महिला हमेशा क्यों बनती है निशाना?

Acharya Prashant

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महिला हमेशा क्यों बनती है निशाना?
किसी महिला को बोल दिया गया है कि तू अगर घर से बाहर निकलेगी तो अपने आप को ऊपर से नीचे तक ढक कर निकलेगी। ये अत्याचार नहीं है क्या? किसी महिला को नौकरी करने से वंचित कर दिया गया है। खेलने से वंचित कर दिया गया है। यह अत्याचार नहीं है क्या? पर यह सब अत्याचार होते हैं तो हम इनको हल्के में ले लेते हैं। ठीक है? लेकिन जैसे ही कोई सेक्सुअल क्राइम होता है तो हम शोर मचाते हैं। मैं नहीं कह रहा कि सेक्सुअल क्राइम का महत्व नहीं है। मैं नहीं कह रहा हूं कि सेक्सुअल क्राइम पर शोर नहीं मचना चाहिए। मैं कह रहा हूं सिर्फ सेक्सुअल क्राइम पर ही शोर क्यों मचता है? आप समझ रहे हो? यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

आचार्य प्रशांत: देखिए दो-ती महीने हो गए हैं मणिपुर में जो संघर्ष चल रहा है। भारत को कोई बहुत फर्क नहीं पड़ रहा था। ज्यादातर लोगों के कान में जूं नहीं रेंग रही थी। हम कह रहे थे छोटा सा राज्य उधर उत्तर पूर्व में मीडिया भी उसको बहुत कवरेज नहीं दे रहा था और आम आदमी को तो कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था। अब कुछ तस्वीरें सामने आई हैं और वो भी पुरानी हैं। कोई आज की नहीं है। एक दो महीने पुरानी तस्वीरें हैं और और बड़ी व्यथित करने वाली तस्वीरें हैं। उसमें कोई महिला है और उसके साथ बड़ा पार्शविक और बड़ा अभद्र व्यवहार करा जा रहा है यौन शोषण और अब शोर मच रहा है और आज ही पता चला है कि वो अब वो कोई अकेला मामला नहीं था। वैसे और भी कई सारे वहां मामले थे और कुछ और भी तस्वीरें हैं जो अब दिखाई दे रही हैं। और अब देश जो है वह हरकत में आ रहा है। सनसनी फैल रही है बिल्कुल। जिस कारण से सनसनी फैल रही है ना उसी कारण से उन महिलाओं के साथ वो दुर्व्यवहार करा गया। और दुर्व्यवहार ही नहीं है अगर मैंने ठीक से पढ़ा है तो बाद में उनकी हत्या भी करी गई है, मार ही डाला।

हमारे लिए औरत में उसकी सेक्सुअलिटी ही बहुत महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए- एक लड़की का बाप है। उसकी लड़की जवान है और कोई लड़का कोई ऐसी वजह पैदा कर देता है कि उस उस लड़की के परीक्षा में कुछ अंक कम हो जाते हैं तो उसके पिता को बहुत अंतर नहीं पड़ेगा। उस लड़के ने दुर्भावनावश उस लड़की के नंबर कम करा दिए एग्जाम में तो बाप को बहुत अंतर नहीं पड़ेगा। लेकिन वही लड़का लड़की को छेड़ दे, उसकी बेटी को छेड़ दे तो बाप को बहुत फर्क पड़ जाता है। इससे क्या पता चलता है? बाप भी बेटी को कैसे देख रहा है? बाप अगर बेटी को एक चेतना के रूप में देख रहा होता है। ऐसी चेतना जो विद्या पाना चाहती है, जो विकास पाना चाहती है, जिसके लिए शिक्षा जरूरी है। तो उसको ज्यादा अंतर इस बात से पड़ता ना कि तुमने मेरी बेटी की पढ़ाई लिखाई में बाधा कैसे कर दी, तुम्हारी वजह से उसके नंबर कम हो गए। वो जाकर उस लड़के के सामने खड़ा हो जाता भिड़ जाता। पर संभावना यही है कि कोई बाप ऐसा करेगा नहीं। बहुत कम बाप होंगे जिनको इस बात से बहुत अंतर पड़ेगा कि किसी लड़के की वजह से मेरी लड़की के 5% नंबर कम हो गए। ठीक है ना?

वो बाप भी अपनी बेटी को उसी तरीके से देख रहा है जैसा कि पेट्रियाकी में देखना सिखाया जाता है कि मेरी बेटी के पूरे अस्तित्व में पूरे व्यक्तित्व में उसकी सेक्सुअलिटी ही नंबर एक चीज है। तो तुम मेरी बेटी के साथ और कोई अगर गलती कर दो तो उसकी माफी है। तुमने मेरी बेटी के नंबर कम करा दिए तो इसकी तो फिर भी तुम्हें माफी मिल सकती है। लेकिन अगर तुमने मेरी बेटी को छेड़ दिया और छेड़ने का मतलब होता है एक तरह का सेक्सुअल अटैक भले ही वो छोटा-मोटा अटैक हो छेड़ने का लेकिन यही मतलब होता है ना छेड़ने का मतलब अगर तुमने मेरी बेटी की सेक्सुअलिटी में प्रवेश करा तो फिर बाप खड़ा हो जाएगा बंदूक लेकर के कौन छेड़ रहा है मेरी बेटी को।

