उद्घाटन संबोधन
हम गौरवान्वित हैं कि हमारे बीच आचार्य प्रशांत जी उपस्थित हैं। हम सभी उनको सुनने के लिए प्रतीक्षित और आकांक्षी हैं। हमारे बीच ऐसी विभूतियां उपस्थित हैं जिनकी गरिमामई उपस्थिति से हम सब कृतज्ञ हैं। हम आभारी हैं कि आचार्य प्रशांत जी के परिवार के समस्त सदस्य हमारे बीच हैं। आचार्य प्रशांत जी के पूजनीय पिताजी श्री अवधेश नारायण त्रिपाठी जी के स्मरण अंजलि के रूप में उनके जन्म दिवस के अवसर पर इस समारोह का आयोजन किया जाता है। निवेदन करती हूं आचार्य प्रशांत जी से कि अपने संबोधन से हम सबको नव ऊर्जा प्रदान करें।
आचार्य प्रशांत: सबसे पहले तो आने में देर हुई तो उसके लिए मैं ही थोड़ा देर से चला था और फिर थोड़ा रास्ते में भी 10 मिनट ज्यादा लग गए। आवाज आ रही है पीछे तक? सब तक? पीछे आवाज पहुंच रही है? एकदम जो आखिरी कतार है वहां तक आवाज आ रही है। साफ है?
तो श्री अवधेश नारायण त्रिपाठी जी। मेरे पापा उनका जन्मदिन है आज। तो मैं उनके लिए कुछ लेकर जाया करता था तो कुछ उपहार भेंट तोहफा तो उनके लिए जो है वो उनको तो कैसे दें? पुष्पांजलि हो गई। कुछ क्यों ना फिर आप में बांट दें। और मैं आपको कोई उपहार देना चाहता हूं तो मुझे लगता है सबसे अच्छा वही होगा जो मुझे उनसे मिला है। आप सब क्लास एट से 12th के बीच के है ना? एट से 12th के बीच के हैं।
श्रोतागण: हां।
आचार्य प्रशांत: तो बड़ा मजेदार और बड़ा संवेदनशील यह समय होता है। आठवीं से 12वीं। मुझे अपना यह समय अच्छे से याद है और यह भी पता है कि मैं आज जहां भी हूं, जैसा भी खड़ा हूं, अच्छा बुरा उसमें वह जो एट से 12th का समय था उसका बड़ा योगदान है। तो बहुत अच्छा है कि इस समय पर आप लोगों के साथ, इस सेंसिटिव समय पर आपका जो है, उस समय पर आप लोगों के साथ मैं वो बातें कह सकता हूं जो मुझे लगता है मेरी जिंदगी में बहुत अहम थी।
जब मिल रही थी उस वक्त तो शायद पता भी नहीं था कि यह कितनी जरूरी चीजें हैं। पर आज मैं इस स्थिति में हूं कि पीछे देखकर और खुद को देखकर उसे पहचान सकता हूं और फिर आपसे बांट सकता हूं। तो जो पहली चीज मेरे ध्यान में आती है जो मुझे मिली पापा से और आमतौर पर उतनी ज्यादा बच्चों को मिलती नहीं है उनके अभिभावकों से, पेरेंट्स से वह किताबें। शुरुआत वहीं से करूंगा।
टेक्स्ट बुक्स की बात नहीं कर रहा हूं। टेक्स्ट बुक्स तो सब बच्चों को मिलती है। सारे स्टूडेंट्स के पास होती हैं। मुझे दुनिया भर की हर दिशा की किताबें मिलती रही। और जरूरी नहीं है कि समझ में आती थी और ऐसा भी नहीं है कि एट्थ में आने के बाद ही मिलनी शुरू हुई। घर में बहुत सारी किताबें थी। उनकी अपनी लाइब्रेरी थी। ऐसा नहीं कि 5-7000 किताबें पर जब आप फोर्थ में, फिफ्थ में होते हो या 8th में होते हो तो अगर अच्छी गुणवत्ता की 500 किताबें भी घर में मौजूद हैं। तो उससे बहुत फर्क पड़ता है।
और मेरे घर में मेरे लिए 5-700 से कहीं ज्यादा किताबें थी। और ये जैसा मैंने कहा कि टेक्स्ट बुक्स के अलावा थी। टेक्स्ट बुक्स तो ठीक ही है। अपना आप पढ़ते रहिए। अब ऐसा नहीं कि मुझे वो सब समझ में आती थी। वो सारी किताबें दुनिया की हर दिशा से थी। उसमें इतिहासी किताबें भी थी। राजनीति की भी थी। खेलों की दुनिया से भी थी। एडवेंचर की दुनिया से थी। विज्ञान की दुनिया से थी। फिक्शन था, कविताएं थी। जितने तरह का अच्छा साहित्य लिटरेचर हो सकता है, वह सब उपलब्ध था।
और मेरे ऊपर कोई जोर नहीं था कि तुम्हें इसको पढ़ना ही है। बस वह उपलब्ध था। यह अवेलेबल है। तो अपनी मर्जी से जाओ। जो चाहते हो उस किताब को उठाओ हाथ लगाओ कुछ आएगा समझ में। कुछ नहीं समझ में आएगा, कोई बात नहीं।
तो जब मैं अपने उन सालों को देखता हूं जब भीतरी विकास हो रहा था और दुनिया के प्रति एक दृष्टि विकसित हो रही थी तो मैं उन किताबों का बहुत-बहुत महत्व पाता हूं। सिर्फ इसलिए नहीं कि मुझे उनसे ज्ञान मिला। इसलिए कि उन किताबों ने मुझे बहुत बचा कर रखा। एक इंसुलेशन की तरह, एक सुरक्षा कवच की तरह। क्योंकि मन खाली तो रह नहीं सकता ना। मन तो कुछ ना कुछ मांगता रहता है। मन को अपने आप को किसी ना किसी चीज से भरना है। है ना?
