अतीत की गलतियाँ कैसे सुधारें?

Acharya Prashant

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अतीत की गलतियाँ कैसे सुधारें?

प्रश्नकर्ता: प्रणाम, आचार्य जी। मैं ये जानना चाहता था कि जो हमारे दिमाग की कंडीशनिंग (ट्रेनिंग) हो रखी है, जो अतीत में गलतियाँ हो चुकी हैं, उनको कैसे ठीक करा जाए? उनसे आगे के लिए सीख ली जाये और आगे वो चीज़ें न हों?

आचार्य प्रशांत: नहीं, अतीत की तो कोई गलती आपको परेशान करने कभी भी नहीं आती। बेचारा अतीत ही जा चुका है, उसकी गलती कैसे बची रहेगी? ये धारणा बिलकुल मन से निकालिए। हममें से कोई भी, कभी भी अतीत की गलतियों से परेशान नहीं होता, भले ही हमें ऐसा लगता हो। अगर आप परेशान हैं इस वक्त, तो कोई गलती हो रही है इस वक्त। ये अच्छे से समझिए!

और इस वक्त जो हम गलती कर रहे हैं, उसको न सुधारने का बहाना है ये कहना कि हमारा कष्ट तो अतीत से है। नहीं! आपका कष्ट अतीत से नहीं है। आपका कष्ट वर्तमान में है और वर्तमान से ही है। अतीत जैसा कुछ होता नहीं। जो नहीं है, उसको भूत बोलते हैं। न भविष्य जैसा कुछ होता है, वो तो अभी पैदा ही नहीं हुआ। आपकी सारी समस्याओं का अनुभव आपको कहाँ होता है? इस ही क्षण में होता है। इस ही क्षण में ऐसा कुछ है, जो आपको परेशान कर रहा है। और वो कहाँ है? वो आपमें ही है। बीमार ही बीमारी है। अनुभोक्ता ही अनुभव है।

जो कुछ हुआ है अतीत में, उसको वर्तमान में कौन पकड़े हुए है? आप न! क्यों पकड़े हुए हो? छोड़ दीजिए अगर ज़्यादा कष्ट हो रहा है तो? पहली बात तो पकड़े हैं और फिर शिकायत ये कि बड़ी तकलीफ़ में हैं। तकलीफ़ अतीत की किसी घटना की वजह से है या वर्तमान में भी उस घटना को पकड़े रहने की वजह से है? बोलिए! तकलीफ़ अतीत के किसी सम्बन्ध की वजह से है या वर्तमान में भी उसी सम्बन्ध में आसक्ति की वजह से है? आसक्ति में लेकिन खुशी मिलती है। अन्दर की बात तो ये है कि आसक्ति में हमें जो खुशी मिल रही है, वो हमारी तकलीफ़ से ज़्यादा है। अतीत से जो हमारी आसक्ति है, उससे हमें जो खुशी मिल रही है, वो उस तकलीफ़ से ज़्यादा है, जो हमें अतीत से मिल रही है। तो कुल हिसाब जब हम करते हैं, तो क्या कहते हैं? कहते हैं, ‘छोड़ने की कोई ज़रूरत नहीं क्योंकि फायदा ही हो रहा है। खुशी मिल रही है दस रुपए की और तकलीफ़ हो तो रही है पर तकलीफ़ छह ही रुपए की हो रही है। तो ले-देकर चार रुपए का तो फायदा ही हो रहा है न, तो तकलीफ़ झेले चलो।’

अभी भी आप जो शिकायत कर रहे हैं वो शिकायत ये नहीं है कि मेरा छह रुपए का नुक्सान है। वास्तव में आपकी अन्दरूनी शिकायत ये है कि लाभ सिर्फ़ चार ही रुपए का काहे हो रहा है, दस रुपए का होना चाहिए न पूरा। दस रुपए की खुशी तो मिलती ही है लेकिन दस में से छह कट जाते हैं। वो छह न कटें कुछ ऐसा जुगाड़ कर दीजिए ताकि चार रुपए की जगह, सीधे दस रुपए का लाभ हुआ करे।

मैं फिर पूछ रहा हूँ, बहुत सीधी सी बात, ‘अतीत से इतनी ही समस्या होती आपको तो अतीत को आपने त्याग न दिया होता अब तक? अतीत उछलकर आया है क्या आपसे चिपकने?’ वो तो मरा हुआ है। अकेले, स्वयं, अपने दम पर, वो कुछ कर ही नहीं सकता, उसमें कोई चेतना नहीं, कोई प्राण नहीं। ‘अतीत से चिपकने का भी निर्णय किसका है?’ आपका! आपके पास चेतना है, चुनाव आप करते हो। ‘अतीत बेचारा क्या चुनाव करेगा?’ और ऐसा आप चुनाव कर रहे हो तो उसमें आपको कहीं-न-कहीं लाभ दिख रहा है न, दस रुपए वाला! उसकी हम बात नहीं करते, वो छुपा जाते हैं।