तो वहां तीन महीने से दंगे चल रहे हैं मणिपुर में हत्याएं चल रही हैं उनमें महिलाओं पर भी अत्याचार हो रहे होंगे पर हमें कोई अंतर ही नहीं पड़ा लेकिन जैसे ही कोई ऐसी चीज सामने आ गई जो सेक्सुअल है, ऑप्टिकली सेक्सुअल है। एकदम दिख रहा है तो हम व्यथित हो गए। हमें पहले ही व्यथित हो जाना चाहिए था। हमने बहुत देर कर दी है। हमने बहुत देर कर दी है। और महिला के साथ एक अत्याचार तो यह है कि यौन शोषण कर दिया उसका। लेकिन महिला सिर्फ अपने जेंडर या अपने सेक्स से तो आइडेंटिफाइड नहीं होती ना। उसके व्यक्तित्व के भी कई आयाम होते हैं। हमें उसके व्यक्तित्व के बाकी आयामों को भी सम्मान देना सीखना होगा। आप समझ रहे हैं?

उदाहरण के लिए पुरानी किताबें वो इस तरह की बात करती हैं कि एक लोहार एक ब्राह्मण एक सेठ, एक सिपाही, एक साधु और एक स्त्री कहीं जा रहे थे। अब एक कहानी है। वो कोई पौराणिक कहानी भी हो सकती है। और उसकी शुरुआत इस तरह से होती है। एक लोहार, एक सुनार, एक ब्राह्मण, एक सिपाही, एक साधु, एक कुछ और ले लो, एक चोर और एक स्त्री कहीं जा रहे थे। इस शुरुआत से ही आपको क्या पता लगता है कि पुरुष की तो कई तरह की पहचान हो सकती हैं। पुरुष की कई तरह की पहचान हो सकती है।

पुरुष अपने व्यवसाय से पहचाना जा सकता है। पुरुष अपने वर्ण से पहचाना जा सकता है। पुरुष सन्यस्त है कि नहीं? माने अपने आध्यात्मिक रुझान से पहना जा सकता है कि साधु है कि संसारी है। तो पुरुष की तो कई तरह की पहचानें हो सकती हैं। लेकिन स्त्री की बस एक पहचान है। क्या? कि वो स्त्री है? कि वो स्त्री। तो जब पुरुष जब जब स्त्री की एक ही पहचान रह जाती है कि वो स्त्री है। माने उसकी सिर्फ सेक्सुअल आइडेंटिटी है और बाकी सब आइडेंटिटीज उसकी बहुत पीछे की है। जो बाकी आइडेंटिटीज हैं, हम कहते हैं कि उनको तो नेगलेक्ट कर दो। उनकी कोई बहुत महत्ता नहीं है। हम उसकी जो जेंडर आइडेंटिटी होती है, हम उसी को कहते हैं कि यही तो मतलब पुरुष कई तरह के होते हैं। स्त्रियां बस एक तरह की होती हैं। क्या कि ये तो स्त्री है। वो तो स्त्री है।

तो फिर जब उसके व्यक्तित्व के बाकी पहलुओं पर आक्रमण होता है तो हमारे कान पर जूं नहीं रेंगती। लेकिन जब जब उस पर सेक्सुअल अटैक होता है तो हम बिल्कुल तनतना कर खड़े हो जाते हैं कि यह क्या हो गया? ये क्या हो गया? ये क्या हो गया? जो सेक्सुअल अटैक हुआ है वो निश्चित रूप से निंदनीय है। उससे हमारा दिल कांप जाना चाहिए और उस पर जो उचित से उचित और कड़ी से कड़ी कार्यवाही है वो होनी चाहिए। लेकिन मैं पूछ रहा हूं कि यह कार्यवाही सिर्फ सेक्सुअल अटैक पर ही क्यों कर रहे हो? उन महिलाओं के ऊपर तो कई तरह के और भी अत्याचार चल रहे थे ना। किसी महिला का घर जला दिया गया। ये अत्याचार नहीं है क्या? किसी महिला को पढ़ाई या दवाई से वंचित कर दिया गया। यह अत्याचार नहीं है क्या? किसी महिला को निरंतर डर के माहौल में रहना पड़ रहा है। यह अत्याचार नहीं है क्या? पर इन अत्याचारों को तो हम अत्याचार मानते ही नहीं।

किसी महिला को बोल दिया गया है कि तू अगर घर से बाहर निकलेगी तो अपने आप को ऊपर से नीचे तक ढक कर निकलेगी। ये अत्याचार नहीं है क्या? किसी महिला को नौकरी करने से वंचित कर दिया गया है। खेलने से वंचित कर दिया गया है। यह अत्याचार नहीं है क्या? पर यह सब अत्याचार होते हैं तो हम इनको हल्के में ले लेते हैं। ठीक है? लेकिन जैसे ही कोई सेक्सुअल क्राइम होता है तो हम शोर मचाते हैं। मैं नहीं कह रहा कि सेक्सुअल क्राइम का महत्व नहीं है। मैं नहीं कह रहा हूं कि सेक्सुअल क्राइम पर शोर नहीं मचना चाहिए। मैं कह रहा हूं सिर्फ सेक्सुअल क्राइम पर ही शोर क्यों मचता है? आप समझ रहे हो?

