साँप बेचारे! || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)

Acharya Prashant

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साँप बेचारे! || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, मेरा सवाल साँपों को लेकर जो रहस्यवाद और मिस्टिसिज्म है उसको लेकर है, कि जैसे बचपन से ही काफ़ी छवियाँ हमारे दिमाग में उनको लेकर हैं कहानियों के द्वारा, और काफ़ी फिल्में भी देखी हैं जैसे नागिन मूवी है, इच्छाधारी नागिन है, उनका पुनर्जन्म और नागमणि इस तरह की कहानियाँ हमने सुनी हैं। और भारत में भी साँपों को विशेष महत्व दिया जाता है, अलग-अलग त्यौहार मनाये जाते हैं, जैसे नागपंचमी और उन्हें दूध भी पिलाया जाता है, और जैसे कई धर्मगुरु भी हैं जिन्होंने ये कहा है कि साँप बहुत ऊँचा स्थान रखते हैं, कोई विशेष महत्व रखते हैं; तो मैं जानना चाह रहा हूँ, क्या ये सब बातें सच हैं? क्या वास्तव में साँप कोई विशेष महत्व रखते हैं?

आचार्य प्रशांत: (इशारों में कहते हैं कि अब क्या बोलूँ इस पर, और सब हँसते हैं) एक प्राणी है, जी लेने दो उसे, किसलिए कहानियाँ बना करके उसकी ज़िन्दगी में उपद्रव करते हो। कौन से साँप के सर पर आपने पत्थर लगा हुआ देख लिया भाई? नागमणि, कहाँ है? उसके सर को पकड़ेंगे तो अन्दर से मष्तिष्क निकलेगा, ‘ब्रेन’, पत्थर नहीं निकलेगा। पर कहानी चला रखी है, 'नागमणि होती है, वो विशेष जादू रखती है। उसमें सिद्धियाँ होती हैं; और कोई साँप का काटा हुआ हो उसको मणि दिखा दो तो वो ठीक हो जायेगा।'

वो एक रेप्टाइल है, ‘सरीसृप’; कुछ नहीं है। जैसे छिपकली होती है, जैसे गिरगिट होता है, जैसे वो सब ड़ायनासॉर थे जो मर गए बेचारे, वैसे ही साँप होता है। मगरमच्छ देखा है, ‘क्रोकोडाइल’ , वैसे ही साँप होता है (हँसते हुए); उसके साथ इतना क्या चला रखा है? हाँ, इतना ज़रूर है कि जो पुरानी धार्मिक परम्पराएँ हैं, उनमें साँप को स्थान इसलिए दे देते हो क्योंकि मनुष्य को हमेशा से साँप से डर लगता रहा है, और साँप के काटने से बहुत ज़्यादा मौतें हुआ करती थीं; आज भी होती हैं। भारत में आज भी लाखों लोग मरते हैं साँप के काटने से; बस जो स्नेक बाईट है, वो नोटिफ़ाइड डिज़ीज नहीं है इसलिए पता नहीं चलता।

मर भी जाते हैं या ये हो जाता है कि साँप ने काट लिया तो वो हिस्सा बेकार हो गया, या कि आदमी बेकार हो गया, लकवा मार गया, टाँग काटनी पड़ गयी, ये सब होता है। तो साँप का काटना आज भी बड़ी दहशत का कारण है, ख़ासतौर पर अगर ग़रीबों के घर में किसी को साँप ने काट लिया तो आमदनी का ज़रिया ही बंद हो जाता है, वो आदमी मरे, चाहे न मरे; मर गया तो भी और नहीं भी मरा तो भी। बहुत सम्भावना होती है कि साँप के काटने से आप बच भी जाएँगे तो आपके शरीर में, किडनी तक में क्षति आ सकती है, यही नहीं कि हाँथ-पाँव में, किडनी में भी, ब्रेन में भी क्षति आ सकती है। तो इसलिए आदमी साँप से बड़ा डरता रहा है।

सोचो, आज इतनी विकट हालत है, तो पहले साँप के काटने से कितने लोग घायल होते होंगे या मरते होंगे? बहुत होंगे न? बहुत होंगे। तो आदमी डर गया साँप से, बहुत डर गया साँप से, तो साँप को लेकर के फिर उसने मिथक बना लिए। तुम जिससे डर जाते हो वो तुम्हारी कल्पना में खूब नाचता है न फिर। आप किसी से डरे हुए हो तो आप उसके बारे में फिर खूब सोचेंगे न, कि नहीं सोचेंगे? जिससे आपको मोह होता है आप उसके बारे में भी खूब सोचते हो, और आप जिससे डरते हो आप उसके बारे में भी खूब सोचते हो।

