प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मुझमें कोई ऐब नहीं है, मैं सुन्दर भी हूँ, कमा भी लेता हूँ, सबकुछ ठीक है लेकिन फिर भी लड़की नहीं मिल रही शादी के लिए।
आचार्य प्रशांत: मेरे पास किस उम्मीद से आये हो? इस मसले में मेरा क्या रोल (भूमिका) हो सकता है। व्यर्थ के सवाल! और फिर ये यहाँ पर, (अपने आगे रखे हुए कागज़ों को पलटते हुए) सवाल नम्बर चार, 'आचार्य जी, आप धार्मिक विषयों पर बोला करिए न! आप सेक्स पर इतना क्यों बोलते हैं?' — इसलिए। क्योंकि तुम्हारी ज़िन्दगी में सेक्स के अलावा कोई मुद्दा नहीं है।
अजीब हो! मैं तो हूँ भाई, जनरल फिज़िशियन (सामान्य चिकित्सक)। जनरल फिज़िशियन कौन होता है? जिसके पास तुम कोई भी बीमारी दिखाने के लिए जा सकते हो। ठीक है? बाल से लेकर ताल तक की। तुम मेरे पास एक ही तरह की बीमारी लेकर आते हो। सौ में से नब्बे बीमारियाँ तुम्हारी एक ही तरीके की हैं। और फिर जब मैं उनका पर्चा लिखता हूँ, तुम कहते हो, 'आचार्य जी, आपके प्रिसक्रिप्शंस (दिशा-निर्देशों) में नब्बे प्रतिशत सेक्स का ही इलाज क्यों होता है?' क्योंकि नब्बे प्रतिशत तुम्हारी बीमारी ही सेक्स है। और बेटा ये तो तुम्हें जवाब देना होगा कि तुम अगर मेरे सौ वीडियो देखते हो तो उसमें से नब्बे तुमको सेक्स वाले कैसे दिख गये? क्योंकि यह मेरे लिए भी बहुत हैरत की बात है।
भाई, हिन्दी-अंग्रेज़ी मिलाकर दस हज़ार वीडियो हैं और मैं छोटे-छोटे वालों की नहीं बात कर रहा, मैं, पूरा फुल लेंथ (बड़े) वीडियो होते हैं, उनकी बात कर रहा हूँ। दस हज़ार ऐसे वीडियो हैं, यूट्यूब पर अपलोडेड है।
वो पीछे कमलेश बैठे हुए हैं (संस्था के एक कार्यकर्ता को सम्बोधित करते हुए), इसमें से अधिक-से-अधिक कितने होंगे जिनका सेक्स से कुछ सम्बन्ध है? मैं पिछले दस साल से बोल रहा हूँ। इसमें अधिक-से-अधिक कितने होंगे जिनका सेक्स से कुछ सम्बन्ध है?
ये एक या दो प्रतिशत कह रहे हैं तो इनके हिसाब से तो सौ या दो-सौ हुए। इससे ज़्यादा भी हो सकते हैं। पिछले दो सालों में बाढ़ आयी न कि लोगों के ऐसे ही सवाल आते हैं जैसा अभी आया है।
तो मान लो दस हज़ार में से पाँच-सौ भी वीडियो हैं सेक्स पर, जो कि है नहीं पाँच-सौ, होंगे सौ, दो-सौ ही। और यहाँ जनाब का सवाल आया है कि आपके सारे वीडियो सेक्स पर हैं। इससे पता क्या चलता है? इससे एक बहुत रोचक, बहुत इंटरेस्टिंग (दिलचस्प) बात पता चलती है, बताओ क्या?
तुम कहोगे, 'नहीं, ये तो खुद ही देख रहा है ढूँढ-ढूँढकर सेक्स।' तो मना कर देगा, कहेगा, 'नहीं, मैंने ऐसा तो करा नहीं।' ये कहेगा कि 'मुझे यूट्यूब रेकमेंड ही कर रही है (सुझा रही है) सेक्स वाले वीडियो। आचार्य जी, मैं तो, मेरे सामने तो आपका जो भी रेकमेंडेशन (सुझाव) आया, वो सेक्स वाले वीडियो का आया है।' इससे क्या पता चलता है इन साहब के बारे में?
