मैं आपको गीता ही नहीं, ज़िन्दगी की लड़ाई सिखा रहा हूँ

Acharya Prashant

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मैं आपको गीता ही नहीं, ज़िन्दगी की लड़ाई सिखा रहा हूँ
मैं सिर्फ तुमको वही थोड़ी सिखा रहा हूं जो यहां दो घंटे सत्रों में बोलता हूं। यह जो पूरी संस्था है और इसका जो पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर है, इसके पूरे जो कार्यकलाप है और इसका जो पूरा प्रबंधन है वो मैं नहीं सिखा रहा हूं क्या आपको? कहीं से कोई बड़ी फंडिंग नहीं। हमारे पीछे ना परंपरा की कोई ताकत, ना कोई आश्रम, ना कोई सेठ ना कोई राजनेता उसके बाद भी इतना बड़ा यह हमने अभियान खड़ा कर दिया यह आप हमसे नहीं सीखोगे या बस यही सीखोगे कि आचार्य जी तो बस गीता जानते हैं। यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी। मैं रुचि दिल्ली से हूं। कल मैं जब मूवी से आ रही थी अकेले लगभग 11:40 का समय रहा होगा। जैसे ही मैं कैब में बैठी, मेरा सारा ध्यान था कि ड्राइवर कहीं गलत जगह ना ले जाए। मैं सुरक्षित घर पहुंच जाऊं। उस वक्त जो सारा गीता का ज्ञान था वो सब रह गया और बस मुझे अपनी सेफ्टी का कंसर्न होने लगा। मुझे उस समय ऐसा लगा कि लड़कियों को शायद ज्ञान से ज्यादा फिजिकल और मेंटली स्ट्रांग बनना पड़ेगा पहले, तभी ज्ञान उनकी कुछ मदद कर पाएगा। क्या यह बात सही है? मुझे इस बारे में जानना है।

आचार्य प्रशांत: जो आप सही पूछ रहे हो यह भी तो ज्ञान की ही बात है ना। ज्ञान का किसी भी स्थिति में अर्थ होता है सच क्या है, झूठ क्या है- इसका निपटारा। तो वो तो आप कैब में फंसे हुए हो, चाहे आप पिक्चर देख रहे हो, चाहे घर पहुंच गए हो, आपको तो हमेशा ही जानना पड़ेगा ना कि सच झूठ क्या है? ज्ञान तो आपको हर क्षण में चाहिए। आप लड़की हो तो आपको कितना पैसा होना चाहिए? आपको कितने बजे फिल्म देखनी चाहिए? आपको किस तरह से कैब करनी चाहिए। आपके पास कोई हथियार होना चाहिए। आपके पास और क्या बंदोबस्त होने चाहिए? यह सब भी तो ज्ञान की ही बातें हैं ना।

या ज्ञान का अर्थ बस यह होता है कि अहम ब्रह्मास्म?

आप संस्था से सत्र सुनती हैं तो बस मैं उसमें जितनी वेदांतिक और शास्त्रीय बातें हैं और पारमार्थिक बातें हैं आप का उनसे ही सरोकार है? आप मुझे अभी स्क्रीन पर सुन पा रही हैं इसके पीछे बहुत सारा तो जो इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी का ज्ञान है वो लगा हुआ है ना, वह भी तो ज्ञान के ही क्षेत्र में आता है कि नहीं आता? नहीं तो बस मैं अपनी ही मेज पर बैठकर के करता रहता युद्धस युद्धस्व। आप तक बात कभी नहीं पहुंचती। वो सब कुछ जो आपको एक सही आनंदित मुक्त जीवन जीने में सहायता दे वह ज्ञान में ही आता है। विद्या-अविद्या दोनों ज्ञान में ही आते हैं।

मुझे सिर्फ यह पता हो कि गीता में क्या लिखा है। और मुझे यह ना पता हो कि संस्था का प्रबंधन कैसे करना है तो आप यह सत्र नहीं सुन रहे होंगे। तो संस्था कैसे चलानी है? जिसमें सब कुछ आता है- कैसे नए लोगों को संस्था में सम्मिलित करना है? उसकी पूरी प्रक्रिया क्या होनी चाहिए? आवेदन की, फिर भर्ती की, एप्लीकेशन कैसे आएंगे? रिक्रूटमेंट कैसे होगा? वित्तीय प्रबंधन हमारा कैसे चलना है? रुपया पैसा कहां से कितना आएगा? कब कहां कितना खर्च कर सकते हैं? वह ज्ञान का हिस्सा नहीं है क्या? और अगर वह ज्ञान का हिस्सा नहीं है तो फिर यह भी जो अभी ज्ञान का चल रहा है खेल आदान-प्रदान ये कहां चल रहा है?

