प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, मेरा प्रश्न स्त्री देह के प्रति जो कामना होती है और उसका जो स्तर होता है, उसके बारे में है। जैसे कि कोई भी आपसे कामवासना के बारे में जब कोई प्रतिभागी प्रश्न करता है, तो आप उसे बड़ी सहजता से लेते हैं और उसका उत्तर देते हैं, जिससे कि प्रश्नकर्ता को भी सहजता होती है। पर समाज में ये देखा गया है कि जो स्त्री देह के प्रति किसी पुरुष की जो कामवासना होती है, उसे बड़ी गन्दी नज़र से देखा जाता है, अन्य कामनाओं की तुलना में।
जैसे कि कई बार ऐसा देखा गया है कि किसी जेल में बलात्कार का कोई आरोपी है तो उसे, बाक़ी जो दूसरे आरोपी हैं, वो उसे अच्छी नज़र से नहीं देखते हैं। और ऐसा भी मैंने एक न्यूज़ चैनल में सुना था कि एक बलात्कारी को, बाक़ी जो आरोपी थे उन्होंने मार दिया।
ऐसे ही एक घटना अभी महाराष्ट्र में हुई जहाँ पर एक एम.एल.ए थे, उन पर तथाकथित तौर पर एक स्त्री ने माॅलेस्टेसन (छेड़छाड़) का आरोप लगाया और केस भी रजिस्टर हुआ। तो उसके बाद उस पॉलिटीशन (राजनीतिज्ञ) ने इमिडिएटली (तुरन्त) एक प्रेस कॉन्फ्रेन्स लिया और कहा कि और कोई भी अन्य आरोप लगता मुझ पर तो मैं सहन कर सकता था, पर ये जो मॉलेस्टेसन (छेड़छाड़) का आरोप है, ये मैं सहन नहीं कर सकता।
और मुझे बहुत दुख हुआ है, तो मेरा प्रश्न यही है कि क्या जो स्त्री देह के प्रति जो कमवासना है। क्या सच में ये बाक़ी कामनाओं की तुलना में बहुत ही निकृष्ट स्तर की कामवासना है? आचार्य प्रशांत: देखो, इसमें जो एक चीज़ अलग है, वो ये है कि ये प्रेम का नाम ले लेती है। तो इसमें जो शोषण होता है वो फिर बहुत लम्बे समय तक चल सकता है, इसलिए ये ज़्यादा ख़तरनाक हो जाती है बाक़ी वासनाओं से।
एक आपकी कामना होती है जिसमें ज़्यादा बड़ा ख़तरा आपको ही होता है, वो होती है जड़ पदार्थ की। उदाहरण के लिए आपको घड़ियॉं या जूते ख़रीदने का बड़ा चस्का रहता है, ये भी एक प्रकार की वासना ही है।
और आप ख़रीद रहे हैं, ख़रीद रहे हैं। इसमें नुक़सान अधिकतर आपको ही हो रहा है, ठीक है? और भी नुक़सान हैं कई तरीक़े के, अब वो जूता बनाने वाली कम्पनी है, उसके पास पैसा जा रहा है, वो पैसा कहाँ उड़ा रही है। हो सकता है, जूता चमड़े का हो; तो उसके लिए जानवरों को मार रही है। और भी नुक़सान हो सकते हैं, लेकिन अधिकांश इसमें नुक़सान आपका ही है।