ऐसा कभी होता है कि कुछ भी नहीं चल रहा। कुछ तो चलेगा ही। तो अगर कुछ अच्छा और ऊंचा नहीं उपलब्ध है। तो कुछ बहुत ही साधारण सा औसत स्तर का या हो सकता है कि घटिया सा भी मन को आकर के घेर ले। इन किताबों ने मुझे बहुत बचाया, बहुत जो पॉपुलर मुद्दे होते हैं, लोग होते हैं, चीजें होती हैं उनको इज्जत देने से। क्योंकि मुझे बड़े नाम मिल गए थे और बड़ी बातें मिल गई थी तो मुझे फुर्सत नहीं मिली छोटे मुद्दों में फंसने की। और ये जो छोटे मुद्दे हैं जितना बड़ा खतरा मेरे लिए थे उससे कहीं ज्यादा बड़ा खतरा तुम लोगों के लिए है।
क्योंकि आज तुम्हारे पास इंटरनेट है और सोशल मीडिया है। तो बहुत सारे छोटे-छोटे लोग होते हैं वो बहुत बड़ा नाम बन जाते हैं। और वो तुम्हारी उम्र में बिल्कुल दिलो दिमाग पर छा जाते हैं। और आप कहते हो कि ये मेरे आदर्श हो गए, रोल मॉडल हो गए, इन्फ्लुएंसरर हो गए। वो छा ही जाएंगे अगर मन को ऊंचे लोगों की, बहादुर लोगों की, काबिल लोगों की संगति नहीं मिली है अगर आप उनके नाम भी नहीं पता चले हैं। तो मैं कह रहा हूं बहुत ही मामूली ऑर्डिनरी किस्म के लोग आपके मन पर ऐसे चढ़ जाएंगे जैसे कि देवता हो, भगवान हो।
आप कहोगे आई लुक अप टू हिम। और वो है कोई नहीं। वो सिर्फ एक गुब्बारे जैसा है। उसमें दम कुछ नहीं है। बस हवा उसमें भर दी गई है। मेरे लिए अच्छा ये रहा कि मानव इतिहास के जितने बड़े नाम हो सकते हैं उन सबसे मेरा परिचय बहुत जल्दी हो। हो गया। तीसरी, चौथी, पांचवी क्लास में था मैं। मैं तभी से कम से कम उन नामों को जानता था। भले ही उनकी कोई बात मुझे समझ में ना आती हो। और मुझे समझ में आ सके इसके लिए वैसी किताबें भी घर में थी जो मेरी उम्र के बच्चों के लिए सुग्राह्य होती हैं। माने डाइजेस्टेबल होती हैं।
तो ये एसॉप्स फैबल्स हो या पंचतंत्र हो हितोपदेश हो नेहरू के लेटर्स टू डॉटर, पिता के पुत्री के नाम हो। ना जाने कितनी ऐसी किताबें वो सब रखी हुई थी तो अब वो तो मुझे पूरी समझ में भी आती थी क्योंकि वो थी ही बच्चों की और जो बच्चों की किताबें नहीं भी थी मैं कह रहा हूं ना समझ में आने के बावजूद उन्होंने मुझे बचाया, उन्होंने मुझे बचाया कि मैं किसी सेलिब्रिटी को बहुत ऊंचा स्थान ना दे दूं। बहुत बड़ा खतरा है यह। यह जो उम्र होती है ना तुम्हारी इसमें तुम्हारे पास अब एजुकेशन आ गई है तो तुम पढ़ सकते हो। एनर्जी आ गई है तो तुम इधर-उधर जा सकते हो। चीजें मांग सकते हो।
लेकिन अभी बहुत ज्यादा समझ नहीं आई होती है। और जब समझ नहीं आई होती है तो फायदा उठाने वाले एक्सप्लइट करने वाले, छा जाने वाले लोग बहुत होते हैं। एक उदाहरण देता हूं। Snapchaat है। एक बहुत पॉपुलर सोशल मीडिया प्लेटफार्म है। उसके जो ज्यादातर यूज़र्स हैं वो अभी लीगली एडल्ट्स भी नहीं है। वो 18 साल से कम उम्र की है। माने अगर यहां पर 12वीं के बच्चे बैठे हुए हैं तो समझ लो यही पूरा है। और कोई भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म इसलिए होता है ना कि वो जिसने बनाया है वो उससे पैसा कमाए।
और वो पैसा तभी कमाएगा जब जो उसके यूज़र्स हैं वो उस कंटेंट को बहुत देर तक देखते रहे। और आप किसी को बहुत देर तक तभी देखोगे जब आप उससे इन्फ्लुएंस हो जाओ। तो तुम्हारी यह जो अभी उम्र है कच्ची इसमें तुमको इनफ्लुएंस करके अपना फायदा निकालने वाली ताकतें अब बहुत ज्यादा हो गई हैं। जितना खतरा हमारे समय में था उससे कहीं ज्यादा खतरा अभी है।
एक चीज और हुई है। हमने पैसे की बात करी है कि कोई भी अगर अपना सोशल मीडिया ऐप बनाता है तो इसलिए बनाता है कि पैसे कमाए। दुनिया का हर मैन्युफैक्चरर सेलर ये जो एज ग्रुप होता है 8 साल से लेकर के 18-20 साल तक का बल्कि 8 साल से भी नीचे पांच छ साल से शुरू करके 20-22 साल वाला इसको टारगेट कर रहा है। क्यों? आप कहेंगे ये तो कमाते भी नहीं। इनको क्यों टारगेट कर रहे हैं?
इनको टारगेट इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इनके पास मां-बाप का पैसा होता है। इंसान के पास जब अपना पैसा होता है, तब तो यह फिर भी संभव है कि वह थोड़ा देख समझ के खर्च करें। पर जब घर में संतान एक या दो ही हो और अक्सर मां-बाप दोनों कमाते हो। घर में पैसे की कोई कमी नहीं है और एक ही बच्चा है या दो ही बच्चे हैं तो बच्चों के हाथ में जबरदस्त स्पेंडिंग पावर आ जाती है।
अभी अगर मैं आपसे भी पूछूं, ऐसे ही एक छोटा सा सर्वे कर लिया जाए कि आप में से कितने लोगों के एक ही भाई या बहन हैं और कितनों के अधिक से अधिक दो भाई या बहन हैं? तो ज्यादातर लोग आप इसी श्रेणी में आओगे। कुछ तो ऐसे होंगे जो अकेले होंगे घर में। कुछ ऐसे होंगे जो कि बस कहेंगे मेरा एक सिबलिंग है। और जो हाउसहोल्ड इनकम आज से 30-40 साल पहले होती थी, आज उससे कई गुना बढ़ गई है।
ये मैं हर दिशा में जा रहा हूं। लिटरेचर अब इकोनॉमिक्स की बात करनी शुरू कर दी। मैं सोशल मीडिया की बात कर रहा हूं। ये समझ में आ रहा है या बोर कर रहा है? बोर कर रहा है तो बस इधर-उधर की बातें करें। ये समझ में आ रही है बातें? मुझे लगता है कि हम 8th, 10th, 12th में इतने मैच्योर हो जाते हैं कि ये बातें हमें समझ में आएंगी। आनी चाहिए। आ रही है ना बातें?
तो अब हाउसहोल्ड इनकम बहुत बढ़ गई है। और जो जो फर्टिलिटी रेट है मतलब घर में बच्चे कितने होते हैं वो गिर गया है। तो मां-बाप के पास पैसा है। और बच्चे एक दो ही हैं। तो उन बच्चों के हाथ में बहुत स्पेंडिंग पावर आ गई है। तो दुनिया का हर एडवर्टाइजर, मैन्युफैक्चरर, सेलर किसको टारगेट कर रहा है? बच्चे को टारगेट कर रहा है। तो आपके लिए खतरा बहुत है। और उस खतरे से बचने का तरीका है किताबें। बहुत छोटे लोग बहुत छोटी-छोटी बातें करके आपको एक्साइट कर लें। आपको जकड़ लें। आपको हिप्नोटाइज कर लें। आप उनके वश में आ जाओ। उससे कहीं बेहतर है कि ऊंचे और बड़े लोगों की संगति करो।
उसके बाद यह जो छोटी बातें हैं ना इसका दिख जाएगा कि इसमें मुझे फंसना ही नहीं है। मानव का पूरा इतिहास इतने महान लोगों से भरा हुआ है कि उनको अगर हम सूचना उपलब्ध होते हुए भी, मौका उपलब्ध होते हुए भी नहीं जान रहे हैं तो दोष बस हमारा है। और और आज इतनी गड़बड़ बात है कि मैं आपसे पूछूं उदाहरण के लिए कि रेनेसा हुआ यूरोप में वहां इतने रिवोल्युशंस हुए आप उनके की फिगर्स के कुछ नाम बताइए। तो आपके लिए बताना मुश्किल हो जाएगा और ये छोटी उम्र नहीं है।