आप भी वही YouTube पर कुछ विज्ञापन वगैरह देख कर के आई होंगी शायद। बहुत ज्ञान लगता है यह समझने के लिए कि पूरा जो प्रचार का बजट है उसको कहां और कितनी सावधानी से कितना और कब तक खर्च करना है वो भी ज्ञान ही है। हमने ज्ञान को बड़ी एक परालौकिक चीज बना दिया है कि ज्ञान माने आसमानों पर क्या हो रहा है वही ज्ञान है। अभी मैंने आपसे कहा कि उपनिषद साफ-साफ बताते हैं- विद्या और अविद्या दोनों चाहिए।

आसमानों की बात तो बाद में हो जाएगी। उपनिषद कहते हैं कि जो जमीन की बात नहीं समझता वो अगर आसमानों की बात करें तो दो चांटा लगाओ उसको। पंडित जी थे एक बार। पंडित जी नदी पार कर रहे थे। वहां बैठा हुआ है मल्ला। पंडित जी ने मल्ला को कभी पढ़ने ही नहीं दिया था। पंडित जी के तरीके, बोले ज्ञान तो बस हमारे ही पास होना चाहिए शास्त्रीय है सारा। तो मल्ला को काला अक्षर भैंस बराबर कुछ नहीं जानता, वो बस चप्पू चलाना जानता था। तो पंडित जी बैठे हैं मल्ला बैठा है नाव पहुंच गई है आधी नदी।

पंडित जी पूछ रहे हैं, ’हे भाई वेद कितने हैं? बोला, ‘अरे महाराज का पूछेंगे हमें का पता?

बोले, ‘अरे मूढ़! बोला चलो यही बताओ उपनिषद कितने हैं? बोले महाराज हम तो बोलो ना पाओ का बोले ये उप्स…

अधम अज्ञानी, कुछ नहीं जानता। बोले पुराण जानते हो? महाराज, ‘क्या बोल रहे हो पुराण हम कहां से जानेंगे?

बोले, ‘सांख्य योग जानते हो’ बोला ‘महाराज कैसे चप्पू चलाने दो सांख्य योग? पंडित जी को मजे लेने हैं, ‘बताओ उत्तर मीमांसा पूर्व मीमांसा का अंतर जानते हो अरे नहीं, नरक में जाओगे नरक में, मरने के बाद।

मल्ला बोला, ‘पंडित जी!’ बोले, ‘हां!’ बोले, ‘तैरना जानते हो?’ पंडित जी बोले, ‘अधम नारकीय असुर दानव पिशाच राक्षस,’ मैं क्या ऊंची ऊंची बातें कर रहा हूं उपनिषद दर्शन और तू मुझसे पूछ रहा है कि मैं इस भौतिक भवजल में तैरना जानता हूं? नहीं जानते तैरना।

बोले, ‘महाराज हम तो मरने के बाद नरक-वरक में कब जाएंगे नहीं जाएंगे पता नहीं पर आप अभी ही मरने वाले हो, नाव में छेद है।’ पंडित जी हक्के बक्के।

नाव में बैठे हो बेटा तो तैरना सीखो, चप्पू चलाना भी सीखो यह कहना काम नहीं आएगा कि मैं तो महाज्ञानी हूं।

