आचार्य प्रशांत में ऐटीच्यूड बहुत है || (2021)

Acharya Prashant

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आचार्य प्रशांत में ऐटीच्यूड बहुत है || (2021)

आचार्य प्रशांत: विपिन पाल हैं यूट्यूब से, कह रहे हैं, ‘आचार्य जी की बातें वैसे तो ठीक होती हैं, लेकिन बताते बहुत ऐटीच्यूड से हैं। एक दोस्त की तरह नहीं बोलते, ये बात मुझे खटकती है।’

हाँ है ऐटीच्यूड , तो? तुम्हें कैसे पता एक दोस्त होता कैसा है? ये समझाओ मुझे विपिन पाल! तुम कह रहे हो, ‘आचार्य जी ऐटीच्यूड के साथ बोलते हैं और दोस्त की तरह नहीं बोलते।’ ‘दोस्त की तरह नहीं बोलते’, ज़रा अपने खोपड़े के भीतर जाओ। जब तुम कहते हो कि मैं ‘दोस्त की तरह’ नहीं बोलता तो इसका मतलब तुम जानते हो कि दोस्त कैसा होता है, है न? तुम्हारे पास एक छवि है, एक इमेज है कि दोस्त ऐसा होना चाहिए और दोस्त इस तरीक़े से बातचीत करता है। और फिर तुम कहते हो तुलना करके कि नहीं, ये आचार्य जी तो वैसे नहीं बोलते।

तुम्हारे पास दोस्त की एक छवि है। और तुम मुझे देखते हो और मेरी बातचीत, और मेरा बोलने का ढंग और मेरा तुम्हारे प्रति जो रवैया है माने ऐटीच्यूड, वो तुम्हारे मन में दोस्त की जो छवि है उससे मैच नहीं करता, नहीं मिलता। तो तुम कह रहे हो, आचार्य जी दोस्त की तरह नहीं बोलते। तुम्हें कैसे पता वो जो तुम मन में रखकर बैठे हो दोस्त की छवि, वो ठीक है? तुम्हें कैसे पता कि दोस्त वैसे ही होना चाहिए जैसी तुमने उसकी छवि बना रखी है? तुम्हें कैसे पता कि वो जिसको तुम दोस्त बोल रहे हो वो वाक़ई तुम्हारा दोस्त है?

दोस्त की परिभाषा ये है कि वो है तुम्हारा दोस्त जो वाक़ई तुम्हारा हित करे। जो वाक़ई तुम्हारा हित कर दे। जो हमारी ज़िन्दगी को यहाँ (चेतना के निचले तल) से उठाकर यहाँ (ऊँचे तल पर) ले जाये। जो तुम्हारे मन को नीचे से उठाकर ऊँचा ले जाये उसको कहते हैं दोस्त। और तुम्हारे मन में जो दोस्तों की छवि है क्या उन्होंने ऐसा करा है तुम्हारे साथ? कि उन्होंने तुम्हारी ज़िन्दगी को नीचे से उठाकर ऊँचाई पर रख दिया है। तुम्हारी चेतना को, तुम्हारे पूरे सोचने समझने के तरीक़़े को उठाकर नीचे से ऊपर कर दिया है। क्या उन्होंने ऐसा करा है?

अगर ऐसा नहीं करा है तो वो दोस्त हैं कहाँ तुम्हारे? पर नहीं विपिन, तुमने तो फ़िल्मी गाने देखे हैं ‘यारा द यार’ वाले। और तुम्हें लगता है कि ऐसे ही तो होते हैं दोस्त। अच्छा ये सब जो म्यूज़िक वीडियोज़ होते हैं और फ़िल्मी गाने होते हैं और जो भी कुछ होता है सोशल मीडिया में, बताना उसमें किसको दोस्त दिखाया जाता है? दोस्त अगर कोई है तो उसके लक्षण क्या बताये जाते हैं? ये जो दोस्त नाम का तत्व है, एलीमेंट, इसकी प्रोपर्टीज़ (गुण) क्या होती हैं? क्या होती हैं?

