प्रश्नकर्ता: रुमी की कोट्स(उक्तियाँ) पढ़ रहे थे।
आचार्य प्रशांत: रुमी के कोट्स, बताओ एक-आधे कोट्स।
प्रश्नकर्ता: “इफ यू डिजायर हीलिंग लेट् योरसेल्फ फॉल इल्ल” (यदि आप उपचार की इच्छा रखते हैं तो अपने आपको बीमार होने दें)
आचार्य: बहुत सुंन्दर, मतलब क्या है इसका?
प्रश्नकर्ता: सर, वैसे तो हमारे देखे तो बहुत उल्टा सा मतलब लगता है कि बीमार पड़ जाओ तब ठीक होंगे। लेकिन अगर हम सही में सत्य जानना चाहते हैं, तो हमें ये पहले ख़ुदको स्वीकार करना पड़ेगा कि हाँ हम बीमार हैं तभी हम उस सत्य को जान पाएंगे।
आचार्य: और भी एक और अर्थ है इसका! अगर बीमार हो नहीं तो हीलिंग की ज़रुरत भी नहीं है। तो जो लोग बार-बार हीलिंग की कोशिश करते रहते हैं न, जो लोग बार-बार कहते हैं कि हमें ठीक होना है, वो अपने लिए ये ज़रुरी बना लेते हैं की वो..
प्रश्नकर्ता: बीमार हों।
आचार्य: हीलिंग मतलब वो सबकुछ जो हम अपने आपको ठीक करने के लिए करते हैं। हम क्या-क्या करते हैं अपने आपको ठीक करने के लिए? क्या-क्या करते हैं? हमसे कहा जाता है पर्सनैलिटी अच्छी हो तुम ठीक हो जाओगे। ये हीलिंग ही तो हैं न कि ये करलो तो तुम ठीक हो जाओगे। हमसे कहा जाता है तुम्हारे पास पैसे आ जायें तुम ठीक हो जाओगे। हमसे कहा जाता है कि जॉब हो, मार्क्स हों तो तुम ठीक हो जाओगे। ये सब बातें सुनती हैं न, ये सब हीलिंग है। रुमी हमसे कह रहे हैं कि जो कोई तुमसे कह रहा है कि यू नीड टु बी हील्ड (आपको ठीक होने की आवश्यकता है), ध्यान से देखो, वो पहले तुमसे कह रहा है कि तुम बीमार हो। अगर कोई तुमसे बार-बार कहता है कि बेटा बिकम समथिंग (कुछ बनो), समथिंग मतलब समथिंग एल्स (कुछ और), जो तुम हो, वैसे नहीं, कुछ बन जाओ। तो इसका मतलब है कि वो बार-बार तुमको ये यक़ीन दिला रहा है कि तुम कुछ गड़बड़ हो, तुममे कुछ ख़ोट है, तुम कुछ गलत हो।
रुमी ऐसे ही लोगों पर व्यंग कर रहे हैं, ऐसे ही लोगों से सावधान रहने को कह रहे हैं, कि इनके प्रति अलर्ट रहना। ये दिखते तो शुभचिंतक हैं, पर ये सारा खेल ख़राब कर रहे हैं। बात आ रही है न समझ में?
अब तुम आओ यहां, बैठे हुए हो, अभी तुम सबसे कहूँ (ऊँगली से इशारा करते हुए), तुम जरा मुँह धुलकर आओ, तुम जरा ब्रश करके आओ, तुम उधर पीछे न डेओड्रैंट रखा है, तुम कपड़े चेंज करलो, गेट अ हेयर कट (बाल कटवाओ), तुम यार ज़रा सो लो पहले, तुमने शेव कबसे नहीं करी। तो इसका मतलब क्या है? इसका मतलब क्या ये है कि तुम लोग मुझे बहुत पसंद आ रहे हो?
प्रश्नकर्ता: नहीं।
आचार्य: दिखने में आपको क्या लग रहा है कि मैं सबको क्या बोल रहा हूँ? कि इम्प्रूव करो, यही तो बोल रहा हूँ। लेकिन असलियत क्या है? ये है कि मुझे तुम पसंद ही नहीं आ रहे, तभी तो जो पसंद नहीं आता उसी को तो बोलते हो नहीं-नहीं-नहीं पहले कुछ बन के दिखाओ तब तुम प्यार के काबिल होओगे, तब तुम इज्ज़त के काबिल होओगे। तो इन चीजों से सावधान रहना, ये नहीं कि दूसरे बोले तो ही, ये बातें हमारे मन में बैठ जाती हैं, ये बातें हम अपने आपसे ही बोलना शुरू कर देते हैं। कभी तुमने देखा है की जो तुम चाहते हो वो अगर तुमको न मिले तो तुम अपनी ही नज़र में गिर जाते हो। ऐसा किसके-किसके साथ हुआ है? आपने किसी चीज़ की कोशिश की.. अच्छा खेलते तो होगे? हर जाते हो देखा है कितना डिजेक्शन होता है कई बार, ‘निराशा’ वो वही है।
हम अपने आपको ही बोल देते हैं कि अनलेस वी आर अ विनर, वी डोंट डिज़र्व एनीथिंग इन लाइफ (जब तक हम विजेता नहीं होते, हम जीवन में कुछ भी पाने के लायक नहीं हैं)।