वैसे ही आप अगर कैब में बैठी हैं तो लात घंसा मुक्का चलाना सीखिए। यह कहना काम नहीं आएगा कि मैं तो गीता सत्रों में जाकर ज्ञान ले देती हूं। घूसा कैसे चलाना है, गाली कैसे देनी है, मुंह कैसे तोड़ना है, यह ज्ञान भी आना चाहिए। पेपर स्प्रे रखा है, चलाना आना चाहिए। पुलिस को फोन झट से कैसे करना है, आना चाहिए। गाड़ी में बैठ रहे हो कैब में, उसका नंबर नोट करना, आना चाहिए। किसी को जोर से आवाज देकर के बताना कि हां इसमें बैठ गई हूं। कैब का यह नंबर है और ड्राइवर का यह नाम है यह आना चाहिए। ड्राइवर की फोटो लेके भेज दो किसी को यह आना चाहिए। यूं ही फोन पर बात करना शुरू कर दो चाहे दूसरे सिरे पे कोई हो ना हो जोर-जोर से आना चाहिए। और दूसरे सिरे पर जिससे बात कर रहे हो। क्या समस्या है? अगर वो थानेदार हो। कोई समस्या है? जीजा जी थानेदार हैं। अभी फोन लगाया है, हां जीजू बैठ गई हूं। यह चला रहा है गाड़ी। भैया नाम क्या है आपका? एसएओ साहब को बताना है भया। और इतने में वो जो भी है मनसुख पटवारी- ड्राइवर एकदम संट हो जाएगा यह ज्ञान आना चाहिए। यह थोड़ी है कि वहां पीछे बैठकर के कर्मण नेवाधिकारस्ते माफ फलेशु कदाचन। उसके बाद बोलो जी ने सिखाया ही नहीं।

मैं सिर्फ तुमको वही थोड़ी सिखा रहा हूं जो यहां दो घंटे सत्रों में बोलता हूं। यह जो पूरी संस्था है और इसका जो पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर है, इसके पूरे जो कार्यकलाप है और इसका जो पूरा प्रबंधन है वो मैं नहीं सिखा रहा हूं क्या आपको? कहीं से कोई बड़ी फंडिंग नहीं। हमारे पीछे ना परंपरा की कोई ताकत, ना कोई आश्रम, ना कोई सेठ ना कोई राजनेता उसके बाद भी इतना बड़ा यह हमने अभियान खड़ा कर दिया यह आप हमसे नहीं सीखोगे या बस यही सीखोगे कि आचार्य जी तो बस गीता जानते हैं। आचार्य जी व्यवहारिक रूप से क्या कर रहे हैं वो आपको नहीं दिखाई देता वो एक मैनेजमेंट मिराकल है वो नहीं सीखोगे? अभी किस अखबार में छपा था कि 1 मिलियन 10 लाख पशुओं को सिर्फ 2024 में, अभी न्यूज़ 24 में बीते हफ्ते रिपोर्ट छपी है कि सिर्फ 2024 में अनुमान है कि आपकी संस्था ने लगभग 10 लाख पशुओं की जान बचाई है। या मेरा काम बस आपको संस्कृत बांचना है? व्यवहारिक तल पर पार्थिव तल पर मटेरियल भौतिक तल पर जो हम कर रहे हैं वह भी तो हमसे सीखो ना।

इतनी किताबें छप रही हैं। हम अपने आप में एक पब्लिशिंग हाउस है। अच्छा खासा बड़ा। यह जो ऐप आप चला रहे हो, यह Twitter, Facebook इनके समकक्ष है। सोचो कि आपकी संस्था कितनी चीजें हैं। ऑडियो बुक्स आने जा रही हैं। वो ऑडिबल के समकक्ष खड़ी हो जाएगी। किताबें हैं। तो जो अमेजन की पब्लिकेशन डिवीजन बुक्स डिवीजन है हम उसके समकक्ष खड़े हैं। ये जो सेशन चल रहे हैं लाइव और कितने लोगों तक पहुंच रहा है वो अच्छे से जानते हो। तुम अपने आप में उस अर्थ में एक विश्वविद्यालय है। यह सब ज्ञान नहीं है क्या? यह व्यवहारिक ज्ञान भी तो सीखो ना। और क्या-क्या है हम? हम अपने आप में एक यूनिवर्सिटी हैं। हम ऑडिबल हैं हम Twitter हैं, हम Facebook हैं। और क्या-क्या है?

