प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी। मैं प्रेम के बारे में जानना चाहती हूँ। मैं पाँच साल से किसी के साथ थी और अब मुझे खुद को उसके साथ नहीं रहना है। मैं जानना चाहती हूँ कि क्या हम किसी को प्यार करने के लिए खुद को मजबूर कर सकते हैं, और ये मुझे पता तब चला जब मैं किसी और की तरफ़ आकर्षित हुई। तो मुझे जानना है कि मुझे चाहिए क्या जो मैं अलग-अलग लोगों से जुड़ना चाहती हूँ और हो क्या रहा है ये।
आचार्य प्रशांत: आपको वही चाहिए जो इस संसार में हर कीट-पतंगे को, हर पशु-पक्षी को, जलचर हो, थलचर हो, नभचर हो, सबको चाहिए। आपको वही चाहिए जिसके कारण इतनी करोड़ों प्रजातियों का अस्तित्व है, और विकास की पूरी धारा करोड़ों साल से बहते-बहते यहाँ पहुँच गयी है। सब जीवों में वो आवेग न उठे तो कैसे प्रकृति का खेल आगे बढ़े? क्यों आपको ऐसा लग रहा है कि आपको कुछ अलग, कुछ विशेष चाहिए? इतनी तो साफ़ बात है न। उसमें संशय, भ्रम भी कहाँ हो जाता है?
छोटी रही होंगी आप पाँच साल की तो हम कहते हैं, ‘हमारी सहेलियाँ हैं।‘ तब तो नहीं पुरुषों से मित्रता हो जाती थी, पर पाँच से पन्द्रह का होते ही पुरुष प्यारा लगने लगता है स्त्री को। कुछ नहीं है, पाँच की थी तो भीतर कुछ रसायन थे, पन्द्रह की हो गयी तो अलग तरह के रसायन आ गये। पुरुष भी पन्द्रह का हो गया, उसमें भी कुछ रसायन आ गये। दोनों रसायन एक-दूसरे को खींच रहे हैं।
और ये जो पूरी रासायनिक प्रक्रिया होती है, इस पर कोई एकाधिकार दो ही रसायनों का होता नहीं है। अब सोडियम है, वो रिएक्ट तो सारे ही हेलोजेन्स से कर सकता है, सोडियम, पोटेशियम, किसी को भी ले लीजिए। तो क्लोरीन, आयोडीन, ब्रोमीन, फ्लोरीन सबसे ही कर सकता है। पर एक हेलोजन से कर रहा हो और उससे ज़्यादा ताकतवर दूसरा आ जाए, तो पीछे वाले को भूल जाएगा, भले ही पीछे वाले से पाँच साल तक वो रिएक्ट कर रहा था। और जिससे रिएक्ट कर रहा था, उसी की कोटि का एक ज़्यादा ताकतवर एलिमेंट आ गया तो पिछले वाले को भूल जाता है, और कोई बात नहीं है। कुछ और है ही नहीं इसमें।
इसमें क्या मैं आपको कोई बहुत गहरी गूढ़ बात बताऊँ? इसमें कोई ज़बरदस्त ज्ञान की, विज्ञान की, विद्या की बात है ही नहीं। पशुओं को कौन सा ज्ञान होता है, वो काम-क्रीड़ा में उतर पड़ते हैं। तो इसमें ज्ञान क्या चाहिए समझने के लिए? पागलों में भी कामवासना होती है। इसमें ज्ञान क्या चाहिए? पागल आदमी है, उसे कोई ज्ञान नहीं, पर वासना तो उसको भी है, क्योंकि कोई सम्बन्ध ही नहीं है इन दोनों बातों का, ज्ञान का और आकर्षण का। आकर्षण बिना किसी ज्ञान के हो जाता है। ज्ञान हो जाए तो आकर्षण मुश्किल हो जाता है।
ऐसा थोड़े ही है कि अगर बिलकुल भी चेतना न हो तो प्रकृति की क्रियाएँ रुक जाती हैं, कुछ भी नहीं। प्रकृति की क्रियाएँ चेतना पर, ज्ञान पर इतनी सी भी आश्रित नहीं हैं। जो महिलाएँ पागल हो जाती हैं एकदम, अक्सर उनके यूटेरस, गर्भाशय निकलने पड़ते हैं क्योंकि वो पागल हो गयी है। वो शरीर का खयाल तो रख नहीं सकती है अपने। अब उनको इन्फेक्शन, संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है। और पागल होने से उनकी वासना नहीं कम हो जाती। कुछ पता ही नहीं चलता, पगली है। एक दिन पता चलता है वो गर्भ धारण करके बैठ गयी, और पूछो कि किसने किया, सहमति से किया, तेरा बलात्कार हो गया। वो ये भी न बता पाएगी, क्योंकि वो पगली है। पगली है पर वासना नहीं चली गयी, क्योंकि वासना का चेतना से कोई रिश्ता ही नहीं है। उसका रिश्ता तो उम्र से है, रसायनों से है, हॉर्मोन्स से है। और इसमें और कोई बात नहीं है।
