ऐसी ज़िंदगी चाहती हो? || नीम लड्डू

Acharya Prashant

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ऐसी ज़िंदगी चाहती हो? || नीम लड्डू

बिलकुल तयशुदा कहानी है, उसमें कोई बड़े उतार-चढ़ाव नहीं हैं। उस कहानी में आता है – थोड़ी बहुत पढ़ाई, सात फेरे, मेटरनिटी वार्ड , दूध की बोतलें, दुनिया की देखा-देखी घर को फर्नीचर से भरना, कर्ज़ लेकर के मकान खरीदना, रोज़ आइने में देखना कि उम्र बढ़ रही है, और जब सच साफ़-साफ़ दिखाई देने लगे तो जाकर के टेलीविज़न में मुँह डाल देना, ताकि एक बहाना मिल जाए समय काटने का। और जब मन बिलकुल उदास हो जाए तो जा कर किसी शॉपिंग मॉल में बैठ जाना ताकि लगे कि जीवन में कुछ है।

तीज-त्योहारों पर जाकर के रिश्तेदारों के सामने झूठा चेहरा बनाकर के बधाइयाँ दे देना। दूसरों की ज़िंदगी से अपनी तुलना करना। पति को देखकर के ख्याल यही उठना कि, “फँस कहाँ गई हूँ!” लेकिन, फिर भी अपने-आप को ऐसा बँधन में पाना कि, “अब भाग भी नहीं सकती, यह दो छोटे-छोटे बच्चे बैठे हुए हैं जाऊँ तो जाऊँ कहाँ!”

कल्पना से कहानी नहीं बता रहा हूँ; लोग आते हैं मेरे पास और रोते हैं, और यह पूरी दुनिया की कहानी है। और यही तुमको अपनी कहानी बनानी हो तो देख लो।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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