तो इंसान ने साँप के बारे में खूब सोचना शुरू कर दिया, भारत में भी, पूरी दुनिया में भी; तो उसका नतीज़ा ये हुआ कि सामाजिक तल पर बहुत सारी फिर इस तरह की कहानियाँ निकल पड़ीं साँपों को लेकर के। प्रतीक के तौर पर देखें तो साँप का अर्थ है, 'प्रकृति का वो रूप जिससे आप डरते बहुत हो और घृणा भी करते हैं', कि दिख गया साँप कहीं, कि लट्ठ मारने लगे, मारो, मारो, मारो। तो साँप किसका प्रतीक हुआ? प्रकृति के उस रूप का जिससे आप बहुत डरते हो, बहुत डरते हो।

फिर यही वजह है कि जो शिव का साकार निरूपण किया गया उसमें साँप को जगह दी गयी, कि उनके गले में साँप है। माने तुम जिससे डरते हो, शिव उसके सामने अभय हैं; जिस प्रकृति से तुम डरते हो वो शिव की गोद में खेलती है। शक्ति के स्वामी हैं न शिव! शक्ति माने क्या होता है? प्रकृति! तो प्रकृति के स्वामी हैं शिव; इसीलिए उनको पशुपति भी बोलते हैं न, वो प्रकृति के स्वामी हैं। तो प्रकृति के स्वामी हैं, इसीलिए सब तरह के पशु वगैरह उनके साथ रहते हैं, उनकी सेवा करते हैं और उनसे शिव को न कोई ख़तरा है न डर है।

तो अलग-अलग परम्पराओं में सर्प मात्र ही नहीं अन्य भी ऐसे जीव-जन्तु जिनसे इंसान दूर-दूर ही रहता है, वो भी शिव के निकट दिखाए जाते हैं। वो बात प्रतीकात्मक है, उसका मतलब ये नहीं है कि साँप में कोई ख़ास बात हो गयी। सर्प उनके गले में है या उनकी जटा में है, इससे बस ये पता चल रहा है कि वो प्रकृति के बहुत निकट हैं; प्रकृति को उन्होंने अभय दान दे रखा है, प्रकृति के स्वामी हैं वो। और शिव को प्रकृति का स्वामी बता करके आपको एक सीख दी जाती है, वो एक प्रबल सूचक है, शिव की मूर्ति। आपको क्या सीख दी जाती है? अगर प्रकृति से सही सम्बन्ध रखना सीख लोगे तो फिर प्रकृति से डरोगे नहीं, और प्रकृति से न डरने का अर्थ होता है, 'मृत्यु से न डरना'; क्योंकि साँप से भी तुम इसीलिए डरते हो क्योंकि मृत्यु से डरते हो।

जन्म भी प्रकृति में है, मृत्यु भी प्रकृति में है। जिसने प्रकृति से सही सम्बन्ध रखना सीख लिया अब वो मृत्यु से नहीं डरता, एक अर्थ में वो अमर हो जाता है; अब वो मरेगा नहीं। क्योंकि मृत्यु क्या है? मृत्यु का खौफ़ ही मृत्यु है। मृत्यु जीवन के अंत में एक दिन घटने वाली कोई घटना नहीं है कि आज ये व्यक्ति मर गया; ये जो आप प्रतिपल मृत्यु के डर में जीते हो इसी को मृत्यु कहते हैं। मृत्यु की कल्पना ही मृत्यु है।

जिसके मन से मृत्यु की कल्पना निकल गयी क्योंकि मृत्यु का डर निकल गया, वो व्यक्ति अमर हो गया। वो अब शरीर बन के नहीं जी रहा क्योंकि मौत तो शरीर की होनी है न, वो अब चेतना होकर के जी रहा है; यही अमरता है। क्योंकि मरता शरीर है, चेतना नहीं मरती है न, वो अमर हो गया।