सब टीन्स में हो और आप टीन्स में आ गए हो तो पता होना चाहिए। मुश्किल होगा। कुछ लोग बता पाएंगे और मुझे बहुत खुशी होगी कुछ लोग बता पाएंगे तो पर शायद ज्यादातर लोग ना बता पाए। लेकिन मैं यही आपसे पूछूं कि आईपीएल जो कि नेशनल टीम में भी ना हो। आईपीएल के कुछ प्लेयर्स के नाम बता दो। मैं एक पूछूंगा 15 बता दोगे। किसी ने अभी एक भी अच्छी फिल्म ना करी हो। उसे कोई इंटरनेशनल छोड़ दो। नेशनल अवार्ड भी ना मिला हो। पर आप एक्टर एक्ट्रेसेस के नाम बता दोगे। कोई YouTube पर, Instagram पर छाया हुआ है। आप उसका भी नाम बता दोगे। कोई किसी घटिया टीवी शो में जाकर के बहुत सारा अटेंशन गैदर कर रहा है। आपको वो भी पता होगा। बिग बॉस वगैरह वो सब पता होगा।
पर मैं अभी आपसे कहूं कि कुछ फ्रेंच रिवोल्यूशनरीज के नाम बता दूं। आपको शायद ना पता हो। मैं आपसे पूछूं कि बताइए कारण क्या थे कि भारत को कॉलोनाइज होना पड़ा। पुर्तगाली, डच, फ्रेंच और ब्रिटिश ये सब छाते गए। इसके मूल कारण क्या थे तो शायद हमें ना पता हो। लेकिन जो बहुत सारी क्षुद्र किस्म की बातें हैं बहुत पेटी जिसको जमीन की भाषा में कहेंगे टूच्ची बातें। वो हमें पता होती है। उन बातों से बचाने के लिए आपको किताबें होती हैं।
एक बार जिसको फिर आसमानों का स्वाद लग गया ना वो फिर ऐसे जमीन का कीचड़ नहीं चाट पाता। तो इस मामले में मैं सौभाग्यशाली रहा कि इस दुनिया की जो कालिक है, गंदगी है उससे मैं इंसुलेट हो गया। मुझे आकर्षक ही नहीं लगती थी। एक दो बार ऐसा तक हुआ कि लखनऊ से पहले छोटे शहरों में एक दो बार पोस्टिंग हुई थी पापा की शाहजहांपुर हो गया। तो शाहजहांपुर का मुझे याद है वहां से लखनऊ आते थे और एक बड़ा एजेंडा पॉइंट रहता था कि किताबें खरीदनी है। क्योंकि छोटा शहर था शाहजहांपुर वहां कोई ऐसी अच्छी बुकशॉप थी नहीं। टेक्स्ट बुक्स होती थी। ऐसी कोई बुकशॉप नहीं थी बड़ी।
गर्मी की छुट्टियां होती थी तो उसमें मैं अपने ननिहाल जाता था। वहां जाने से पहले निकलने से पहले यह किताबें दे दी जाती थी और ननिहाल भी जाता था तो वहां मेरे नाना की भी लाइब्रेरी थी। उनके पास भी किताबें वहां रखी हुई थी। तो इन्होंने मुझे बहुत बचाया है। मैंने ज्ञान क्या ले लिया वो मुझे नहीं याद है। और आप इतने छोटे होते हो तो आपको याद भी क्या रहेगा और मैं बिल्कुल मानता हूं बहुत समझ में भी नहीं आएगा।
अब एक नोबेल प्राइज विनिंग नॉवेल है और आप क्लास सिक्स में हो। आप 11 साल के हो। 11 साल की उम्र में आप एक नोबेल प्राइज विनिंग नॉवेल पढ़ रहे हो। तो जाहिर सी बात है वो बहुत समझ में नहीं आएगा लेकिन उसने आपको बचा दिया है। और वहां आपको कुछ ऐसा मिल रहा है जो आपको पूरा समझ में तो नहीं आ रहा पर ये हल्का-हल्का एहसास हो रहा है आहट सी आ रही है कि इसमें कुछ खूबसूरती है और वो खूबसूरती आपको फिर मजबूर करती है कि इसको समझो। तुम अगर अब इसे नहीं समझ पा रहे हो तो अपना स्तर बढ़ाओ ताकि तुम इसे समझ सको तो फिर आपकी समझ का भी स्तर बढ़ता है और आपकी भाषा का भी स्तर बढ़ता है।
क्योंकि अच्छा साहित्य है तो अच्छी भाषा में भी लिखा गया होगा। तो मुझे फिर बहुत मदद मिली अपनी हिंदी और अंग्रेजी दोनों बेहतर करने में। जब मेरा 10वीं का आईसीएससी का रिजल्ट आया तो उसमें उत्तर प्रदेश में मेरा पहला स्थान था तो जो बोर्ड के सेक्रेटरी थे वो आकर के मेरे पेरेंट्स से मिले। उन्होंने कहा ये सब ठीक है। हर साल कोई ना कोई यूपी टॉप करता है। और लेकिन इस साल आपके बेटे के रिजल्ट में खास बात ये है कि उसके हिंदी और इंग्लिश दोनों में हाईएस्ट है और ये रेयरली होता है कि किसी का दोनों भाषाओं पर समान अधिकार हो और वो समान अधिकार मुझे आईसीएससी की टेक्स्ट बुक पढ़ के नहीं आया था। टेक्स्ट बुक्स भी पढ़ी थी। वो समान अधिकार आया था जो घर पर किताबें थी उनको पढ़ के। बात समझ में आ रही है?
जब हम कंपनी कर ही सकते हैं; कंपनी माने साथ, संगति। जब हम कंपनी कर ही सकते हैं तो उन सब ऊंचे लोगों की क्यों नहीं करें जो प्यार के नाते हमारे लिए अपने पीछे अपने जीवन का अमृत छोड़कर गए हैं। हो सकता है वो आदमी आज से 1000 साल पहले का हो या 200 साल पहले का हो या भारत का नहीं हो, चीन का हो, अफ्रीका का हो, यूरोप का हो, अमेरिका का हो, कहीं का हो। पर उसने अपने जीवन का सार वो सारी बातें जो जानने और ग्रहण करने लायक हैं वो उसने एक किताब में आपके लिए छोड़ दी हैं।
और कई बार जब वो किताबें बहुत मोटी होती हैं। जैसे डिकेंस का साहित्य हो गया। या ऐना करेनिना हो गया तो उनके अब्रिज्ड वर्जनंस आते हैं फॉर द यूथ तो मुझे वह लाकर दे दिए जाते थे। अब मोबी डिक पूरी कौन पढ़े तो उसका एक अब्रिज्ड वर्जन वो आप है वो आप उसको पढ़ लीजिए। वो सब अभी भी घर में रखे हुए हैं। मुझे इतना प्यार हो गया था। उनसे मैं उनको बाइंड कराता था। जैसे स्कूल की किताबें बाइंड कराई जाती है। अब बाइंडिंग होती है या नहीं होती है? कार्डबोर्ड बाइंडिंग अभी होती है? अब नहीं होती?
श्रोतागण: प्लास्टिक।
आचार्य प्रशांत: अच्छा प्लास्टिक। हमारे समय में कार्डबोर्ड बाइंडिंग होती थी। तो वो जितनी सारी मेरी किताबें थी मैं उनको बाइंड वाइंड करा के उनकी लेबलिंग करके अच्छे से रखता था। जैसे टेक्स्ट बुक्स रखी जाती है। उनमें से कुछ अभी भी घर पर पड़ी होंगी। और ये नहीं कि उसमें सब कुछ मैं सीरियस ही पढ़ता था। कॉमिक्स वगैरह भी खूब चलती थी। डॉक्टर झटका, मोटू पतलू, घसीटाराम, चाचा चौधरी ये सब भी चलता था। कुछ नहीं है। इंद्रजाल कॉमिक्स अब नहीं आती। पहले आती थी। एक टिंकल करके आती थी। तो वह सब भी रहता था। बात समझ में आ रही है?
बेटा दुनिया के लिए ना आप बच्चे नहीं हो। दुनिया के लिए आप कस्टमर हो। कोई भी आपको अगर अट्रैक्ट कर रहा है ना तो वो इसलिए नहीं कर रहा कि उसको आपसे प्यार है। वो आपको इसलिए अट्रैक्ट कर रहा है ताकि आपसे कुछ ले सके। बहुत जल्दी किसी के फैन मत बन जाया करो। चाहे वो कोई पॉलिटिशियन हो, चाहे इंडस्ट्रियलिस्ट हो, चाहे चाहे कोई ग्लिटरिंग सेलिब्रिटी हो, ये दुनिया बहुत अच्छी जगह है नहीं। लेकिन हम एक अच्छी जिंदगी जी सकते हैं। क्योंकि कुछ अच्छे लोग हुए हैं। और जो अच्छे लोग हुए हैं उन्होंने हमारे लिए बेइंतहा कोशिश करी है कि हम भी अच्छी जिंदगी जी पाए। ये जो पब्लिक स्पेस है उसमें ज्यादातर लोग जो हैं जिनको आप जानते हो वो आपके लिए अच्छे नहीं हैं। समझ में आ रही है बात?
लेकिन वो बिल्कुल हमारे लिए क्या बन जाते हैं? ओ माय आइडल माय आइडल। मैं पूजा करूंगा इसकी। वो व्यक्ति क्या है? उसने सचमुच क्या हासिल करा है जिंदगी में? उसके विचारों में कितनी गहराई है? वो जिंदगी को कितना समझता है? तुम उसे जानते भी क्यों हो? अगर आप आपको उसका नाम भी पता है तो इतने में भी आपका नुकसान हो गया। आपको उसका नाम भी नहीं पता होना चाहिए। बहुत सारी बातें थी जो मुझे मेरे घर पर पता ही नहीं लगने दी गई। मुझे नहीं पता होता था। कहते थे तुम वो पता करो ना जो जिंदगी में उच्चतम है। उससे नीचे की कोई सूचना तुम्हारे मन में पहुंचे ही क्यों?
