वक्ता: मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूँ कि क्या हम शिक्षण संस्थान में मेरिट-लिस्ट तैयार नहीं करते? हम क्या वाकई छात्र को ये नहीं कहते कि तुमने मेहनत नहीं की इसलिये तुम अनुत्तीर्ण हो गये? हम क्या जब कक्षा में जाते हैं तो कुछ लोगों को अधिकारी की तरह प्रतिस्थापित नहीं करते? Don’t we instill authority in the minds of our students? दिक्कत ये नहीं है कि हमारी नीयत खराब है।
Intentions are wonderful. Intentions are pure and good. The problem is with awareness. We hardly understand. If we don’t understand, the reason is we have been told that ours is a very-very noble profession in which the entire emphasis is upon the student.
समाज ने शिक्षक के साथ बड़ा दुर्व्यवहार किया है| उससे कह दिया है कि तुम बड़े ऊँचे आदमी हो और तुम्हारा काम है दिन-रात कुछ ऐसा करो कि जिससे छात्र का फ़ायदा हो।
अब दिक्कत ये है कि मैं छात्र को कुछ दे नहीं सकता जब तक मेरे पास देने के लिए कुछ हो ना और मेरे पास देने के लिए कुछ होगा नहीं जब तक मुझे समय, स्थान, अवकाश नहीं मिलेगा अंतरगमन करने का, अपने आप को देखने का। तो शिक्षकके साथ ये बड़ी त्रासदी है, वो हर समय छात्र के भले के लिए लगा रहता है पर अपने भले के लिए नहीं लग पाता।
छात्र का भला करते रहो और तुम्हारा भला कौन करेगा ? छात्र को तो ज्ञान देते रहो और तुम्हारे भीतर कहाँ से उठेगी ज्योति?
तो दिक्कत क्या है कि नीयत बहुत अच्छी है पर जब करने की बात आती है तो अनजाने में ही हम अपने छात्र का बड़ा नुकसान कर जाते हैं। मैं उत्कृष्टता की बात इसलिए नहीं उठाना चाहता क्योंकि उत्कृष्टता का मतलब तो है कि धनात्मक में आगे जा रहे हैं, अनंत तक। मैं तो अभी सिर्फ सफाई करना चाहता हूँ कि जो निषेधात्मक है वो हट जाये। शून्य तक आ जाएँ, इतना ही बहुत है। शुन्य से आगेका काम आप स्वयं कर लेंगे। सब समझदार हैं, हम सब एक ही हैं। लेकिन जो कचराजमा हो गया है और मैं फिर से ये स्पष्ट करना चाहता हूँ कि उसमें हमारा दोष नहीं है तो आहात नहीं हों। जो कचरा जमा हो गया है पहले उसको ध्यान से देखना बहुत जरूरी है। उसकी सफाई आवश्यक है।
देखिये हमारा छात्र बाहर जाता है वो डर कर रहता है। वो धार्मिक सत्ता से डरता है, वो राजनैतिक सत्ता से डरता है । क्यों डरता है वो प्रभुत्व से? आदमी क्यों डरता है सत्ता से? उसे सत्ता से डरना क्या हम नहीं सिखा रहे? ये न्यूटन्स लॉ है, ये केप्लर्स लॉ है। क्या हम उससे कहते हैं कि थोड़ा ख़ुद कोशिश कर लें इन तक पहुचने की? चलो न्यूटन्स लॉ से शुरू करते हैं और देखते हैं किकेप्लर्स लॉ तक पहुँचते हैं या नहीं! अरे छोड़ो ‘5P’ और ‘8P’ और तुम ख़ुद बताओ कि अगर कुछ बेचना है तो क्या करना चाहिए? तुम ख़ुद बताओ कि कुछ बेचने के काबिल है भी कि नहीं है।
प्रभुत्व तो उसके मन में हम ही बिठाते हैं। अब ताज्ज़ुब क्या है कि जब वो बाहर जाता है तो डरा-डरा सा रहता है? अब क्या ताज्ज़ुब है? उसके मन में डर और लोभ तो हम ही बिठाते हैं तो ताज्ज़ुब क्या है कि जब वो कम्पनी में जाता है तो डरा हुआ और लोभ से भरा हुआ होता है।
मैं ये नहीं कह रहा कि सिर्फ हम ही जिम्मेदार हैं। वो बहुत सारा समय घर में भी बिताता है। हमारे पास जब तक वो आता है तो उसकी उम्र होती है 21-22 साल। तो वो सारे कारण भी अनिवार्यतः मौजूद हैं पर उसमें जो हमारी भूमिका है, मैं उसकी तहकीकात करना चाहता हूँ। क्योंकि हमें तो अपनी ज़िन्दगी जीनी है और बहुत सारे युवा लोग हैं यहाँ पर जिनके सामने बहुत लम्बा करियर पड़ा हुआ है।