हां, हम वीडियो कोर्सेज सॉलशंस के हैं। इतने वीडियो कोर्सेज हैं और वही वीडियो कोर्सेज की जो वेबसाइट्स होती हैं उनको वो स्टैंड अलोन होती हैं। हमारे वीडियो कोर्सेज वो भी चल रहे हैं। हम एक पब्लिशिंग हाउस है हमने कहा। और पब्लिशिंग हाउस भी हम सिर्फ यही नहीं है कि प्रिंट बुक्स आ रही हैं उसमें ई बुक्स भी हैं। और हम एक सोशल रिफॉर्म ऑर्गेनाइजेशन भी हैं और हम एक सोशल मीडिया ऑर्गेनाइजेशन भी हैं। और संस्था का कॉलम भी छप रहा है। ये सब ज्ञान में नहीं आता क्या? ये आचार्य जी बस यही करते हैं कि 2 घंटे आपको ज्ञान दे देते हैं देखिए कैसा प्रश्न पूछा आपने कि आचार्य जी ज्ञान कैसे काम आएगा मैं कैब में बैठी हुई थी कैब वाला अगर हिंसक हो जाता तो? अरे तो सीखो ना निपटना वह भी तो सिखा रहे हैं ना। आप इतनी आफतें हमको देते हैं। हम उन आफतों से नहीं निपटते हैं क्या? आफतें हमें कोई बस बाहर की दुनिया से थोड़ी आती हैं। हमारे अपने लोग इतनी आफतें दिन रात देते हैं। हम उनसे नहीं निपटते क्या? जैसे हम आफतों से निपट रहे हैं। हमसे सीखकर आप भी जानो आफतों से कैसे निपटते हैं। और आफत बस यही नहीं होती कि सूक्ष्म है। भीतरी है, मानसिक है। स्थूल आफतें भी आती हैं। हम स्थूल आफतों से भी तो निपटते हैं। आप भी स्थूल आफतों से निपटना सीखो।

लोग आते हैं लोगों को लगता है संस्था तो बस यही है कि लोग यहां बैठकर के ज्ञान बांच रहे होंगे। हमारे संदेश जाते हैं, कॉल जाती हैं कि भाई साहब इतना समय हो गया क्या कर रहे हो आप? पहले तो इतनी कम आपकी कुल सहयोग राशि है। इतनी कम इतने में आप जाकर के पिक्चर देखाते हो, पॉपकर्न खाते हो उससे भी कम। और उसके बाद भी आप को 100 संदेश भेजने पड़ते हैं और 100 बार कॉल करनी पड़ती है। तो लोग जवाब देते हैं अरे पैसों की किल्लत है। संस्था समझती क्यों नहीं? नहीं, हम तो जानते ही नहीं पैसों की किल्लत का मतलब। हमें तो अमेरिका से करोड़ की फंडिंग मिली है। हमें तो पता ही नहीं पैसों की किल्लत क्या होती है। आपको ही पता है बस। हम तो बस यह जानते हैं कि संस्कृत बांचनी है। ये जो पूरी संस्था है जो 250 लोग हैं संस्था में यह सब लोग बैठकर के सुबह से शाम तक श्लोक ही तो बांचते हैं। हम व्यवहारिक तल पर थोड़ी कुछ जानते हैं। व्यवहारिक तल पर तो आप जानते हो तो आप बताते हो अरे संस्था वालों को क्या पता हमें पैसे की किल्लत है।

आप मुझसे कुछ नहीं सीख रहे, अगर आप मुझसे बस वो सीख रहे हो जो मैं आपको दो घंटे सत्रों में बता रहा हूं। आपको हमारा जीवन हमारा संघर्ष नहीं दिखाई देता क्या? हम कोई आसमानी लड़ाई भर नहीं लड़ रहे हैं। हम जमीन के योद्धा हैं। हम व्यवहारिक तल पर संघर्ष कर रहे हैं। आचार्य जी ड्राइवर मेरे साथ पता नहीं क्या कर सकता था। और आचार्य जी ने कितनी बार अपनी जान जोखिम में डाली है वो बताएं क्या? और जान जोखिम में डाल के किस ज्ञान से उस जोखिम का सामना करा वो मुझसे नहीं सीखोगे क्या?