और चूकि हमने फिर महिला की जो पूरी आईडेंटिटी है उसको उसकी सेक्सुअलिटी से ही बांध दिया है। देखिए उसी का नतीजा यह होता है। कहीं पर भी दंगा हो, फसाद हो, लड़ाई हो चाहे जो दो देशों के बीच में चाहे दो समुदायों के बीच में। उसमें महिलाओं का बलात्कार अक्सर देखने को मिलता है। यह बड़ी विचित्र बात है।

पुरुषों के दो वर्ग आपस में भिड़ते हैं सत्ता के लिए, जमीन के लिए, संसाधनों के लिए या किन धार्मिक कारणों से मान लीजिए हिंदू मुस्लिम दंगे हो गए। जैसे विभाजन के समय हुए थे। भारत के विभाजन के समय जबरदस्त दंगे हुए थे और उनमें हजारों की तादाद में लाखों की तादाद में बलात्कार भी हुए थे। तो हम में यह प्रश्न उठना चाहिए कि ये बलात्कार इसमें कहां से आ गया? मुसलमान हिंदू को मारने आ रहा है तो हिंदू महिला का बलात्कार क्यों करेगा या कि हिंदू जाकर मुस्लिम महिला का क्यों करेगा? ये ये बात कहां से आ गई? हमें पूछना होगा।

वो बात वहीं से आ गई कि पुरुष ने महिला की सेक्सुअलिटी को अपनी सबसे बड़ी संपत्ति बना के रखा हुआ है। मेरे पास कई तरीके की प्रॉपर्टीज हैं जिसमें से एक प्रॉपर्टी क्या है? कि मेरे घर की जितनी भी महिलाएं हैं उनकी जो सेक्सुअलिटी है वह मेरी प्रॉपर्टी है। अब मान लीजिए आप मेरे दुश्मन हैं। तो आप मेरी प्रॉपर्टी छीनना चाहते हो तो आप मेरी हर तरह की प्रॉपर्टी छीनोगे और साथ ही साथ जो सेक्सुअल प्रॉपर्टी है आप वह भी छीनोगे और सेक्सुअल प्रॉपर्टी को क्योंकि मैंने ही बहुत महत्व दे रखा है तो आपको भी उसको छीनने का बड़ा लालच रहता है।

मेरे घर में कुछ महिलाएं हैं और उनकी सेक्सुअलिटी को मैं एक संपत्ति की तरह मानता हूं। मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। जैसे कहते हैं ना कि घर की इज्जत घर की बेटी के कंधों पर रहती है। तो जो घर की बेटी की वर्जिनिटी है और घर की महिलाओं की जो सेक्सुअलिटी है उसको हमने बहुत बड़ी संपत्ति बना दिया है। बहुत बड़ी चीज बना दिया है। क्यों? क्योंकि हम कामुक लोग हैं। ये हमारी काम वासना है। ये पुरुष की काम वासना है। जिसने स्त्री की सेक्सुअलिटी को इतना सर चढ़ा दिया है। इतनी बड़ी चीज बना दिया है। नहीं तो स्त्री की सेक्सुअलिटी में ऐसी बड़ी बात कौन सी हो गई? हमने उसको बना दिया बड़ी बात।

जब मैंने उसको बड़ी बात बना दिया तो जो मेरा दुश्मन है वो भी यह जानता है कि जो मेरे समुदाय की या मेरे घर की महिलाएं हैं। उनकी सेक्सुअलिटी को मैं बहुत बड़ी बात की तरह देखता हूं। वो भी जानता है। तो वो फिर जब मुझे तकलीफ पहुंचाना चाहेगा तो मेरी प्रॉपर्टी छीनेगा और मैं और मेरी प्रॉपर्टी में वो किस चीज को सबसे पहले छीनना चाहेगा? मेरी महिलाओं की सेक्सुअलिटी को। तो वो मेरी महिलाओं को मारे चाहे ना मारे लेकिन उनका बलात्कार जरूर करेगा। उनको निर्वस्त्र जरूर करेगा। उन्हें नंगा करके घुमाएगा और वह उसको एक तरीका मिल जाएगा मुझे एकदम लज्जित करने का, तोड़ देने का क्योंकि मैंने ही इतनी बड़ी चीज बना दिया है औरत की सेक्सुअलिटी को और उसके मूल में क्या है? पुरुष की काम वासना कि काम वासना ना होती तो तुम दूसरे लिंग की सेक्सुअल को इतना महत्व काहे के लिए दे देते?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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