जानते हो, यूट्यूब तुम्हे कोई वीडियो कैसे रेकमेंड करता है? यूट्यूब देखता है, क्योंकि यूट्यूब और गूगल दोनो एक हैं, यूट्यूब देखता है कि तुमने गूगल पर या क्रोम पर क्या-क्या सर्च कर रखा है। पिछले हफ्ते में, महीने में, साल में, तुम खोजा क्या करते हो इंटरनेट पर। तुम जो कुछ भी खोज रहे हो, क्रोम पर, गूगल पर या यूट्यूब पर, वो सब यूट्यूब को पता है। वो उसने पीछे से सब तुम्हारा हिसाब लिख रखा है।
अब उसको पता है कि तुम हो ही सेक्स रोगी। तुम दिन रात वहाँ पर जाकर सिर्फ़ और सिर्फ़ सेक्स खोजा करते हो। तो फिर जब तुम यूट्यूब पर आकर आचार्य प्रशांत भी खोजते हो, तो यूट्यूब को बहुत अच्छे से पता है कि तुम भूखे किस चीज़ के हो। वो तत्काल तुमको आचार्य प्रशांत के सेक्स सम्बन्धी वीडियो परोस देता है। और जब परोस देता है, तो तुम बहुत गुस्से के साथ, बड़े मोरल इंडिग्नेशन (नैतिक आक्रोश) के साथ कहते हो, 'अरे अरे अरे! ये कैसा आचार्य है! इसके तो सौ में से नब्बे वीडियो सेक्स पर हैं।'
नहीं बेटा, आचार्य जी के तो एक, दो या चार प्रतिशत वीडियो ही सेक्स पर हैं। तुम सेक्स रोगी हो, इसलिए यूट्यूब तुमको सिर्फ़ वही वीडियो दिखा रहा है जो सेक्स पर हैं। समझो बात को, और जितना बोला भी है मैंने सेक्स पर या किसी भी विषय पर, कुछ भी बोलने में मेरी कोई रुचि नहीं है।
तुम मुझसे कह दो — 'आप अपनी तरफ़ से कुछ बोलिए।' मेरे लिए बहुत तकलीफ़ हो जाती है, क्योंकि अपनी तरफ़ से बोलने को मेरे पास वाकई कुछ नहीं है। अभी आइआइएम में, टैड में उन्होंने मुझसे कहा कि बोलिए, टैड टॉक, तो दिक्कत की बात हो गयी, कैसे बोलूँ! और उन्होंने विषय भी लिखकर भेज दिया था, कुछ आइडेंटिटी (पहचान) या अस्तित्व, ऐसे करके भेज दिया था। ये है, इसपर बोलिए, खिचड़ी सा था कुछ।
तो दो दिन तक मुझको कमर कसनी पड़ी कि इसपर बोलना है और बोलना कुल अट्ठारह मिनट था। लेकिन वो मेरे लिए बड़ी चुनौती का काम हो गया कि इसपर बोलना है, क्योंकि मेरे पास अपना कुछ है नहीं बोलने को। तुम कुछ पूछते हो तो मैं बोल देता हूँ। आइआइएम वालों ने अगर एक सवाल लिखकर भेज दिया होता, तो मैं दो घंटे बोल सकता था, पर उन्होंने सवाल नहीं भेजा। उन्होंने बस ऐसे ही दो शब्द भेज दिये, या कह दो एक विषय भेज दिया कि इसपर अब बोलिए, ओपन एंडेड। मेरे पास अपना क्या है बोलने को? तुम पूछते हो सेक्स के बारे में तो मैं जवाब दे देता हूँ।
तुम समाधि के बारे में पूछो, मैं समाधि के बारे में बोल दूँगा जो कि बोला है। नब्बे प्रतिशत तो आध्यात्मिक विषयों पर ही बोला है और मैं ये मानने को भी तैयार नहीं हूँ कि सेक्स आध्यात्मिक विषय नहीं है। दिमाग में जो कुछ भी चल रहा है उसको जानना और उसका समाधान कर देना, ये अध्यात्म है। तो अगर तुम्हारे दिमाग में सेक्स ही चल रहा है, तो सेक्स की तुम्हारी समस्या का समाधान कर देना ही अध्यात्म है। तो मैं तो शत-प्रतिशत आध्यात्मिक विषय पर ही बोल रहा हूँ।
समझ में आ रही है बात?