हमें ऐसा लगता है कि हमारे साथ कुछ बहुत महत्वपूर्ण हो रहा है, सबको ऐसा ही लगता है। वो जो प्यार का पल आता है तो हमें लगता है, कुछ बहुत खास हो गया हमारे साथ। वो हमें इसलिए भी लगता है क्योंकि हमें मूर्ख बनाने के लिए बाज़ार में प्रेम का एक बड़ा गुलाबी, एक बड़ा रोमैंटिक रूप हमारे सामने रख दिया है। हमें ये बता दिया है कि ये जीवन की कोई खास बात है, वो वास्तव में क्या है, ये हमसे छुपाया गया है।
वास्तव में वो क्या है अगर हमें बता दिया जाए, तो गुलाबों की दुकानें बन्द हो जाएँगी, कपड़ों की आधी दुकानें बन्द हो जाएँगी, कॉस्मेटिक्स की दुकानें बन्द हो जाएँगी और शायरों की दुकानें बन्द हो जाएँगी। न सैलून चलेंगे, न शायर चलेंगे अगर बता दिया जाए कि ये प्रेम, आशिकी वास्तव में होती क्या है। और ये सुनने में बड़े अपमान की बात लगती है। मैं अच्छे से जानता हूँ, इस वक्त आपको भी अच्छा नहीं लग रहा होगा ये सब सुनना, मैं बिलकुल जानता हूँ। और मुझ पर भी अगर प्रेम का नशा चढ़ा हो और मुझसे कोई ये बातें बोले, तो मुझे भी बड़ा बुरा लगेगा। अच्छा है बुरा लगे, बुरा लग भी रहा हो तो भी सुनो।
जवान लोगों से मैंने जब भी बोला कि तुम जिसको अपना प्रेम बोल रहे हो, ये प्रेम-वेम कुछ नहीं है। ये तो हाथी-घोड़े वाली बात है। सब पर चढ़ता है ये, कुछ नहीं रखा इसमें। बिलकुल केमिकल बात है। और तुम्हें प्रेम अगर और चढ़वाना हो अपने ऊपर तो कहो, तुमको अभी टेस्टोस्टेरॉन का लगा दें एक। फिर देखो और तुम भयानक प्रेमी हो जाते हो। सीधे कहोगे, ‘मजनू हूँ’, उससे नीचे नहीं रुकोगे। और बात बस ये है कि टेस्टोस्टेरॉन चढ़ा दिया गया है। और वही तुम्हारा कैस्ट्रेशन कर दिया जाए। हमारे खरगोश हैं, ये सब बैरागी हो गये हैं, विरक्त बिलकुल। दो महीने के होते नहीं हैं कि हम न्यूट्रिंग करा देते हैं इनकी, कोई कुछ नहीं। उसके बाद देखो इनके तुम, मादा खरगोश ले आओ, ये ऐसे रहते हैं, ‘तू है कौन माया?‘ क्योंकि बात ही बस अंडकोशों की थी, वो निकलवा दिये, बात खत्म हो गयी।
महिला के भी हॉर्मोन्स हटवा दो, देखते हैं कि किस पुरुष की ओर आकर्षित होगी वो, होगी ही नहीं। और ये भी बात मात्र प्रेम की नहीं है, हर चीज़ की है। आप क्रोध को अपना समझते हो न — एक इंजेक्शन लगा दिया जाए, आपको क्रोध आएगा ही नहीं। सेडिटिव्स और क्या होते हैं? और जिन्हें क्रोध नहीं आता उनको एक इंजेक्शन लगा दिया जाए, वो लाल-पीले हो जाएँगे बिलकुल, आँखें अंगारा हो जाएँगी गुस्से में। हम जो कुछ करते हैं वो हॉर्मोनल ही तो है। तभी तो लोगों ने कहा है कि तुम ज़िन्दा ही कहाँ हो, तुम मशीन हो। सबकुछ तुम्हारा केमिकल है तो तुम्हें कैसे कह दें कि तुम प्राणी हो, जीवित हो, ज़िन्दा हो, कैसे मान लें! पर ये बात सुनने में मैं जानता हूँ बिलकुल नीम, करेला, ज़हर जैसी कड़वी लग रही होगी ये सुनने में बात। क्या करें!
