अतीत- कीमती भी, कचरा भी || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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अतीत- कीमती भी, कचरा भी || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

प्रश्न: जो नियम पूर्वजों ने बना दिये हैं, उन पर क्यों चलना है?

वक्ता: तुम्हारा सवाल है कि पूर्वजों ने जो नियम दे दिए हैं, उनका पालन क्यों करना है लगातार? इसलिए ही करना है। मैं जब पूछ रहा हूँ कि मत चलो, गलत भी हो सकते हो तो तुम कह रहे हो कि क्या पता, हो सकता है और नहीं भी। चूँकि तुम्हें नहीं पता है, चूँकि संदेह है, इसलिए तुम सुरक्षित खेलना चाहते हो। तुम कहते हो, ‘ख़तरा कौन ले? क्या पता वो नियम फायदेमंद हों। पालन ही कर लो’। जब तुम्हें ठीक-ठीक पता ही चल जाएगा कि तुम्हारे लिये क्या ठीक है, तो वही करोगे, और जान हीजाओगे कि ठीक नहीं है तो उसे नहीं ही करोगे। तब कोई संशय नहीं बचेगा। अभी तुम जानते नहीं हो इसलिए तुम कहते हो कि चलो कर ही लेते हैं। ‘जब सब कर ही रहे हैं तो हम भी कर लेते हैं’। अभी तुम्हें स्पष्टता के साथ पता नहीं है कि बात क्या है। कुछ एक-दो नियमों के उदाहरण दो।

श्रोता १: जातिवाद।

वक्ता: हाँ, तो तुम्हें पता कहाँ है कि जातिवाद क्या है। जाति क्या चीज़ होती है, तुम्हें ठीक-ठीक पता नहीं है। इसलिए तुम जाति को ना पकड़ पाते हो, ना ही छोड़ पाते हो। पूरी तरह से ना तुम जातिवादी हो पाते हो कि बैठूँगा तो भी अपनी जाति वाले के बगल में बैठूंगा, नीची जाति वाले का छुआ पानी भी नहीं पीऊँगा। जब जाति-प्रथा अपने चरम पर थी, तब ये भी होता था कि यदि किसी ब्राह्मण पर किसी शूद्र की छाया भी पड़ जाए, तो जाकर नहाना होता था। तुम इतने बड़े जातिवादी भी नहीं हो पाते। और तुम जाति से इतने मुक्त भी नहीं हो पाते कि क्या अंतर पड़ता है? ‘मैं कहीं भी खा सकता हूँ, पी सकता हूँ, कहीं भी शादी-विवाह कर सकता हूँ। मुझे जाति का सोचना ही नहीं है’। तुम बीच में लटके हुये हो। छोड़ना भी चाहते हो और छोड़ भी नहीं पाते। जाति कितनी ज़्यादा गहरी है, ये जानना है तो ये जो मेट्रिमोनियल वेबसाइट्स हैं, उनको देखो। जैसे ही तुम अपनी प्रोफाइल डालोगे, या तुम्हारे घरों में किसी ने डाली हों, तो उसमें देखोगे कि जाति भी बताओ, गोत्र भी बताओ, ये भी बताओ, वो भी बताओ। लोग बताते भी हैं। अच्छे-अच्छे पढ़े-लिखे लोग। जितनी ऊँची से ऊँची शिक्षा मिल सकती है, मिली हुई है, पर जाति तो जाति है। जाति के अंदर और जो चीज़ें हो सकती हैं, उपजाति, सब इसी में लगे हुए हैं। और क्या बोलते हैं उनको: लक्षण, गुण, चाँद-तारे, नक्षत्र, ऐस्टरॉइड्स, मेटेरॉइड्स, जो-जो मिलाया जाता है, सब मिला लेते हैं। और क्या-क्या मिलाते हैं? गैलक्सीज भी मिलाते हैं क्या? प्लैनेट्स? क्या-क्या मिलता है? और ये सब काम अनपढ़ लोग नहीं कर रहे हैं। ये सारे काम तुम्हारे ही जैसे पढ़े-लिखे लोग कर रहे हैं, और बहुत पढ़े-लिखे भी। कोई पी.एच.डी. करके बैठा हुआ हैअमेरिका से, और कह रहा है कि मेरा जुपिटर, तेरे नेपचून से नहीं मिल रहा।

