आऊँगा कि मैं आ गया, हम पधार गए, हमें पूजो? इसलिए आएँगे कृष्ण? वो बता भी देते कि क्यों आएँगे – "परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम।"

साधुओं को तारने के लिए, शरण देने के लिए, रक्षा करने के लिए और दुष्टों का नाश करने के लिए आऊँगा। उसमें कहीं यह भी बोल रहे हैं वो कि मौज मारने आऊँगा, मजे करने आऊँगा? ऐसा कुछ बोल रहे हैं? तो किसलिए आएँगे, अपने लिए आएँगे? तुम्हारे लिए आएँगे। तुम साधु हो तो तुम्हारा उद्धार करने आएँगे। तुम दुष्ट हो तो तुम्हारा विनाश करने आएँगे; यह अवतार है।

अवतार वह जो बहुत कुछ करता है पर अपने लिए नहीं तुम्हारे लिए करता है। समझ में आ रही है बात? उसे अवतार बोलते हैं। अवतार क्यों बोलते हैं यह भी समझ गए? क्योंकि मन के बस की नहीं है अपने सिवाय किसी के लिए कुछ भी करना, मन के बस की नहीं है। जब मन किसी और के लिए करने लग जाए, तो समझ लेना कि वो खाली हो गया मन। उस मन में अब कुछ और अवतरित हुआ है, उतरा है। समझ रहे हो?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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