आपके पास जो व्यवहारिक समस्याएं आती हैं ना बहुत आपसे मैं विनम्रता के साथ कह रहा हूं। उससे कई कई कई गुना बड़ी व्यवहारिक समस्याएं हमारे सामने भी आती हैं। तो एक ज्ञान वो भी है जिससे हम उन समस्याओं का सामना करते हैं। हमसे वो ज्ञान भी सीखो। नहीं तो यही सोचते रहो कि आचार्य जी और करते क्या है? आकर के दो घंटे ऐसे ही बोल जाते हो तो कोई भी बोल सकता है। नत्थू हलवाई बोल देगा। हमारे फूफा जी भी अपने आप को संस्कृत का प्रकांड शास्त्री बोलते हैं वो भी आकर बोल जाएंगे।

लोगों के घरों पर भी उनको ताने पड़ते हैं कि अरे नौकरी कैसे पानी है यह तुमको गीता बताएगी क्या या वो आचार्य बताएगा? हां मैं बताऊंगा और सिर्फ नौकरी कैसे पानी है यह नहीं बताऊंगा, दूसरों के लिए भी नौकरियां कैसे तैयार करनी है वह भी बताऊंगा और बता रहा हूं सीखने वाले सीख भी रहे हैं। आज देश के इतने शहरों में बुक स्टॉल लग रहे हैं। मैं उनका समर्पण देख के, उनकी सरदयता देख के बिल्कुल विनीत हो जाता हूं। एक बार एक ने तस्वीर डाली अपनी यही नोएडा से। वो भाई बैठ ही गया था सड़क किनारे एक छोटे से प्लास्टिक के एक टब जैसी चीज में किताबें लेकर के। मैंने उसको देखा, मैं रो पड़ा सचमुच रो पड़ा। मैंने कहा यह मुझे कुछ नहीं जानता। लेकिन कितना भरोसा है इसे मेरे ऊपर। और कितना बड़ा इसने अब मेरे ऊपर दायित्व रख दिया कि मैं इसका भरोसा कभी टूटने ना दूं।

और मैं इस बात को जैसे अभी विनम्रता से कहा तो वैसे ही अब आपसे गौरव से भी कह सकता हूं कि हम इतने कम कामों पर लोगों तक किताबें पहुंचा पाते हैं कि यह सब बंधु हमारे जो अपना समय, अपनी जिंदगी, अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगाते हैं और स्टॉल पर खड़े होते हैं, ₹4 उनको भी बच जाए। इतने कम दामों पर लोगों तक किताब पहुंचा पाना यह यूं ही नहीं हो रहा है। किताब इतनी सस्ती छपती नहीं है भाई। पर आप कभी सोचोगे नहीं कि आप तक इतने सस्ते में कैसे पहुंच जाती है। वह भी एक ज्ञान है कि किस तरीके से ऐसे करना कि लोगों तक इतने कम दाम में पहुंच जाए कि फिर जब वो उसको आगे वितरित करें तो कम से कम उनका खर्चा पानी कुछ निकल आए।

तो अब जब ताऊ जी ताना मारे ना कि यह नौकरी आचार्य देगा क्या? तो कहो 250 को तो दे रखी है। और अगर संयोग भांजी ना मार दे तो हजारों तक भी जाएगी संख्या। हमको लगता है ये तो बस वेग, नेबुलस स्पिरिचुअल थ्योरी की बातें हो रही हैं। इसका कोई प्रैक्टिकल डायमेंशन तो होता ही नहीं है। ऐसा ही है ना? कि अरे पढ़ने लिखने पे ध्यान लगाओ। ये गीता वगैरह बुढ़ापे में देखना। हमने गीता बुढ़ापे में नहीं देखी हमने जवानी में देखी। उसका नतीजा यह है कि शायद आज देश का सबसे बड़ा और सबसे शुद्ध समाज सुधार कार्यक्रम हम चला रहे हैं। पर ये बड़ा आरोप लगता है। इन लोगों को क्या पता ये लोग तो बस बैठे हैं डोनेशन आती है और यह लोग कुछ ग्रंथ वगैरह बांते हैं। नहीं साहब व्यवहारिक जीवन भी क्या होता है और व्यावहारिक संघर्ष भी क्या होते हैं, वह भी मैं आपसे फिर कह रहा हूं विनम्रता के साथ, शायद हमें आपसे ज्यादा पता है तो इसीलिए हमें यह भी पता है कि व्यवहारिक संघर्षों से भी कैसे जूझा जाता है। यह ज्ञान भी है और आप चाहे तो यह ज्ञान भी हमसे ले सकते हैं। सीख सकते हैं। और यह व्यवहारिक ज्ञान भी गीता की कृपा से ही आया है। बहुत छोटी चीज है व्यवहारिक ज्ञान।