यकीन ही नहीं आएगा कि ये जो हमारे इतने गुलाबी पल होते हैं, और सब होता है। देखो किसी को आ गया, ‘प्रियवर कहाँ हो आधी रात होने को आयी है।’ हमें नहीं समझ में आता ये कौन सा प्रेम है जो आधी रात को ही परवान चढ़ता है! और आधी रात का और आशिकी का रिश्ता क्या है? एक ही रिश्ता है, वो आप भी अच्छे से समझते हो। लेकिन बड़ी अपमान की बात लगती है। कहते हैं, ‘हमारे उदात्त प्रेम को बस हॉर्मोनल बना दिया, वासना के तल पर गिरा दिया। छी! ये आदमी गन्दा है, इसे सेक्स के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता। इसकी आँखों में सेक्स है इसीलिए सबके प्रेम को सेक्स समझता है।‘ माफ़ करिए। तुम्हारा प्रेम आसमानी है, रुहानी है, चीनी है, जापानी है। जाओ, तुम्हें जो मानना है मानो।
मैं पन्द्रह साल से ये आरोप झेल-झेलकर पक गया कि ये आदमी प्रेम को प्रेम ही नहीं मानता। जब भी इससे प्रेम बोलो, तो बोलता है, ‘सेक्स।‘ क्या प्रेम कुछ होता ही नहीं। मैं फिर कह रहा हूँ, और ठोक-बजाकर कह रहा हूँ कि जिसको तुम प्रेम बोलते हो, उसमें प्रेम जैसा कुछ भी नहीं है।
अगर प्रेम जैसा कुछ होता तो स्त्री को पुरुष से ही क्यों हो रहा है, पुरुष को स्त्री से ही क्यों हो रहा है? और एक उम्र के ही व्यक्ति से क्यों हो रहा है? पुरुष से भी करना है तो अस्सी साल वाले से क्यो नहीं करते जाकर? क्यों नहीं करते हो? ये सारी आशिकी समवयस्क लोगों में ही क्यों होती है? या अधिक-से-अधिक पाँच-दस साल का अन्तर। बोलो? बात नहीं समझ में आ रही? ये सारी आशिकी रिप्रोडक्टिव पीरियड में ही क्यों होती है? नहीं बात समझ में आ रही? और उसी से जुड़ी जो बाकी चीज़ें हैं, अकेलापन और बाकी सब जो कुछ भी होता है, ये साइड इफेक्ट्स ही होते हैं, लोनलिनेस और ये सबकुछ। ये सब बस एक चीज़ है, एक चीज़ है, अन्त में प्रकृति चाहती है, तुम बच्चा पैदा कर दो।
क्यों नहीं समझ में आ रही बात?