आइंदा ये बोलने से पहले कि आचार्य जी, यूट्यूब में तो आप सिर्फ़ सेक्स पर बोलते नज़र आते हैं। दो बार सोच लेना। मैंने बहुत बोला है। मैं दस साल से मज़दूर की तरह मेहनत कर रहा हूँ और मेरे दस हज़ार वीडियो हैं। ये आत्म-चिन्तन तुमको करना चाहिए कि तुम्हारे सामने सिर्फ़ सेक्स वाला वीडियो ही क्यों आ रहा है।
इसी तल पर एक और श्रेणी के सूरमा होते हैं। अब ज़रा उनकी भी बात कर लें, खुल ही गयी है तो। वो कहते हैं, 'आचार्य जी, आप के वीडियो पर न वो गन्दी-गन्दी चीज़ों के विज्ञापन आते हैं तो आपने ऐसे विज्ञापन क्यों लगा रखे हैं?' भाई, हमने अपनी ओर से चुनकर कोई विज्ञापन नहीं लगा रखा, न लगाया जा सकता है, कोई भी नहीं लगा सकता है। कुछ पूछने से पहले थोड़ी जाँच-पड़ताल कर लिया करो, थोड़ा पढ़-लिख लिया कर। गूगल ही कर लो, कुछ आर्टिकल सामने आ जाएँगे, पढ़ लो कि विज्ञापन किस तरीके से आते हैं यूट्यूब पर किसी वीडियो पर।
तुम सिर्फ़ मॉनेटाइज़ेशन ऑन कर देते हो। मॉनेटाइज़ेशन ऑन करने का मतलब ये होता है कि संस्था के कामों के लिए अब इन वीडियोस के द्वारा कुछ राशि आ जाएगी। और वो राशि भी इसलिए चाहिए होती है ― इसकी मैं विस्तार से चर्चा पहले कर चुका हूँ, क्योंकि मैंने बताया हुआ है कि अगर लाख लोग वीडियो देखते हैं तो उन लाख लोगों में से कोई एक होता है जो वीडियो देखने का ऋण चुकाता है। बाकी सब मुफ़्ती हैं, मुफ़्तखोर। वो वीडियो देखते हैं और बिलकुल नहीं सोचते कि एक घटिया पिक्चर के लिए तुम जाकर के सौ, दो-सौ, चार-सौ, आठ-सौ खर्च कर आते हो, ये जो वीडियो देखे ही जा रहे हो सालों से, इसके लिए तुमने एक रुपया भी ऋण चुकाया क्या?
बिलकुल नहीं सोचते हैं कि संस्था के कामों को कितनी ज़रूरत पड़ती होगी फंड्स (रुपयों) की। तो चैनल पर चलो मॉनेटाइज़ेशन है। मॉनेटाइज़ेशन का मतलब होता है कि विज्ञापन दिखाएगा यूट्यूब और उससे कुछ राशि हमको भेजेगा और वो राशि भी कोई बहुत बड़ी नहीं होती है। अब तुमको कौनसा विज्ञापन दिखाता है यूट्यूब, ये हमारे ऊपर नहीं निर्भर करता। ये फिर इसी बात पर निर्भर करता है कि तुम आदमी किस किस्म के हो। तुमने लॉग-इन कर रखा है न?
तुमने जैसे ही लॉग इन करा है, गूगल को अच्छे से पता है कि तुम्हारी दुनिया में किन-किन चीज़ों में रुचि है, क्योंकि तुमने वही चीज़ें सर्च करी हैं, उन्हीं तरह की वेबसाईट्स पर तुम मँडराते रहे हो।
तो तुम्हारी जन्मपत्री, कुंडली गूगल को बहुत अच्छे से पता है। और उसी हिसाब से गूगल पर तुमको विज्ञापन दिखा देता है, तुमको फँसाने के लिए। क्योंकि तुम वही चीज़ें तो खरीदोगे जिन चीज़ों की तुम वेबसाइट्स पर गये हो और जिन चीज़ों को तुम सर्च करते रहे हो, वही चीज़ें तो खरीदोगे न?
