गया न मन का फेर || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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गया न मन का फेर || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

प्रश्न: सर, जो दुखी है क्या वो भी इगोइस्ट है?

वक्ता: पीड़ित होने में बड़े मज़े हैं।अगर तुम पीड़ित हो तो तुम्हें हक मिल जाता है एक प्रकार से जीवन जीने का। किस प्रकार से? बुझा-बुझा, दुखी! दुःख में जीना है तो मुझे याद ही रखना पड़ेगा कि समाज ने, दुनिया ने मेरे साथ बड़ा अन्याय किया है। तुम्हें रस मिलने लगा उसमें। तुम्हें ये रस मिलता है कि तुम्हारे मन ने एक गलत सम्बन्ध बना लिया है दुःख में और सदगुण में। पुराने जमाने की फिल्मों को देखो कभी, तो पाओगे कि जो अच्छा था वो हमेशा रोता रहता है। हीरो हमेशा आंसू बहाता नजर आता था। ट्रेजेडी किंग! तो एक सम्बन्ध स्थापित हो गया कि जो अच्छा है, सदगुणी है वो रोता है और तुमने तो उसको उल्टा भी समझ लिया कि जो ही रोये वो अच्छा है। अब अच्छे तो हम हो नहीं सकते पर रोयेंगे जरूर क्योंकि रोने से सिद्ध हो जाएगा कि हम अच्छे हैं। इसलिए घरों में कोई बच्चा हंस रहा हो तो उसपर ध्यान नहीं दिया जाता लेकिन अगर रो रहा है तो उसपर बड़ा ध्यान दिया जाता है। तुम्हारे मन ने क्या सम्बन्ध निकाला कि रोने से दूसरों का ध्यान मिलता है। तो रो क्योंकि हंस रहे होगे तो दुनिया ध्यान नहीं देती। रोओगे तो सब आकर पूछेंगे कि क्या हो गया-क्या हो गया? रोने के बहुत मज़े हैं!

अहंकार, इगो, रोने में, दुखी होने में, बल पाती है। अहंकार का मतलब ही है द्वेष, कलह, कनफ्लिक्ट, दुख। आनंद में तो अहंकार घुल जाता है, इसीलिए अहंकार आनंद से दूर भागता है, दुःख की ओर।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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