प्रकृति के लिए खास कर स्त्री शरीर का बस एक उद्देश्य है, बच्चा पैदा कर दो। और आपको लगता है आप इसीलिए पैदा हुई हो तो एक के बाद एक करते रहो लव अफेयर्स। वो कुछ भी नहीं है, द एग सेल इज़ सर्चिंग फ़ॉर द स्पर्म सेल, दैट्स आल (अंडकोशिका शुक्राणु कोशिका की खोज करती है, बस इतना ही)। फिर बुरा लगा, ‘अरे-रे-रे! छी-छी! हमारा पवित्र प्रेम, कैसी बात कर दी।’ और मैं कह रहा हूँ, ‘कोई पवित्र नहीं है, अंडों की तलाश में हो तुम, बात खत्म।’ जिसको तुम सामने समझ रहे हो कि एक शरीर है, तुम्हारी महबूबा है, कुछ भी नहीं है, तुम्हें अंडे चाहिए उसके।
निर्वैयक्तिक प्रेम, देह से हटा हुआ प्रेम, मात्र वही प्रेम है। और वहाँ तक पहुँचना तो लाखों में किसी एक के बस की है, पर पहुँचो कि नहीं पहुँचो, प्रयास तो करो न। प्रेम का असली अर्थ समझाने वाले बोल-बोलकर थक गये। कितनी बार उन्होंने तुमको बताया कि प्रेम माने उसकी तरफ़ बढ़ना जो तुम हो सकते हो अपनी ज़िन्दगी में, सिर्फ़ उसको प्रेम बोलते हैं। किसी दूसरे इंसान को पकड़ लेने को प्रेम नहीं कहा जाता।
हम ऐसे ही कीड़े-मकोड़ों की तरह पैदा होकर मर जाने को नहीं पैदा हुए हैं कि ऐसे ही पैदा हो गये, फिर ऐसे ही मर गये। ये काम मच्छर-मक्खी को शोभा देता है कि पैदा हुए, मर गये। बस क्या किया था? प्रजनन कर दिया था। ज़रा सा कहीं पानी छोड़ दो, उसमें मच्छरों के अंडे तैरने शुरू हो जाते हैं। अब मच्छर की ज़िन्दगी का कोई औचित्य? कुछ नहीं। पर पानी देखा नहीं कि अंडे तैरा दिये फट से। ऐसे थोड़ी हमें जीना है।
तो हम जिसके लिए पैदा हुए हैं, वो होने की हमारी ललक को प्रेम कहते हैं। ‘मैं मुक्त होने को पैदा हुई हूँ और मुक्ति के प्रति मेरा जो आकर्षण है, मैं सिर्फ़ उसको प्रेम कहूँगी’, ये है प्रेम। तो दुनिया में क्या किसी से सम्बन्ध नहीं बनाएँ? अगर प्रेम का मतलब ये है कि अहम् मुक्ति की तरफ़ बढ़े, मुक्ति मात्र से प्रेम करना है, तो क्या दुनिया में किसी से रिश्ता नहीं बनाएँ? बनाओ दुनिया में रिश्ता। उससे रिश्ता बनाओ जो तुम्हें प्रेम की सच्चाई से रुबरु कराए।
अगर अपनी ही उच्चतम संभावना की ओर बढ़ना प्रेम है, तो जो तुम्हें तुम्हारी ऊँचाई की तरफ़ ले जाए, उससे रिश्ता बनाओ न। एक रिश्ता ये होता है कि किसी से रिश्ता बनाया कि उसके अंडों की तरफ़ जाना है, और एक रिश्ता होता है कि रिश्ता बनाया कि वो मुझे ऊँचाई की ओर ले जाए, और मैं उसको ऊँचाई की तरफ़, आकाश की तरफ़ ले जाऊँ। ये दो बहुत अलग-अलग तरह के रिश्ते होते हैं।
प्रेम गिरने का भी नाम हो सकता है और प्रेम उठने का भी नाम हो सकता है। एक-लाख में से निन्यानवे-हज़ार-नौ-सौ-निन्यानवे मामलों में प्रेम गिरने का ही नाम होता है — फॉलिंग इन लव। और चूँकि आप ये मानते ही नहीं कि आप जिसको प्रेम कह रहे हो, वो बस यही है। हम मिले, तुम मिले, बच्चा पैदा हो गया और कुछ नहीं है इससे ज़्यादा।
एक उम्र के होते नहीं हो कि शरीर की एक-एक कोशिका चिल्लाने लगती है बच्चा-बच्चा, खासकर जो मादा शरीर है — बच्चा-बच्चा-बच्चा। फिर एक सूनापन और अकेलापन अनुभव होता है और आप गाने सुनना शुरू कर देते हो, वो सब प्रजनन की तैयारी चल रही है। कहीं पर कोई बैठकर के सुन रहा हो या सुन रही हो कैसे गाने? ‘मैं अकेले, अकेले हैं, चले आओ जहाँ हो।’ ये बस अब मेटरनिटी वार्ड की तैयारी चल रही है। और कुछ और नहीं है।
फिर बुरा लग गया। मैं बोल रहा हूँ, बुरा लगते ही जा रहा है बार-बार। ‘अरे! क्या रे छी-छी, थू-थू, निर्लज्ज आदमी! हर चीज़ पर से कपड़ा उतार देता है। कुछ तो ढँका-छुपा रहने दिया कर।’ मैं हूँ ही ऐसा। मैं कुछ छुपा देखूँ तो फट से वहाँ से हटाने में मुझे बड़ा आनन्द है।
समझ में आ रही है बात?
तो आप जो कुछ बोल रहे हैं, ‘सर, उसमें क्या प्रजनन के लिए कोई स्थान ही नहीं है।’ तो मैं कहा करता हूँ, ‘जैसे हाथी की पूँछ। रिश्ता उससे बनाओ — स्त्री हो, पुरुष हो, बच्चा हो, बूढ़ा हो, कोई भी हो, अपने लिंग का हो, दूसरे लिंग का हो, सम्बन्ध होता है न — व्यक्ति हो, वस्तु हो, कुछ हो, रिश्ता उससे बनाओ जो तुम्हें तुम्हारे जीवन के उद्देश्य की ओर ले जाता हो, जो तुम्हें सचमुच चैन देता हो। वो सतही सुख नहीं, वो उत्तेजनागत सुख नहीं, वास्तविक शान्ति, उससे रिश्ता बनाओ।
हाँ, हो सकता है कि जिससे तुम एक सही सच्चा रिश्ता बना रहे, हो सकता है बस संभावना है, वो हो सकता है विपरीत लिंगी हो — विपरीत लिंगी हो, तो स्त्री है, पुरुष है। हाँ, फिर उनमें प्रजनन भी हो जाएगा। जैसे उनमें हर तरह की निकटता आएगी, वैसे ही उनमें हो सकता है एक दिन शारीरिक निकटता भी आ जाएगी। शारीरिक निकटता आ जाएगी, तो हो सकता है प्रजनन भी हो जाए। वो सब बातें सह-उत्पाद की तरह होंगी, बाइ-प्रोडक्ट की तरह होंगी। वो बातें फिर सेंट्रल नहीं होती। वो फिर ये नहीं होता कि जो पुरुष की कोशिका है और जो स्त्री की कोशिका है, उनको केन्द्र में रखकर के सारा कार्यक्रम आयोजित हुआ है। वो फिर चीज़ सेंट्रल नहीं है, वो चीज़ पेरिफेरल (गौण) है। क्या? सेक्स।
हमारे रिश्तों में सेक्स सेंटर पर होता है। अच्छा, एक शादी हो रही हो, वहाँ दूल्हा-दुल्हन के कान में जाकर फुसफुसा दो, ‘सेक्स नहीं कर सकते।’ शादी होगी? बता दो। जो लोग बोला करते हैं न कि अरे! हमारा क्या हमारी पत्नी से बस सेक्स का रिश्ता है, हम प्रेम करते हैं। जिस दिन ब्याह हो रहा था, उस दिन बोला होता, ‘अच्छा, पत्नी अनपढ़ है, शादी करोगे?’ तुम कहते, ‘कोई बात नहीं।’ माने कि शिक्षा उस सम्बन्ध के केन्द्र में नहीं थी, ठीक है। शादी हो रही है, वहाँ जाकर के उनके कान में बोला, ‘पत्नी अनपढ़ है।‘ शादी फिर भी हो जाएगी। पत्नी गरीब है, शादी फिर भी हो जाएगी माने धन भी केन्द्र में नहीं है। पत्नी कानी है, अब थोड़ा ये हिचकिचाएँगे लेकिन फिर भी हो सकता है शादी हो जाए। पत्नी मूर्ख है, अभी भी शादी हो जाएगी, और ज़्यादा होगी तेज़ी से। और बताओ। कुछ भी बोल दो, ‘पत्नी ऐसी है, पत्नी वैसी है, शादी हो जाएगी।‘ अन्त में आकर बोला, ‘पत्नी स्त्री ही नहीं है।’ अब होगी शादी? और पत्नी के कान में जाकर बोल दो, ‘ये जो पुरुष बैठा है, नपुंसक है, इरेक्टाइल डिसफंक्शन है इसको।’ अब होगा ब्याह? तो बता दो ब्याह के केन्द्र में क्या है फिर?
क्यों नहीं मानते सीधी सी बात को? क्यों इतना पाखंड करते हो? और इस तरह का जो खुद को बेवकूफ़ बनाने का काम है न। खेद की बात ये है कि वो पुरुषों की ओर से होता है, स्त्रियों की ओर से होता है, स्त्रियों की ओर से थोड़ा ज़्यादा होता है। पुरुष कम-से-कम आपस में एक-दूसरे से नहीं छुपाते हो। कहते हैं, ‘हाँ यार! बात तो सही है, बन्दी माल है इसलिए उसके पीछे जा रहा हूँ।‘ ये ही उनकी भाषा होती है, ‘बन्दी माल है, इसीलिए उसके पीछे जा रहा हूँ।’ पर स्त्रियों को स्वयं को मूर्ख बनाने में थोड़ी ज़्यादा प्रवीणता हासिल है। वो कहती हैं, ‘नहीं, मेरे जीवन में देवदूत उतरा है। नाइट विद अ शाइनिंग आर्मर ऑन द वाइट हॉर्स (सफ़ेद घोड़े पर सवार एक शूरवीर)।‘ काहे को आया है? बस फ़रिश्ता बनकर आया है। क्या करने आया है? नहीं, बस फ़रिश्ता बनकर। अरे! क्या करने आया है? नहीं, बस फ़रिश्ता बनकर आया। आगे बढ़, थप्पड़ मार देगी। कहेगी, ‘गन्दा आदमी, अश्लील सवाल करता है।‘ माने तुझे पता था न कि बात अश्लील है।
अध्यात्म आपको रिश्ते बनाने से नहीं रोकता। अध्यात्म कहता है, ‘सच्चाई जान लो।‘ रिश्ते बनाने से तो किसी को रोका जा ही नहीं सकता। रिश्ते तो बनेंगे, तुम नहीं चाहोगे तो भी बनेंगे। पर झूठ पर आधारित रिश्ते क्यों बना रहे हो? पाखंड पर आधारित रिश्ते क्यों बना रहे हो? तुम अठारह-बीस साल के होते हो, रिश्ता बनाते हो। तुम्हें क्या समझ है? तुम क्या जानते हो? तुम हॉर्मोन्स के गुलाम हो।
तुम्हें जिस देह को देखकर उत्तेजना हो गयी, तुम उसी के पीछे चल देते हो, तुम कहते हो लव। क्या लव है उसमें? तुम लव का एल भी समझते हो? प्रेम तो सीखना पड़ता है। और बहुत मूल्य देकर सीखना पड़ता है। इतनी सस्ती चीज़ है प्रेम कि अठारह के हो गये तो प्रेम जान जाओगे? अब बोलोगे, ‘आइ लव यू।‘ न तुम्हें ‘आइ’ पता है, न ‘यू’ पता है, न ‘लव’ पता है। तीनों में कुछ नहीं पता है, तीनों को ही सीखने में उम्र बीत जाती है।
‘आइ’ माने अहम्, ‘यू’ माने संसार, और ‘लव’ माने प्रेम। तीनों को ही सीखना बड़ी मेहनत का काम है, और यहाँ जिसको देखो, वही आशिक हुआ जा रहा है, ‘आशिक हैं हम। हम आशिक तेरे नाम के, ओढ़ ली चुनरिया तेरे नाम की’, बैठे घूम रहे होते हैं। और फिर उनको रोको तो उनको लगता है, उनकी आज़ादी पर — ‘हमें रोका जा रहा है प्यार करने से।’ तुम्हें प्यार करने से नहीं रोका जा रहा है, तुम्हें प्यार के साथ दुर्व्यवहार करने से बचाना चाहता हूँ।
नकली प्रेम से बचो ताकि असली प्रेम पा सको। अध्यात्म रिश्ते नहीं वर्जित करता — रिश्तों के नाम पर पाखंड के खिलाफ़ है। बनाओ, सुन्दर रिश्ते बनाओ, सुगन्धित रिश्ते बनाओ, सच्चे रिश्ते बनाओ। और न अध्यात्म, न सच्चाई सेक्स को वर्जित करते हैं। पर गलत आदमी के साथ सेक्स करोगे तो जीवन भर पछताओगे। ऐसे तो हो नहीं कि एक बार सेक्स किया, भग गये। उसके साथ रिश्ता भी तो बना लेते हो। ऐसा होता है क्या?
