आचार्य प्रशांत: सेल्फ-अवेयरनेस क्या है? एक स्टूडेंट है, वह बिल्कुल नहीं जानता सेल्फ-अवेयरनेस (आत्म-जागरूकता) क्या है।
श्रोता: यह जानना कि मैं क्या कर रहा हूँ, डायरेक्ट ऑब्जर्वेशन (प्रत्यक्ष अवलोकन)।
आचार्य: बस वही है। ठीक है? इसके अलावा और कुछ है नहीं — डायरेक्ट ऑब्जर्वेशन।
डायरेक्ट ऑब्जर्वेशन किस चीज़ का?
श्रोता: स्वयं का, अपने विचारों और अपने कर्मों का।
आचार्य: ठीक, अपने विचारों और कर्मों का, सिर्फ़ यही है सेल्फ-अवेयरनेस। सेल्फ-अवेयरनेस कोई बड़ी खुफ़िया बात नहीं है। वो कोई जंतर-मंतर-तंतर नहीं है। जो कर रहे हो उसको देखना और जो सोच रहे हो उसको देखना; और करने और सोचने के अलावा हम कुछ हैं नहीं। करने और सोचने के अलावा हम कुछ भी नहीं हैं। ठीक है न? हम माने मन। कुछ भी नहीं हैं हम।
प्रश्नकर्ता: अगर हम इससे फ्री (मुक्त) हो जाएँ तो?
आचार्य: किससे फ्री ?
प्र: करने और सोचने से।
आचार्य: कभी नहीं हो सकते। जब तक ज़िन्दा हैं, करेंगे भी और सोचेंगे भी। जिस दिन तक साँस है, एक क्षण नहीं है जब आप कुछ कर नहीं रहे होंगे और एक क्षण नहीं है जब विचार उठ नहीं रहे होंगे। तो न करने से मुक्ति है, न सोचने से मुक्ति है। हाँ, करने और सोचने में, विचारों से तादात्म्य से मुक्ति है और करने में कर्ताभाव से मुक्ति है। ये हो सकता है।
जीवन का नाम ही है कॉन्स्टेंट मूवमेंट (लगातार गति)। कभी भी मत सोचिएगा कि करने से मुक्ति मिल सकती है। और जो करने से मुक्ति पा ले, वो फिर एस्केपिस्ट (पलायनवादी) है। लगातार करना है, करते ही जाना है। बात समझ में आ रही है?
हाँ, आन्तरिक निष्क्रियता रहेगी। एक गहरी आन्तरिक निष्क्रियता ज़रूरी है, लेकिन कर्म तो होंगे। गहरी निष्क्रियता होगी; कहाँ पर होगी? हाथ-पाँव में नहीं। जिसके हाथ-पाँव निष्क्रिय हो गये, वह सड़ जाता है; पैरालिसिस (लकवा) हो जाएगा, मोटा हो जाएगा, मर जाएगा, कुछ-न-कुछ उसके साथ हो जाएगा। मन भी उसका अस्वस्थ हो जाएगा। जीवन गहरी सक्रियता का नाम है, आन्तरिक निष्क्रियता के साथ।
जिसको आइडियल एसेक्शन भी बोलते हैं, जिसको कृष्ण निष्काम कर्म भी बोलते हैं, राइट एक्शन।
प्र: एक आपने बताया था कि डीप एक्शन ईवन् इन इनैक्शन (निष्क्रियता में गहरी सक्रियता)।
आचार्य: हाँ, ये कृष्ण का है। अब ये एक्शन इन इनैक्शन कोई कन्फ्यूजिंग चीज़ नहीं है, ये दोनों अलग-अलग तल हैं। इनैक्शन वहाँ पर है जहाँ पर वह जेन मॉन्क बैठा हुआ था, 'उसको हिलने नहीं दूँगा' और एक्शन सब बाहर-बाहर होता है। बाहर एक्शन रहेगा, भीतर कोई एक्शन नहीं रहेगा।
प्र: क्या ये रेस्पॉन्स (जवाब) है?
