हीन भावना रहती है

Acharya Prashant

4 min
1.4k reads
हीन भावना रहती है
चेतना का काम है चुनाव करना, आप अपने चुनावों की फ़िक्र करो कि मैं सजग रहूँ और ज़िंदगी में सही चुनाव करती चलूँ। यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी, इससे पहले मैं कुछ कहना चाहूँगी कि आपके आने से मेरी ज़िंदगी पूरी बदल गई। मैं हरियाणा के एक छोटे से गाँव से आई हूँ। आपके सेशन लगातार देखती हूँ, मतलब आप मेरी ज़िंदगी बन गए हो आचार्य जी। बस मेरी इच्छा ये रहती है कि मैं आपकी गुड लिस्ट में आऊँ। जैसे होता है न, जैसे अभी है, मुझे बड़ी जेलस फ़ील हो जाती है वहाँ। जब मुझे हमेशा लगता है कि आचार्य जी, मुझे भी जानें, हालाँकि मेरे काम अभी ऐसे नहीं हैं।

और इस किताब से मेरा क्वेश्चन है सर, “इफ यू वांट टू लिव विदाउट फ़ियर, यू मस्ट इन्वेस्टिगेट योर डिपेंडेंट।” सर, आई वांट टू लिव विदाउट फ़ियर, बट आई डोंट नो हाउ टू रिकग्नाइज़ माय डिपेंडेंट एंड हाउ कैन आई ओवरकम इट। इवन आई ऑल्सो फ़ील लाइक आई एम लेस देन अदर्स इन एव्री एस्पेक्ट। लाइक माई हाइट इज़ शॉर्ट, आय ऐम नॉट गुड ऑर नथिंग, लॉट्स ऑफ़ थिंग्स आर देयर। आई फ़ील कि मैं नहीं किसी चीज़ के लिए अच्छी हूँ। मैं हर चीज़ में हर किसी से कम हूँ। एक हीन भावना रहती है आचार्य जी, हर चीज़ को लेकर। वो फिर जेलसी में बदल जाती है।

आचार्य प्रशांत: जो चीज़ें प्रकृति ने दी हैं, उसको लेकर कोई शिकायत नहीं करी जा सकती, क्योंकि उसमें हमारा कोई रोल, योगदान है ही नहीं न। हमारी खाल का रंग क्या है? हमारी हाइट क्या है? हमारा जेंडर क्या है? हम किस घर में पैदा हुए? यहाँ तक कि कास्ट वग़ैरह भी, या कि ये सब, आप अठारवीं शताब्दी में पैदा हुए या इक्कीसवीं शताब्दी में, इनमें हम क्या करें? इनका हम कुछ नहीं कर सकते।

तो अगर इसको लेकर आपको तनाव होता है या ईर्ष्या होती है, तो इसका मतलब है कि जो प्राकृतिक चीज़ें हैं उससे ज़्यादा आइडेंटिफ़ाइड हैं। आप ऐसी चीज़ से आइडेंटिफ़ाइड हैं जो पराई है। आपकी जो हाइट है न, वो आपकी नहीं है, पराई हाइट है। ये आपने नहीं चुज़ की थी। तो आप पराई चीज़ से आइडेंटिफ़ाइड होओगे, तो ये तो वैसे भी अच्छी बात नहीं है।

अब ये किताब मेरी है, चलिए ठीक है, अब यहाँ बाक़ी जो किताबें हैं, वो मेरी नहीं हैं। ऐसे उदाहरण अभी रच के बता रहा हूँ। तो मैं वहाँ पर जाकर कहूँ, कि “वो किताब मेरी है, लेकिन उस पर नाम किसी और का लिखा है,” या “वो किताब मेरी है और वो इतनी छोटी क्यों है?” अरे, वो मेरी है ही नहीं। जो बहुत सारी बातें हैं, जो हम ना चुनते हैं, ना हमारी होती हैं। तो उनके साथ आइडेंटिफ़िकेशन रखना, ओनरशिप रखना, ये जो है मूल गलती होती है। समझ रहे हैं न?

प्रश्नकर्ता: जी, आचार्य जी।

आचार्य प्रशांत: और फिर आप देखोगे, किसी की हाइट ज़्यादा है, कुछ और तरीके से, किसी का आईक्यू ज़्यादा है, कुछ है। आप कह रहे हो, उससे जेलसी हो जाती है। पर उसमें उसका तो कोई रोल नहीं है, इसमें उसकी कोई उपलब्धि, अकंप्लिशमेंट नहीं है। तो ऐसी चीज़ से हमें आइडेंटिफ़ाई ही नहीं करना है, जिसमें हमारा कोई रोल ही नहीं है, जिससे हमने कुछ किया ही नहीं है। हमें उस एक चीज़ से बस जुड़े रहना है, उस एक चीज़ के लिए जिम्मेदार होना है। यहाँ हमारा बस चलता है। हमारा बस कहाँ चलता है? हमारे चुनाव में।

तो बस वो चीज़ ठीक रखनी है, बाक़ी चीज़ें मैं क्या करूँ? आप लड़की पैदा हुई, कोई लड़का पैदा हुआ, कोई अमीर घर में पैदा हुआ, कोई गरीब घर में पैदा हुआ, कोई इस भाषा को बोलता है, कोई उस भाषा को बोलता है, इसमें आप क्यों परेशान होओगे? क्योंकि ये मामला पराया है, पराए मामले में आप क्यों परेशान होओगे?

प्रश्नकर्ता: जी, आचार्य जी।

आचार्य प्रशांत: ठीक है? आप उस चीज़ की फ़िक्र करो जिस पर आपका बस चलता है, आपकी कॉन्शियसनेस और उस कॉन्शियसनेस के डिसीज़न्स।

चेतना का काम है चुनाव करना, आप अपने चुनावों की फ़िक्र करो कि मैं सजग रहूँ और ज़िंदगी में सही चुनाव करती चलूँ।

प्रश्नकर्ता: जी आचार्य जी। थैंक यू आचार्य जी।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories