आओ मेडिटेशन करें || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

4 min
21 reads
आओ मेडिटेशन करें || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

प्रश्नकर्ता: ये मेडिटेशन (ध्यान) चीज़ क्या है?

आचार्य प्रशांत: मैं बताता हूँ ये चीज़ क्या है, ये फ़र्जी चीज़ है, ये फ़रेब है, ये आत्मप्रवंचना है, खुद को धोखा है, ये कुछ समय का आध्यात्मिक मनोरंजन है कि आओ बैठ जाओ, कुछ आसन बना लो, कुछ आँख बन्द कर लो, थोड़ी देर ऐसे करो, थोड़ी देर वैसे करो। कुछ क्रिया कुछ प्रक्रिया बता दी गयी और वो करके आपको तात्कालिक राहत मिल गयी। और उसको आपने उसको नाम क्या दिया? ध्यान, मेडिटेशन अरे वो ध्यान नहीं है, यूँही हैं, सस्ती चीज़, फ़र्जी।

(संगीत की धुन के साथ एक पुरुष की आवाज़ आती है, ‘अब हम लगभग बीस मिनट के लिए ध्यान करेंगे। लेकिन सिर को सहारा न दें, इस क्रिया को पूरब दिशा की ओर चेहरा करके बैठकर करने से अधिक लाभ प्राप्त हो सकते हैं’। फिर एक महिला की आवाज़, ‘आपके चेतन मन को गहरी नींद में रहने दीजिए और आप एक अचेतन मन को मेरी बातें सुनने दीजिए’।)

क्या करते हो? मेडिटेशन। वो क्या होता है? वो आँख बन्द करके कभी साँस गिननी होती है, कभी संगीत सुनना होता है, झुन-झुन, झुन-झुन, झुन-झुन, झुन-झुन।

ये क्या चल रहा है? मेडिटेशन। तो एक मिले यही मेडिटेशन वाले, तो मैंने पूछा क्या करते हो? बोले, ‘वो कमरे में बन्द कर देते हैं, अन्धेरा कर देते हैं और रिकॉर्ड्स चालू कर देते हैं, कहते हैं सुनो। और उसमें झींगुरों की आवाज़ें आती हैं। बोलते हैं ये अनहद है और यही परम ध्यान है, सुनो’। (रात को झींगुरों की आवाज़ की ध्वनि वाला संगीत)

तुमने उपनिषद का "उ" पढ़ लिया होता तो भी बच जाते फ़रेब की इस दुकान से। ध्यान कोई छोटी-मोटी चीज़ नहीं होती, ध्यान हँसी, ठठ्ठा, खिलवाड़ नहीं हैं, ध्यान लाइफ़स्टाइ को थोड़ा-सा बेहतर करने का ज़रिया नहीं है।

”फोर टू फाइव मैं स्वीमिंग जाती हूँ, फाइव टू सिक्स किटी जाती हूँ, सिक्स टू सेवन मैं मेडिटेशन करती हूँ और सेवन टू एट फिर मैं इधर-उधर शॉपिंग करती हूँ”। (किसी मेडिटेशन जाने वाली महिला की बात को दोहराते हुए) ये नहीं है ध्यान, वो इसलिए नहीं है कि आपके घटिया ज़िन्दगी में एक अतिरिक्त क्रिया की तरह जुड़ जाए। जो जीवन का समग्र कायाकल्प चाहते हों सिर्फ़ उनके लिए है ध्यान। जिन्हें संसार में खोखलापन दिखने लगा हो, जिन्हें संसार से पार की सच्चाई की तलब उठने लगी हो सिर्फ़ उनके लिए है ध्यान।

बाकी लोग जो कर रहे हैं मेडिटेशन वग़ैरह, वो करते रहें पर कम-से-कम उसको ध्यान का नाम मत दीजिए। ध्यान बहुत ऊँची चीज़ है उसका नाम मत ख़राब कीजिए। जान दे देने से ज़्यादा मुश्किल है ध्यान। बस ये समझ लो, जान दे देने में तो सिर्फ़ जिस्म टूटता है ध्यान में वो टूटता है जिसको तुम "मैं" कहते हो। वो ज़्यादा मुश्किल है, ज्यादा कष्टप्रद है, वो ज़्यादा बड़ी क़ुर्बानी माँगता है। ध्यान का अर्थ होता है पूरा जीवन उच्चतम ध्येय को समर्पित कर देना।

जीवन का एक कोना नहीं बदलता कि एक कोने में पाँच मिनट को रोशनी आ जाती हैं बस, नहीं ऐसा नहीं होता। वो ऐसा होता है जैसे पानी में शक्कर घोल दी गयी, मिठास कहाँ आएगी? जहाँ चखोगे, वहाँ आयेगी। सब कुछ बदल जाता है, आप ये नहीं कह सकते कि आप आध्यात्मिक हो गये हैं लेकिन आपकी दुकान वैसे ही चल रही है जैसे चला करती थी। दुकान बदलेगी, खाना-पीना बदलेगा, बोल-व्यवहार बदलेगा, पसन्द बदलेगी, नापसन्द बदलेगी, सम्बन्ध बदलेंगे। जहाँ चखोगे, वहाँ कुछ मिठास मिलेगी।

जीवन को प्रतिपल सच्चाई के साथ जीना है, ये है मेडिटेशन, ये है ध्यान। दिन के घंटे भर की जाने वाली किसी क्रिया-प्रक्रिया का नाम ध्यान नहीं होता। प्रतिपल सत्यनिष्ठा का नाम है ‘ध्यान’।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
Comments
Categories