कृष्ण अर्जुन को उच्चतम ज्ञान बता रहे हैं आत्मज्ञान। उसके बाद व्यवहार की चीजें बहुत सरल हो जाती हैं। जो आखिरी बात जान गया ना उसको बाकी बातें समझाना बहुत आसान हो जाता है। जो ब्रह्मविद होता है उसके बारे में कहते हैं कि अब दुनिया की कोई भी और विद्या उसके लिए बहुत आसान हो गई क्योंकि कठिनतम विद्या ब्रह्म विद्या होती है। और जिसने ब्रह्म विद्या साध ली उसको अब और कुछ भी साधना मुश्किल नहीं पड़ेगा। तो अब दुनिया में अगर निकलेगा तो बिल्कुल छत्रपति हो जाएगा। उसको हराना असंभव हो जाएगा। क्योंकि उसने अब स्वयं को हरा लिया ना। ब्रह्मविद्या माने स्वयं को हरा देना। जिसने स्वयं को हरा लिया उसको हराना फिर बहुत मुश्किल हो जाता है। तो मार वार दो तो ही ठीक है हरा नहीं पाओगे उसको।

बिल्कुल भी अपने मन में यह बात मत लाइएगा। कईयों का आता है वह अभी हम 1 महीने दो महीने परीक्षा आ रही है तो दो महीने की हम परीक्षा दे लें उसके बाद हम फिर गीता सत्रों में दोबारा जुड़ेंगे। भाव उनका बिल्कुल वही है जो आज के प्रश्नकर्ता का है। कि गीता अलग बात है और यह जो संसारी संघर्ष होते हैं और संसारी परीक्षाएं होती है अलग बात है, अलग बात नहीं है। जो गीता का हो गया ना वह जान जाता है भली-भांति कि सांसारिक परीक्षाएं भी कैसे पार करनी है। और वो कोई मूर्ख ही होता है जो कहता है कि अभी मुझे जरा संसार की कुछ समस्याओं से जूझना है इसलिए अभी गीता को मैं 4 महीने के लिए छोड़ रहा हूं। इससे मूर्खता का वचन नहीं हो सकता।

आचार्य जी रात में अंधेर अकेली थी तो एक अनजाने पुरुष को देखा तो मेरे मन में यह भाव आया कि गीता वगैरह का ज्ञान तो सब व्यर्थ है। क्यों? क्योंकि गीता में तो बताया ही नहीं गया है कि ऐसे पुरुष का क्या करना है। गीता में यह बताया गया है ना कि अपनी वृत्तियों से सावधान। गीता यह थोड़ी बताने आएगी कि चावल पका रहे हो, दाल पका रहे हो तो कुकर कितनी सिटी देगा? गीता तुम्हें ध्यान समझा देगी, सजगता बता देगी। गीता यह भी बता देगी कि जब भीतर कामनाएं उबल रही होती हैं, अज्ञान होता है, मान्यताएं होती है, धारणाएं होती हैं तो ध्यान बिल्कुल छितराया होता है। गीता यह भी बता देगी कि जहां नहीं डरना चाहिए, वहां भी डर जाते हो। पर ये कैसी विचित्र बात होगी? कि गीता में यह तो लिखा ही नहीं है कि दाल कितनी सीटी पर उत करनी थी।