तो उन्हीं के विज्ञापन दिखा दिये जाते हैं। तुम्हे क्या विज्ञापन दिखाये जा रहे हैं, इसमें फाउंडेशन (संस्था) का कोई हाथ नहीं है। तुम्हें विज्ञापन दिखाये जा रहे है तुम पर निर्भर करता है। और जिन लोगों को, मैंने पहले भी कहा, जिन लोगों को विज्ञापन देखना पसन्द न हो, यूट्यूब का एक सस्ता से पैक आता है सौ, दो-सौ, चार-सौ रुपये का, आप वो खरीद लीजिए, प्रीमियम पैक बोलते हैं? यूट्यूब प्रीमियम बोलते हैं, उसके बाद आपको कोई विज्ञापन दिखाई नहीं देगा। लेकिन वो खैर अलग बात है। अभी जो बात है, वो समझिए कि आपको ये भी नहीं पता है कि आपके अपने कर्म आपके सामने आ रहे हैं विज्ञापन बनकर और यूट्यूब रेकमेंडेशंस बनकर।
वो जो रेकमेंडेशंस आपको दिखाई जा रही है न वो आपकी ज़िन्दगी का आईना है। यूट्यूब को भलीभाँति पता है आप कौन हो और उसी हिसाब से वह आपको रेकमेंडेशंस दिखा देता है। इससे अब एक बात और समझना, खतरनाक बात है इससे ये समझना कि मेरा काम कितना मुश्किल है।
मैंने कहा, यूट्यूब आपको बखूबी जानता है अन्दर-बाहर आप कौन हो। जितना आपके दोस्त-यार और माँ-बाप आपको नहीं जानते होंगे न उससे ज़्यादा गूगल को आपके बारे में पता है। तो गूगल आपको बिलकुल वही दिखाएगा जो आप वास्तव में हो। ज़्यादातर लोग वास्तव में जैसे हैं उनको गूगल वो सबकुछ दिखा देता, इससे समझो मेरा काम कितना मुश्किल है।
गूगल अचार्य प्रशांत को रेकमेंड ही नहीं करता। क्योंकि आपने ज़िन्दगी में कभी, न तो अद्वैत शब्द सर्च करा (खोजा) है, न अध्यात्म शब्द सर्च करा है, न मुक्ति सर्च करा है, न फ़्रीडम सर्च करा। और मैं तो जो भी बातें करता हूँ, इन्हीं के बारे में करता हूँ न?
जब तुम इन बातों मे ज़िंदगी भर कभी रुचि ही नहीं दिखाये, इंट्रेस्टेड (इच्छुक) ही नहीं रहे, तो अब तुम्हारी रेकमेंडेशंस में भी आचार्य प्रशांत का वीडियो आएगा ही नहीं। तो इसीलिए मेरी बात लोगों तक पहुँच ही नहीं पाती, क्योंकि तुम ऐसे हो ही नहीं कि यूट्यूब तुम्हें रेकमेंडेशन में मेरा वीडियो दिखाये। तो फिर हमें क्या करना पड़ता है? हमें अपनी बात को प्रमोट करना पड़ता है।
और संस्था का बहुत सारा पैसा सिर्फ़ तुम तक मेरी बात पहुँचाने में लग जाता है, क्योंकि वो बात तुम तक एक ऑरगैनिक (जैविक) तरीके से पहुँच ही नहीं सकती। जितने भी घटिया लोग होंगे, उन सबकी रेकमेंडेशंस तुमको आ जाएँगी, मेरी रेकमेंडेशन आनी मुश्किल है। तो फिर एक ही तरीका है कि तुम तक मैं पहुँच पाऊँ, वो तरीका है प्रमोशन और उसमें लगते हैं पैसे।
तो दुनिया प्रमोशन करती है, पैसे कमाने के लिए। दुनिया प्रमोशन करके पैसे कमाती है और हम प्रमोशन करते हैं पैसे लगा-लगाकर ताकि तुम तक हमारी बात पहुँच सके। और वो प्रमोशन इसलिए करना पड़ता है क्योंकि तुम ऐसे नहीं हो कि तुम तक कोई मेरा वीडियो स्वतः ही पहुँचा दे। न तो तुम ऐसे ग्रुप्स में हो जहाँ पर कोई मेरा वीडियो शेयर कर देगा।
लोग आते हैं, कहते हैं कि हमने आपका वीडियो शेयर करा फ़लाने व्हाट्सएप ग्रुप में और हमें ग्रुप से ही निकाल दिया गया। तो तुम तक कैसे पहुँचेगा मेरा वीडियो? न तुम्हारे ऐसे दोस्त यार हैं कि वो तुम्हे मेरा कोई वीडियो फॉरवर्ड कर दें, तो तुम तक कैसे पहुँचेगा मेरा वीडियो ? न तुमने यूट्यूब पर इस तरह का अपना इतिहास और चरित्र रखा है कि यूट्यूब तुम तक मेरा वीडियो ला दे, तो तुम तक कैसे पहुँचेगा मेरा वीडियो?
समझ में आ रही है बात?