जब ये बोलते हो, वन नाइट स्टैंड है, तो वन नाइट के बाद उसको भूल पाते हो? हुआ है ऐसा? तो कर तो लोगे और फिर उम्र भर पछताओगे। एक रात में जो खुद को गन्दा किया, उन दागों को उम्र भर साफ़ नहीं कर पाओगे। दाग सिर्फ़ शरीर पर और कपड़ों पर नहीं लगते। दाग यहाँ (सिर की ओर इशारा करते हुए) पर लगते हैं। स्मृतियों को कैसे मिटाओगे? अध्यात्म नहीं चाहता कि व्यर्थ के दाग, धब्बे और गन्दगी लेकर उम्र भर फिरो। इसलिए तुमसे कहता है कि सच्चाई को जानो, फिर रिश्ते बनाओ।
आ रही है बात समझ में?
क्या समझ में आएगी मुँह तो लटक गये, सबको देखो। मैं सच्चा प्रेमी हूँ — सोनी-महिवाल, हीर-राँझा, लैला-मजनू, अगला नाम मेरा है। तेरी ज़िन्दगी में और कुछ सच्चा है? कुछ भी सच्चा है? बात-बात में बेईमानी तू करता है, तू बस प्रेमी सच्चा हो जाएगा संभव है क्या? एक काम तूने आज तक सच्चाई के साथ किया क्या बता ईमानदारी से? अब ईमानदारी भी कैसे आए जब कुछ ईमानदारी के साथ कभी किया नहीं! बता न तूने कोई काम आज तक ईमानदारी से किया? इतना सा मौका मिलता है, तू धाँधली करता है और तगड़ी धाँधली करता है, तो तेरा प्रेम भी फिर क्या है? एक बहुत बड़ी धाँधली। हाँ, ये हो सकता है कि तुझे खुद इस धाँधली का पता न हो। ये हो सकता है कि भीतर जो बेवकूफ़ बनाने वाला बैठा है, उसने तुम्हें भी बेवकूफ़ बना दिया। गलत रिश्ते से बड़ा नर्क दूसरा नहीं होता।
दो-धारी तलवार है रिश्ता, उठा भी सकता है तुम्हें और बहुत बुरी तरह से पाताल में भी फेंक सकता है। जल्दी मत करो रिश्तों की — रुको, थमो, समझो। यूँही किसी के साथ मत बँध जाओ, न सो जाओ। और महिलाओं से तो खासकर बोल रहा हूँ। आपके पास तो रिश्तों से जुड़ी एक चीज़ और होती है ‘मातृत्व’। और वो खट से आ जाता है, वो एक रात में आ सकता है। अब क्या करोगे? बच्चा तो जीवन भर के लिए हो गया। दूसरे दिन पता भी चल गया कि रिश्ता गड़बड़ था, अब बच्चे का क्या करोगे? पर जल्दी सबसे ज़्यादा रहती है। वो कौन सा था, जो गा रहे थे? “छोरी कब से हुई जवान, बन्ना ले जा अपने साथ।”
छोरी अठारह की होती नहीं; कानून भी बोलता है कि लड़के की उम्र थोड़ी ज़्यादा होगी, तब वो ब्याह के काबिल होता है, लड़की की थोड़ी कम में ही कर दो शादी तो भी चलेगा। लड़की भी तत्पर रहती है, ब्याह कर दो, जबकि फँसना ज़्यादा उसको ही है। फिर आकर कहती हैं, ‘मैं क्या करूँ, मुझे मुक्ति कैसे मिले, अब तो बच्चा हो गया?‘
तू पहले सो रही थी, तू पागल थी। इतना समझाया तुझे, तब तुझे समझ में नहीं आ रहा था। तब तो गुलाबी अरमान यहाँ पर (सिर पर) बैठे हुए थे। सत्तर प्रतिशत महिलाएँ काम पर वापस नहीं जातीं मेटरनिटी लीव के बाद। और सत्तर प्रतिशत से ज़्यादा प्रेग्नेंसीज़ अनप्लान्ड होती हैं। तुम्हें दिख नहीं रहा है कि ये गलत रिश्ता तुम्हारा पूरा जीवन एक पल में बर्बाद करता है?