मैं स्कूल जाता था। अब मान लीजिए मैंने जूते पहन रखे हैं। तो मुझसे साथ वाले पूछते थे और मुझे बड़ा अजीब लगता था कि यह कैसा सवाल है? कितने के हैं? मुझे नहीं पता होता था क्योंकि मुझे कभी बताया नहीं गया है। मुझे नहीं पता। अब तो हर तरह का एंटरटेनमेंट मौजूद है। पहले जब 31 दिसंबर की रात होती थी। न्यू ईयर आ रहा है आपका इसलिए बोल रहा हूं। 31 दिसंबर की रात होती थी तो उसमें दूरदर्शन पर आते थे- ये वो।
तो उसके बाद, विंटर ब्रेक के बाद जब मिले स्कूल में तो काफी देर तक एक दिन दो दिन यही बात होती थी कि उसमें कौन सी सेलिब्रिटी आई थी उसने क्या किया, क्या नहीं किया, कैसा हुआ मुझे नहीं पता होता था। मैं जानता ही नहीं। मैं जब अपना 10th का बोर्ड दे रहा था उस वक्त भी घर में एक ब्लैक एंड वाइट पोर्टेबल टीवी था। कलर भी था ड्राइंग रूम में रखा हुआ था पर वो कभी चलता नहीं था। वो बस ड्राइंग रूम में रखा हुआ था। कभी बाहर से वीसीआर मंगा करके उसमें फिल्म देख ली जाती थी। वो इसके काम आता था कि जब वीसीआर आएगा तो उसमें फिल्म देख ली जाएगी वरना वो नहीं चलता था।
एक इतना सा छोटा सा वेस्टर्न का पोर्टेबल टीवी था वही रखा होता था उसी के साथ मैंने अपने बोर्ड्स दिए हैं तो पता ही नहीं चलता था। क्यों पता चले? मैं आपसे पूछ रहा हूं। बताओ ना दुनिया भर की गंदगी आपको क्यों पता हो? क्योंकि अगर वो पता होगी तो फिर अपना असर भी करेगी। उसको जानने में ही नुकसान हो गया। क्योंकि समय तुम्हारे पास सीमित है और ये जगह स्पेस भी सीमित है। एक चीज को जानोगे तो दूसरी चीज को नहीं जान पाओगे। देयर वुड ऑलवेज बी वन एट द कॉस्ट ऑफ द अदर। समझ में आ रही है बात?
तो यह पहली चीज। दूसरी चीज जो जाने अनजाने ही मैंने इनसे सीख ली, सोख ली वो थी अथॉरिटी के सामने कभी ना दबना। जब झुकना तो अपनी समझ से झुकना। जब झुकना तो इसलिए झुकना क्योंकि सामने वाला इस लायक है कि उसको नमन कर सके। उसको सर झुका सके नहीं तो किसी से नहीं झुकना है और इसमें कोई ऐरोगेंस वाली अहंकार वाली बात नहीं है।
बात बहुत सीधी है। तो इस लायक तो हो ना कि हम तुम्हारी दिल से इज्जत कर सके तो जरूर करेंगे। और अगर हम तुम्हारी भी इज्जत करें और जो सचमुच महान है, हम कहें उसकी भी इज्जत कर रहे हैं तो फिर हम किसी की इज्जत नहीं कर रहे। ये जो सर है अगर यह हर जगह झुक सकता है तो फिर कहीं नहीं झुका। ये तो बिकी हुई चीज हो गया ना कि जिसको देखो उसको ही रिस्पेक्ट दिए जा रहे हो।
तीन बार उनका प्रमोशन था वो रुका रहा। कई कई सालों तक रुका रहा। और फिर हाई कोर्ट जाते थे, केस करते थे और तब अपना प्रमोशन लेते थे। क्यों रुका रहा? क्योंकि उनके जो सुपीरियर्स थे, बॉसेस थे सरकार में जो सेक्रेटरीज वगैरह होते थे उनके आगे नहीं झुकते थे। ऐसा नहीं कि वहां उदंडता दिखाते थे। बस जो बात जैसी थी उसको बोल देते थे। दो टूक स्पष्ट, ये जो स्पष्टवादिता है कि जब सच बोल रहे हो तो डरने दबने झुकने की जरूरत नहीं है। जो चीज जैसी है उसको बोल दो।
हमारा यह उद्देश्य नहीं है कि हम किसी को आहत करें। पर सच अगर किसी को बुरा लगता है तो फिर लगे। हमने आपको आहत हर्ट करने के उद्देश्य से नहीं बोला है। पर हम क्या करें कि आप ऐसे हैं कि आपको सच से चोट लग जाती है। आपको सच से चोट लगती है तो फिर हम कुछ नहीं कर सकते। हमें माफ कर दीजिएगा।
और निश्चित रूप से उसको चोट लगेगी तो वो भी पलट के आपको चोट देगा। आपकी पूरी तैयारी होनी चाहिए ऐसी चोट स्वीकार करने की। तो वो बार-बार स्वीकार करते रहे। उनको जिस पद पर रिटायर होना चाहिए था। वो रिटायर भी उससे एक पद नीचे पर हुए। लेकिन ठीक है। घर में बड़े अरसे तक तनाव का माहौल रहता था कि क्या अब कोर्ट की फिर से हियरिंग है। अब फिर से कोर्ट में जाना है। ये हुआ, वो हुआ। कोर्ट ने इंस्ट्रक्शंस दे भी दिए हैं कि आप किसी भी आधार पर इनका प्रमोशन नहीं रोक सकते। प्रमोट करिए तो भी जो सुपीरियर्स हैं वो वो इतने चिढ़े हुए हैं कि वो प्रमोट नहीं कर रहे हैं तो फिर दोबारा कोर्ट जाओ। वहां से कंटेंप्ट की प्रोसीडिंग्स शुरू करो और फिर जाकर के अपना प्रमोशन लो। ये सब इनका चलता था।
जो सेल्स टैक्स एसोसिएशन थी उसके कई बार प्रेसिडेंट रहे। तो एक बार उनका जो वार्षिक अधिवेशन होता था एनुअल गैदरिंग उसे मुझे भी साथ ले गए। मैं शायद सिक्स्थ में था। मैं 11 साल का था। तो वहां स्टेज पर उस समय जो यूपी के सीएम थे नारायण दत्त तिवारी जी वो मौजूद थे। तो उन्होंने कुछ कहा ऐसा इनके विभाग के बारे में। व्यक्तिगत रूप से पापा के बारे में कुछ नहीं। पूरे डिपार्टमेंट के बारे में कुछ कहा। जो कि थोड़ा अनुचित तो वहीं मंच पर मैंने उनको 1000 लोगों के सामने मुख्यमंत्री को यह कहते सुना कि मुख्यमंत्री जी जो आपने बोला है वो ठीक नहीं है।
अब जो आदमी मुख्यमंत्री को हजार लोगों के सामने कहेगा कि गलत बोल रहे हो। और मंच पर कहेगा गलत बोल रहे हो और मीडिया के सामने बोलेगा कि गलत बोल रहे हो। उसको फिर जो हमारा सिस्टम है वो तकलीफें तो देगा ही ना। तो तकलीफें कैसे झेलनी है सच्चाई के लिए वो आज मैं तुम्हारे सामने खड़ा हूं। इतनी बाधाओं से, दिक्कतों से, तकलीफों से गुजर कर यहां तक आया हूं और आज भी कितने तरीके की अड़चनें झेल रहा हूं। वह सब संभव हो पा रहा है क्योंकि मैंने देखा है कि करा जा सकता है। करा जाना चाहिए। बहुत बोलना नहीं और जब बोलना तो साफ बात बोलना।
