आचार्य प्रशांत: पूछा है, 'आचार्य जी आप जनसंख्या नियन्त्रण की बात करते हैं लेकिन एलोन मस्क (अमेरिकन उद्योगपति) जैसे कुछ बड़े नाम खुलेआम कह रहे हैं कि आबादी और बढ़ाओ, वरना पॉपुलेशन डिक्लाइन (जनसंख्या में गिरावट) आ जाएगा। एलोन मस्क ने सात बच्चे पैदा कर दिए हैं और अब दुनिया को सिखा रहे हैं कि चलो, मंगल ग्रह पर बस जाते हैं।'
जाकर के आंकड़े देख लो। दुनिया के सामने इस समय जो सबसे बड़ी समस्या है, उस पर वैज्ञानिक और विशेषज्ञ क्या कह रहे हैं, ये देख लो। व्यापारियों की बात क्यों सुनने लग गए तुम इन मुद्दों पर? आठ अरब की जनसंख्या है अभी विश्व की और ग्यारह-बारह अरब से पहले वो स्टेबलाइज़ (स्थिर) होने की नहीं है। और यहाँ कहा जा रहा है कि बच्चे पैदा करो। एलोन मस्क कह रहे हैं नहीं तो दुनिया की आबादी घट जाएगी। और व्यक्तिगत उदाहरण पेश कर रहे हैं, सात पैदा करके कि देखो, मैंने अपने हिस्से का काम कर दिया, बहुत मेहनत करी है (अपनी पीठ थपथपाते हुए)। ऐसे ही तुम सब भी अपने-अपने हिस्से की मेहनत करो और सात-सात...।
बेटा, ये सात इसलिए हैं क्योंकि वो सात अफ़ोर्ड कर सकते हैं और कोई बात नहीं है। और ये जो दुनिया के एकदम अमीर लोग हैं उनमें अभी ये चलन ही बना हुआ है। जेफ बेज़ोस (अमेरिकन उद्योगपति) के मैं समझता हूँ चार बच्चे हैं, रिचर्ड ब्रैनसन के भी तीन या चार हैं।
पश्चिमी देशों में जो जनसंख्या वृद्धि की दर बहुत कम हो गई है या कहीं-कहीं पर तो नेगेटिव भी हो गई है, उसकी वजह यह नहीं है कि उन्हें पृथ्वी का इतना ख़याल है कि वो बच्चे नहीं पैदा कर रहे। हाँ, बात ये है कि अनअफ़ोर्डेबल (पहुँच से बाहर) है, बहुत महँगा हो गया है। तो जिनके पास पैसा है, वो कह रहे हैं देखो, जैसे मैं सात महल रख सकता हूँ, सात बीवियाँ रख सकता हूँ, मैं अफ़ोर्ड कर सकता हूँ न, तो मैं सात बच्चे भी रख सकता हूँ। तुम थोड़ी अफ़ोर्ड कर सकते हो गरीब लोगों? वो अपने देश के गरीब लोगों की बात कर रहे हैं।
फिर जो बहुत गरीब देश हो जाते हैं वहाँ वो अफ़ोर्ड वगैरह का ख़याल ही नहीं करते। वो कहते हैं, ‘अजी हटाओ, जितने बच्चे उसके दूने हाथ।’ जितने बच्चे होंगे, मुँह तो उतने ही होंगे। अगर मान लो जैसे कोई बहुत गरीब देश है अफ्रीका का उसको ले लो, तो कहते हैं सात बच्चे होंगे तो मुँह तो सात ही होंगे, हाथ चौदह होंगे। तो कमाने वाले चौदह हाथ भी तो आ गए। ये उनका तर्क रहता है। मूर्खतापूर्ण तर्क है, पर ये गरीब देशों का तर्क रहता है, बहुत सारे बच्चे पैदा करने के लिए। और जो एकदम अमीर हो गए उनका तर्क ये रहता है, हमारे पास पैसा है, हम बच्चे क्यों न पैदा करें? जब हमारी हर चीज़ सामान्य लोगों से ज़्यादा है तो हमारे बच्चे भी ज़्यादा होंगे।
अब कोई पूछने आता है कि इतने बच्चे क्यों पैदा कर दिए तो मुँह छुपाने के लिए कुछ तो तर्क देना है न। तो उन्होंने तर्क ये दिया कि दुनिया की आबादी कम होने की आशंका है तो इसलिए हम बहुत सारे पैदा कर रहे हैं। एक के बाद एक, तीन-चार बीवियाँ करी हैं, सात-आठ बच्चे करे हैं ताकि दुनिया की आबादी कहीं कम न हो जाए। और मैं कह रहा हूँ कि वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों से जाकर पूछो तो तुमको बताएँगे कि