देखिए, अगर आप कहेंगे कि आपके पास चुनाव का हक ही नहीं है तो फिर हम आगे बात नहीं कर सकते। फिर तो मैं एक पत्थर से बात कर रहा हूँ न? पत्थरों के पास कोई हक नहीं होता कुछ चुनने का, उन्हें जहाँ उठाकर रख दो वो वहीं पड़े रह जाते हैं बेचारे। वो नहीं चुन सकते कि कहाँ रहना है, कहाँ नहीं रहना। वो नहीं चुन सकते, किसके साथ रहना है, किसके साथ नहीं रहना। वो नहीं निर्णय कर सकते कि क्या होना है मुझे और क्या नहीं होना है मुझे।

आपके पास निर्णय की शक्ति है इसीलिए तो मैं आपसे बात कर रहा हूँ, ताकि आप सही निर्णय ले पाए। और अगर आपके पास निर्णय की शक्ति है तो अतीत से कष्ट पाना भी आपका एक निर्णय ही है। कोई मजबूरी नहीं है, कोई बाध्यता नहीं! आपका निर्णय है ये कि अतीत को बाँधे फिरूँगा और उससे तकलीफ़ पाऊँगा।

तो फिर मैं कहता हूँ कि अतीत को बाँधे फिर रहे हो, कुछ मज़ा मिल रहा होगा। कुछ गलत बोला हो तो कहिएगा! अपनेआप से पूछिए ईमानदारी से, ‘वो छुपा हुआ लाभ क्या है जो अतीत से मुझे मिल रहा है?’ आप कहेंगे, ‘क्या छुपा हुआ लाभ है, अतीत में तो एक बहुत ही दर्दनाक और कड़वी घटना हुई थी। और उस घटना का साया आज भी मेरे ज़हन पर है।‘ हो सकता है वो घटना दर्दनाक हो, कड़वी हो, हिंसक हो, लेकिन उस घटना को याद रख-रखकर आप कुछ तो लाभ उठा रहे हैं।

अहंकार बड़ा शातिर होता है, बड़ा शातिर होता है! कुछ तो फायदा मिल रहा है ये याद रखने में कि मेरे साथ बहुत बुरा हुआ था पाँच साल पहले। कहीं-न-कहीं हम वसूली कर रहे हैं। ‘पता है पाँच साल पहले न मुझे मेरे दोस्तों ने व्यापार में लूट लिया था। मैं अच्छा आदमी हूँ! संसार बुरा है! मैं अच्छा आदमी हूँ! मुझे मेरे दोस्तों ने लूट लिया था!’ ‘मैं छोटी थी तभी, मेरे कुछ रिश्तेदारों ने ही, मेरे साथ बड़ा दुष्कर्म सा किया।’ क्यों उसे साथ लेकर चल रहे हो? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसकी बात कर-कर के, उसे याद रखकर-कर के आज किन्हीं और रिश्तों में कोई लाभ वसूल रहे हो? क्योंकि ये तो बड़ी सहज सी बात है न, जो चीज़ आपको लाभ नहीं दे रही होगी उसे आप साथ लेकर नहीं चलोगे। आप अतीत की स्मृतियों की बात करते हो, ये तक याद है कि आज सुबह से अभी तक क्या-क्या किया है? बोलो!

हम ऐसे कहते हैं जैसे स्मृतियाँ आकर के हम पर चढ़ी जा रही हैं। स्मृतियों में अगर इतना दम होता तो इतना ही बता दो आज चार बजकर सत्रह मिनट पर क्या कर रहे थे? थोड़ी देर पहले की पूछ रहा हूँ, ‘क्या कर रहे थे?’ जिस भी वाहन से यहाँ तक यात्रा करके आए हो, उसका कितना किराया दिया है? हवाई जहाज़ का, रेल का, टैक्सी का, जिस भी चीज़ का।‘

ठीक-ठीक बताईएगा! याद भी है? क्यों भूल गए भाई? अतीत तो बड़ा ताकतवर होता है न? काहे नहीं याद रखा? अतीत क्यों नहीं तुम पर चढ़ बैठा इस मामले में? क्योंकि अतीत कभी कुछ नहीं करता, तुम ये निर्णय करते हो कि क्या याद रखना है और क्या नहीं। ये तुम्हारा निर्णय है।