दो टूक बात बोलना। कुछ ऐसा नहीं है कि बात में रफनेस है या क्रूडनेस है। एक कवि एक साहित्यकार की बात भी मंजी हुई होगी। शब्दों का चयन और वाक्य विन्यास भी बहुत साफ सुथरा होगा। लेकिन दुनिया ऐसी है कि साफ बात से घबराती है। दुनिया को झूठ चाहिए। दुनिया को बनावट चाहिए। बनावटी नहीं होना है। ये मुझे स्पष्ट होता जा रहा था। बनावटी मत हो जाना। और बनावटी हो जाने के बड़े फायदे मिलेंगे। दुनिया कहेगी कि तुम झूठ बोलो। नकली चेहरा दिखाओ। जहां हंसने की कोई जरूरत नहीं है। वहां भी हंसो। जिनको इज्जत नहीं दी जानी चाहिए। उनके सामने भी झुक जाओ। और तुम अगर यह सब कुछ करोगे तो हम तुमको रिवॉर्ड करेंगे। इनाम पुरस्कार देंगे। कोई रिवॉर्ड मत ले लेना।
एक जिंदगी है उसको साफ सुथरे तरीके से जीना है। गंदे नहीं हो जाना है। जब मैं स्कूल ड्रेस में देखता हूं ना बच्चों को तो सबसे पहले मेरे भीतर से एक एक डर सा उठता है। कहीं ये गंदे ना हो। हो जाए और इतनी सारी ताकतें हैं जो इसी में लगी हुई हैं कि तुम्हारे मन पर छा जाए और तुमको गंदा कर दें और बहुत सारे लोग तो शायद 15-17 के होते खूब गंदे हो भी चुके होते हैं। उनको फिर सुधारना या उनको वापस रिट्रीव करना भी मुश्किल काम हो जाता है।
और जो तीसरी चीज जो घर में थी, हवाओं में थी। मुझे पता भी नहीं चला मैं कब सीखता गया। वो ये कि चुप रहना सीखो। तब बोलो जब तुम्हारे बोलने की जरूरत हो। सिर्फ तब बोलो जब मौन की अपेक्षा शब्द बेहतर पड़ते हो। अन्यथा बहुत बोलो मत। और खासकर प्रतिक्रिया में तो बिल्कुल मत बोलो। रिएक्ट तो बिल्कुल ही मत करो। भले ही तुम्हारे आसपास के लोग कितनी भी कोशिश कर रहे हो कि तुमसे एक रिएक्शन निकलवा लें। रिएक्शन मत करना। जब करना अपनी मर्जी से एक्शन करना।
रिएक्शन का तो मतलब गुलामी होता है। कोई आपसे ऐसी बातें बोल रहा है जो बोली ही जा रही हैं कि आपको चुभे। जो बोली इसीलिए जा रही हैं ताकि आपकी ओर से भी कोई पलटवार आए। खासकर ऐसे पे तो बिल्कुल भी मत बोलना। एक मालकियत होनी चाहिए। सोवरेन्टी कि आप हमसे जबरदस्ती कुछ नहीं उगालवा पाओगे। एक शब्द भी नहीं। ना आप हमें मजबूर कर सकते हो बोलने के लिए प्रतिक्रिया देने के लिए और ना आप हमें रोक पाओगे जब हम कुछ करेंगे। जबरदस्ती हमसे आप कुछ करवा नहीं सकते और जब हम कर रहे होंगे तब आप हमें रोक नहीं सकते। दोनों स्थितियों में जबरदस्ती नहीं चलेगी।
यह नहीं होना चाहिए कि आप बैठे हुए हो। आप मुझे सुन रहे हो उदाहरण के लिए और आपके बगल वाला उसने आपको कोहनी मार दी और आप भी उसे कोहनी मारने लग गए और यह सुनना वगैरह सब पीछे छूट गया। ये तो जीत गया बगल वाला। वो खुद तो सुन रहा नहीं था। वो क्या कर रहा था? उसने कहा मैं तो सुन नहीं रहा हूं। ये मेरे बगल में बैठा हुआ है। ये इतने डूब करके इमर्शन में क्यों सुन रहा है? तो चलो इसको… वो जीत गया ना।
उसका एजेंडा था आपको डिस्टर्ब करना। वो डिस्टर्ब कर ले गया। और ये दुनिया एक चीज ही ऐसी है जिसका काम है मन को कॉलोनाइज करना। आपके देश को कोई कॉलोनाइज करता है। आपको कितना बुरा लगता है? लगता है ना? कोई आपकी शर्ट को गंदा कर देता है। आपको बुरा लगता है ना? किसी ने इंक मार दिया आपकी शर्ट पर। और कोई आपके मन पर कीचड़ मारे तो बुरा क्यों नहीं लगना चाहिए? ज्यादा बुरा लगना चाहिए ना। सबसे ज्यादा उनसे बचकर चलना है जो मन को गंदा करते हैं। मन ही सब कुछ है। इसको बचा ले गए तो जिंदगी बहुत खूबसूरती से निखर के आएगी। और मन गंदा हो गया तो फिर कुछ बचता नहीं है। समझ में आ रही है बात?
रिएक्शन हमेशा आपको गुस्सा दिलाकर ही नहीं लिया जाता। रिएक्शन आपके भीतर इमोशंस भावनाएं उकसा के भी लिया जाता है। ये एक और बड़ी गहरी चीज थी जो मुझे इनसे मिली। संवेदनशीलता, भावुकता नहीं, सेंसिटिविटी, इमोशनैलिटी नहीं। गजब के संवेदनशील आदमी थे। पर उनको मैंने नहीं देखा कि वो बहुत अपनी भावुक कभी स्थितियां प्रदर्शित कर रहे हो। संवेदनशीलता पूरी थी। अन्यथा वो वैसी कविताएं नहीं लिख पाते जैसी उन्होंने लिखी हैं।
लेकिन वो मंच वाले कवि नहीं थे। मंचों वाले कवि देखे हैं। वियरिंग योर इमोशंस ऑन योर स्लीव्स। वह सब भी सोशल मीडिया पर बहुत छाए रहते हैं। वो आकर के ऐसे हाथ उठा उठा के अपनी कविता बांचते हैं और दर्शकों से कहते हैं चलो ताली पीटो। वो वाले नहीं थे। वो लिखने वाले थे। बांचने वाले नहीं थे। समझ में आ रही है बात?
सेंसिटिव होना एक बात है और इमोशनल रिएक्टिवनेस बिल्कुल दूसरी बात है और आप जिस उम्र में आ गए हो अब वहां तो हार्मोनल रिएक्टिवनेस भी शुरू होगी या हो रही होगी। ये दुनिया आ रही है और आपको पता भी नहीं चला कि आपके भीतर से जो रिएक्शन आ रहा है वो आपका अपना है ही नहीं, वो एक केमिकल रिएक्शन है वो एक हार्मोनल रिस्पांस है और वो जो हार्मोनल रिस्पांस था वो आपको अपने साथ बहा ले गया।
नहीं बहना है। मेरी हस्ती, मेरे वचन, मेरे कर्म यह सब मेरी समझ से चलेंगे। ये सब मेरे नियंत्रण में रहेंगे। ये सब मेरे बोध से उठेंगे। कोई आकर के मुझे ललचा नहीं सकता। कोई आकर मुझे डरा नहीं सकता। कोई आके मुझे अगर किसी भी तरीके से आकर्षित करेगा, रिझाएगा अट्रैक्ट करेगा तब तो मैं और उसकी तरफ नहीं जाऊंगा क्योंकि यह मेरे साथ साजिश करी जा रही है। यह मेरे मन को इनवेड करा जा रहा है। ये आक्रमण है। ये उल्लंघन है। ये ट्रेस पासिंग है कम से कम। ये मेरी सेक्रेड टेरिटरी है। और यहां बस वही प्रवेश पाएंगे जो सेक्रेड होंगे। जो सेक्रेड नहीं है उसको यहां नहीं आने दूंगा। बाहर रहो, दूर रहो। मैं तुम्हें जानूंगा भी नहीं। ऐसा नहीं कि मैं तुमसे लड़ रहा हूं। तुम्हारे प्रति मेरा रुख यह है कि मैं तुम्हें जानूंगा भी नहीं। समझ में आ रही है बात?