आचार्य: ये रेस्पॉन्स है। और एक अच्छा रेस्पॉन्स सिर्फ़ एक शून्यता से ही उठ सकता है। भीतर भी अगर सबकुछ हिल रहा है तो आपका रेस्पॉन्स गड़बड़ ही रहेगा।
प्र: भीतर जब सबकुछ हिल रहा है तो रेस्पॉन्स का तो प्रश्न ही नहीं है, फिर तो रिएक्शन -ही- रिएक्शन (प्रतिक्रिया) है।
आचार्य: रिएक्शन ही है।
प्र२: पास्ट से मुक्त कैसे रहें और थॉटलेस होने का क्या अर्थ है?
आचार्य: नहीं, थॉटलेस हो ही नहीं सकते हैं आप। जीवन थॉटलेसनेस (विचारहीनता) का नाम थोड़े ही है भाई! थॉट रहे, अपनी सही जगह पर रहे; सम्यक थॉट , राइट एक्शन , राइट थिंकिंग।
प्र: कॉन्शियस थिंकिंग।
आचार्य: हाँ, थॉट की बिलकुल जगह है ज़िन्दगी में। हम किसको बेवकूफ़ बना रहे हैं? बिना थिंकिंग के आप क्या कर सकते हो? थॉट की जगह जीवन में बिलकुल है, पर वो थॉट गड़बड़ है जो थॉट ही थॉट है।
जीवन चैलेंजेस (चुनौतियों) का नाम है, उन चैलेंजेस के सामने आने पर आपको पास्ट से भी सामग्री उठानी पड़ती है। पास्ट से भी कहना उचित नहीं है। किसी भी चैलेंज का सामना आप नहीं कर सकते अगर आपका पास्ट आपको उपलब्ध नहीं है। द पास्ट इज़ वैरी वैल्युएबल — उसको गाली-वाली मत देने लग जाइएगा — बट बीइंग ए स्लेव टू द पास्ट इज़ हाइली डेट्रीमेंटल (अतीत बहुत मूल्यवान है लेकिन अतीत का गुलाम हो जाना हानिकारक है)।
पास्ट न होता तो तुम इतने बड़े कैसे हो जाते, ये बता दो। बिना अतीत के उन सारी प्रक्रिया से गुज़रे दो किलो से अस्सी किलो के कैसे हो जाते? कैसे हो जाते? ऐसे ही पैदा हुए थे? ये भाषा कहाँ से आयी? ये अख़बार, ये पेपर कहाँ से आया? ये प्रिंटिंग कहाँ से हुई? ये हमने आविष्कृत किया है?
ये तो जिन्होंने बोला है वो भी हमारे अतीत से ही आ रहे हैं। ये अभी-अभी हमारी खोज तो है नहीं!
और दिक्क़त रही आएगी। अब देखो, यही बात हमारा — यही पास्ट का कंट्रीब्यूशन (योगदान) भी है और यही पास्ट की स्लेवरी (गुलामी) भी है। पास्ट का कंट्रीब्यूशन यह है कि उन्होंने हमें कृष्णमूर्ति दिये और पास्ट की स्लेवरी यह है कि उन्होंने हमें कृष्णमूर्ति दिये। बात समझ में आ रही है?
यही पास्ट का रोल (भूमिका) है कि वो आपको कृष्णमूर्ति दे और यही पास्ट का बंधन है कि वो आपको कृष्णमूर्ति दे देता है। क्या ये बात स्पष्ट नहीं हो रही है? पास्ट न हो तो ये कहाँ से आएँगे? और पास्ट न हो और ये आयें न, तो हमारा क्या होगा? और इन्हीं से तो मुक्त भी होना है।
समझो बात को। देखने के लिए हम बात करते हैं ऑब्जर्व थॉट एंड एक्शन (विचार और कर्म का अवलोकन)। पास्ट न हो तो कोई थॉट नहीं हो सकता, पास्ट न हो तो कोई एक्शन नहीं होगा; पर प्रेजेंट न हो तो ऑब्जर्वेशन नहीं होगा। ऑब्जर्व थॉट एंड एक्शन। पास्ट न हो तो थॉट नहीं होगा पर प्रेजेंट नहीं हो तो ऑब्जर्वेशन नहीं होगा।
प्र: ऑब्जर्वेशन का मतलब क्या होता है? देखना? समझना? अब समझना तो ये कंपेरिजन (तुलना) वाली स्टेट (स्थिति) हो गई न कि पिछले वाली से अच्छा ये है? या ऐसा नहीं है?
आचार्य: अभी ये बोल रहे हूँ तो कंपेयर कर रहे हो?