मैं आपका स्वागत करता हूं सबका, यह समझने के लिए भी कि जहां तक अविद्या के क्षेत्र की बात है वहां आपकी संस्था और आपके आचार्य जी क्या कर रहे हैं। विद्या वाली जो बात है वह तो आप रोज देख ही लेते हो। सत्र सुन लेते हो, परीक्षा दे लेते हो। थोड़ा अविद्या पर भी गौर करो। हम पक्के वेदांती हैं। हम विद्या-अविद्या को साथ लेकर चल रहे हैं। और विद्या किसी काम की नहीं है अगर अविद्या के क्षेत्र में झंडे नहीं गाड़ दिए। किसी को भी कभी ऐसे कहते सुनिए ना। कि स्पिरिचुअलिटी वगैरह, थ्योरी वगैरह सब ठीक है, लाइफ में प्रैक्टिकल होना चाहिए। जान जाइए कि वह आदमी कुछ नहीं समझता।

कोई आदमी अगर सच्चे अर्थों में व्यवहारिक है, आध्यात्मिक है, व्यवहार क्या है, प्रैक्टिकिटी क्या है- यह आप कर उससे सीख सकते हैं। श्री कृष्ण को देखिए ना महाभारत में ही, अभी अर्जुन को गीता दी है। श्री कृष्ण ‘द टीचर.’ श्री कृष्ण ‘द थिरिटिशियन’ और अगले ही पल वह हो जाते हैं श्री कृष्ण ‘द टैक्टिशियन’ ‘द स्ट्रेटजिस्ट’ कैसे हो जाते हैं? कैसे हो जाते हैं? बोलिए ना। जिसको गीता आती है ना वो सब जानेगा कि जीवन के सारे युद्ध कैसे जीतने हैं। वो ये नहीं होगा कि हमें तो गीता पता है पर उधर कर्ण खड़ा हो गया है। और उसके पास एक जबरदस्त शक्ति है जो अर्जुन को मारने के लिए है तो क्या करें? श्री कृष्ण ‘द टैक्टिशियन’ रणनीतिकार मात्र गीताकार ही नहीं रणनीतिकार भी, वो कहते हैं बुलाओ घटोत्कच को और ऐसी मार बजाओ कि कर्ण मजबूर हो जाए, जो शक्ति उसने बचा कर रखी थी अर्जुन को मारने के लिए वो घटोत्कथ पर चला दे। ये देखो टैक्टिक्स। अपना ही योद्धा अपना ही बंदा, अर्जुन का ही भतीजा लगा वो- घटोत्कच, भीम का बेटा था उसको मरवा दिया और कोई छल करके नहीं कोई षड्यंत्र करके नहीं उसको बुला करके उसको कहा तू लड़। तू लड़ तू इतना मार दुर्योधन वगैरह को इतना मार कि कर्ण मजबूर हो जाए और जिस क्षण शक्ति लगती है घटोत्कच को कृष्ण मुस्कुराते हैं। कृष्ण कहते हैं यह अर्जुन को अब अभय दान मिल गया। अब अर्जुन जिएगा नहीं तो कर्ण जान ले लेता अर्जुन की। ऐसा होता है गीताकार। वो टैक्टिक्स भी जानता है। वो तरीके भी जानता है वो जिताना भी जानता है। वो हराना भी जानता है वो जीवन के हर युद्ध को जानता है।

और आप कैसे लोग हो? लड़के हमें छेड़ गए आचार्य जी गीता काम नहीं आई? नहीं मान रहे द्रोण तो धर्मराज को जाकर के कृष्ण ने कहा तुम्हें बोलना पड़ेगा। ‘नरोवा कुंजरो अश्वत्थामा महतो।’ 18 दिनों में न जाने कितनी बार एक ब्रिलियंट टैक्टिशियन की तरह कृष्ण अर्जुन का मार्गदर्शन करते हैं- अविद्या, मैनेजमेंट स्ट्रेटजी। यह थोड़ी फिर कहते हैं कि अर्जुन अभी जो तुमको मैंने बताया था पांचवें अध्याय के 13वें श्लोक में उसके अनुसार काम करो। यह सब कुछ नहीं है। और अभिनय करना भी खूब जानते हैं। सारी कलाओं में पारंगत है। देख रहे हैं कि गीता ज्ञान के बावजूद अर्जुन की भावना और आसक्ति नहीं जा रही है और नहीं वो भीष्म से लड़ेंगे तो कहते हैं कुछ करना पड़ेगा। यह भी सब आर्ट ऑफ वॉर का हिस्सा होता है- फेकिंग। रथ का पहिया उठा के दौड़ पड़ते हैं भीष्म की ओर कि पितामह हमारे यहां तो होगा आपका तो अर्जुन कहते हैं नहीं नहीं मैं वापस आ जाइए मैं लडूंगा। कृष्ण से गीता ही भर सीख रहे हो क्या?