जहाँ तुम्हें लाभ दिखायी देता है याद रखने में, वहाँ खट से याद करे बैठे हो, भले ही वो कैसी भी घटना हो। भले ही तुम ये कह दो कि दर्दनाक घटना है, मैं कैसे भुला दूँ। न! उस दर्दनाक घटना को भी याद रखने में कुछ-न-कुछ फायदा उठा रहे हो। मक्कारी है एक तरह की पर ऐसी मक्कारी जिसमें अपना ही नुकसान होता है।

अहंकार की यही तो बात है। वो अपनी नज़र में बड़ा शातिर है, बड़ी बदमाशियाँ करता है। कैसी बदमाशियाँ? जैसा कोई छोटा बच्चा करे कि निकले थे बदमाशी करने, बदमाशी कर आये और अपना ही सिर फुड़वा आये।

अतीत से आप वही याद रखते हैं जो आपके अहंकार को बचाये रखने में सहायक होता है, चाहे अच्छा! चाहे बुरा! आप वो सबकुछ बड़ी आसानी से भुला देते हैं जो आपके अहंकार को तोड़ेगा। कल की मेरी कितनी बातें याद हैं? अतीत अगर चढ़ ही बैठता होता आपके ऊपर तो कल मैं आपसे चार-साढ़े-चार घंटे बोला हूँ, याद है? वो कैसे भूल गया? और चार साल पहले का कुछ याद है।

कहिए! जो कल ही बोला आपसे, वो कैसे भूल गये? स्मृति अहंकार के पीछे-पीछे चलती है। ऐसा ही नहीं है कि आप बस वही चीज़ें याद रखते हैं जो आपके काम की हैं। आपके काम की, माने किसके काम की? अहंकार के काम की। एक और आपको बहुत खतरनाक बात बताता हूँ, अगर कुछ आपके काम का है तो स्मृति उसका निर्माण भी कर लेती है। भले ही वो घटना घटी हो, चाहे न घटी हो, वो घटना आपकी स्मृति में आ जाएगी।, आपको ऐसा लगने लगेगा कि ऐसा हुआ था और आप बहुत आश्वस्त रहेंगे कि ऐसा तो हुआ ही था।

स्मृति कोई वस्तुगत ऑब्जेक्टिव (वस्तुनिष्ट) चीज़ नहीं होती है। अच्छा चलिए, एक प्रयोग कर लेते हैं। आप जितने लोग यहाँ बैठे हैं, इन सबसे पूछा जाये कि कल सत्र में जो कुछ कहा गया, उससे सम्बन्धित, बस दस बातें लिख दीजिए, पाँच बातें लिख दीजिए और सबको एक-एक कागज़ दे दिया जाए कि लिखो भई! पाँच बिंदु जो कल चर्चा में रहे। और फिर आप जो लिख रहे हैं, अपने पड़ोसी को दे दें। अदला-बदली कर लें, अपनी पर्चियों की। आप भौचक्के रह जाएँगे कि सत्र तो एक ही हुआ था, वक्ता भी एक ही था। उसने सबसे अलग-अलग बात तो नहीं बोली होगी। कैमरा तो यही बता रहा है कि भई एक ही बात बोली गई है।

तो फिर सब लोगों ने इतना अलग-अलग कैसे सुना? सब लोगों को इतना अलग-अलग ही कैसे याद है? मैं बताता हूँ, जिसको जो नहीं सुनना, उसने वो नहीं सुना। जिसकी बीमारी का जहाँ इलाज है, उसने वो बिलकुल नहीं सुना होगा। और जिसके लिए जो चीज़ काम की नहीं है, वो उसको बिलकुल याद होगी। जो चीज़, जिसके अहंकार को बढ़ाती है, वो उसको तुरन्त लिख लेता है, झट से! और आमतौर पर आप वो नहीं लिखते, जो आपको स्वास्थ्य देगा।

जानते हो आप खट से क्या लिख लेते हो? आप वो लिखते हो झट से, जिससे आप सहमत हो। आप वो झट से लिख लेते हो, जो बात आप खुद भी पहले ही सोचते थे। और उस बात का मैंने सत्यापन कर दिया। मैंने वो बात दोहरा दी, आप एकदम प्रसन्न हो गए कि (ख़ुशी से एक ताली बजाते हुये) ये देखो, ये बात तो मुझे पहले ही पता थी, आज इन्होंने भी उस पर मोहर लगा दी।