तो हम लगातार-लगातार फिर लड़ते रहते हैं, क्योकि विनिंग (जीतने) के लिए क्या जरुरी है? लड़ाई करना। तो फिर हम लगातार लड़ते ही रहते हैं और जो लगातार लड़ रहा हो उसकी शक्ल कैसी हो जाती है? कौन दिखायेगा? जो लगातार लड़ता ही रहता हो उसकी शक्ल कैसी हो जाएगी? कैसी हो जाएगी? बनाके दिखाओ! कैसी हो जाएगी? कैसी? कैसी? दिखाओ मुझे, कोई लगातार लड़ ही रहा है क्योंकि भाई उसे बता दिया गया है कि यू मस्ट बी अ विनर , यू मस्ट बी अ विनर नाउ टू बी अ विनर फर्स्ट ऑफ ऑल यू हैव टू कीप फाइटिंग एंड इफ यू आर फाइटिंग ऑल द टाइम, देन योर फेस इज लाइक (आप एक विजेता होना चाहिए। अब एक विजेता बनने के लिए सबसे पहले आपको हर समय लड़ते रहना होगा, फिर आपका चेहरा किस तरह होगा) (श्रोता की तरफ इशारा करते हुए) देखा कैसा हो जायेगा। एकदम मतलब पिटा हुआ।
(श्रोता सभी हसने लगे)
कोई फाइट कर ही रहा है, उसके भीतर बड़ा मोटिवेशन है, वो बड़ा ज़बरदस्त तरीके से, योद्धा ही है वो, उसकी शक्ल कैसी हो जाएगी? कौन बनाके दिखायेगा? अरे हम सब लड़ते ही रहते हैं, हाँ ये है (एक श्रोता की ओर इशारा करते हुए) और जब शक्ल ऐसी हो तो कोई आएगा “यू आर नॉट फाइटर इनफ, यू नीड सम मोटिवेशन ” (आप पर्याप्त रूप से लड़ाकू नहीं हैं, आपको कुछ प्रेरणा की आवश्यकता है), तो फिर वो तुमको और ज़्यादा युद्ध के प्रति प्रेरित करेंगे। तुमसे कहेंगे न, न, न, न ये छोटी-मोटी चिटपिटी क्या जलाते हो, बड़े-बड़े बम डालो! और फिर तुम्हारी शक्ल कैसी हो जाएगी?, जो लोग बड़े-बड़े बम डालते हैं, मरना चाहते हैं लोगों को, उनकी शक्ल कैसी हो जाती है? कैसी हो जाती है? कानों से धुआँ निकल रहा हो, मुँह बनाओ, बताओ कैसा हो जाता है? कैसा? कैसा? ये देखो, ये है (एक श्रोता की तरफ इशारा करते हुए), वो मुस्कुराते थोड़े ही हैं, उनकी शक्ल कैसी रहती है, कैसी रहती है? न, न, न, और, और (एक श्रोता की ओर इंगित करते हुए) इसको ही बोलते हैं - द ईविल (शैतान)
व्हेन यू आर ऑलवेज ट्राइंग टू गेन समथिंग बिकॉज़ यू फील डैट यू आर इन नीड ऑफ़ ऑफ समथिंग देन योर फेस स्टार्ट्स रिज़ेम्ब्लिंग दैट ऑफ द इविल (जब आप हमेशा कुछ हासिल करने की कोशिश कर रहे होते हैं क्योंकि आपको लगता है कि आपको किसी चीज़ की ज़रूरत है तो आपका चेहरा शैतान की तरह लगने लगता है) और अगर वो नहीं करते हो तो फिर फेस कैसा रहता है जैसा है, साधारण, सम्मानित, सुन्दर। अभी सब बैठे हो, टेंशन वगैरा नहीं है तो क्या किसी का भी फेस गन्दा होता है? कभी सोते हुए लोगों को तो देखा होगा, सोते हुए कोई भी बुरा लगता है? किसी का भी सोता हुआ चेहरा कभी गन्दा लगता है क्या? नहीं लगता। सोते हुए सब सुन्दर होते हैं। हम जग करके इसके (दिमाग की तरफ इशारा करते हुए) कारण, अपने ख्यालों के कारण न फिर अज़ीब-अज़ीब दिख जाते हैं।
जो सो रहा है वो तो सुन्दर होगा ही और वो सुंदरता ऐसी नहीं होती कि बड़ी बढ़-चढ़ के जगमगाती सुंदरता हो, वो जैसे छोटे बच्चे की सुंदरता होती है न, कोई छोटा देखा है जो अग्ली हो? किसी ने देखा है? कोई छह महीने का अग्ली बच्चा देखा है? तुम कहो सो अग्ली बॉय। काफी ट्रेंड बच्चा होगा। किस कॉलेज में पढ़ता है? साइंस का है? किसका है? छ: महीने का अग्ली बच्चा तभी हो सकता है जब उसको बहुत ट्रेनिंग दे दी गयी हो। अगर नहीं दी गयी है तो छह महीने का बच्चा तो सुन्दर ही होता है, फर्क नहीं पड़ता, छ: महीने का तो कुत्ते का और सूअर का बच्चा भी सुन्दर होता है। छोटे-छोटे सूअर के बच्चे देखे हैं?
प्रश्नकर्ता: सुन्दर होते हैं।
आचार्य: छोटा जो भी है सुन्दर है और जो कुछ भी बड़ा हो गया?