आपकी जो कामना है, आपको ही नुक़सान पहुँचा रही है। तो ये कामना है जो थोड़ी कम घातक है, घातक ये भी है पर जो हम अन्य दो स्तरों की कामना की बात करेंगे, उनसे ये कम घातक है।
फिर कामना आती है जिसमें आप किसी जड़ पदार्थ की, माने जूते या घड़ी की कामना नहीं कर रहे, किसी व्यक्ति से ही सम्बन्धित कामना कर रहे हो, और आपकी कामना ऐसी है कि उसमें उसको नुक़सान पहुँच रहा है; तो माने शोषण।
ऐसी कामना जिसमें दूसरे का शोषण निहित है, पर वो शोषण प्रत्यक्ष है। तो उदाहरण के लिए आप किसी को दास बना रहे हो, ग़ुलाम बना रहे हो; चलती थी न स्लैवरी? (दास प्रथा) या आपने किसी से धोखा देकर के कोई ऐसा अनुबन्ध कर लिया है, एग्रीमेंट कर लिया है, जिसमें दूसरे का लगातार शोषण, एक्स्प्लॉइटेशन शोषण हो रहा है।
ये जो पहले स्तर की कामना थी उससे घातक है, क्योंकि यहाँ पर दूसरे व्यक्ति को आप सीधे-सीधे नुक़सान पहुँचा रहे हो, एक दूसरे चैतन्य व्यक्ति को। यहाँ जड़ पदार्थ भर की बात नहीं है। यहाँ एक चैतन्य व्यक्ति की बात है। आप उसको परेशान कर रहे हो।
लेकिन चूॅंकि शोषण हो रहा है, ज़ुल्म हो रहा है, अत्याचार हो रहा है, तो देर-सवेर वो सामने वाला जग जाएगा या कहीं से सहायता पा लेगा, और वो भाग जाएगा। क्योंकि उसको पता है मेरे साथ ग़लत हो रहा है, उसको पता है वो जो दूसरा व्यक्ति है, वो मेरे साथ लेन-देन का खेल, खेल रहा है जिसमें कि ले ज़्यादा रहा है और दे कम रहा है। तो वो छूट-छाटकर कभी-न-कभी भाग ही जाएगा।
जो वासना होती है उसमें ज़्यादा बड़ा ख़तरा इसलिए आ जाता है क्योंकि वासना प्रेम का नाम पहन लेती है। अब उसमें से छूटकर भागना बड़ा मुश्किल होता है। आप दूसरे को बार-बार बोलते रह सकते हैं, प्रेम है, प्रेम है; रिश्ता है वास्तव में वासना का। और आप उसका जीवन भर तरह-तरह का शोषण करते रह सकते हैं, प्रेम बोल-बोलकर के जबकि रिश्ता है वासना का।
तो इसलिए कामनाओं में कामवासना एक ज़्यादा ख़राब क़िस्म की होती है और इसमें कोई नैतिक या सांस्कृतिक पक्ष नहीं है। इसमें कुछ ऐसा नहीं है कि बड़ा ही ज़्यादा गन्दा आदमी है क्योंकि स्त्रियों की बात कर ली है।
इसमें बहुत व्यवहारिक पक्ष है। स्त्री और पुरुष का जो रिश्ता है चूॅंकि हम उसको धार्मिक-सामाजिक और कानूनी तौर पर बड़ा ठोस, बड़ा पुख़्ता बना देते है, तो वो बड़ा लम्बा चलता है न? और वो रिश्ता बना ही है कामुकता की बुनियाद पर, नहीं तो स्त्री-पुरुष का क्यों होता?