नहीं आ रही है। एक हिंट दे देता हूं। जो सब लोग कर रहे हो जो बहुत प्रसिद्ध हो, पॉपुलर हो, प्रचलित हो। उसके प्रति थोड़ी जिज्ञासा की, संशय की एग्जामिनेशन माने परीक्षण की निगाह रखना। जो चीज ऐसी हो कि जिसमें सभी बहे जा रहे हो। बहुत ज्यादा संभावना है कि वह चीज गड़बड़ है। बहुत संभावना है। कोई चीज पॉपुलर है। शायद इसी से साबित हो जाता है कि वो चीज गड़बड़ है। या कम से कम उसके गड़बड़ होने की प्रोबेबिलिटी बहुत बढ़ जाती है।
डोंट ट्राई टू बिलॉन्ग टू द क्राउड। यह मत कहा करो कि अरे मैं तो पीछे छूट गया। आई एम लेफ्ट बिहाइंड। मुझे फोमो हो गया। फोमो फोमो पता है? पता ही होगा। फियर ऑफ मिसिंग आउट। ओ सब चले गए। आई मिस्ड आउट ऑन दिस। सब एक दूसरे से पूछ रहे हैं। सो डूड व्हाट्स अप ऑन द न्यू इयर्स ईव। और आपके पास कुछ बताने को नहीं है व्हाट एम डूइंग ऑन द न्यू ईयर। सो आप ऐसे छुप रहे हो या झूठ बोल रहे हो या किसी से कह रहे हो कि यार तू कहीं जा रहा है क्या? मेरे को भी साथ ले लेना।
बोल रहा है मैं जहां जा रहा हूं एंट्री चार्जेस हैं। 5000 लगेगा। तो जाकर के मम्मी से पापा से कुछ करके उनको भी इमोशनली ऐसे ब्लैकमेल करके आर्म ट्विस्टिंग करके उनसे पैसे ले रहे हो। यू डोंट लव मी ना? पैसे नहीं देना चाहते ना? सी ऑल माय फ्रेंड्स आर गोइंग देयर। सब जहां जा रहे हो वह जगह ही भेड़ों की होगी। हम सब लोग तो टॉप भी नहीं करते। अगर वही करना है जो सब करते हैं तो सब लोग तो कोई एंट्रेंस एग्जाम पास भी नहीं करते।
एक छोटी माइनॉरिटी होती है ना। दुनिया के सारे अच्छे काम एक छोटी माइनॉरिटी द्वारा करे जाते हैं। तो जो लोग मेजॉरिटी में रहने के लिए बहुत आकुल होते हैं। वो कभी कोई अच्छा और ऊंचा काम कर ही नहीं सकते। बोर्ड कौन टॉप करता है? मेजॉरिटी टॉप करती है? एंट्रेंस एग्जाम कौन क्लियर करता है? मेजॉरिटी क्लियर करती है। ग्रैंड स्लैम्स होते हैं। उनको मेजॉरिटी जीतती है? नहीं। कोई एक जीतता है।
माइनॉरिटी में रहना सीखो। अकेलेपन में आनंद महसूस करना सीखो। जो आदमी कहेगा कि मैं ऐट ईज़ तभी हूं, मैं आराम से तभी हूं जब मैं बाकी लोगों के साथ हूं। वो इंसान जिंदगी में बहुत नीचे स्तर पर रहेगा। बहुत औसत स्तर पर रहेगा। मैं अकेला हूं और अकेलेपन में मेरी शान है। इसका मतलब यह नहीं है कि अकेला हूं कि जितने अच्छे लोग थे उनको भी इधर-उधर भगा दिया कि भागो भागो। मैं तो अकेला हूं।
अकेलापन लेकिन चीज ऐसी है कि मिलता है। उत्कृष्टता की तलाश में जब भी निकलोगे तो अकेलापन मिलेगा। जो अकेलेपन से घबराएगा वह उत्कृष्टता भी नहीं पाएगा। उत्कृष्टता समझते हो क्या?
श्रोतागण:: नहीं।
आचार्य प्रशांत: नहीं समझते।
क्या वैदिक स्कूल है फिर? क्या तुम लोग कर रहे हो? एक्सीलेंस। एक तो संस्कृत पर बाद में आना। पहले हिंदी पढ़ना सीखो। भाषा सिर्फ भाषा नहीं होती। भाषा भाषा से आगे का भी कुछ होती है। जब आप भाषा बदलते हो तो बस ऐसा नहीं है कि जैसे आप बाइनरी सिस्टम से हेक्साडेेसिमल पर आ गए हो। एंड देयर वुड बी अ परफेक्ट ट्रांसलेशन और माइग्रेशन। ऐसा नहीं होता है। कुछ भीतर होता है जो बदल जाता है। है।
मैं चाहता तो आज आपसे अंग्रेजी में भी बात कर सकता था। पर जो मुझे बोलना है अंग्रेजी में वो थोड़ा अलग हो जाता। मैं कोई दोहा उठाऊं। जानने वालों ने ज्ञानियों ने बड़े अच्छे दोहे कहे हैं। और मैं वो आपको अंग्रेजी में सुनाऊं। उसका बिल्कुल सही अनुवाद अंग्रेजी में सुनाऊं तो बात नहीं बनेगी। नहीं बनेगी ना? तो दुनिया किधर को भी जा रही हो? तुम अपनी नजर से पता करो कि क्या सही है, क्या नहीं और उसको पकड़ कर चलो। सबके पीछे पीछे चलना कोई मजबूरी नहीं होनी चाहिए। और इस बात में कोई फक्र नहीं होना चाहिए कि सी हाउ पॉपुलर एम आई।
सबके अकाउंट्स होंगे। इंस्टा पर सबके अकाउंट्स होंगे। ओ मुझे इतने लोग फॉलो करते हैं। तुझे कितने फॉलो करते हैं? या मेरा फ्रेंड सर्किल इतना बड़ा है। तेरा कितना बड़ा है? मुझे कितने लोग पसंद करते हैं? तुझे कितने लोग पसंद करते हैं। सही काम करोगे तो बहुत संभव है कि नापसंद मिले, रिजेक्शन मिले। कोई बात नहीं। क्या हो गया?
ऐसे अलमारी थी और उसके बगल में सोफा रखा हुआ था। ऐसे अलमारी और ये सोफा ऐसे रखा होता था। तो अलमारी और सोफे के बीच में थोड़ी सी जगह होती थी। तो मैं वो वहीं जमीन पर बैठ जाता था और उसमें से कौन सी अलमारी किताबों की और मैं उसमें से किताब निकाल के पढ़ना शुरू कर देता था। और वो सोफे के बगल में मैं जमीन पर बैठा हुआ हूं।
तो एक बार ऐसा हुआ कि वहीं बैठे-बैठे पढ़ते-पढ़ते मैं सो गया और वहां आप वहां पढ़ते-पढ़ते सो जाओगे तो दिखाई भी नहीं पड़ोगे। खोज मची हुई है। आप वहां सो रहे हो। किसी को पता ही नहीं चल रहा है। चांटा पड़ा। कोई बात नहीं। आ रही है ये बात समझ में?
उन सब जगहों से बचकर चलना जहां ऐसी भीड़ है जो तुम्हारे मन को काबू कर लेना चाहती है। जब मैं पेरेंट्स से बात किया करता हूं तो उनसे कहता हूं कि देखो बहुत ज्यादा सामाजिक मत बनाओ बच्चे को उसको बचा कर रखो। दुनिया बहुत गंदी है। दुनिया बहुत गंदी है। और बच्चा आपको मिला है वो अभी साफ सुथरी चीज थोड़ी उसको बचाओ नहीं तो ये लोग सब आके अपना कीचड़ उस पर मल देंगे। क्यों उसको शादियों में लेकर चले जा रहे हो? शादियों जैसा भ्रष्ट माहौल और कहीं देखने को मिलता है। अच्छा खासा आदमी भी शादी में जाकर के एकदम लफंगे जैसी हरकतें करता है। और वहां तुम अपने बच्चे को ले जा रहे हो। वो क्या देख रहा है?