इसलिए कभी भी कोई भी छोटा बच्चा आता है फर्क ही नहीं पड़ता, तुम पूछते हो उसका नाम क्या है? तुम पूछते हो उसका धर्म क्या है? या अमीर है या गरीब है? क्या करते हो? बस उसको ले लेते हो। क्योंकि छोटा जो भी है वो सुन्दर है। छोटे का अर्थ ही है कि अभी उसने लड़ाई नहीं शुरु की, अभी उसने दौड़ नहीं शुरु की। अभी आपने होड़ नहीं शुरु की। अभी आपके मन में ये नहीं भर दिया गया है कि बिकम अ अचीवर, इसको दिखाओ, उसको जताओ। अभी ये मन में भर नहीं दिया गया है। इसलिए जो कुछ भी छोटा है वो सुन्दर है।
रियल एजुकेशन वही है जो आपको दुबारा छोटा बना दे। कैंप में तुम गए थे, बच्चे बन गए।
और एक उल्टी बात ये है कि जो बच्चा बन गया, दुबारा वही बड़ा बन जाता है। मचुरिटी (परिपक्वता) का और कोई तरीका नहीं है, एक ही तरीका है, क्या? दुबारा बच्चे हो जाओ, जो दुबारा बच्चा बन गया समझ लो सिर्फ वही बड़ा हुआ और जो बड़ा बना रह गया उसकी कोई ग्रोथ नहीं होगी, उसकी सिर्फ कंडीशनिंग होगी। कंडीशनिंग और ग्रोथ में अंतर है। कंडीशनिंग ऐसी है कि जैसे 50 सीसी की लूना आती है, लूना जानते हो? मोपेड। कंडीशनिंग का मतलब होता है कि इंजन तो छोटा ही है, गाड़ी पर लोड बढ़ा दिया कि जैसे लूना पर तुम स्टील की पाइप्स ढ़ो रहे हो, या लूना पर पांच लोग जा रहे हैं, ऐसा हो नहीं सकता, नहीं तुम्हारे जैसे पांच नहीं (एक श्रोता की ओर इशारा करते और मुस्कुराते हुए)। ये कंडीशनिंग है कि मन पर क्या डाल दिया गया है? बोझ, और ग्रोथ क्या होती है? ग्रोथ होती है कि पहले लूना थी और अब बुलेट आ गई, बुलेट के बाद लैम्बोर्गिनी आ गयी, उसके बाद और ग्रोथ हुई तो बोईंग का इंजन लग गया, ये ग्रोथ है। ग्रोथ का मतलब है, इंजन पता है न क्या होता है? इंजन गाड़ी का दिल होता है। ग्रोथ का मतलब होता है दिल का बड़ा होना। इंजन कहाँ लगा होता है? गाड़ी के बाहर कहीं लगा होता है? या दिल जैसा होता है बिल्कुल? तो ग्रोथ का मतलब होता है दिल का बड़ा होना। और कंडीशनिंग का मतलब होता है लोड का बढ़ना। तो ये जो लोड होता है उसको कहते हैं माइंड। ग्रोथ माने क्या बढ़ रहा है? इंजन बढ़ रहा है, दिल बढ़ रहा है, तब ग्रोथ है और कंडीशनिंग माने क्या बढ़ रहा है? माइंड बढ़ रहा है।
ग्रोथ हुई नहीं, कंडीशनिंग हो गयी तो तुम्हारी गाड़ी वैसे चलेगी जैसे ट्रिप्पलिंग वाली लूना चलती है। उसका चालान भी नहीं कटता, पता है। पुलिस वाले भी देखते है, चालान क्या, तू जा। तुम तो वैसे भी मारे गए हो तुम्हारा चालान काट कर क्या मरना। पांच या छह-सात के स्पीड से चलती है वो, इस से ज़्यादा की स्पीड तो कभी हो भी नहीं पायेगी, क्या चालान कटेगा। उसमेंं आदमी बोर हो जाता है राइड लेते-लेते तो पैदल चलने लगता है और जब पैदल चलने लगता है तो लूना फिर पीछे से आकर उसको पकड़ती है, पैदल चल रहा है तो तेज निकल जाएगा न। वैसे तो नहीं जीना है न?
इसलिए कैंप जरुरी होता है, ताकि बच्चे बन जाओ, दिल बड़ा हो जाये, दिमाग से बोझ हट जाये।
कौन से मोमेंट्स याद हैं और? तारे, ख़रगोश!
प्रश्नकर्ता: बोनफायर
आचार्य: बोनफायर, क्या करा बोनफायर में
प्रश्नकर्ता: गाने गाये!
आचार्य: गाने गए तुम लोगों ने सारे, तुम लोगों ने काफी
प्रश्नकर्ता: सर बोनफायर में तो इतनी ठंड थी कि सब लोग रज़ाई लेकर घूम रहे थे बाहर पर जब बोनफायर जली तो उसके बाद ऐसा लगा भगवान ठंड ही अच्छी है। कम्बल लेकर आये थे पर ये नहीं पता चल रहा था की आग से बचने के लिए लाये थे या ठंड से बचने के लिए लाये थे।
आचार्य: बोनफायर जानते हो क्यों अच्छी लगती है? बताओ क्यों अच्छी लगती है? बोनफायर अच्छी क्यों लगती है?
प्रश्नकर्ता: सब साथ में रहते हैं।
आचार्य: एक तो ये बात है और? बताओ बोनफायर क्यों अच्छी लगती है?
प्रश्नकर्ता: हौंसला बढ़ाती है।
आचार्य: क्यों बढ़ाती है?
प्रश्नकर्ता १: देखकर ऐसा लगता है बस इसी में कूद जाओ (सभी श्रोतागण हंसते हुए), अपने आप से उभर के निकलें।
प्रश्नकर्ता २: सर, किसी का डर नहीं होता मतलब जो है मन में निकल ही आता है बाहर
प्रश्नकर्ता ३: एक तो वो सीन रहती है जो आसपास सारा अँधेरा हो, वहीं पर सिर्फ रोशनी जल रही होती है
आचार्य: सुन्दर बात! हाँ तो उससे क्या मन को इशारा मिलता है?