हमें पता होना चाहिए कि हम कर क्या रहे हैं।हमें ज़िन्दगी जीनी है और प्रेम पूर्वकहै और दिन के दस घंटे आप संस्थान में बिताते हैं तो यही जीवन है और इसको नहीं समझातो किया क्या ? काम को नहीं समझातो कैसा जीवन ? काम ही तो जीवन है, यही तो कर रहे हैं दिन-रात ।
हम अनजाने में ही अपने छात्र को क्या दृष्टियाँ दे रहे हैं, क्या संकेत उन्हें मिल रहे हैं; क्या इसका अंदाजा है हमें? हमने शिक्षा को किन अर्थों में पारिभाषित कर दिया है, क्या हमें खुद भी पता है? मैं आपसे कह रहा हूँ कि देखिये अपने सुबह से शाम को। आप कॉलेज जाते हैं, सुबह से शाम तक जो भी हम करते हैं जरा ध्यान से, बड़ी इमानदारी से उस पर नज़र डालिए और देखिये तोकि मैं कर क्या रहा हूँ? और इसका उस छात्र पर क्या प्रभाव पड़ रहा है। अरे छोडिये उस छात्र को, मैं कह रहा हूँ कि ये तो देख लीजिये कि इसका मेरे हीमन पर क्या असर पड़ रहा है। क्योंकि जैसा मेरा मन होगा वैसा ही मैं कक्षा में रहूँगा।
सुबह एक बहुत सुन्दर बात कही गयी थी कि विभाजन हो नहीं सकता है प्रोफेशनल औरपर्सनल लाइफ में। अगर ये कक्ष है तो दरवाज़े के बाहर आप दूसरे आदमी नहीं हो सकते और दरवाज़े के भीतर आप दूसरे आदमी नहीं बन पायेंगे। मैं घर में कैसा हूँ? मेरा मेरी पत्नी, मेरे बच्चों से क्या सम्बन्ध है? मैं उनके लिए भी तो शिक्षक हूँ न तो मैं वहां क्या कर रहा हूँ? मेरा पड़ोसियों से क्या सम्बन्धहै, मेरा मेरे अतीत से क्या सम्बन्ध है? मेरा धर्म से क्या सम्बन्ध है, राजनीति से क्या सम्बन्ध है? और जब आप ये देखेंगे कि सुबह से शाम तक आप क्या कर रहे हैं तो उससे बड़ी साफ़ नज़र उठती है। कि ये बात है और ऐसा-ऐसा हो रहा है।
देखिये जो MBA का छात्र है आज बाज़ार में मज़ाक की वस्तु बन कर रह गया है। ये जो MBA का छात्र है इसके पास दिक्कत ये नहीं है कि इसको मार्केटिंग नहीं आती, फाइनेंस नहीं आती या ऑपरेशन्स में कच्चा है। ये सब दिक्कतें नहीं हैं इसकी।दिक्कत ये है कि अच्छा मार्केटर होने से पहले एक विवेकपूर्ण आदमी होना पड़ता है। दिक्कत ये है कि ऑपरेशन्स की समझ हो इससे पहले अपनी समझ होनी आवश्यक है। दिक्कत ये है कि फाइनेंस में बैलेंस-शीट बना पाओ उससे पहले अपने जीवन का नफ़ा-नुकसान पता होना चाहिये। हम ये जो आउटपुट निकाल रहे हैं ये किसी काम का नहीं है। और अगर इसमें से कुछ लोग काम के बच जाते हैं तो इसलिए कि बस बच ही गये। हमारी पूरी कोशिशों के बाद भी बच गये।
{सब हँसने लगे}
वो हमने नहीं बचा दिये। हम अपने आप को रहे हैं कि हमारा काम है मार्केटिंग पढ़ाना और मैं फिर से यहाँ कह रहा हूँ कि मैं यहाँ सिद्धांतों की बात करने नहीं आया, मैं बड़ी व्यवहारिक बात कर रहा हूँ। क्योंकि मैं रिक्रूट भी करता हूँ, तो मैं सिर्फ टीचर ही नहीं हूँ, मेरा दो तरफ़ा काम है। मैं उपनिषद् भी पढाता हूँ और कंपनी भी चलाता हूँ। मेरे दोनों काम हैं। तो इसलिए मैं दोनों तरफ से देख सकता हूँ, विहंगम दृष्टि है।
हम जो छात्र निकाल रहे हैं उसको हम सिर्फ एक पाठ्यक्रम पूरा करा कर बाहर भेज दे रहे हैं। मज़े की बात ये है कि स्टूडेंट इसके लिए कभी नकार नहीं करेगा क्योंकि वो करने भी यही आता है। तो बहुत बढ़िया है! गुरु और चेले में बिलकुल तादात्मय है! वो यहाँ वही करने आता है और हम ये उसे करा देते हैं। पर दिक्कत ये है कि मेरा काम क्या है एक शिक्षक की तरह? उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति करना या उसे कुछ नया ही बना देना? ये सवाल बड़ी इमानदारी से हमें अपने आप से पूछना होगा।
-‘संवाद’ पर आधारित।स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।