(सभी श्रोता जोर से हँसते हैं)

वक्ता: अरे, शादी के बाद क्या जुपिटर और नेपचून को मिलाओगे? मूर्ख।

(सभी श्रोता जोर से हँसते हैं)

वक्ता: जुपिटर और नेपच्यून को ही फिर फेरे लगा लेने दो। जुपिटर से बोलो कि नेपच्यून के लिये खाना बना दे।

(सभी श्रोता और जोर से हँसते हैं)

वक्ता: समझते भी नहीं ना! ठीक से पढ़ाई भी नहीं की। अगर कोई ठीक से पढ़ाई भी कर ले औए समझ जाये कि पदार्थ क्या है, मटेरियल क्या है; कि पूरा यूनिवर्स अस्तित्व में कैसे आ गया, कोई ये सब भी अगर ठीक से जान ले तो मुक्त हो जाएगा। पर हम वो भी ठीक से नहीं जानते। तो इसलिये ये सब बेवकूफियाँ बैठी रहती हैं। हम इनसे पूरी तरह से मुक्त नहीं हो पाते ना। अच्छे-अच्छे लोग कैसी-कैसी बातें करते हैं। कहते हैं-

पहला: कुछ होता होगा, मैं बताऊँ कैसे होता है।

दूसरा: हाँ,हाँ बताओ कि कैसे होता है।

पहला: देखो ग्रहों का जो प्रभाव होता है, वो ऐसे होता है कि न्यूटन ने कहा था कि ग्रेविटेशन होता है?

दूसरा: हाँ, होता है।

पहला: ग्रह बहुत बड़े-बड़े हैं।

दूसरा: हाँ, हैं।

पहला: तो बस, उनका ग्रेविटेशनल पुल पड़ता है हम पर।

(सब हँसने लगते हैं)

वक्ता: ये होता है जब कोई अध-पढ़ा लिखा आदमी होता है। ये उसकी बुद्धि है। क्या है इक्वेशन? । उसको इतना तो पता है कि इक्वेशन में ऊपर M1 और M2, आता है परन्तु ये भूल जाता है कि नीचे r^2 भी आता है। तो होगा बहुत बड़ा मास जुपिटर का, पर ये भी तो देखो कि दूर कितना है। वो क्या तुम पर कर लेगा? और अगर उसका असर पड़ रहा है, तो तुम्हारे बगल में जो ड्रम रखा है उसका असर नहीं पड़ रहा? जिस कुर्सी पर बैठे हो, उसका असर नहीं पड़ रहा? यहाँ ग्रेविटेशन फ़ोर्स नहीं है? ये तो बगल में है बिल्कुल। उसको ये नहीं दिखायी देगा। बेपढ़ी-लिखी बातें। इसलिए हम उनका पालन किये जा रहे हैं।

तुम देखते नहीं हो कि अभी जब नागपंचमी आयी थी, लोग दूध लेकर, अच्छे-खासे पढ़े-लिखे लोग दूध लेकर पहुंचे गए ह। जब IIT में था तो वहाँ एक मंदिर हुआ करता था। उन्हीं दिनों एक घटना घटी थी कि गणेश की मूर्तियों ने दूध पीना शुरू कर दिया था। तुम बच्चे रहे होंगे उस समय। लोग लाइन लगाकर लगे हुए थे। अखबारों में छप रहा है कि कहाँ कितना दूध पीया गया। ‘मेरा पाँच किलो पीया है। मेरा दस किलो’। और हुआ कुछ नहीं है, बस गिरा दिया है वहीं पर। और कह रहे हैं कि पी गये।