प्रश्नकर्ता १: आपको डार्कनेस में ग्लो करना है, अपने आपको।
प्रश्नकर्ता २: सो इफ यू हैव तो लाइट, यू हैव टु बर्न (अगर आपको प्रकाशित होना है, तो आपको जलना पड़ेगा)
आचार्य: सुन्दर बात! बढ़िया!
बोनफायर क्यों अच्छी लगती है? सभी को अच्छी लगती है, क्यों? और हमेशा से अच्छी लगती आयी है। पुरानी गुफ़ाओं वगैरा पर भी जो कुरेद-कुरेद के जो एन्सिएंट मैन होता था, जो चित्र बनता था उसमे अक़सर यही है, एक लकड़ी जल रहे है और उसके बगल में एक बैठा हुआ है।
प्रश्नकर्ता: कुछ में खाने से रिलेटेड है।
आचार्य: एक तो ये बात भी है। पर ये बात भी समझना कि बहुत पीछे जितना तुम जाओगे, आदमी का जो पूरा जीवन है उतना दिन में पाओगे। अभी भी जाओ गाँव वगैरा में तो वहां रात में ज्यादा काम नहीं होता। तो पहले तो खाना आपको मिलता ही दिन में था, रात के अँधेरे में आदमी कहाँ खाना खोजेगा।
बोनफायर इसलिए अच्छी लगती है क्योंकि वो एक बहुत बड़ा सिंबल है और मन उसको देखता है और कभी भी उस सिंबल को मिस नहीं करता। सिंबल वही है जो इतना अँधेरा, इतना अँधेरा, जिधर देखो उधर अँधेरा लेकिन फिर भी रोशनी है।
अँधेरे के बीच भी रोशनी हो सकती है और रोशनी और ज्यादा ख़ूबसूरत लगने लगती है अँधेरे के बीच में।
दिन में बोनफायर कैसी लगेंगी?
रोशनी और ख़ूबसूरत हो जाती है जब चारों तरफ अँधेरा हो। तो बोनफायर इस बात का प्रतीक है ‘सिंबल’ कि सिचुएसन्स कुछ भी हो तुम रौशन रह सकते हो।
सिचुएशन कैसी है? बोनफायर के चारो ओर सिचुएशन कैसी होती है?
प्रश्नकर्ता: सब लोग इस वर्ल्ड में परेशान रहते हैं लेकिन आप अच्छे बनकर उभर सकते हो, आप आगे बढ़ सकते हो एक पर्टिकुलर डायरेक्शन में।
आचार्य: और आप जब प्रकाशित हो जाते हो, रौशन, तो आपकी रोशनी क्या सिर्फ आपके लिए होती है? बोनफायर जब जलती है तो उसकी जो आंच होती है वो क्या सिर्फ उसकी लकड़ियों तक सीमित रहती है? किस तक पहुँचती है? चारो तरफ पहुँचती है, खासतौर पर उन लोगों तक जो उसके पास आते हैं। बोनफायर इसलिए बहुत बड़ा सिंबल है।
चारो तरफ माहौल अँधेरे का है फिर भी तुम रौशन रह सकते हो और अगर तुम रौशन हो तो जो कोई तुम्हारे इर्द-गिर्द है उस तक भी तुम्हारी रोशनी पहुंचेगी। और उस तक तुम्हारी रोशनी पहुंचेगी ही नहीं, अगर वो तुम्हारे काफी करीब आ गया तो तुम्हारी तरह वो भी रौशन हो जायेगा।
बोनफायर की लकड़ियों के पास अगर कोई लकड़ी आ जाये, एकदम पास आ जाये तो उसका क्या होगा? वो भी जल उठेगी। ये सब सिम्बल्स हैं और मन इन सब सिम्बल्स को पकड़ लेता है इसलिए बोनफायर बहुत अच्छी लगती है। इसलिए तुमने देखा होगा कि बोनफायर के पास बहुत सुन्दर गीत गाये जाते हैं। तुम अभी बाहर निकलकर अभी सड़क पर गए सकते हो वो सारे गाने?
प्रश्नकर्ता: नहीं सर।
आचार्य: फ़िल्में भी तुमने देखीं होंगी उसमें बोनफायर के आसपास अक़सर चार पांच दोस्त बैठे हैं और गाने गए रहे हैं। क्या वो गानें किसी व्यस्त सड़क पर गए सकते थे? गा सकते थे क्या?