श्रोतागण: हाँ में हाँ करेगा वो।

आचार्य: हाँ में हाँ तो छोटी बात है। तुम जाओ न ज़रा सोशल मीडिया पर, फ़िल्मों में जाओ और मुझे बताओ कि अगर कोई दोस्त है तुम्हारा, यार, जिगरी, तो उसका तुम्हारा रिश्ता कैसा होता है। और उसके तुम्हारे बीच में किस तरह की घटनाएँ घटती हैं? मैं बताता हूँ किस तरह की घटनाएँ घटती हैं। तुम गये और तुम लड़की छेड़ रहे थे। वहाँ तुम पिटने लग गए। तो तुम पिटते-पिटते किसी तरीक़़े से मोबाइल निकालकर के अपने दोस्त वाला इमर्जेंसी नम्बर डायल करते हो। और फिर वो या तो बुल्ट (बुलेट) पर या बोलेरो पर पाँच-सात लफ़ंगे लेकर आ जाता है तुम्हारे पक्ष से लड़ने के लिए। ये तुम्हारा दोस्त होता है। और कौनसा दोस्त होता है?

दोस्त वो होता है जो परीक्षा में तुम्हें नकल करा दे। और कौनसा दोस्त होता है? जिससे तुम अपनी ज़िन्दगी की सब घटिया बातें साझा कर सको। और कौन होता है तुम्हारा दोस्त?

श्रोता: शराब।

आचार्य: जिसके साथ तुम बैठकर के शराबबाज़ी कर सको। और कौन होता है तुम्हारा दोस्त?

श्रोता: गेमिंग।

आचार्य: हाँ, जिसके साथ तुम गेमिंग कर सको। ये मैंने करा नहीं तो जानता नहीं हूँ। पर ये दोस्तों के साथ क्यों होती है, ये तो कम्प्यूटर के साथ होती होगी न?

श्रोता: ऑनलाइन गेमिंग होती है, मल्टीप्लेयर।

आचार्य: अच्छा, मल्टीप्लेयर। तो उसमें कई होते हैं जो इधर-उधर बैठे हैं और आपस में प्रतिस्पर्धा होती होगी। तो ये तुम्हारे दोस्त होते हैं। और क्या होते हैं दोस्तों के लक्षण? बोलो, बोलो और क्या होते हैं?

श्रोता: सेटिंग करवा दे।

आचार्य: जो तुम्हारी सेटिंग करवा दे, बिलकुल, बिलकुल! और क्या होते हैं दोस्तों के लक्षण? (श्रोताओं से) बोलो तुम लोग भी, यारियाँ तो होंगी ही।

श्रोता: जो बंक मारते हो।

आचार्य: हाँ, कि तुम क्लास अटेंड भी कर रहे हो तो चार-पाँच तुम्हारे जिगरी आयें और बोलें, ‘अरे! छोड़ न बंक मारते हैं।’ और जो तुमको क्लास से उठाकर ले जाये, क्लास अटेंड ही न करने दे, बंक मरवा दे उसका नाम है दोस्त। और कैसे होते हैं दोस्त?

श्रोता: जिनके सामने रोना रो सके।

आचार्य: हाँ, जिनके सामने तुम रोना रो सको कि हाय! हाय! मै तो मजबूर हूँ, दुखिया हूँ, क़िस्मत का मारा हुआ, वो तुम्हारा दोस्त है।

मैं सोच के चल रहा हूँ कि ये विपिन पाल भी कोई जवान आदमी होंगे। तो इतने जवान लोगों को नशे की, ड्रग्स की लत लगी होती है। ये लत उन्हें उनके दुश्मनों ने लगवाई? बोलो, कोई अगर ड्रगिस्ट बन जाता है तो सम्भावना क्या है? उस तक ड्रग्स पहली बार कौन लेकर आया होगा?

