अपने-आपको देखकर यह ना कहा करो, “आह, हा, हा! क्या बात है! मैं ही तो हूँ सरताज, सिकंदर!” और कोई तुम्हारे बारे में धोखे में रह जाए तो रह जाए, तुम अपने बारे में कैसे धोखे में हो? तुम अपनी हरक़तें नहीं जानते? तुम अपने विचार नहीं जानते? तुम नहीं जानते तुम कितने पानी में हो? दूसरा कोई कह दे कि तुम बड़े अच्छा आदमी हो, उसको माफ़ किया जा सकता है। तुम अपने बारे में कैसे कह देते हो कि, “मैं बड़ा अच्छा, बड़ा ऊँचा आदमी हूँ”? अपनी नज़र में गिरना ज़रूरी है! जो अपनी नज़र में गिर नहीं सकता; वह जीवन में उठ नहीं सकता।
मेरी बातें बिलकुल उल्टी लग रही होंगी? मैं जानता हूँ क्योंकि हमें यही पढ़ाया जाता है कि आत्म-सम्मान, स्वाभिमान वगैरह होना चाहिए, और मैं कह रहा हूँ अपनी नज़रों में गिरो। यह चौड़ छोड़ दो, कुछ नहीं हो तुम। या तो ख़ुद छोड़ दो; नहीं तो ज़िन्दगी पीट-पीटकर छुड़वाती है। और ऐसा नहीं कि तुम यह बात जानते नहीं; तुम्हारा अभी तक का जीवन गवाही दे रहा है इस बात की, कि जिंदगी ने तुम्हें पीटा ही है। अपनी हालत को देखो! अपने व्यक्तित्व को देखो! अपने मन को देखो!