चार दिन शादी वाले माहौल में रह के वो आधा बर्बाद हो के लौटेगा। मत ले जाओ ना। बहुत लोगों को बहुत अजीब लगेगा शादी में नहीं ले जाएं तो क्या करें पर समझना थोड़ा, सोचना इस बारे में। गौर करना कैसा माहौल होता है वहां पर वहां पर टैगोर की और कांत की बात हो रही होती है? वहां भगत सिंह की बात हो रही होती है? वहां आजाद की बात हो रही है? वहां शेक्सपियर की बात हो रही है? वहां बुद्ध की महावीर की उपनिषदों की बात हो रही है? वहां कौन सी बातें हो रही है?
डीजन आया अभी तक? क्यों तुम जो नन्हा है उसको खराब करना चाहते हो? हम जानते नहीं क्या कि दुनिया कैसी है? जैसी दुनिया है वैसे ही हमारे रिश्तेदार भी हैं। इन रिश्तेदारों को क्यों एक्सपोज कर रहे हो बच्चों के? मत एक्सपोज करो। उन्हें बुरा लगता है तो लगे। तुम्हारे पास बर्बाद करने को तुम्हारा बच्चा है। उसको बर्बाद करो। कुछ आ रहा है समझ में?
अभी बैठे हो। बहुत सारे चेहरे मासूम लग रहे हैं। सीधे-साधे लग रहे हैं। तो मुझे डर ये लगता है कि इन्हीं से पांच साल बाद मिलूंगा फिर डूड डूड नहीं बन चुके होंगे। है ना ऐसा?
श्रोतागण: सर हाँ में हिलाते हुए।
आचार्य प्रशांत: देखो आपके टीचर्स जानते हैं अच्छे से कि ऐसा है।
जैसे फूल हो नन्हे जिन्हें खाने के लिए दुनिया के सारे जानवर लगे हुए हैं। जैसे लताएं हो कोमल उनको थोड़ी सी सुरक्षा, थोड़ी बाढ़ तो देनी पड़ेगी ना तो कोई बकरी आगे चढ़ जाएगी। कईयों को तो बहुत मजा आ रहा है। बिल्कुल ऐसे हो गए हैं। और कई कह रहे हैं कि बात कुछ खतरनाक है हम नहीं सुनेंगे। क्योंकि अगर ये बात सुन ली तो सुविधाओं पर चोट पड़ेगी।
चलो मुझे अपनी ओर से इतना ही बोलना था। आपने इतना भी सुन लिया बड़ी बात है क्योंकि हम जहां आ गए हैं वहां इतना भी अटेंशन स्पैन होता नहीं है।
प्रश्नकर्ता: सर मेरा जैसे क्वेश्चन था कि आप बचपन में जैसे आप इतना पढ़ाई में अच्छे थे। आप हर दृष्टिकोण से अच्छे थे। मतलब स्पोर्ट्स में भी बहुत अच्छे अव्वल दर्जे के थे। तो सर और आपकी मदर को भी कई बार मदर क्वीन के नाम से पुरस्कार कर दिया गया है।
सर जैसे हमारी अभी जो जेनरेशन है उनको कुछ भी छोटी सी एकम्प्लिशमेंट में उनको बहुत घमंड आ जाता है। और सर आप तो हमेशा मेक फॉरवर्ड मेक फॉरवर्ड रहे। मतलब आपने इतना सब कुछ क्लियर करा आई.आई.एम भी क्लियर करा। फिर 28 साल में कॉर्पोरेट दुनिया से आपने रिटायरमेंट ले लिया जब सब लोग अपना करियर बना रहे होते हैं।
तो सर आपको ऐसी क्या चीज मोटिवेटेड रखती है? और सर दूसरा यह है कि अभी आज की पीढ़ी कैसे अपने आपको इस ईगो से दूर रखे कि हम जो है हम ही सब कुछ हैं।
आचार्य प्रशांत: अब बेटा ये किताब है। कभी मैंने कुछ बोला कुछ लिखा उससे यह किताब बन गई। अब मैं आपके सामने आऊं और मैं कहूं कि मुझे जो करना था पाना था पा लिया। देखो यह रही किताब। यह रही मेरी उपलब्धि एकम्प्लिशमेंट और मैं फिर यहां पर खड़ा होकर के 10-15 मिनट हुई कुछ हल्की-फुल्की बकवास करके चला जाऊं। मैं कहूं मुझे अब कुछ करने की जरूरत क्या है? इतना कुछ तो मैंने कर दिया और मेरे नाम के साथ अब यह लगा हुआ है। वह लगा हुआ है। मेरे पीछे लंबी कतार आप लिख सकते हो। ऐसा किया वैसा किया। कुछ भी नहीं।
मैं जो आज कर रहा हूं वो शून्य से शुरू कर रहा हूं ना। तो जैसे आज आप यहां शून्य से शुरू कर रहे हो और आपके लिए जरूरी है कि आप अच्छे श्रोता होकर के सुनो। वैसे ही मैंने पीछे क्या किया वो आज मेरे काम नहीं आएगा।
आज मेरे लिए जरूरी है कि मैं शून्य से शुरू करके एक अच्छा वक्ता बनकर आपसे बात करूं। और क्या आप मुझे माफ करोगे अगर मैं कह दूं कि मैं बड़ा आदमी हूं? मैंने इतना कुछ कर रखा है। मुझे अब और कुछ करने की क्या जरूरत है? हर दिन नया दिन होता है। हर पारी एक नई पारी होती है। पिछली क्लास में अच्छा रिजल्ट आ गया। क्या फर्क पड़ता है?
अगला एग्जाम सामने है। पिछली क्लास में अच्छा रिजल्ट आ गया तो क्या होता है? और बात एग्जाम की भी नहीं क्योंकि एग्जाम भी होता है 3 महीने 6 महीने में एक बार। हर दिन एक नई चुनौती है जिसमें आपको पुनः नए सिरे से उत्कृष्टता हासिल करनी है।
उत्कृष्टता माने एक्सीलेंस।तो देयर इज नो रेस्टिंग ऑन पास्ट लॉरेल्स कि पीछे मैंने ऐसा कर लिया मैं तो अच्छा हो गया। ऐसे थोड़ी होता है। हम 10th की बात कर रहे थे ना कि बोर्ड टॉप किया उसके बाद 11th में पहुंचा तो शहर बदल गया। लखनऊ से गाजियाबाद आ गया।
वहां जो पहला ही एग्जाम था क्वार्टरली। उसमें कुछ डेटशीट देखने में गड़बड़ कर दी तो एक एग्जाम मिस ही कर दिया। जब मिस कर दोगे तो रिजल्ट में क्या लिखा आता है? कुछ भी नहीं। अब आप कहां तो दुनिया जीत जात के आ रहे हो, भारत में ही आपकी थर्ड रैंक थी। तो वो रिजल्ट कार्ड आया उसमें कुछ नहीं लिखा हुआ है।
ये माता जी बैठी हैं। उन्होंने रिजल्ट कार्ड लिया मेरी को देखा और रिजल्ट कार्ड फाड़ दिया और अभी यह सब कब हो रहा है? यह हो रहा है सन 93 के अगस्त या सितंबर में और सन 93 के ही अप्रैल में अखबारों पर छाए हुए थे। उनकी क्लिप्स आज भी घर पर रखी हुई हैं। सार्वजनिक अभिनंदन हो रहा था। यूपी के गवर्नर आकर के बड़े स्टेज पर हजारों बैठे हुए हैं। उनके सामने इनको माता जी को एक तरफ फल फूल रखे गए थे तराजू में। और दूसरी तरफ तराजू में इनको बैठाया गया था। यह मदर क्वीन है भाई।
और यह कौन कर रहे हैं? यह गवर्नर ऑफ यूपी कर रहे हैं। और साथ में चीजें दी गई हैं। साइकिल दी जा रही है। एक नहीं तीन-तीन बार साइकिल दी जा रही है। और चीजें ये वो घड़ी घर में एक एकदम पुराना सड़ा सा मैंने कैसरॉल देखा। मैंने कहा इसको क्यों बचा रखा है आपने? बोलती है तुमको दिया था यूपी के गवर्नर ने इसलिए। तो ये सब अप्रैल में चल रहा है। और उसी साल के अगस्त नवंबर में वही खड़े हो मेरा रिजल्ट कार्ड लिया ऐसे फाड़ दिया।
करा होगा तुमने अप्रैल में कुछ। बताओ अगस्त में क्या करा? अप्रैल में जो करा वो अगस्त में काम नहीं आएगा। हर दिन एक नया दिन है। गंदा होने का, हार जाने का, झुक जाने का, भ्रष्ट हो जाने का खतरा हर दिन है। आलस नहीं करना है। बहुत अपने आप पर भरोसा नहीं करना है।
माया बोलते इसको। माया महा ठगिनी हम जानी ठीक। जब तुम्हें लगता है कि तुम जीत गए वो हंस रही होती है और तुम्हें हरा देती है। हार से तो सावधान रहना ही है जीत से और ज्यादा सावधान रहना है। मेरे लिए आज भी हर दिन एक नया दिन होता है जिस दिन मैं बिल्कुल शून्य पर खड़ा होता हूं जीरो पर। मुझे नहीं याद होता कि मेरे पास पीछे कुछ है, नहीं है, क्या है मालूम नहीं। तुमसे बात कर रहा हूं मैं उतनी ही गंभीरता से कर रहा हूं जितना मैं पिछली रात बात कर रहा था।
कल लंबा चौड़ा भगवद्गीता पर सत्र था। नहीं संत सरिता थी। वहां दो-तीन घंटे तक रात में बात चली है। करीब रात १२.३०- १.०० तक चली होगी। मैं ये थोड़ी कह सकता हूं कि कल मैं इतनी ऊंची बात करके आया हूं। इतिहास पुरुषों की बात और अभी एक छोटा सा बच्चा आया है। ये दसवीं का है। मुझे यहां पर अपने आप को पूरी तरह उड़ेलने की क्या जरूरत है? मैं यहां हल्के हाथ से काम चला लेता हूं। ऐसे ही कोई सतही सा हल्काफुल्का जवाब दे देता हूं। बच्चा ही तो है मान जाएगा क्या फर्क पड़ता है?