प्रश्नकर्ता: सर, कोई भी गाने वहाँ पर अच्छे नहीं लगते।
आचार्य: और वो भी तब जब बहुत सारे लोग हों, समझ लो की जब इकट्ठे बैठे हो तो भी एक बोनफायर जल ही गयी हो इसलिए गा रहे हैं। और फिर कॉर्पोरेट ऑफिस हो, वहां कोई खाली भी बैठा हो तो उसको कभी वो खालीपन नहीं दिखायी देगा जो बोनफायर के आसपास होता है, वहाँ बात अलग होती है। क्योंकि वो जो लपटें होती हैं वो बिल्कुल तुम्हें कुछ बता देती हैं एंड नोबडी इज सो डम्ब दैट ही बिल मिस दैट सिंबल, वी ऑल गेट इट, वी ऑल गेट इट एंड वी ऑल फ़ील इंस्पायर्ड बाई इट (और कोई भी इतना मूढ़ नहीं है कि वह उस प्रतीक को याद करेगा, हम सभी इसे प्राप्त करते हैं, हम सभी इसे प्राप्त करते हैं और हम सभी इससे प्रेरित महसूस करते हैं)। इनफैक्ट अच्छा होगा अगर एक अपने कमरे में एक छोटी सी फोटो लगालो जिसमें सिर्फ बोनफायर हो, उस पर कुछ लिखा हुआ नहीं भी हो, उस पर कुछ भी न लिखा हो तो भी तुम समझ जाओगे उसका मतलब क्या है, जब भी हलकी, चलते-फिरते, उड़ती हुई निगाह पड़ेगी और मन बिल्कुल साफ हो जायेगा। उस पर कोई लाउड मैसेज लिखा हो, ज़रुरी नहीं है। बोनफायर की फोटो ही अपने आप में काफी होती है। इसीलिए हिन्दुस्तान में आग की पूजा होती है।
आग प्रतीक है, कई तरीकों से, जो कुछ जल सकता है उसको जला देता है। आग सिर्फ उसको छोड़ती है जो जल नहीं सकता, बाकि सबको, और आग बता देती है जो कुछ जल सकता है वो मूलतः एक है। जल जाने के बाद चीज़ों में कोई अंतर देखा है क्या? जल जाने के बाद चीज़ें क्या हो जाती हैं सब, राख़ हो जाती हैं। तो आग बता देती है की रूप-रंग धोखा है, हक़ीक़त सबकी एक है।
गाया था? माटी करम कुरेंदी यार, वाह-वाह माटी दी गुलज़ार।
राजा हो और भिखारी हो, दोनों जब आग से गुजर जाएँ तो क्या हो जाने हैं?
प्रश्नकर्ता: राख़।
आचार्य: जबतक राख़ से नहीं गुजरें हैं तबतक तो उन्हें अपने कपड़ों का धोखा है और अपने पैसे का धोखा है, अपने ज्ञान का धोखा है।
आग बता देती है कि जितनी चीज़ों पर तुम इतराते हो, वो सब धोखा हैं, उन्हें जल जाना है, ख़तम हो जाना है, इसलिए आग की पूजा की जाती है।
आग की पूजा किसी अन्धविश्वास के मरे नहीं की जाती थी कि आग में देवता बैठा है, या कुछ है, अग्नि देवता वगैरा जब कहा जाता है तो इसका मतलब ये नहीं कि उस में से निकल कर कोई देवता आ जायेगा, कि बोनफायर से एक कूदकर बाहर आया और बाहर आकर कह रहा है यार व्हेर इज द वाटर टैंक (पानी की टंकी कहाँ है) और किसी का रुमाल लेकर पसीना पोंछ रहा है, बड़ी गर्मी थी यार।
बोलो! कुछ पूछ भी सकते हो! वैसे मैं बिना पूछे ही, बोलता ही रहता हूँ।
प्रश्नकर्ता: सर, जुगुनुओं को देखना भी बहुत अच्छा लगता है।
आचार्य: जुगुनू भी वैसे ही हैं, इतना सा है, पिद्दी, दो उँगलियों से उसको मसल सकते हो, पर हिमाक़त देखो उसकी, हिमाक़त समझते हो, ‘जुर्रत’। कर क्या रहा है? की जैसे किसी ने बम में लालटेन लगा ली हो और घूम रहा हो। दो साल का बच्चा हो, पिद्दी सा, जरा सा, और निक्कर में टॉर्च लगा के घूम रहा हो पीछे, वो भी पीछे। जैसे अँधेरे को बिल्कुल मुँह चिढ़ा रहा हो। तो जुगुनू ही होता है, इसलिए जुगुनू पसंद आता है।
तुम्हारी जो फितरत है न वो है रौशन रहना, ‘रौशन’ समझते हो? बेसिक नेचर, स्वभाव। स्वभाव, वो है रौशन रहना। अँधेरे से दब जाना या डर जाना नहीं।
अँधेरा क्या है? अँधेरा, अँधेरा बोल रहा हूँ, अँधेरा माने क्या? बत्ती का चला जाना, इसको अँधेरा बोलते हैं? अँधेरा माने क्या? मैं अँधेरा किसको बोल रहा हूँ?
प्रश्नकर्ता: डर।
आचार्य: डर, और? न समझ पाना, अँधेरे का मतलब है समझ नहीं पाना, अँधेरे में तो यही होता है न। अभी सारी बत्तियां बंद हो जाएँ तो क्या होगा? तुम्हें समझ ही नहीं आएगा कि ये क्या है, ये क्या है, ये क्या है, ये क्या है, कुछ समझ नहीं आएगा।
तो अँधेरा माने ‘इग्नोरेंस’। अँधेरा माने न समझ पाना। इसलिए इंसान हमेशा से रोशनी का उपासक रहा है, उपासक माने? पूजारी, पूजा करने वाला। इंसान को इसलिए रोशनी हमेशा से भाती रही है।