ये तो मैं सिर्फ 18 दिनों के युद्ध युद्ध की बात कर रहा हूं। पांडव युद्ध तक पहुंचने के लिए बचे ही नहीं होते अगर कृष्ण ने पल-पल उनका टैक्टिकल मार्गदर्शन नहीं किया होता। अपनी जवानी में ही पांडव किसी लाक्षा ग्रह में नहीं तो कहीं अज्ञातवास में निपट गए होते। कथा तो यह कहती है कि चीरहरण हो रहा था द्रोपदी का तो वह आ गए और उन्होंने द्रोपदी की साड़ी बिल्कुल अनंत लंबी कर दी तो दुशासन परेशान हो गया। साड़ी उतरी ही नहीं पूरी। पर धरातल पर तथ्य में ऐसा तो नहीं हुआ होगा। यह तो बताने का एक तरीका है। ये तो काव्यात्मक तरीका है बताने का। कि आसमान से साड़ी उतरती आ रही है और द्रोपदी को निर्वस्त्र नहीं होने दे रही है। वास्तव में क्या हुआ होगा? कुछ तो हुआ होगा। कृष्ण ने कुछ तो करा होगा। तो ये भी करना जानते हैं। उस वक्त उन्होंने ये नहीं कहा कि दुशासन आ तुझे गीता सुनाता हूं।

जमीन पर, सड़क पर, सभा में किसी महिला का अपमान हो रहा है। उसको निर्वस्त्र करा जा रहा है तो उसको बचाना कैसे है? कृष्ण यह भी जानते हैं। कोई खुली बदतमीजी कर रहा है, शिशुपाल जैसा गालियां ही दिया जा रहा है। गालियां ही दिया जा रहा है। तो कृष्ण यह भी जानते हैं कि कब तक उसकी उपेक्षा करनी है और फिर कब पकड़ करके उसको तोड़ देना है। उसको गीता नहीं सुना रहे। आप यह नहीं सीखोगे क्या? यह कोई अदर वर्ल्डली हम कार्यक्रम नहीं चला रहे हैं। हम इसी जिंदगी को गरिमा के साथ ठसक के साथ निर्भयता के साथ शान और समर्पण के साथ जीने का अभियान चला रहे हैं। हमें इसी जमीन पर जीना है। ज्ञान और गौरव के साथ।

हम आसमानों की बातें नहीं करते हैं। पर आप लोगों का उल्टा हिसाब चलता होता है। आप कहते हो कि नहीं आचार्य जी तो आसमानों की बातें सिखा रहे हैं। जमीन का तो कुछ बताते नहीं। तो जमीन का तो हम फिर अपने हिसाब से देखेंगे। यह आजकल हमारा जो जमीन का कार्यक्रम है, जमीनी कार्यक्रम माने आपके दुनियावी मसले। आजकल जो हमारा जमीन का कार्यक्रम है वो थोड़ा फंसा हुआ है तो आजकल हम गीता सत्र नहीं देखते हैं। पहले भोजन फिर भजन। हा हा हा गजब लोकोक्ति सुनाई है। ये लोक संस्कृति अपनी जेब में रखिए कि पहले भोजन फिर भजन कि अभी तो हम भोजन का जुगाड़ कर लें उसके बाद देखेंगे गीता वगैरह करनी है कि नहीं। भोजन का जुगाड़ भी कैसे करना है ये गीता सिखाएगी। ऐसा है गीता में बताइएगा कौन अध्याय कौन श्लोक में है? तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा। तुम कह रहे हो बाकी गीता से कोई मतलब नहीं जरा बता देना गीता के कौन से श्लोक में एंप्लॉयमेंट स्कीम है हर श्लोक में है।

प्रश्नकर्ता: धन्यवाद आचार्य जी।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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