पृथ्वी अब नहीं उठा सकती एक भी अतिरिक्त आदमी का बोझ। जितने हो उतने ही बहुत ज़्यादा हो, इससे भी बहुत-बहुत कम होने चाहिए।
लोग कहते हैं, ‘आबादी ज़्यादा है पर आचार्य जी अभी भी जंगल इतने सारे हैं और खाली जगहें बहुत सारी हैं।’ बाबा, आबादी ज़्यादा इससे नहीं मानी जाती कि लोगों को खड़े होने को या बैठने को जगह है या नहीं है। बात संसाधनों की होती है। मैं कहीं पर पढ़ रहा था, कोई कह रहा था, नहीं-नहीं पृथ्वी ओवर पॉपुलेटेड (अत्यधिक आबादी) तो है ही नहीं क्योंकि जो पूरा लैंडमास (भूमि द्रव्यमान) है उसका मुश्किल से पाँच प्रतिशत अभी भी पॉपुलेटेड (आबादी ग्रस्त) है, बाकी तो पंचानवे प्रतिशत अभी खाली ही है न, तो ओवर पॉपुलेटेड कैसे हो गई? ये पढ़े लिखे लोग इतनी मूर्खता के तर्क देते हैं।
बात रिसोर्सेज़ (संसाधन) की होती है, संसाधनों की होती है। ये आठ-सौ करोड़ लोग जितने संसाधन माँग रहे हैं, रिसोर्सेज़ माँग रहे हैं, बिजली माँग रहे हैं, पानी माँग रहे हैं, खाना माँग रहे हैं, वो पृथ्वी के पास उपलब्ध नहीं है। इसलिए अर्थ (पृथ्वी) ओवर पॉपुलेटेड मानी जाती है और है।
और इस वक़्त दुनिया की जो बड़ी से बड़ी बीमारियाँ हैं, चाहे वो बायोडायवर्सिटी लॉस (जैव विविधता की हानि) हो, चाहे क्लाइमेट कैटास्ट्रॉफी (जलवायु आपदा) हो, उसका वास्तविक समाधान सिर्फ़ एक है — जनसंख्या नियन्त्रण, पॉपुलेशन कंट्रोल। उसकी जगह इस तरह के महानुभाव एकदम उल्टी गंगा बहा रहे हैं, वो कह रहे हैं कि और बच्चे पैदा करो और पृथ्वी पर लगा दी है आग अब जाकर के मार्स (मंगल ग्रह) पर बैठ रहे हैं। और जनता को बताए जा रहे हैं कि देखो, पृथ्वी हमने खा ली, बिल्कुल बर्बाद कर दी जैसे केला खाकर के छिलका फेंक दिया जाता है, वैसे पृथ्वी फेंक दी। अब चलो, मंगल को कॉलोनाइज़ (उपनिवेश) करते हैं।
तुमने पृथ्वी बर्बाद न करी होती तो 'मार्स' (मंगल) को कॉलोनाइज़ करने की ज़रूरत पड़ती क्या?
लेकिन तुम इसमें बड़ी शेखी बघार रहे हो। तुम कह रहे हो, देखा! हम मंगल पर जा करके ह्यूमन कॉलोनी (मानव बस्ती), एक स्टेशन बसा करके आए हैं। यह ऐसी सी बात है जैसे कोई अपने घर में आग लगा करके, अपनी शेखी बघारे कि वो देखो मैंने उधर दूर के एक जंगल में जाकर के तम्बू गाड़ दिया है। क्या तम्बू है! चार बम्बू, उसके ऊपर तम्बू। वैसे ही वो अपने चार रॉकेट लेकर घूम रहे हैं। देखो, क्या रॉकेट लॉन्च (प्रक्षेपण) किया है। अरे, उसकी ज़रूरत क्यों पड़ रही है, क्योंकि तुमने अपने घर में आग लगा दी है, पृथ्वी में आग लगा दी है। और ऐसी बातें कर-कर के कि बच्चे और पैदा करो, ये करो वो करो।
अभी हो क्या रहा है? अपनी लैविश लाइफ़स्टाइल (भव्य जीवन शैली) दिखा कर तुम सबको कह रहे हो कि इतना कंज़म्प्शन (उपभोग) करो, जितना हम करते हैं। और अपने सात बच्चे दिखाकर तुम लोगों से कह रहे हो कि इतने बच्चे पैदा करो, जितने हम करते हैं।
इन दोनों बातों को बिल्कुल ध्यान से समझिए। वो कह रहे हैं कि पर-कैपिटा कंज़म्प्शन (प्रति व्यक्ति खपत) कितना करो? जितना मैं करता हूँ। मेरी लाइफ स्टाइल (जीवनशैली देखो), मेरा मैंशन (हवेली) देखो, मेरी गाड़ियाँ देखो, मेरे यार्ड (प्रांगण) देखो। ये सब मेरी चीज़ें देखो, ये सब चीज़ें रखकर के सामने आप क्या उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हो कि आप भी इस लेवल (स्तर) का कंज़म्प्शन करो। और मेरे सात बच्चे हैं तो तुम सात बच्चे ...। अब ये देखो कि इस तर का कंज़म्प्शन पर-कैपिटा, इस तरह का भोग, उपभोग...। और उसको तुम गुणा करो, इस तरह की आबादी से जिसमें सात-सात बच्चे पैदा किए जा रहे हैं। तुम्हें क्या मिल रहा है? तुम्हें ट्रैजेडी (त्रासदी) मिल रही है।