तो शिव का प्रतीक है आपको अमरता की सीख देने के लिए, बल्कि अमरता की युक्ति बताने के लिए, ऐसे अमर होना है। कैसे अमर होना है? प्रकृति में जो कुछ भी है उससे सही सम्बन्ध रखना सीखो! इसका मतलब ये नहीं है कि वो जो प्राणी है सर्प, उसमें कुछ विशेष है, उस बेचारे में कुछ विशेष नहीं है; कह रहा हूँ ‘उसे जीने दो न, किसलिए परेशान कर रहे हो उसको।‘

नागपंचमी में उसको पकड़ लेते हैं, उसको लगे हैं दूध पिलाने में। एक बात बताओ दूध किन प्राणियों को होता है? थोड़ी तो बायोलॉजी पढ़ी होगी। जिन्हें दूध होता है उनको क्या बोलते है? मैमल, ‘स्तनधारी'। साँप स्तनधारी है? साँप क्या है? रेप्टाइल। इनको दूध होता है? जब रेप्टाइल को दूध नहीं होता तो वो बेचारा दूध पिएगा कहाँ से पगले? आपके भीतर दूध का सिर्फ़ निर्माण ही नहीं होता है, आपके भीतर दूध को पचाने का एंज़ाइम भी होता है ‘लैक्टेज'; और वो बच्चों में ज़्यादा होता है बड़ों में नहीं होता है, इसीलिए बड़े भी जब दूध पीते हैं तो उन्हें पच नहीं सकता ठीक से। जो आप दूध-दूध पीते रहते हो न, इसी से आपको गैस बढती है, मान नहीं रहे हो।

पचाओगे कहाँ से, बच्चों में होता है ये। क्योंकि प्रकृति ने व्यवस्था ही ऐसी करी है कि बच्चों के लिए दूध है, वो पचाएँगे। अब एक तो चालीस साल के होकर के दूध पी रहे हो, वो भी भैंस का, पचेगा कहाँ से? पागल! तो इंसान को ही नहीं पच सकता, साँप को कैसे पचेगा? साँप को कैसे पचेगा दूध? बताओ। और तुम उसे ज़बरदस्ती पिला देते हो, क्या होगा? जब पचेगा नहीं तो क्या होगा? तुम्हें पता है, दूध पिलाने से साँप मर जाता है?

इसपर पढ़ लेना ठीक से। नागपंचमी पर जब ज़बरदस्ती दूध पिला दोगे तुम साँप को, तो उसके बाद उसको पचता नहीं है, उसका पेट फूलता है और साँप उससे मर भी सकता है। तो फिर कहोगे, पी क्यों लेता है दूध, पी क्यों लेता है? आपको ये प्रदर्शित करने के लिए कि साँप दूध पीता है, बहुत सारे है साँप रखने वाले, पहले सँपेरे हुआ करते थे आजकल गुरुजी हैं जो साँपों के विशेषज्ञ हैं। ये लोग क्या करते हैं कि साँप को कई दिनों तक प्यासा रखते हैं, डीहाइड्रेट कर देते हैं उसको, उसको इतना डीहाइड्रेट कर देते हैं कि फिर उसको पानी जिस भी रूप में मिल रहा होता है वो उसकी ओर भागता है।

आपको बिलकुल प्यासा रख दिया जाए, तो उसके बाद आपको पानी में कुछ मिला के भी दे देंगे तो आप पी लोगे न। अब दूध में बहुत सारा पानी होता है तो साँप दूध नहीं पी रहा होता, साँप पानी पी रहा होता है क्योंकि बहुत प्यासा है, क्योंकि उसको ज़बरदस्ती प्यासा रखा गया है; और आपको लगता है साँप दूध पी रहा है। साँप को दूध से क्या लेना देना? साँप ने अपनी माँ का ही नहीं दूध पिया; साँप की माँ को स्तन थे? साँप की माँ स्तनधारी थी क्या? तो साँप ने दूध कहाँ से पिया होगा? दूध से साँप को कोई लेना-देना ही नहीं है, एकदम नहीं लेना-देना है। पर ज़बरदस्ती एक छवि बनाई गयी है, क्यों? क्योंकि हमारे दिमाग में साँप का आदिम डर बैठा हुआ है। क्यों? क्योंकि पहले हम सब जंगल में ही रहते थे। वहाँ साँप बहुत थे और रौशनी नहीं थी, सफ़ाई नहीं थी, अँधेरा बहुत था, कुछ पता नहीं चलता था साँप आ के काट लेता था, आदमी मर जाता था; तो तबसे हमारे वो खौफ़ बैठ गया है।

