प्रश्नकर्ता: आप कहते हैं कि हम सब एक बेहोश जीवन जी रहे हैं। हम सब इतने बेहोश हो कैसे जाते हैं?
आचार्य प्रशांत: ये सवाल होश में पूछा जा रहा है या बेहोशी में? वजह समझो। जो बेहोश है, उसके लिए ये जानना ज़रूरी है कि पीछे, पीछे, पीछे, और पीछे अतीत में कैसे उसने पहली बार बेहोशी का चयन किया था या उसके लिए ये जानना ज़रूरी है कि अभी होश में कैसे आऊँ तुरन्त? पर अगर हम सवाल सही नहीं पूछ रहे, तो इसका मतलब है सही रास्ता हम चलना नहीं चाहते।
अगर आप ये भी पूछते हो कि ये कैसे हुआ था पहली बार कि अहम् ने बेहोशी का चुनाव किया था, तो ये पूछकर भी आप आज भी बेहोशी का ही चयन कर रहे हो।
जिसे होश में आना होगा वो ये नहीं पूछेगा कि पीछे, पीछे, पीछे और क्या हुआ था, क्योंकि पीछे की श्रृंखला तो अनन्त है न। तुम्हें बताया गया कि पीछे ऐसा हुआ था, इस तरह से तुम बेहोश हुए थे, तो तुम कहोगे, ‘फिर उसके पीछे?’ फिर बताया जाएगा कि ये हुआ था तो ऐसे तुम बेहोश हुए। तुम फिर पूछोगे, ‘उसके पीछे?’ तो ये श्रृंखला अगर अनन्त है तो ये पूछकर तुमने ख़ुद को अधिकार दे दिया अनन्त समय पक बेहोश रहने का।
बात समझ रहे हो?
जैसे मान लो कोई बेहोश है, पीया हुआ है ख़ूब। ठीक है? तो उसे ख़ूब चढ़ी हुई है। और तुम उसके सामने जाओ नींबू पानी लेकर के और वो कह रहा है, ‘नहीं भाई, पहले ये बता मुझे चढ़ी कैसे?’ तो तुमने उसे बताया कि तुझे चढ़ी ऐसे कि वो जो बगल का ओमवीर है वो तुझे पिला कर चला गया था। वो बोल रहा है, ‘अच्छा!’ और तुम नींबू पानी का गिलास लेकर उसके सामने बैठे हो। वह वो पीने को तैयार नहीं।
फिर पूछता है, ‘अब ये बता, ओमवीर को मिली कहाँ से?’ तो तुमने बताया कि ओमवीर को वो जो बगल में अर्जुन है, वो लाकर दे गया था। बोल रहा है, ‘अच्छा! ये बता अर्जुन को कहाँ से मिली?' अब तुम बता रहे हो, अर्जुन को फ़लानी जगह से मिली। फिर बात चलते-चलते पहुँच गयी उस फैक्ट्री तक जहाँ वो शराब तैयार हुई। अब तुम पूछ रहे हो कि फैक्ट्री में अंगूर कहाँ से आया। ‘फिर वो अंगूर जहाँ से आया, उस किसान का नाम क्या था।’ ये सब बातें चल रही हैं जब सामने क्या रखा हुआ है? नींबू पानी का गिलास।
तुम समझ पा रहे हो, ये सारा वार्तालाप, ये सारी प्रश्नोत्तरी चल किसलिए रही है? ताकि नींबू पानी न पीना पड़े, ताकि बेहोशी क़ायम रहे। ये सारे सवाल बेहोशी के हैं। बेहोशी के हैं और बेहोशी को क़ायम रखने के लिए हैं।
अन्यथा तुम्हारे पास बस एक सवाल होगा — ‘मैं बेहोश हूँ, ये बेहोशी मुझे पसन्द नहीं आ रही, बताओ उतरेगी कैसे? अभी उतारनी है, अभी उतारनी है, अभी उतारनी है।’ बस एक सवाल होगा — अभी उतारनी है, जीया नहीं जा रहा, अभी उतारनी है। बाक़ी किसी सवाल, किसी इधर-उधर की चर्चा में हमारी रुचि ही नहीं। हम नहीं जानना चाहते कहाँ से आयी, क्या हुआ।
तुम्हें साँप काट गया, तुम ये पता करने जाओगे कि साँप किस जाति का था? तुम ये पता करने जाओगे कि साँप किस खेत से निकलकर आया था? या सीधे कहोगे, ‘भैया ज़हर चढ़ रहा है, ज़हर उतारो।’ और जिसे साँप काट गया, वो कहे, ‘पहले ये बताओ कि साँप देसी था या इंपोर्टेड (विदेशी)?’ इस आदमी की मरने में ही रुचि है बस।
समझ में आ रही है बात?