समझ में आ रही है बात।
वो कह रहे हैं कि पहले तो लोग ज़्यादा हों, जैसे मैंने इतने सारे लोग पैदा कर दिए और जो लोग हों, वो मेरी ही तरह एक लैविश लाइफ़स्टाइल जिएँ, जैसे मैं कंज़म्शन करता हूँ। क्योंकि लैविश लाइफ़स्टाइल का और तो कोई मतलब ही नहीं होता, कंज़म्प्शन। तो जितना मैं कंज़म्प्शन करता हूँ, तुम सब गरीब लोगों देखो, तुम भी उतना ही कंज़म्प्शन करो।
मैं एक आदर्श प्रस्तुत कर रहा हूँ, मैं एक रोल मॉडल हूँ, मैं एग्ज़ाम्प्ल (उदाहरण) सेट कर रहा हूँ और मेरी तरह सात-सात बच्चे हों। अब तुम बताओ, इसके बाद ये पृथ्वी बचेगी? कोई और रास्ता रहेगा ही नहीं इसके अलावा कि जाओ वहाँ मार्स (मंगल ग्रह) पर जाओ, वीनस (शुक्र ग्रह) पर जाओ, जूपिटर (बृहस्पति ग्रह) पर जाओ, किसी और गैलेक्सी (आकाश गंगा) में जाओ — मर जाओ। ग़रीबों के लिए तो यही रहेगा कि मर जाओ। कितने लोग जाएँगे वहाँ पर? अभी ये मेरे ख़याल से ब्रैनसन (रिचर्ड ब्रैनसन, एक उद्योगपति) ही थे न, जो फिर से बोल रहे थे कि मैं स्पेस (अन्तरिक्ष) की यात्रा करके आया हूँ। स्पेस (अन्तरिक्ष) की कोई नहीं यात्रा थी, वो एटमॉस्फियर (वायुमंडल) से ज़रा सा बाहर निकले, ऐसे छूकर आ गए, बोले स्पेस (अन्तरिक्ष) घूम आए।
कितने लोग अफ़ोर्ड (वहन) कर सकते हैं वो चीज़। तो ये अगर कभी होगा भी कि चाँद पर या मार्स (मंगल) पर ह्यूमन कॉलोनी (मानव बस्ती) बनेगी तो उसमें कौन जाकर के रहने वाला है? सिर्फ़ और सिर्फ़ जो सबसे अमीर लोग हैं, अमीर में भी बिलियनेयर्स (अरबपति), मल्टी बिलियनेयर्स (बहु अरबपति)। और गरीबों को यहाँ क्लाइमेट कैटास्ट्रॉफी (जलवायु आपदा) में तपता और मरता छोड़ जाना। ये तैयारियाँ चल रही हैं और ये आज के जवान लोगों के आदर्श हैं, रोल मॉडल (आदर्श) हैं। बात करते हैं लोग, अरे अरे अरे...। ऐसे लोगों को रोल मॉडल बना रखा है।
एक अच्छी कार बना देना एक बात होती है और एक अच्छी ज़िंदगी जीना बिल्कुल दूसरी बात होती है। ये बात आपको समझ में क्यों नहीं आ रही? टेस्ला (कार का मॉडल) की टेक्नोलॉजी (तकनीक) सीख लीजिए बहुत अच्छी बात है। बढ़िया इलेक्ट्रिक (विद्युत) कार है, बहुत अच्छी बात है। आप देख लीजिए कैसे चलती है, कैसे बनती है, बाकी सब बढ़िया देख लीजिए। लेकिन उस आदमी को आप एक जीवन में पथ प्रदर्शक की तरह देखने लगें कि ये तो गुरु है, जैसे ये करता है वैसे मैं भी करूगाँ, तो ये बहुत बेवकूफ़ी की बात हो गई न।
और आप क्यों उसको देखने लग जाते हो गुरु की तरह? क्योंकि आपके भीतर लालच है कि आ हा हा...,जैसे इसके पास बिलियंस (अरब) हैं, काश मेरे पास भी हों। दुनिया का सबसे अमीर आदमी है।
वो दुनिया का सबसे अमीर आदमी है इसलिए जो कुछ भी करेगा, आप उसकी नकल करने की कोशिश करते हो।
उसे भगवान ही बना लेते हो अपना। उसने तीन शादियाँ करी हैं, मैं भी करूँगा। सात बच्चे करे हैं, मैं भी करूगाँ। उसे कुछ भी पसंद हो सकता है, तुम सब कुछ करोगे? अगर उसे मगरमच्छ खाना पसंद है, तो तुम भी खाओगे, अगर?