नहीं। जिंदगी का छोटा काम हो, बड़ा काम हो, कोई भी काम हो, वो काम तुम कर रहे हो ना, तो उस काम में तुम्हारी गरिमा दिखाई देनी चाहिए। हर छोटे-छोटे काम में भी तुम्हें कहना है उत्कृष्टता। छोटा काम भी कर रहा हूं तो उसमें वो एक्सीलेंस झलकनी चाहिए और हर दिन झलकनी चाहिए। आखिरी सांस तक झलकनी चाहिए। मरेंगे भी शान से। जिए अगर शान से हैं तो ये थोड़ी है कि मरते वक्त अपनी गरिमा त्याग देंगे। ऐसा नहीं है।
प्रश्नकर्ता: सर बस एक क्वेश्चन और। सर जैसे मैंने आपको एक साल से फॉलो कर रखा है। तो सर आपका जैसे एनजीओ बहुत सारे वीगन लाइफस्टाइल ये सब कि आप एनिमल्स का कंजर्वेशन करते हो। सर जैसे मेरे बहुत सारे फ्रेंड्स हैं और मैं पर्सनली एक वेजिटेरियन हूं और मेरे जैसे मुस्लिम फ्रेंड्स भी हैं तो वो लोग कहते हैं कि ऐसे क्यों करते हो?
तो उन्होंने कहा कि जैसे हमारे जो पूर्वज रह चुके हैं। उनके वक्त में ऐसा कुछ था नहीं कि वो खा सके, वेज खा सके। तो उन्हें यह खाना पड़ा मर मतलब फिर तो उनकी डेथ हो जाती। तो इसलिए हम लोगों ने अब ऐसा चले आ रहा है तो हम अभी भी कर रहे हैं। तो सर इसका मतलब इसका कोई उनको मेरे पास कोई रिलाएबल आंसर है नहीं उनके लिए। क्योंकि अब उनको हम कैसे चेंज करें जब इतने समय से आ चुकी है। तो सर आप इसके बारे में कुछ कह दो तो…
आचार्य प्रशांत: पूर्वज तो पेड़ के ऊपर भी रहते थे। पूर्वज तो ब्रश भी नहीं करते थे। पूर्वज तो जंगल से आए हैं। जो जंगल में होता था वो सब करते थे पूर्वज। तुम्हें उन पूर्वजों जैसा ही करना है तो Twitter Facebook क्यों चलाते हो? यह एजुकेशन क्यों ले रहे हो? कार पर क्यों चलते हो? यह मकान क्यों खड़े करे हैं?
माने जितनी अपनी हवस है उसको पूरा करने के लिए पूर्वजों का बहाना उठा लो। जब तुम पूर्वजों जैसा ही होना चाहते हो तो फिर जंगल जाओ ना। वो जंगल से आए हैं। और पूर्वजों को तो कोई वैक्सीन भी नहीं लगती थी। पूर्वजों के पास इतनी दवाइयां भी नहीं थी। अलग ही तरह की व्यवस्था चलती थी। फिर उस व्यवस्था पर भी वापस लौट जाओ। पूर्वजों के पास तो शौचालय भी नहीं होते थे। उनको जहां होता था वहीं खड़े हो के।
तुम काहे के लिए कहते हो कि व्हेन विल द रेस्ट रूम बी फ्री? जो बोले कि मैं पूर्वजों जैसा हूं तो उसको बोलो यहीं पैंट उतारो। यहीं पे। पूर्वजों का तो ऐसे ही चलता था जैसे जंगल के जानवर होते हैं। पूर्वज एक दूसरे से मिलते थे। तो नमस्ते दुआ सलाम थोड़ी करते थे। कभी दो जानवरों को देखना जब वो आपस में मिलते हैं तो क्या करते हैं। वो एक दूसरे को सूंघते हैं। वो सूंघा करो एक दूसरे को और बहुत गड़बड़ तरीके से सूंघते हैं। एक दूसरे को पहचानने के लिए वो।
तो जो कोई बोले कि हम पूर्वज जैसे हैं उसको कहना है कि फिर तू दूर रह और तुम दोनों एक दूसरे को सूंघो। यही तुम्हारा आपसी इंट्रोडक्शन है। और पूर्वजों के पास तो भाषा भी नहीं थी। कि भाषा का भी क्रमशः विकास हुआ है। तो भाषा में भी मत बोलो और कपड़े भी नहीं थे। सबसे पहले तो हम बड़े मायावी लोग होते हैं। जो हमारी कामना होती है ना डिजायर उसको पूरा करने के लिए हम किसी भी तरह का बहाना बना सकते हैं। कोई भी तर्क ला सकते हैं।
बहुत जरूरी होता है नजर रखना अपने आप में कि मेरे सारे तर्क आर्गुमेंट्स आ कहां से रहे हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि वो बस इस ज़िद से आ रहे हैं कि मुझे तो एक बेजुबान जानवर को मारना है और उसका मांस चबाना है क्योंकि मुझे स्वाद आता है। अपने स्वाद की हवस के लिए, ललक के लिए तुम खून बहाने को तैयार हो। तुम झूठ बोलने को तैयार हो। तुम लड़भड़ जाने को भी तैयार हो। यह इंसानियत का तो नहीं सबूत है।
प्रश्नकर्ता: थैंक यू सर।
धन्यवाद और शुभकामनाएँ
अनेक आभार। आचार्य प्रशांत जी ने हमारे बच्चों को जीवन का कलात्मक अनुभव प्रदान किया। उनके समक्ष मैं निशब्द हूं। सिवाय आभार के और कोई अन्य शब्द नहीं है। बच्चों आचार्य प्रशांत आपके लिए उपहार लेकर आए हैं। यह बात बिल्कुल अधूरी छोड़कर जा रहा हूं क्योंकि बात कभी पूरी नहीं होती।
आचार्य प्रशांत: पूरा तो जिंदगी को ही होना होता है। जिंदगी को आपको पूरा करना है। कभी बिल्कुल आस टूटने लगे, भरोसा मिटने लगे, लगे कि घुटने टेक ही दे और बाकी सब उपाय काम ना आ रहे हो तो एक उपाय ये और कर लीजिएगा याद कर लीजिएगा कि एक व्यक्ति है जो कम से कम अभी घुटने नहीं टेक रहा है।