तुम्हारी अभी जो स्थिति है, अगर ये पूछने लग जाओगे कि क्या हुआ, क्यों हुआ, तो कार्य-कारण की अनन्त श्रृंखला में फँसकर रह जाओगे। कहीं नहीं रुकने वाली बात। इसीलिए समझाया जाता है उन सब लोगों को जो ग़लत जीवन जी रहे हैं, जो ग़लत काम कर रहे हैं, जो बेहोश हैं — तुम जो कुछ भी कर रहे हो, उसका कारण मत बताने लग जाना। इस तरह से अपने जीवन को, अपनी हरकतों को जायज़ मत ठहराने लग जाना; ये जस्टिफिकेशन (न्यायोचित) है, बिलकुल ग़लत बात है।
‘मैं अभी ऐसा इसीलिए हूँ क्योंकि चार साल पहले मैं ऐसा था।’ अच्छा! तो चार साल पहले ऐसे क्यों थे? ’क्योंकि उससे दो साल पहले वैसा था।’ उससे दो साल पहले ऐसा क्यों था? ‘क्योंकि उससे पहले ऐसा था।’ उससे पहले ऐसे क्यों थे? ‘क्योंकि पैदा ही ऐसा हुआ था।’ अच्छा, पैदा ऐसे क्यों हुए थे? ‘क्योंकि मेरे माँ-बाप ऐसे हैं।’ माँ-बाप ऐसे क्यों हैं? ‘क्योंकि मेरे दादा-दादी ऐसे हैं।’
ये तुमने कितनी लम्बी श्रृंखला कर ली है? अनन्त श्रृंखला कर ली है। और ये अनन्त श्रृंखला तुम सिर्फ़ इसलिए कर रहे हो, ताकि तुम जिस सड़ी हुई हालत में हो उसको बचाकर रख सको। ‘मैं क्या करूँ, मैं इसीलिए ऐसा हूँ क्योंकि चार साल पहले मैं कैंपस में ऐसा था।’ तो? तुम देख नहीं रहे, तुम कितनी गन्दी चाल चल रहे हो अपने ही साथ।
मत पड़ो इस कार्य-कारण के खेल में। कॉज़ेशन (कारणता) बहुत बड़ा धोखा होता है। क्योंकि कोई चीज़ किसी दूसरी चीज़ का कॉज़ (कारण) वास्तव में होता नहीं। हर चीज़ का कारण अभी है, अतीत में नहीं है। तुम्हारी अगर अभी दुर्गति हो रही है, तो उसका कारण ‘अभी’ में बैठा हुआ है, अतीत में नहीं। कॉज़ेशन (कारणता) धोखा है। वो तुम को बताता है कि कारण पीछे है, जबकि कारण कभी पीछे होता नहीं, कारण अभी होता है।
तुम्हारी दुर्गति अभी इसीलिए है क्योंकि तुमने वही विकल्प चुना है। कारणता बोलते हैं कॉज़ेशन को। क्या? कारणता। झूठी चीज़ होता है वो।
जब भी कभी बहुत बेवकूफ़ी कर दो, ये मत कह दो कि मैंने इस वजह से करी; कारणता धोखा है। वजह हमेशा एक होती है, क्या? बेहोशी का चयन। बस, बेहोशी का चयन है, कुछ और नहीं; कोई और बात ही नहीं, नशा पसन्द है। कुछ भी किया हो, उत्तर उसका बस एक होना चाहिए। कोई बेवकूफ़ी, कोई बेईमानी, जवाब एक। क्या? नशा पसन्द है।
लेकिन उसकी जगह सौ तरह के बहाने, ‘वो रामलाल ने लखुआ की गदही चुरायी थी, इसलिए मेरे बायें हाथ पर तिल का निशान है।' और कहानियाँ उड़ाओ। लम्बे-लम्बे लच्छे फेंको। रामलाल, लखुआ, कबूतर दास और फ़लाना, ये वो। कहानी पर कहानी, दे-दना-दन। और कोई बोले कि कहानी ही तो है, सबूत लेकर आओ। तो बोलो, ‘नहीं ऐसा तो नहीं है। ये देखो सबूत, इसलिए हुआ था, ये इसलिए हुआ था — कारणता है भाई, कहानी नहीं है, कॉज़ेशन है।’
एक ही कारण है — ठीक अभी तुम्हें नशा पसन्द है, तुम्हें नशे का चयन करना है; इसी को बेहोशी बोलते हैं। और कोई बात नहीं। शराब वाली बेहोशी के साथ तो फिर भी एक मज़बूरी होती है कि चढ़ गया है नशा तो अपना समय लेकर उतरेगा।
लेकिन जो अन्दर वाली बेहोशी होती है, जिसकी अभी हम चर्चा कर रहे हैं, अहंकार वाली बेहोशी, उसके साथ एक सुविधा है कि नशा तत्काल उतर सकता है। तुम अभी चाहो, वो नशा अभी उतर जाएगा। और ठीक अभी तुम नहीं उतार रहे, तो ये तुम्हारी मज़बूरी नहीं है, ये तुम्हारा चुनाव है।
आ रही है बात समझ में?
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