आत्म-विचार से आत्म-बोध तक || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014) ...ये सारे विचार किस श्रेणी के हैं? कहाँ आएंगे? आत्म-ज्ञान(सेल्फ-कौनशियसनेस) में| ठीक है? और ये हम सब अकसर करते ही रहते हैं, पर इसको हम पूरी ताकत के साथ नहीं करते| जब अपने बारे में यही विचार पूरी शिद्दत के साथ किया जाता है, तो धीरे-धीरे विचार छटने लगता है, और एक स्पष्टता आने लगती है| प्रयोग तुम विचार का ही कर रहे हो, पर इतनी ताकत से प्रयोग किया, इतनी आतुरता है समझ जाने की, कि अब सोच धीरे-धीरे छटना शुरू हो जाएगी, और स्पष्टता आने लगेगी, और जब स्पष्टता आने लग जाती है तब विचार की कोई आवश्यकता ही नहीं है| विचार जैसा मैंने कहा कि छटने लग जाता है, जैसे बादल छटते हैं, और बात खुल जाती है, बिल्कुल स्पष्ट| ये स्थिति होती है आत्म-बोध की, ये सेल्फ-अवेयरनेस कहलाती है| हम भूल करते हैं, हम अकसर आत्म-ज्ञान(सेल्फ-कौनशियसनेस) को आत्म-बोध(सेल्फ-अवेयरनेस) समझ लेते हैं| याद रखना आत्म-ज्ञान(सेल्फ-कौनशियसनेस) में अपने ही बारे में विचार करने वाला मन मौजूद है, अहंकार मौजूद है, वो अहंकार ही विचार कर रहा है, वही केंद्र है विचार का| तुम वहाँ बैठे हुए हो, और वहाँ बैठ कर अपने जीवन को देख रहे हो| आत्म-बोध(सेल्फ-अवेयरनेस) में जो केंद्र था अहंकार का, वो केंद्र ही मिट गया| तो इसीलिए जो केंद्र आत्म-ज्ञान(सेल्फ-कौनशियसनेस) में मौजूद है वो केंद्र आत्म-बोध(सेल्फ-अवेयरनेस) में मौजूद ही नहीं है, ये दोनों बहुत अलग-अलग बातें हैं| आत्म-ज्ञान(सेल्फ-कौनशियस) तो हर कोई होता है, तुम देखो चारों तरफ भीड़ को, वो बड़ी आत्म-ज्ञान(सेल्फ-कौनशियस) है| ‘मेरी छवि कैसी बन रही है? ...आत्म-विचार से आत्म-बोध तक || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)...