प्र: नहीं।
आचार्य: समझ रहे हो न लेकिन? यही है समझना, यही ऑब्जर्वेशन है।
तो पास्ट ने हमें कृष्णमूर्ति दिया और प्रेजेंट ने कृष्णमूर्ति को?
प्र: ऑब्जर्व किया, देखा, समझ लिया।
आचार्य: कब समझे कृष्णमूर्ति को?
प्र: अभी।
आचार्य: बस। इस अभी के बिना कैसे कृष्णमूर्ति? अभी नहीं तो कहाँ हैं कृष्णमूर्ति? और जो कृष्णमूर्ति अभी में नहीं हैं वो तो बड़े मुर्दा किस्म के हैं। फिर वो मूर्ति भर ही हैं। नहीं समझ में आ रही है बात?
प्र: दो चीज़ें एक जैसी लग रही हैं।
आचार्य: भाषा कहाँ से आ रही है?
प्र: पास्ट से।
आचार्य: भाषा को समझ कब रहे हो?
प्र: अभी।
आचार्य: शब्द भी ये पास्ट से ही आ रहे हैं क्या?
प्र: नहीं ये तो अभी-अभी हैं बिलकुल।
आचार्य: पर शब्द एक-एक डिक्शनरी में मिल जाएगा, कुछ भी नया नहीं है उसमें। आज यहाँ जितनी चर्चा हुई है, एक-एक शब्द डिक्शनरी में एवलेबल है, माने एक-एक शब्द पास्ट से आ रहा है। क्या इसका अर्थ ये है कि जो कुछ भी कहा जा रहा है, ये तुम्हें पहले से ही पता था?
प्र: नहीं।
आचार्य: क्या इसका ये अर्थ है कि ये समझ भी डिक्शनरी से उठायी जा सकती है?
प्र: फिर हम स्लेव किस चीज़ के हैं?
आचार्य: तुम स्लेव इसी पास्ट के हो। तुम स्लेव इस विचार के हो कि पास्ट तुम्हें इंफॉर्मेशन (सूचना) से अधिक भी कुछ दे सकता है। वर्तमान के ऑपरेशन (कार्य) में पास्ट के दिए हुए टूल्स (यंत्र) मददगार होते हैं, इतना तक ठीक है। पर वो टूल जब टूल नहीं रह जाता, जब वो डोमिनेट (हावी होना) करने लगता है इस हद तक कि वर्तमान खो ही जाए, तब स्लेवरी (गुलामी) कहलाती है।
प्र: मतलब एक अर्थ में ज़रूरी भी है और जब सिर पर चढ़ जाए तो ज़रूरी नहीं है।
आचार्य: हाँ, बस इतना ही। इसी लाइन को पकड़ लो अच्छे से। बिलकुल शुद्ध है यह लाइन , इसी को पकड़ लो, कि सिर पर नहीं चढ़ने दूँगा। बस यही है।
प्र: हम ऑब्जर्वेशन, थॉट एंड एक्शन की बात कर रहे थे। तो ऑब्जर्वेशन प्रेजेंट और पास्ट एक्शन ...
आचार्य: एक्शन दोनों जगह से आ सकता है। एक एक्शन होता है जिसको आइडियल एसेक्शन बोलते हैं, वो आइडियल एसेक्शन कंटीन्यूअस होता है। आपने कुछ बोला, मैंने कुछ बोल दिया; ये एक्शन ही चल रहा है। अब इसमें कहीं सोचा-विचारा तो गया नहीं। दूसरा एक्शन वो होता है जैसे मशीन के एक्शन , उसको पहले ही बोल दिया गया है कि इन सच ए सिचुएशन, गिवेन एक्स इनपुट, गिव वाई आउटपुट (एक निश्चित स्थिति में कोई निश्चित प्रश्न आये तो उसको एक निश्चित उत्तर दो)। तो वो दूसरा एक्शन है। इस अर्थ में थॉट और एक्शन अलग-अलग हैं। थॉट नेसेसरिली (आवश्यक रूप से) पास्ट से आएगा। एक्शन फ्रेश (कर्म नया) भी हो सकता है।
प्र: तो क्या हम यह कह सकते हैं कि थॉट तो पास्ट से आ रहा है और यदि हम मैकेनिकल (यांत्रिक) हैं तो हमारा एक्शन भी पास्ट से आएगा और यदि हम स्पॉन्टेनियस (स्वतः स्फूर्त) हैं तो एक्शन प्रेजेंट से आएगा?