आप जल्दी से लिख लेते हो कि ये देखो, अब ये मेरा अपना व्यक्तिगत ब्रह्मश्लोक है। और अगर मेरी एक बात सही हो सकती है, ब्रह्म-श्लोक जैसी हो सकती है, तो फिर बाकी सब बातें भी जो मैं सोचता हूँ, वो सब भी ब्रह्मश्लोक जैसी ही होंगी। तो ले-देकर मैं कौन हूँ? मैं ही ब्रह्म हो गया।

अपनी स्मृति पर भरोसा कभी मत करिएगा, अपने अनुभवों पर भरोसा कभी मत करिएगा। सब झूठे हैं। सब झूठे! दस बातें जो आपको याद हैं अपने बचपन के बारे में, यकीन जानिए उसमें से पाँच ऐसी हैं, जो कभी घटी ही नहीं। या उस तरीके से नहीं घटी, जैसी आपको याद है। और बहुत कुछ ऐसा है जो घटा लेकिन आपने उसको बिलकुल याद नहीं रखा, जानबूझकर के भुला दिया।

अब मुझे बताओ अतीत हैरान कर रहा है आपको या आप मज़े ले रहे हैं अतीत का इस्तेमाल करके? कोई नहीं होता जो अतीत का मारा हुआ नहीं है, सबका यही कहना है। कोई नहीं मिलेगा जो ये न कहे कि मेरे साथ ऐसा हो गया, वैसा हो गया। वो सब नहीं बोलोगे तो फिर जैसे जी रहे हो, इसको वैध कैसे ठहराओगे? वो सब बोलना फिर ज़रूरी होता है। समझ में आ रही है कुछ बात?

इस पर तो मनोविज्ञान में सैकड़ों प्रयोग हुए हैं कि मेमोरी (स्मृति) कितनी छोटी चीज़ है। और वो भी एक दिन में नहीं बदलती, वो भी हफ्ते-दर-हफ्ते बदलती है। आपको एक घटना अभी याद है, ठीक है, उसको आप लिख लीजिए, ‘ऐसा कुछ हुआ था।’ और जिस कागज़ पर आपने लिखा हो, उसको कहीं छुपाकर रख दीजिए। फिर दो महीने बाद फिर लिखिएगा कि क्या हुआ था उस दिन, उसको भी रख दीजिए। फिर छह महीने बाद लिखिएगा कि क्या हुआ था उस दिन, वो जो खास घटना घटी थी आपके साथ। और फिर साल भर बाद ये तीनों कागज़ निकालकर अगल-बगल रख दीजिए। झटका लग जाएगा!

जिन्हें हल्कापन प्यारा होता है, उन्हें प्यारा होता है। वो बहाना नहीं खोजते। बात ये नहीं है कि अतीत में क्या था, बात ये है कि आज भी क्या आपको शान्ति चाहिए? अतीत में हो सकता है आपके अशान्ति हो। सारा जहाँ ही अशान्त है तो आपके घर में या आपके स्कूल में या आपके रिश्तों में अशान्ति थी तो ताज़्जुब क्या है, पूरी दुनिया में ही है। तब रही होगी, आज भी शान्ति चाहिए क्या? ये सवाल है!

अगर आज चाहिए होगी तो मिल जाएगी, नहीं चाहिए तो सौ बहाने हैं। आपकी जो भी हालत है उसका जिम्मेदार दूसरों को ठहराना छोड़िए, अपनी जिम्मेदारी अपने ऊपर लेना सीखिए। और दूसरों से मेरा आशय दूसरे व्यक्ति ही नहीं हैं, दूसरों से मेरा आशय दूसरा समय भी है, जिसको आप अतीत बोलते हैं। यही तो कहते हैं न कि मेरी ये हालात इसलिए खराब है क्योंकि फ़लाने ने कुछ कर दिया या फिर अतीत ने कुछ कर दिया। दूसरों को जिम्मेदार ठहराना बिलकुल छोड़ दीजिए।

आपकी हालत आपका सार्वभौम चुनाव है। आप एक सम्प्रभु इकाई हैं, आप सॉवरेन (सार्वभौम) हैं। सॉवरेन समझते हैं? आपके ऊपर वाकई किसी की सत्ता नहीं चलती। आपके ऊपर तो उसकी भी सत्ता नहीं चल सकती जिसको परमात्मा बोलते हैं। वो भी इंतज़ार करता है आपकी रज़ामन्दी का। तो ये अतीत और संसार तो बहुत छोटी चीज़ हैं, ये कैसे अपनेआप आप पर चढ़ जाएँगे? उपनिषद के ऋषि भी बलात आप पर चढ़ पा रहे हैं क्या?