तुम्हारी फितरत है रौशन रहना, इसीलिए रोशनी का तुम्हें अगर बड़ा प्रतीक मिलेगा, जैसे सूरज, तो तुम सूरज की उपसना करोगे और तुम क्या बोल दोगे, सूर्यदेव, सूर्यदेव। अब सूर्यदेव वहां कोई देवता थोड़ी बैठा हुआ है, वहां न्यक्लियर फ्यूज़न चल रहा है, वहां कौन जाकर बैठेगा? वो ऐसी जगह है जहाँ पर हाइड्रोजन एटम भी स्प्लिट हो जा रहा है। और अगर छोटा प्रतीक मिले तो भी तुमको पसंद आएगा। रोशनी का छोटे से छोटा प्रतीक क्या हुआ? ‘जुगुनू’ , बड़े से बड़ा क्या हुआ? ‘सूरज’, इंसान को दोनों ही पसंद आते हैं। क्योंकि इंसान का स्वभाव है रोशनी।
जब उसे ये दिखाना होता है कि रोशनी ही जीतती है “सत्यमेव जयते” उसको तुम ये भी कह सकते हो “प्रकाशमेव जयते”, तो सूरज की ओर देखता है और जब उसको ये दिखाना होता है कि लड़ाई कितनी भी सघन क्यों न हो, मुश्किल क्यों न हो, रोशनी फिर भी हारती नहीं, लड़ती ही रहती है, भले ही इस वक्त जरा दबी हुई हो, भले ही इस वक्त ज़रा डोमिनेटेड हो, लेकिन लड़ती फिर भी रहती है, तो वो फिर किसकी ओर देखता है? फिर ‘जुगुनू’ फिर ‘दीया’।
दीया को देखा है? दीया को लेकर कितनी कवितायेँ लिखी जाती हैं। दीया हो या जुगुनू हो ये सब एक ही तरह के प्रतीक हैं। कि रोशनी जब जीती हुई है तब तो जीती ही हुई है सूरज के रूप में, दिन के रूप में, सुबह के रूप में और रोशनी लगे की जब हार रही है तब भी रोशनी ही क़ाबिले तारीफ है।
रात कितनी बड़ी है? इतनी बड़ी और जुगुनू कितना बड़ा है? छोटा सा, लेकिन तारीफ़ किसकी हो रही है? जुगुनू की। अरे ये तो ग़लत काम हो गया, ये तो बड़ा अन्याय है(व्यंगात्मक), रात इतनी बड़ी और जुगुनू पिद्दी और तारीफ़ किसकी चल रही है? जुगुनू की।
अगर ये कोई मैच हो अँधेरे और रोशनी के बीच में तो इसमें वाकई जीतता हुआ कौंन दिख रहा है? स्कोर कार्ड को देखो तो लगेगा अँधेरा ही जीत रहा है न। अँधेरा कितने मील में फैला हुआ है? कोई है हिसाब-किताब? और निकलना है तो कर भी सकते हो, पृथ्वी का रेडियस ले लो, किसी भी समय आधी पृथ्वी पर अँधेरा होता है, तो अगर सरफेस एरिया भी निकलना हो, कितने सरफेस एरिया पर अँधेरा फैला हुआ है तो निकाल सकते हो। रेडियस पता है तो स्फ़ेर का सरफेस एरिया तो निकालना आता है न। कितना होता है? “2πr2”, हाँ तो बस "2πr2” हो गया, आधे सरफेस एरिया पर अँधेरा होता है, तो बस। तो कहाँ तो “2πr2” और जुगुनू के शरीर का भी सरफेस एरिया निकाल सकते हो, मिली मीटर स्क्वायर में निलेगा और तारीफ़ किसकी चल रही है? जुगुनू की, अँधेरा तो जलकर मर जाता है, जलकर मर जाता है अँधेरा।
वो कहता है भाई साहब स्कोर चल रहा है १००००/१, उससे भी ज़्यादा, बिलियन्स इज़ टु वन और वन वाले की तारीफ़ चल रही है। तारीफ़ चल रही है वन वाले की, रोशनी वाले के साथ रहने का यही फायदा है, समझ में आया? मैच फिक्सिंग रहती है। उसके वन बिलियन होंगे तुम्हारा सिर्फ वन होगा लेकिन क़ाबिल-ए-तारीफ़ तुम रहोगे, ऐसे खेलो या ऐसे खेलना चाहते हो की वन बिलियन पर खड़े हो लेकिन फिर भी कोई तुम्हारी प्रशंसा नहीं कर रहा है। अँधेरे की तरफ रहोगे तो ये तुम्हारी सज़ा है। अँधेरे की तरफ रहोगे तो ये तुम्हारी सज़ा है, क्या तुम्हारी सज़ा है? की तुम्हारे पास बिलियन भी होगा तो भी कोई तुम्हें पूछेगा नहीं।
और रोशनी की तरफ रहोगे तो ये तुम्हारा रिवॉर्ड होगा की तुम्हारे पास वन भी होगा तो, दुनिया तुम्हारे गीत गायेगी, अपना होगा। वन अपना लेकर फुदकोगे, मज़े करोगे। इसको ऐसे समझ लो कि किसी ने अनाप-शनाप तरीके से करके वन बिलियन भी कमा रखा है तो उसका वो कमाना व्यर्थ हुआ क्योंकि वो अँधेरा है और कोई अपनी मौज में जी रहा है उसके पास कुछ नहीं है रुपया-पैसा तो भी वास्तव में तारीफ़ का हक़दार वो ही है। अब तुम देख लो कि तुम्हें क्या करना है। बिलियन वाला बनना है या मौज वाला, देख लो भाई। नहीं तो अँधेरे की तरह पड़े हुए हो, पसरे, इधर से उधर, वो अपना एरिया बढ़ाने में लगा हुआ है और जुगुनू उसको मुँह चिढ़ा रहा है, है भाई और बढ़ा, और बढ़ा। वैसे ही कोई अपना बैंक बैलेंस बढ़ाने में लगा हुआ है, और कोई है जो मौज कर रहा होगा, तू बढ़ा, तू बढ़ा हम अभी मौज कर रहे हैं। तू बढ़ा रहा है की तू कल मौज़ करेगा हम अभी कर रहे है।