आचार्य: बहुत बढ़िया।
प्र: अगर एक्शन मैकेनिकल है तो इसका मतलब यह नहीं है कि इसमें नेगेटिव-पॉजिटिव भी है। क्योंकि पॉजिंग फॉर ए सेकंड, थिंकिंग एंड देन रिएक्टिंग। दीज़ आर कमिंग फ्रॉम द पास्ट।
आचार्य: यू सी, ए मैकेनिकल एक्शन विल ऑलवेज कॉज़ डिसऑर्डर, बीकॉज़ इट विल नॉट बी प्रोपर। द मोमेंट इट इज़ इंप्रोपर, कॉजिंग डिसऑर्डर, इट विल क्रिएट स्ट्राइफ़, वॉयलेंस, ऑल काइंडस ऑफ पुल्स एंड पुशेस। (आप देखिए, जड़ता से भरा कर्म हमेशा अव्यवस्था का कारण बनेगा, क्योंकि यह ग़लत ही होगा। यह हर तरह के हिंसा का कारण बनेगा।)
आप सवाल पूछ रहे हो, मैं एक मैकेनिकल आंसर दे रहा हूँ, दिस विल क्रिएट एन ऑल राउंड डिस्टर्बेंस, विल बी बैड फॉर एवरीबॉडी। सो दोज़ हु आर मैकेनिकल आर नॉट ऑनली देअर एनिमीज, दे कॉज़ सफ़रिंग फ़ॉर एवरीबॉडी। सो बीइंग मेकेनिकल इज़ नॉट जस्ट अबाउट नॉट बीइंग लाइवली, इट इज़ एक्चुअली अ क्राइम। बीइंग डल इज़ नॉट जस्ट योर प्राइवेट अफेयर (मैं एक यांत्रिक उत्तर दे रहा हूँ तो यह कई लोगों के विचलन का कारण बनेगा, सभी के लिए बुरा होगा। तो यदि कोई जड़ है तो वह केवल स्वयं का दुश्मन नहीं है, वह हर व्यक्ति के लिए दुख का कारण बनेगा। तो जड़ होना केवल इतना ही नहीं है कि आप चैतन्य नहीं हैं बल्कि यह एक अपराध है। यह आपका व्यक्तिगत मुद्दा नहीं है) — कि पता है बड़ा बोरिंग आदमी है, बड़ा डल बन्दा है — योर डलनेस इज द कर्स ऑफ द वर्ल्ड। आप डल हो, आप बोरिंग हो, ये पूरी दुनिया के लिए अभिशाप है।
प्र३: सर, हम काशी गए थे। वहाँ पर एक स्ट्रीम था, कंटूर टाइप था काफ़ी ऊँचा। उस पर चढ़ गए हम। वहाँ पर जब देखा तो काफ़ी डर लगा, ये हुआ कि क्या गलती करके आये हैं। वो क्या था कि वहाँ गए, देखा और एकदम चढ़ गएँ?
आचार्य: वो कुछ था नहीं; वो सिर्फ़ एब्सेंस (अनुपस्थिति) था किसी चीज़ का। ये पूछो कि बाद में क्या था। उस समय जो था, जब चढ़ ही गए, वो कुछ भी नहीं था। क्या उस समय कुछ अनुभव हो रहा था?
प्र३: नहीं, वो तो बस एक स्पॉन्टेनियस एक्शन था। क्या था उस समय बिलकुल ये दिमाग में नहीं आया।
आचार्य: कुछ भी नहीं था — नथिंगनेस। बाद में था; क्या था?
प्र३: बाद में डर लग रहा था।
आचार्य: फीयर , थॉट। तुमको लग रहा होगा कि स्पॉन्टेनियस है, बगल वाले को लग रहा होगा 'अरे बाप! कितना असंभव काम करके दिखा रहा है।' और तुम्हारे लिए वो एक मतलब…
प्र३: बाद में अपनी मूर्खता भी तो दिख रही थी कि ज़रा-सा पैर स्लिप होता (फिसलता) और गए हम लोग नीचे।
आचार्य: बड़ा मुश्किल है कहना कि मूर्खता कब थी, पहले या बाद में।
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