और उसी खौफ़ को परम्परा ने पकड़ लिया है, पकड़े ही हुए है। अब आप इस शताब्दी में जी रहे हो तब भी वो साँपों वाली कहानी चल ही रही है और उसको गुरु लोग और आगे बढ़ा रहे हैं; स्नेक्स , मिस्टिसिज्म , ये वो, व्यर्थ की बात, मूर्खता! और इसमें इंसान को जो भ्रम होता है तो होता है, इसमें साँपों को बड़ा फिर कष्ट दिया जाता है।

अभी तो कानून बनाकर के बंद कर दिया है, नहीं तो पहले ये सँपेरे बीन लेकर घूमते थे, पुंगी लेकर घूमते थे और फ़िल्मों में दिखाते थे कि वो बीन बजा रहे हैं तो साँप नाच रहा है। फिर अगर थोड़ा सा भी पढ़ा होता, साँप की एनॉटोमी के बारे में; साँप को कान ही नहीं होते, वो सुनेगा कहाँ से? वो बीन कहाँ से सुन लेगा? हाँ तुम गाते हो, ‘मन डोले, मेरा तन डोले' (सब हँसते हैं), तुम्हें बड़ा अच्छा लगता है फ़िल्म में गाना आ गया। ‘सँपेरे बीन बजा मैं नाचूँगी', बड़ा मज़ा आया, सँपेरे ने बीन बजाया और वो तो नाच रहा है, उसको सुनाई ही नहीं पड़ रहा वो कैसे नाचेगा? तो फिर वो नाचता कैसे है? सपेरा भी शातिर है, उसे पता है कि साँप ज़मीन पर रेंगता है तो उसको प्रकृति ने शक्ति दी है वाइब्रेशन पकड़ने की; ज़मीन पर वाइब्रेशन है, वाइब्रेशन पकड़ता है वो। तो सपेरा बीन तो बजा रहा होता है और यहाँ आपको दिख नहीं रहा होता वो ये है कि साथ ही साथ वो अपनी थाप दे रहा होता है, और थाप अगर नहीं दे रहा तो ज़मीन पर अपने पाँव जो है टैप कर रहा होता है, पटक रहा होता ह, उससे वाइब्रेशन निकलते हैं; वाइब्रेशन निकलते हैं तो साँप उसपर प्रतिक्रिया करता है। पर हम देखते हैं कि बीन जिधर-जिधर जाती है साँप भी उधर-उधर जाता है, क्योंकि वो डरा हुआ है बीन से; डरा हुआ है। जब आप डरे हुए हो तो जिस चीज़ से डरे हो, वो जिधर को होती है उसका पीछा करोगे न; तो साँप बीन का ऐसे पीछा कर रहा है (हाथ से साँप के फन की आकृति बनाकर हिलाते हैं)। उसको लग रहा है ये जो बीन है, ये कहीं उसपर आक्रमण न कर दे; तो बीन को ऐसे-ऐसे (फन की आकृति बनाकर हाथ हिलाते हैं) पीछा कर रहा है, आपको लग रहा है वो नाच रहा। वो नाच नहीं रहा, वो डर के मारे बीन को देख रहा है कि बीन क्या चीज़ है, ऐसे-ऐसे। (फन की आकृति बनाकर हाथ हिलाते हैं)

व्यर्थ ही नहीं भारत का नाम हो गया था, यही ‘स्नेक चार्मर्स लैंड’। यहाँ क्या होता है? यहाँ पे स्नेक चार्मिंग चलती है। उस एक मुहावरे ने भारत की परंपरा को, संस्कृति को और भारत के पतन को बिलकुल स्पष्ट प्रस्तुत कर दिया था। स्नेक चार्मर्स, जानते कुछ नहीं हैं, विश्वास बड़े लम्बे-चौड़े हैं, अन्धविश्वास। और भी न जाने कितनी तरह की मान्यताएँ हैं। लोगों को लगता है पुरानी इतनी कहानियों में साँपों का उल्लेख आता है कोई बड़ी बात होगी; कोई बड़ी बात नहीं, बस इतनी सी बात है।