जब कोई आपके साथ ज़बरदस्ती नहीं कर सकता, जब मंदिर भी प्रतीक्षा करता है कि कब आएँगे आप उस तक। जब मूर्ति भी प्रतीक्षा करती है कि कब आएँगे आप उस तक, तो अतीत में कहाँ से इतना दम आ गया कि वो अपनेआप आप पर चढ़ जाता है? नहीं, किसी में दम नहीं है! किसी में दुम नहीं है कि वो अपनी इच्छा से आप पर चढ़ जाए।

अगर कोई आप पर चढ़ा बैठा है तो उसे आपने सिर चढ़ाया है, जिम्मेदारी लेना सीखिए। दिक्कत बस इतनी सी है कि जब आप ये जिम्मेदारी ले लेंगे तो शिकायत करने के बहाने मिट जाएँगे। और शिकायत करने में जो लुत्फ़ है, उसकी बात अलग है। मैं तो पीड़ित हूँ! मैं तो शोषित हूँ! मुझे उसने सताया! मुझे उसने रुलाया! विक्टिम (शोषित) हूँ जी, मैं विक्टिम ! मुआवज़ा लाओ! हर्ज़ाना! कम्पनसेशन ! समझ रहे हो न, ‘क्यों ज़रूरी होता है विक्टिम होना?’ क्या मिलता है?

श्रोतागण: मुआवज़ा।

आचार्य प्रशांत: अतीत भी अगर आपको विक्टिमाइज़ (यातनाएँ) कर चुका है तो आप फिर क्या करोगे? ‘देखो भई! अतीत में न मेरे साथ बड़ा अन्याय हुआ था, तो मुझे उसका मुआवज़ा कब मिलेगा?’ और वो मुआवज़ा आप वसुलोगे—

श्रोतागण: वर्तमान में।

आचार्य प्रशांत: इसलिए हम अतीत का रोना रोते हैं ताकि वर्तमान में अतीत का मुआवज़ा वसूल सकें।

और मुआवज़ा तो मीठी चीज़ है। किसको नहीं चाहिए, घर बैठे मुआवज़ा मिल रहा हो तो? और जितना तुम्हारे साथ अन्याय हुआ, उतना बड़ा मुआवज़ा मिलता है न? तो अगर बड़ा मुआवज़ा चाहिए तो क्या दिखाना पड़ेगा? अन्याय बहुत बड़ा हुआ। अब समझ में आ रहा है कि हर आदमी आज विक्टिम क्यों है? जिसको देखो, वही विक्टिम बना हुआ है। मैं भी शोषित! मैं भी पीड़ित! मेरे साथ ऐसा उत्पीड़न! मेरे साथ ऐसा अन्याय! हम इस वर्ग से हैं! हम इस देश से हैं! हम इस जाति से हैं! हम इस धर्म से हैं! हमारा तो जी हुआ ही है, बड़ा शोषण! ले-देकर मुआवज़ा चाहिए।

मिल जाएगा मुआवज़ा, लेकिन बहुत महंगी कीमत पर मिलता है। थोड़े से मुआवज़े के लिए ज़िन्दगी खो देते हो। ये सीख समझ लीजिए! कुछ भी हो जाये, कैसा भी हो जाये, अपनी नज़रों में कभी भी शोषित मत बन जाइएगा, विक्टिम मत बन जाइएगा। न शिकार बनना है न शिकारी बनना है। कुछ भी हो जाये,ठीक है! बुरे-से-बुरा हो गया। मन पर उसकी छाप मत पड़ने दीजिएगा। घाव पालने से कोई फायदा है? कहीं चोट लग गई और तुम उसका घाव पाले जा रहे हो, कोई फायदा? या आगे बढ़ना है?

और अच्छे से समझा रहा हूँ, फिर से,ये जो भी आप हर्ज़ाना लेते हो अपने विक्टिमाईज़ेशन के एवज में, वो बहुत छोटा होता है। बहुत बड़ा नुक्सान कर लिया आपने अगर आप मानसिक तौर पर बन गए, विक्टिम। बहुत बड़ा नुक्सान किया है। और उसके बदले में आपको जो कम्पनसेशन मिला है, वो बहुत छोटा है। भले ही वो कितना भी बड़ा कम्पनसेशन क्यों न हो, उससे क्षतिपूर्ति नहीं होने की। तो कभी मुआवज़ा मत माँगिएगा, कभी नहीं!

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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