प्रश्नकर्ता १: कल कभी नहीं आएगा।
प्रश्नकर्ता २: कल भी तो जोड़ने में लगा रहता है।
आचार्य: और एक दिन बहुत तेजी से जोड़ते-जोड़ते-जोड़ते-जोड़ते अचानक? गए (सीने पर हाथ रखकर ऊपर की ओर इशारा करते हुए), यमराज़ इज द अल्टीमेट हैकर (यमराज़ परम घुसपैठिया हैं)। उसकी हैकिंग से कोई नहीं बच पाता।
तुम बहुत ज़बरदस्त सिस्टम बना लो कि मैंने सबकुछ तैयार कर लिया है अब कोई भी आ करके पेनिट्रेट नहीं कर सकता इस सिस्टम को, एक तो चीज है जो पेनिट्रेट कर ही जाएगी, ‘यमराज’। कितना अज़ीब लगता है तुम्हारा इतना सुन्दर सिस्टम हो, एक भैंसे पर बैठा हुआ आदमी उसको पेनिट्रेट कर रहा है, डिसगस्टिंग, डिसगस्टिंग है कि नहीं। एक बन्दा भैंस पर बैठकर आ रहा है, ये भी नहीं की भाई तू कम से कम अपने लिए अपने लायक कुछ ले ले, मर्क ले ले, बुलेट ही ले ले तू। कतई पिछड़ा हुआ बन्दा, आज के ज़माने में मुकुट लगता है, गदा लेकरके आता है, एक कट्टा भी नहीं है उसके पास और बड़े-बड़े सींग हैं, एक क्लच की तरह इस्तेमाल करता है एक क्लच एक्सीलरेटर की तरह, ब्रेक लगाना होता है तो लात चलता है, ये बन्दा तुम्हारे सारे सिस्टम हैक कर ले जायेगा, कितने शर्म की बात है, कोई स्टैण्डर्ड नहीं रहा हमारा।
ऐसी सी बात है कि तुम बिल्कुल मॉक-३ वाले प्लेन पर भाग रहे हो, सोंचों न इतना अजीब है तुमने प्राइवेट जेट ख़रीदा है और जेट भी एकदम जबरदस्त, मॉक-३ समझते हो कितना हुआ, कितना हुआ मॉक-३? मॉक-१ होता है स्पीड ऑफ़ साउंड (आवाज़ की गति), स्पीड ऑफ़ साउंड कितनी होती है? ३३० मीटर/सेकेंड, ‘स्पीड ऑफ़ साउंड’ ये वैरी क्यों करती है? स्पीड ऑफ़ साउंड? कभी 320, कभी 340 ऐसा क्यों होता रहता है? ‘स्पीड ऑफ लाइट’ तो कभी वैरी करती ही नहीं, वो तो हमे पता है कितनी होती है (स्पीड ऑफ़ लाइट), ये ‘स्पीड ऑफ़ साउंड’ वैरी क्यों करती है? क्यों दोनों में क्या अंतर है, लाइट वेव और साउंड वेव में क्या अंतर है?
प्रश्नकर्ता: मीडियम डिपेन्डेन्ट है साउंड वेव।
आचार्य: तो जो कोई भी मीडियम पर डिपेन्ड करेगा उस बेचारे की स्पीड वैरी करती रहेगी, साउंड वेव ये बताती है हमको और स्पीड भी उसकी कम रहेगी। लाइट की स्पीड ज़्यादा होती है या साउंड की?
प्रश्नकर्ता: लाइट की।
आचार्य: लाइट की स्पीड इसीलिए ज़्यादा होती है क्योंकि वो मीडियम पर डिपेन्ड ही नहीं करती। लाइट इसीलिए वैक्यूम को भी पार कर जाती है, साउंड वैक्यूम को पार कर पायेगा?
प्रश्नकर्ता: नहीं।
आचार्य: सूरज पर बड़े से बड़ा एक्सप्लोज़न हो तुम्हें आवाज़ सुनाई देगी?
प्रश्नकर्ता: नहीं।
आचार्य: पर सूरज पर जब सोलर फ्लेयर्स होते हैं तब हमें दिखाई दे जाते हैं, क्यों? क्योंकि जिस किसी को मीडियम नहीं चाहिए वो बहुत दूर तक पहुंचेगा और बहुत तेज़ी से पहुंचेगा, जिसे मीडियम चाहिए वो बेचारा मीडियम का ग़ुलाम बन जायेगा, हो गई न गड़बड़, फ़िजिक्स ऐसे पढ़ा करो।
तो आप मॉक-३ पर जा रहे हो, 1000 मीटर/सेकेंड, प्राइवेट जेट है और उसमें भी भैंस ने पकड़ लिया। प्राइवेट जेट! 1 किलोमीटर/सेकेंड और उसको भैंसे ने दौड़ाकर पकड़ लिया, फ़जीहत, कहीं के नहीं बचे, अब तो मर जाना ही बेहतर है, यमराज अब न भी ले जाएँ तो खुद ही मर जाओ, अब जीना नहीं चाहते, सोंचो पहले! तुम लाइट की स्पीड से चल लो, चल लो, मान लो, किसी तरीके से लाइट ही बन जाओ तब तो हो जायेगा? तुम लाइट ही बन गए तब तो चल लोगे न? मासलेस हो गए और लाइट की तरह भागने लगे और तब भी तुम्हें भैंसा पकड़ रहा है और बन्दा जो उसपर बैठा हुआ है वो भी भैंसे जैसा ही दिख रहा है। यमराज़ देखा है न कितने सुन्दर हैं? अब क्या होगा?