पहले साँप काट लेता था लोग मर जाते थे, इस कारण उनका खौफ़ बैठा हुआ है; और कोई बड़ी बात नहीं है। जो छोटे-मोटे जानवर होते हैं इसीलिए वो हमारी पुरानी कथाओं में कोई जगह ही नहीं पाते। और हमारी कथाओं में जानवर कौन से होते हैं? शेर होता है, चीता होता है, देखा है? बाघ होता है, साँप होता है। छोटे-मोटे कोई जानवर होंगे, उनको कोई विशेष स्थान मिलता ही नहीं है। मैना? मैना का होता है कुछ? मैना को कौन पूछेगा? मैना का क्या रखा है? दुनिया में इतनी प्रजातियाँ हैं, कीट पतंगों की, जानवरों की, उनका पुरानी कथाओं में आपको कोई उल्लेख ही नहीं मिलेगा, क्यों? क्योंकि मनुष्य को उनसे कोई लेना-देना रहा ही नहीं; न उनसे हमें कोई ख़तरा था, न वो हमारे बहुत काम आते थे, तो हमारा उनसे कोई सम्बन्ध नहीं था, तो हमने फिर उनको अपनी कथाओं में भी स्थान नहीं दिया।

लेकिन साँप सरीख़े जो जानवर हमसे सम्बंधित हो पाए उनको हमने ख़ूब जगह दे दी। इसी तरह से जो दूसरे जानवर हैं जिनसे हमें लाभ होता था हमने उनको भी जगह दे दी, जैसे गाय। अब गौवंश से ख़ूब लाभ होता रहा तो गाय को हमने अपने धार्मिक मिथकों में बड़ा स्थान दे दिया; बात बस ये थी कि उससे हमारा सम्बन्ध था, उससे हमारा बड़ा लाभ होता था।

साँप को हमने घोषित कर दिया कि दैवीय है; कुछ और दूसरी सभ्यताएँ, दूसरे देशों की, जिन्होंने साँप को शैतान भी घोषित कर रखा है। बाइबिल में साँप आता है एडम और ईव को गुमराह करने के लिए; साँप ही क्यों आता है? कुछ और भेज देते भाई! क्योंकि वो बात जब कही गयी थी वो वही समय था जब साँप का बड़ा खौफ़ था। और साँप चीज़ ऐसी है कि दुनियाँ के हर महाद्वीप पर पाया जाता है वो, ज़बरदस्त खिलाड़ी है, बहुत पुराना है। इंसान से ज़्यादा पुराना है साँप; वो हर जगह पाया जाता है।

जैसे सब प्राणी हैं वैसे साँप भी होता है; उसको ठीक से देखोगे तो सुन्दर भी लग सकता है। पर न तो उसको कैद करो। चिड़ियाघर में जाओ, छोटे-छोटे बक्सों में साँपों को रख देते है, क्यों रखा हुआ है? जहाँ उसकी जगह है वहाँ उसको छोड़ो न। ये चिड़ियाघर बंद होने चाहिए। आपको अगर जानवरों को देखना है तो वाइल्डलाइफ सैन्च्यूरी है, आप वहाँ जाइए; वहाँ जानवर की प्रतीक्षा करिए, दिख गया तो दिख गया। जानवर को देखना है तो आप जानवर के पास जाइए न, आपने जानवर को लाकर शहर में कैद क्यों कर रखा है? जैसे ही हम थोड़ा सा भी जगेंगे, कुछ होश आएगा, ये भी होगा; ये जितने ज़ू हैं ये सब बंद होंगे क्योंकि ये क्रूरता के भयानक अड्डे हैं। पक्षियों को बंद कर रखा है, गोरिल्ला बंद कर दिया, बन्दर बंद कर दिया, शेर बंद कर दिया, ये क्या कर रहे हो? तुम्हें क्या हक़ है उन्हें बंद करने का?

शेर देखना है! शेर देखना है तो जंगल सफ़ारी करो, बन्दर देखना है तो जंगल जाओ न, और उसकी व्यवस्था होनी चाहिए, कि हाँ है; सैन्च्युरीज़ हैं, उनके बीच में गाड़ी जाती है, आप जाइए और प्रतीक्षा करिए, दिख गया तो ठीक है, नहीं दिखा तो दोबारा प्रयास करिए। लेकिन आप जानवर के साथ ज़बरदस्ती तो नहीं कर सकते न कि 'तू यहाँ पिंजड़े में मेरे सामने रह, मैं तुझे देखूँगा', ये क्या बात है?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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