जब आप कहते हो कि शादी करनी है, तो ये थोड़े ही कहते हो कि लड़का ढूँढ़ रहा हूँ अपने लिए। आप यही तो कहते हो लड़की ढूँढ़ रहे हो। तो उसमें पहली ही चीज़ क्या आती है? लिंग।
लड़की की शादी करनी है तो लड़का ही तो ढूँढोगे, तो पहली चीज़ क्या देखोगे? बाक़ी सब चीज़ें उसकी बाद में देखी जाऍंगी, उसका कद कितना है, आमदनी कितनी है, चेहरा-मुहरा कैसा है, चरित्र कैसा है। पहली शर्त क्या होगी वो जो इंसान है वो? अरे! लड़का होना चाहिए भाई।
और उसके पास सबकुछ हो, आमदनी हो, कद हो, खानदान हो, प्रतिष्ठा हो, पर वो लड़का ही न हो तो लड़की शादी करेगी? तो अनिवार्य शर्त क्या है, पैसा या लिंग? लिंग। पैसे से भी आगे का है वो। अनिवार्य शर्त क्या है, प्रतिष्ठा या लिंग? खानदान या लिंग? लिंग सबसे बड़ा है, तो इसी से पता चल जाता है कि आदमी-औरत का जो रिश्ता है उसका आधार ही क्या है; उसका आधार ही कामवासना है। अब वासना के कारण ही दोनों एक हुए हैं। विवाह वगैरह कर लिया, लेकिन दोनों एक दूसरे से कभी भी ईमानदारी से ये तो बोलते नहीं कि मेरी वासना जाकर तुझ पर अटक गयी है।
वो शुरुआत ही आई लव यू से करते हैं इसलिए यहाॅं मामला ज़्यादा घातक हो जाता है। छूटकर नहीं भाग सकते।
जो दूसरे तरह की हमने कामना की जो बात करी थी, उसमें जिस पर अत्याचार हो रहा होता है वो छूटकर भाग सकता है बल्कि वो लगातार मौक़े ढूँढ़ रहा होता है कैसे भागूँ, ढूँढ़ रहा होता है न? आप एक जानवर को भी शोषण के लिए अपनें घर में बाॅंध लें, और किसी दिन वो खुला छूट जाए, तो सरपट भागता है दूर। उसको पता होता है, यहाँ ग़लत हो रहा है मेरे साथ, भागो! तभी तो उसको बाॅंधकर रखना पड़ता है, भागता है नहीं तो। लेकिन प्रेम के नाम पर हम जो सम्बन्ध बनाते हैं वासना का, उसमें दूसरा व्यक्ति भाग भी नहीं पाता क्योंकि उसको यही जता दिया होता है हमने कि मामला प्रेम का है।
पहले प्रेम का है फिर आगे आ जाता है कर्तव्य और ज़िम्मेदारी, शुरुआत प्रेम से हो रही है झूठ की, और वही झूठ आगे जाकर के प्रेम के अतरिक्त कर्तव्य का भी नाम ले लेता है। तो आप छूटकर कैसे भागेंगे?
तो मामला बहुत ख़तरनाक है क्योंकि अब होगा उम्र भर शोषण। इसलिए वासना के मामले में और अधिक सतर्क रहना पड़ता है। नहीं तो जैसे बाक़ी सब कामनाऍं हैं, वैसे ही वासना भी है। और नहीं तो कोई बहुत बड़ा भेद नहीं है।
मूल भेद यही है कि इसमें आप जिसका शोषण कर रहे हो, जो विषय है आपकी कामना का वो न जूता है, न घड़ी है, वो एक जीवित इंसान है, और वो जो जीवित इंसान है, उसको आप झाॅंसा ये दे रहे हो कि मामला प्रेम का है। इसलिए वासना ज़्यादा ख़तरनाक हो जाती है, समझ में आ रही है बात?