(सब हँसने लगते हैं)

वक्ता: और ये न्यूज़ चैनल दिखा रहे हैं कि देखिये ये कटोरा। इसको ऐसे रखा। और इसके बाद नाप कर रहे हैं तो देखते हैं कि थोड़ा कम हो गया। अब इन्हें कैपिलरी मोशन तो पता है नहीं। ठीक-से अगर दसवीं-बारहवीं पढ़ ली होती तो ये तो समझ जाते कि कैपिलरी मोशन क्या होता है। वो उनको पता है नहीं। वो ये भी नहीं जानते कि कोई भी तरल पदार्थ रूम तापमान पर भी वाष्पित होता ही रहता है। तो उसी कटोरे में जो दूध है, उसकी वॉल्यूम अभी माप करोगे, और एक घंटे बाद माप करोगे और अगर सही मापी है, तो थोड़ी तो कम आनी ही है। पर लोग कहेंगे कि देखो सिद्ध हो गया कि दूध पीया गया है। और लोग ताली बजा रहे है कि मूर्ति द्वारा दूध पीया गया है।

अभी एक सज्जन थे, बड़े धर्मगुरु थे। उनकी अभी मृत्यु हुई है। जब वो मरे हैं तो भारत के बड़े-बड़े राजनेता, तुम्हारे आइकोनिक स्पोर्ट्स-स्टार सब गये थे उनकी मृत्यु पर। वो क्यों इतने प्रसिद्द थे? क्योंकि तुम उनके पास जाओ, तो वो हाथ घुमाते थे, और उनके हाथ में लड्डू आ जाता था। ले खा। अब इन्होंने ‘लॉ ऑफ़ कंजर्वेशन ऑफ़ मास’ तो पढ़ा नहीं है कि ‘मास कैन नाइदर बी क्रिएटेड नॉर डेस्त्रोयेड’। ये तो इनको पता ही नहीं है हैकि लड्डू जब है नहीं तो आ कहाँ से जाएगा। हाथ में उतना लड्डू आये 50 ग्राम का, इसके लिए 50 ग्राम कहीं से कम भी करना पड़ेगा। लेकिन लोग खुश हैं। उनकी मृत्यु पर रो रहे हैं वहाँ खड़े होकर कि, महाराज मर गये। लोग बात करते हैं कि वो बड़ी ‘पॉजिटिव एनर्जी’ रेडियेट करते हैं। अब इन्होंने ‘लॉ ऑफ़ कंजर्वेशन ऑफ़ एनर्जी’ नहीं पढ़ा हैकि एनर्जी का फॉर्म चेंज हो सकता है, पर पैदा थोड़े ही हो जायेगी! और एनर्जी ना पॉजिटिव होती है और ना ही नेगेटिव, एनर्जी, एनर्जी होती है। एनर्जी, एनर्जी होती है।

जब ठीक से देखना शुरू करते हो तब दूध का दूध और पानी का पानी होता है। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि जो पुराना है, बेकार है। सच तो ये है कि जो पुराना है, उसमें बहुत कुछ बहुत कीमती है। पर जब तक साफ़ नज़र से देखोगे नहीं, तब तक नहीं जान पाओगे कि क्या कीमती है और क्या कूड़ा है। तुम कूड़े को भी कीमती समझते रहोगे। कूड़ा, कूड़ा ही दिखे, कीमती, कीमती ही दिखे, हीरा, हीरा दिखे, इसके लिए अपनी आँख साफ़ होना बहुत जरूरी है। भारत के ही इतिहास में जातिप्रथा भी है और भारत के ही इतिहास में उपनिषद् भी हैं। ये तुम्हारी आँख पर निर्भर करता है कि तुम किसको उठाते हो, ग्रहण करते हो। उपनिषद् बहुत कीमती हैं और जातिप्रथा बहुत सड़ी-गली है। तुम किसे उठाओगे?

ज्ञान सेशन पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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