श्रोता: दोस्त।

आचार्य: तो ये है तुम्हारे दोस्त की परिभाषा! जो तुमको नशा करा दे, जो तुम्हारी ज़िन्दगी को एक के बाद एक पातालों में गिरा दे। वो तुम्हारा दोस्त है, है न? फिर तुम कहते हो, ‘आचार्य जी दोस्त की तरह नहीं बात करते।’ मैं तुम्हारा दुश्मन हूँ कि मैं इस तरह की दोस्ती दिखाऊँ तुमसे? लेकिन बात सुनने और समझने की जगह तुम चाह रहे हो कि मैं भी तुमसे दोस्त की तरह बात करूँ।

और क्यों चाह रहे हो दोस्त की तरह बात करूँ, वो भी तुम्हें बताये देता हूँ। और भी लोग होंगे न तुम्हारी ज़िन्दगी में जो तुम्हें ज्ञान देते होंगे? या यूट्यूब में होंगे जो तुम्हें मोटिवेशन वगैरह देते होंगे या आध्यात्मिक कुछ ज्ञान देते होंगे। वो सब तुमसे वैसे ही बात करते हैं जैसे तुमसे तुम्हारे जिगरी बात करते हैं। तो तब तुम कहते हो कि अरे! जब वो आध्यात्मिक महागुरु हैं और वो मोटिवेशन वाले हैं, वो हमसे इतने प्यार से बात कर सकते हैं तो ये आचार्य जी रूखा क्यों बोलते हैं।

पर तुमको लगता है, ‘ये न, ये, इस आदमी में ऐटीच्यूड बहुत ज़्यादा है। ये जो आचार्य बना बैठा है इसमें ऐटीच्यूड बहुत हैं, इसलिए ये ऐसे रूखा बोलता है।’ मुझमें जो कुछ भी है बेटा, वो तुम्हारे काम का है। मैं तुमसे जो भी कुछ बोल रहा हूँ तुम्हारे भले के लिए बोल रहा हूँ। और यही असली दोस्ती है। मेरी नज़रों से अगर देख सको तो मैं ही हूँ तुम्हारा असली दोस्त। लेकिन मैं तुमको दुश्मन लगता हूँ। और ये सब जिन्होंने तुम्हारी ज़िन्दगी बर्बाद कर रखी हैं ये तुमको दोस्त लगते हैं। वो तुमसे मीठा बोलते ही इसलिए हैं ताकि वो तुम्हें फँसाये रख सकें। न उनका इरादा है, न उनकी नीयत है और न ही उनकी हिम्मत और हैसियत है कि वो तुमसे साफ़, सच्ची बात कर सकें।

दुकानदार को देखा है कभी ग्राहक से दो टूक बात करते हुए? क्यों? क्योंकि उसे कुछ उगाहना है, कुछ मुनाफ़ा चाहिए, कुछ लाभ चाहिए। तो वो कभी सीधी बात करेगा नहीं। मैं तुमसे सीधी बात करता हूँ क्योंकि मुझे तुमसे कुछ चाहिए नहीं, मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हूँ। तो इसीलिए मुझे बहुत परवाह नहीं है कि मेरी दुकान पर आकर कितने लोग खड़े हो गये। मैं बाँट रहा हूँ कुछ, मैं तुम्हें कुछ दे रहा हूँ। इसलिए साफ़ बात बोलता हूँ और यही साफ़ बात असली दोस्ती होती है।

तो तुमने दोस्त की जो छवि और परिभाषा बना रखी है उसको जरा साफ़ करो, ठीक करो। फिर मुझे थोड़ी सहानुभूति और संवेदना के साथ देख पाओगे। फिर समझ पाओगे कि मैं तुम्हारे सामने खड़ा हूँ, तुम्हारे दरवाज़े पर भेंट लेकर, तोहफ़ा लेकर के दोस्ती का, तुम्हें देना चाहता हूँ। और तुम न जानें किस गुरुर में हो, न जाने नशे में हो। वास्तव में तुम अपने झूठे दोस्तों के साथ मस्त हो बस। तुम्हें मेरी बात सुनायी नहीं देती, सुनायी देती भी है तो समझ नहीं आती। चलो कोई बात नहीं!

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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