नहीं तो देखो जो बाक़ी आपने यौन-सम्बन्धों को लेकर के इतना बड़ा हउआ खड़ा कर रखा है, वो तो बात बस ज़्यादा नैतिक और सांस्कृतिक ही है। उसमें ऐसा कुछ नहीं रखा हुआ है, ठीक है? महिला के साथ अगर बलात्कार हो जाए, आप उसको बहुत बड़ी बात बना देते हो। और उसी को आप अगर शिक्षा नहीं लेने दे रहे, तो आप के लिए ये उतनी बड़ी बात नहीं होती।
कहीं दो अपराध हुए है, एक अपराध किया गया है, एक अजनबी द्वारा। क्या अपराध किया गया? कि बलात्कार कर दिया और अजनबी बलात्कार करके भाग गया। एक बड़ी हिंसक वीभत्स घटना थी जो दस-पन्द्रह मिनट चली, आधे घंटे चली। अजनबी बलात्कार करके भाग गया।
और दूसरी जो घटना होती है, वो चल रही है, दस साल, बीस साल और लड़की के जो माँ-बाप ही हैं और वो उसको समुचित शिक्षा नहीं लेने दे रहे। समुचित शिक्षा न लेने देने का मतलब ये नहीं कि अनपढ़ ही रख दिया। वो कह रहे हैं, ‘ये जो कस्बे का स्कूल है उसी में पढ़ ले। जो यहीं कस्बे का कॉलेज है उसी में बी.ए कर ले, और उसके आगे तुझे पढ़ने की ज़रूरत क्या है? शादी कराए देते हैं।’
अब इन दोनों में सनसनीखेज ख़बर कौनसी है? बलात्कार की। इन दोनों में पब्लिक नारा किसके ख़िलाफ़ लगाएगी? पहले वाली चीज़ में जहाँ कोई लड़का बलात्कार करके भाग गया था। मैं समझता हूँ, इन दोनों में ज़्यादा वीभत्स घटना दूसरी है। लेकिन चूॅंकि इस समाज की दृष्टि ही कामुक है, तो स्त्रियों के प्रति अपराध भी जब काम प्रेरित होते हैं, तो वो ज़्यादा उसको महत्व देता है और सनसनी बना देता है।
किसी लड़की को पढ़ने नहीं दिया गया, ये छोटी बात है, इस पर कोई सनसनी नहीं बनाता समाज क्योंकि हमारा समाज ख़ुद वासना से ग्रस्त है। तो उसको पढ़ने नहीं दिया गया, ये कोई सनसनी की बात नहीं है, उसका बलात्कार हो गया है, बड़ी सनसनी की बात है। जबकि ज़्यादा बड़ा अपराध ये है कि उसको पढ़ने नहीं दिया गया।
आप जानते हैं, जब बलात्कार के एकदम वीभत्स, क्रूर, हिंसक मामले मीडिया में आते हैं, तो यूट्यूब पर बलात्कार की उन घटनाओं की क्लिप्स की माॅंग बढ़ जाती है गूगल पर। मान लीजिए, कोई महिला है उसका कुछ नाम है क, ख, ग।
और मामला सामने आ जाए कि उसका ऐसे बलात्कार हुआ और बड़ा हिंसक हुआ है, एकदम दिल दहलाने वाली बात है, लोग गूगल पर सर्च (खोजना) करना शुरू कर देते हैं कि उस बलात्कार की हमको विडियो क्लिप मिलेगी क्या? सनसनी फैलती है न; और समाज ही कामुक है।
तो एक ओर तो यही समाज ख़ुद उस बलात्कार की विडियो क्लिप को देखना चाहेगा, दूसरी ओर क्या बोलेगा? बलात्कारी को फाॅंसी दो, बलात्कारी को फाॅंसी दो। कहते हैं न, ‘बलात्कारी को तुरन्त फाॅंसी दे दो। चौराहे पर खड़ा करके गोली मार दो, लटका दो इसको, मार दो!’ सनसनी है।
महिलाओं को भी ये जानना चाहिए कि तन और मन में प्राथमिकता हमेशा मन की है क्योंकि आप देह नहीं हैं, आप चेतना हैं। कोई आपकी देह के ख़िलाफ़ अपराध कर दे, बलात्कार वगैरह, वो निश्चित रूप से एक अपराध है पर उससे कहीं बड़ा अपराध है, कोई आपकी चेतना को सीमित और संकुचित रख दे आपको पढ़ने वगैरह न दे, आपके पर कतर दे, आपको जीवन में अनुभव न लेने दे, आपको घर में क़ैद कर दे, वो बलात्कार से कहीं ज़्यादा जघन्य अपराध है।
लेकिन मेरी बात बहुत लोगों को बहुत अजीब लगेगी। कहेंगे, अरे! बलात्कार से ज़्यादा बड़ी ये बात है कि उसको घर में रखा? हाँ जी साहब, बलात्कार की सज़ा होनी चाहिए लेकिन बलात्कार से ज़्यादा बड़ी सज़ा तब है जब एक जीवित इंसान को जो कि एक स्त्री है, उसे उसकी पोटेंशिअल (क्षमता) तक आप न पहुँचने दें।
उससे कह दें, ‘तू घर में रह, चुल्हा-चौका कर, बिस्तर बिछा दिया कर और बिछ भी जाया कर। ये कर तू!’ ये ज़्यादा बड़ा अपराध है। लेकिन इसको तो हम कह देते हैं, संस्कृति है, ये अपराध कैसे हो गया, ये तो संस्कृति है साहब! बस बलात्कार भर अपराध है। तो महिलाओं के ख़िलाफ़ कितने अपराध हो रहे हैं ये जाँचना है, तो देख लो बलात्कार कितना हो रहा है, कितना नहीं हो रहा है। और जो बड़े-बड़े वीभत्स अपराध हैं उनकी तो कोई बात ही नहीं करनी है, समझ में आ रही है बात?