तो अँधेरे का ऐसा है कि वो हारता ही हारता है।
इसलिए हमें ये सब पसंद आये, इसलिए तुम्हे बोनफायर अच्छी लगी, इसलिए तुम्हें जुगुनू अच्छे लगे।
जो अच्छा लगे थोड़ा उनपर गौर भी कर लिया करो, क्यों अच्छा लग रहा है? वहाँ पर कोई मैसेज होता है।
फूल अच्छा लगता है न, सभी को अच्छा लगता है, फूल में एक मैसेज है, इसलिए अच्छा लगता है। देख लो, कुछ खुलापन, सिम्पलिसिटी, निडरता।
प्रश्नकर्ता: सर, बाइक जब चला रहे थे तब पहाड़ों पर जो लाईट्स थी घरों में वो भी सर इतनी मतलब दूर से इतनी ऑसम लग रही थी कि मतलब एक्ससीलेंट थीं।
आचार्य: इतने बड़े-बड़े पहाड़ थे तुम्हें इतनी बित्ति सी लाइट दिख रही थी बस!
प्रश्नकर्ता 1: हाँ, बस वही सब।
प्रश्नकर्ता 2: सर, ऐसा लग रहा था कि आर्टिफीसियल एक स्टार्स और स्काई का सेटअप पूरा और नीचे पहाड़ में घाटी, खाई में नज़र आ रहा था।
प्रश्नकर्ता 3: एक्चुअली जैसे दिल्ली जैसी सिटीज में देखो, अगर आप बहुत अच्छी, बहुत ऊँची हाइट्स से देखोगे तो आपको सेम लगेगा, पूरी सिटी आपका येलो कलर में ढकी हुई है और कुछ नहीं, सिर्फ लाइट्स बस।
आचार्य: तो समझ लो पहाड़ों पर जो, इतना बड़ा पहाड़ है उसपर जो अँधेरा छाया हुआ है न, उसको समझ लो समाज है और जो वो बीच-बीच में दो-चार लाइटें हैं उनको जान लो कि ये लोग हैं, नज़र इन्हीं पर जाकर टिकती हैं। इंसान पुरे अँधेरे को भुला देता है, अँधेरे पर तो नज़र रूकती ही नहीं, नज़र उन छोटी-छोटी लाइट्स पर टिकती हैं, वो लाइट्स ये ‘लोग’ हैं जिनकी फोटो यहाँ लगी हुई हैं, ये सब, ये वो ‘लोग’ हैं (कबीर, नानक, कृष्ण आदि के फोटोज़ की तरफ इशारा करते हुए)।
अँधेरा कितना ही बड़ा हो नज़र तो रोशनी पर जाकर टिकेगी। रोशनी कितनी भी छोटी हो सम्मान उसको ही मिलेगा, नज़र उसपर ही जाएगी। करोड़ों लोग हुए तुम्हे याद कौन है? तुम्हें याद ये लोग हैं (कबीर, नानक, कृष्ण आदि के फोटोज़ की तरफ इशारा करते हुए)।
प्रश्नकर्ता: अच्छा सर जो लाइट होती है फिर भी हमें पता नहीं लगती।
आचार्य: नहीं, ऐसा नहीं होता है। असल में सब जगह लाइट हो ही नहीं सकती, सब जगह लाइट हो गयी न, तुम्हें लाइट नहीं पता चलेगी। हमें जो कुछ भी पता लगता है वो पता ही उसके अपोज़िट की वजह से लगता है, जैसे कि अब ये यहां पर इसके पीछे अगर रंग काला ही होता तो क्या ये पता लगता?
प्रश्नकर्ता: नहीं।
आचार्य: जो कुछ भी पता लगता है, इसलिए पता लगता है क्योंकि उसके पीछे उसका अपोजिट मौजूद है।
प्रश्नकर्ता: सर, जब डेकोरशन करते हैं घर पर, लाइट्स वगैरा नहीं लगाते हैं! तो उसमें सारी ग्लो कर रही होती हैं और एक भी अगर नहीं होती हैं तो हमारा घर मोस्टली उसी तरह लगता है।
आचार्य: वो फिर दूसरी चीज होती है, उसे कहते हैं ‘मिसिंग टाइल्स सिंड्रोम’’। वो ऐसा होता है कि इसपर सब पर टाइल्स लगा दी जाये, टाइल्स जानते हो न? जैसे वॉशरूम वगैरा में लगे देखते हो, और पूरे में टाइल्स लगी हैं बीच में एक टाइल्स थोड़ी सी टूटी हुई है तो तुम्हारी नजर सीधे कहाँ जाएगी?
प्रश्नकर्ता: उसी पर जाएगी।
आचार्य: तो वो, वो तुम्हारा ध्यान अँधेरे पर नहीं जा रहा, वो तुम्हारा ध्यान इम्परफेक्शन पर जा रहा है। तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा है कि ये पूरी दीपमालाएँ, इसमें एक बुझा क्यों हुआ है? तो इसलिए उसपर नज़र जा रही है ताकि उसे तुम ठीक कर सको, जैसे इस पूरे में टाइल्स लगीं हैं और एक टाइल टूटी हो तो नज़र उस पर जाएगी की यार इसे ठीक करो, इसे ठीक करो।
किस-किस के पास बाइक है? नयी बाइक हो, एक जगह पर डेन्ट लग जाये, नज़र बार-बार कहाँ जाकर रुकेगी?
प्रश्नकर्ता: उसी पर जाएगी।
आचार्य: बाकी और कहीं देखेगी ही नहीं, इसलिए कि परफेक्शन के बीच में इम्परफेक्शन कहाँ से आ गया? तुम उसे ठीक करना चाहते हो।
प्रश्नकर्ता: वो इम्परफेक्शन भी तो सर, लाइट की वजह से ही दिख पा रहा है।
आचार्य: वो इम्परफेक्शन भी तो लाइट की वजह से दिख पा रहा है। बेचारे इम्परफेक्शन की मज़बूरी देख रहे हो? लाइट न हो तो वो दिखायी भी न पड़े।