मनुष्य शरीर को डिवाइन कहा जानने वालों ने, दैवीय। इसका उपयोग दैवीय कामों में करो। रिप्रोडक्शन एकदम बहुत औसत तल का, बल्कि कह सकते हो निचले तल का काम होता है। उत्तर की शुरुआत में ही मैंने कहा था कि पागल भी करते हैं रिप्रोडक्शन। वो महर्षी भर्तृहरि का एक सूत्र है जिसमें वो कहते हैं कि एक कुत्ता है, वो दो हड्ड़ी बची हैं उसके और उसके खून रिस रहा है, और चारों तरफ़ उसके मवाद रिस रहा है। एकदम मरने को हो रहा है, जर्जर हालत में है, कृषकाय, बुरी तरह बीमार कुत्ता, लेकिन वो कुतिया के पीछे जा रहा है। ये महर्षी भर्तृहरि का सूत्र है। ‘वैराग्य षटकम्’ पढना।
तो ये जो मनुष्य का शरीर है, ये मुख्यतया, प्राथमिक तौर पर इसलिए नहीं मिला है कि ये काम करो। ये काम वर्जित नहीं किया जा रहा, पर बताया जा रहा है कि प्राइमरी क्या है और नॉन प्राइमरी क्या है। इस शरीर का, इस देह का, इस जन्म का, इस अवसर का उच्चतम इस्तेमाल करो। सिर्फ़ इसलिए कि आपके पास गर्भाशय है या अंडाशय है, इसका मतलब ये थोड़ी है कि आपको एक अनिवार्यता है, ओब्लिगेशन है कि सेक्स करना-ही-करना है। रोका नहीं जा रहा है, समझाया जा रहा है कि ये चीज़ सेंट्रल नहीं है ज़िन्दगी में। ये मत सोचा करो कि मैं इतने साल की हो गयी तो अब बन्ना ले जा अपने साथ — दूल्हा कहाँ है, दूल्हा कहाँ है? मैं इतने साल की हो गयी, दूल्हा कहाँ है? भाई दूल्हा मिले कि न मिले, छोटी बात। ज़िन्दगी को सार्थक बनाना, वो बड़ी बात है। कोई मिल गया पार्टनर, ठीक हो गया। कोई नहीं मिला तो भी ठीक है।
समझ में आ रहा है?
छोटी बात और बड़ी बात में अन्तर करना सीखो। आप युवा हो, मैं आपसे पूछ रहा हूँ आपने ये सवाल पूछा, ‘आपने कितनी किताबें पढ़ी हैं आज तक? और जब ये प्रेम वाली लगन लगती है तब कुछ पढ़ने-लिखने में मन नहीं लगता न?‘ देखो कितना समय खराब हो गया, हो गया न। रोमैंटिक बनकर घूम रहे हैं और बहुत लोनली-लोनली हो गया है मामला। और उसमें बस ऐसे बैठे हैं, सपने ले रहे हैं। उस समय पर तुम किताब पढ़ सकते थे, उस समय तुम कोई और सार्थक काम कर सकते थे। कुछ खेलना सीख लेतीं, आप दुबली-पतली हो, अरे! स्ट्रेंथ ट्रेनिंग कर लेती, जिम चली जाती। जवानी में अगर मसल नहीं बनाओगी तो कब बनाओगी?
जवानी हम क्या सोचते हैं? एक ही काम के लिए होता है। जवानी ही वो समय है जब आप शरीर को मज़बूत भी बना सकते हो, अभी नहीं बना रहे तो कब बनाओगे? जवानी में ही ऊर्जा है, दुनिया को, देश को देख सकते हो। अभी न दुनिया देख रहे न देश देख रहे, बस क्या कर रहे हैं? बैठकर के वो गुलाबी व्हाट्स अपिंग, ‘हेल्लो, हाय, स्वीटू, कुछ अपनी फोटोज़ भेज देना वो वाली।’ और फिर बाद में वही फोटोज़ जाकर के किसी पोर्न साइट पर टंग जाती हैं जब ब्रेकअप हो जाता है।
समय का सही इस्तेमाल करना सीखो न। ये किताब पढ़ना समय लेता है, दिमाग पर आशिकी छायी रहेगी तो किताब कब पढ़ोगे? कोई ऊँचा काम कब करोगे? साथी बनाने की कोई पाबन्दी नहीं है। उल्टा-पुल्टा साथी मत बनाओ और सही साथी बनाओ इसके लिए पहले ज्ञान होना चाहिए। उसके लिए दुनिया को जानो, समझो, पढ़ो, अच्छे लोगों के साथ उठो-बैठो। उसके बाद साथी मिल जाए तो अच्छी बात है, नहीं भी मिले तो भी अच्छी बात।
अब मैंने बहुत कष्ट दिया, दिल दुखाया उसके लिए माफ़ी माँगता हूँ।