तो हमने दो बातें करी, पहली तो ये कि कामवासना बाक़ी वासनाओं से; देह वासना बाक़ी वासनाओं से किस मामले में अलग होती है। तो इसमें हमने कहा, आप एक जूता माॅंग रहे हैं, घड़ी माॅंग रहे हैं और उसकी तुलना में आप किसी की ज़िन्दगी ही माॅंगे ले रहे हैं, उसकी देह माॅंग रहे है; इन दोनों में अन्तर है क्योंकि वासना, किसका नाम ले लेती है?
प्रेम का, और जब वो प्रेम का नाम ले लेती है तो वो स्थायी बन जाती है, परमानेंट बन जाती है। उसको एक सम्माननीय नाम मिल गया न, अब उसको कौन हटाएगा? तो वासना इस मामले में अलग है।
फिर दूसरी बात हमने करी कि समाज वासना को ही इतना बढ़ा-चढ़ाकर के क्यों महत्व देता है, सनसनी बनाता है? जो बाक़ी प्रकार के अत्याचार, अपराध, अन्याय हैं, उनकी हम क्यों नहीं बात करते? उनकी बात हम नहीं करेंगे क्योंकि हम ख़ुद कामुक लोग हैं।
जैसे टी.वी. एंकर्स को भी कहीं-न-कहीं भीतरी कोई गन्दा मज़ा आ रहा हो बलात्कार की ही बात करने में। कितनी महिलाऍं कुपोषण का शिकार हैं, ये बात अपराध की नहीं है? इस पर आप कितनी बहस होते देखते हैं? देखते हैं क्या? नहीं।
कितनी महिलाओं को एनिमिया (रक्ताल्पता) है इस पर आप चर्चा होते देख रहे हैं, बहुत कम। महिलाएँ अगर नौकरी में पहुँच भी जा रही हैं, तो उनकी प्रगति की, पदोन्नत्ति की दर क्या है? इस पर आप कितनी चर्चा होते देखते हैं?
किसी चीज़ की चर्चा नहीं होनी है महिलाओं को लेकर के। बस एक चीज़ की चर्चा होनी है, बलात्कार। क्योंकि उसमें सबको ख़ुद कामरस आता है चर्चा करने वालों को, तो बलात्कार की खूब चर्चा करेंगे।
लड़की की देह गन्दी कर दी किसी ने, बहुत बड़ा मामला हो गया, और पूरी दुनिया मिलकर दिन-रात उस लड़की का मन गन्दा कर रही है, ये कोई मामला हुआ ही नहीं, क्योंकि हमें मतलब ही लड़की की देह से है। तो जैसे ही कोई आकर के उसकी देह नोच लेता है, गन्दी कर देता है, हमें लगता है, अरे-अरे! कितनी बड़ी बात हो गयी, कितनी बड़ी बात हो गयी।
सब मिलकर के दिन-रात उसका मानसिक चीरहरण कर रहे हैं, उससे कोई ख़बर नहीं बनती। आ रही है बात समझ में?