भारतीय सेना, भारत राष्ट्र, और संविधान

Acharya Prashant

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भारतीय सेना, भारत राष्ट्र, और संविधान
किसी भी सेना का, विशेषकर भारत की सेना का एक ही अर्थ होना चाहिए; उसकी रक्षा करो जो उच्चतम है। ‘मुझे रक्षा करनी है’, मैं हर चीज़ की रक्षा थोड़े ही करने लग जाऊॅंगा। मैं उसकी रक्षा करूॅंगा न जो मूल्यवान है, कीमती है, उच्चतम है। और भारत रक्षा के योग्य इसलिए है क्योंकि अगर भारत सशक्त होगा तो हमारी उम्मीद ये है कि यही ऊँचे और उदार विचार पूरी दुनिया में फैल पाऍंगे। यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

प्रश्नकर्ता: नमस्ते सर!

आचार्य प्रशांत: अच्छा, इसलिए आप लोग नहीं आ पा रहे थे, इतने सारे हैं।

प्रश्नकर्ता: जी सर।

आचार्य प्रशांत: आईए, स्वागत है सबका।

प्रश्नकर्ता: नमस्ते सर, मैं अभी इण्डियन नेवी (भारतीय थलसेना) में हूँ, और ये मेरे ट्रेनीज़ (प्रशिक्षु) हैं। आज संडे था तो मैंने सभी को साथ ले लिया है। बाकी दिन में, मैं खुद ही सेशन सुनता था।

तो सर, मेरा सवाल ये है कि जो भारतीय सेना है, उसका वेदान्तिक अर्थ क्या होना चाहिए? क्योंकि अभी हम बॉर्डर पर हैं, तैनात हैं, लड़ रहे हैं कि कोई देश हमारे ऊपर आक्रमण न कर दे। और ये (प्रशिक्षु) हैं, जो ट्रेंड (प्रशिक्षित) हो रहे हैं लड़ने के लिए। पर जो क्लाईमेट चेंज की समस्या है वो तो सभी के लिए है।

तो जो भारतीय सेना का अर्थ है या इसका वेदान्तिक अर्थ क्या होना चाहिए?

आचार्य प्रशांत: किसी भी सेना का, विशेषकर भारत की सेना का एक ही अर्थ होना चाहिए; उसकी रक्षा करो जो उच्चतम है। उसको बचाओ जो बचाने योग्य है।

देखो, राष्ट्र क्या होता है? राष्ट्र का अर्थ होता है, लोग जो साथ रह रहे हैं, नेशन! और राष्ट्र में जो लोग साथ होते हैं, उनके साथ होने की कोई वजह होती है, कोई कारण होता है कि वो साथ होते हैं। ऊँचे से ऊँचा कारण होना चाहिए और उस कारण की रक्षा जो लोग करें, वो लोग फिर सेना कहलाते हैं।

उदाहरण देता हूँ — मोहम्मद अली जिन्ना ने बोला कि हिंदूज़ एण्ड मुस्लिम्स आर टू सेपरेट नेशंस (हिन्दू और मुसलमान दो अलग राष्ट्र हैं), ये उनका वक्तव्य है। हिंदूज़ एण्ड मुस्लिम्स आर टू सेपरेट नेशंस! तो वो कह रहे थे कि नेशन का आधार ये है कि तू हिन्दु है, मैं मुसलमान हूँ। उन्होंने कहा, ‘कुछ लोग साथ रहेंगे क्योंकि वो सब लोग मुस्लिम हैं। और कुछ लोग साथ रहेंगे क्योंकि वो सब लोग हिंदू हैं।’

तो उन्होंने कहा, ‘नेशन का आधार ये है कि किसका धर्म क्या है।’ उनकी बात चली नहीं क्योंकि मुसलमान तो पूर्वी पाकिस्तान में भी थे। पर वो मामला तीस साल भी नहीं चला, पच्चीस साल भी नहीं चला।

तो नेशन का आधार क्या होना चाहिए? नेशन का एक आधार ये भी हो सकता है कि हम सबकी साझी भाषा है। जो पूर्वी पाकिस्तान के लोग थे, बंगाली थे। उनको सारी समस्या ही यही आ रही थी। असल में जो पूर्वी पाकिस्तान था उसकी आबादी पश्चिम से ज़्यादा थी। लेकिन वो कह रहे, ‘उर्दू ही चलेगी यहाँ, बंगाली नहीं चलेगी।’ वो बंगाली को ऑफिशियल (आधिकारिक) भाषा मानने से ही इनकार कर रहे।

तो बंगालियों ने कहा, ‘नहीं, द बेसिस ऑफ नेशनहुड विल नोट मेयरली बी रिलीजन, इट विल बी लैंग्वेज (राष्ट्र का आधार धर्म मात्र नहीं होगा, बल्कि भाषा होगी)। तो राष्ट्र का दूसरा आधार ये हो सकता है कि हम सब एक राष्ट्र के हैं क्योंकि हम सब एक भाषा बोलते हैं। पहला आधार क्या हो सकता था? कि हम सब एक धर्म के हैं जैसे जिन्ना ने बोला। ‘हम सब एक धर्म के हैं, तो हम अलग राष्ट्र हैं, तुम दुसरे धर्म के हो तो तुम अलग राष्ट्र हो।’

फिर दूसरा, जैसे बांग्लादेश के लोगों ने बोला कि नहीं हमारी भाषा है, बंगाली है, तो हम एक राष्ट्र हैं। कुछ और भी हो सकता है; चेहरे का रंग, खाल का! कई देशों का इस बात पर विभाजन हुआ है कि साहब, जो इस तरीके के लोग हैं वो उधर जाऍं, जो इस तरह के लोग इधर आऍं; हम साथ नहीं रह सकते। द बेसिस ऑफ अवर नेशन इज़ द कलर ऑफ अवर स्किन (हमारे राष्ट्र का आधार हमारी त्वचा का रंग होगा)। जितने लोग एक तरह की खाल वाले हैं, वो इकट्ठे रहेंगे, ये नेशन है!

और भी तरीके से हुआ है। कि साहब, हमारा ट्राइब (जनजाति) क्या है? ऊपर से सब वो एक जैसे दिखते हैं, लेकिन वो कह रहे हैं, ‘हमारा ट्राइब क्या है?’ ट्राइब से क्या आशय है उनका? कि हमारी मान्यता क्या है। अलग-अलग हमारी मान्यता। अब युगोस्लाविया होता था, उसका विभाजन हुआ, किस आधार पर हुआ था, पता करो!

जर्मनी को बाॅंट रखा था दो हिस्सों में, दोनों में अलग-अलग तरीके की विचारधाराऍं चला रखी थीं और आर्थिक व्यवस्थाऍं चला रखी थीं। वो बात चली नहीं, जर्मनी की दीवाल गिर गई। पाकिस्तान की दीवाल गिर गई।

नेशन का आधार क्या होना चाहिए? और एक बार जब जान लो कि उच्चतम आधार क्या है, उसकी रक्षा करनी है। सेना उसकी रक्षा के लिए है।

‘मुझे रक्षा करनी है’, मैं हर चीज़ की रक्षा थोड़े ही करने लग जाऊॅंगा। मैं उसकी रक्षा करूॅंगा न जो मूल्यवान है, कीमती है, उच्चतम है। तो सेना भी इसीलिए होती है कि उच्चतम की रक्षा की जाए। और उस अर्थ में आप भी सैनिक हैं, मैं भी सैनिक हूँ, हम सब सैनिक हैं। क्योंकि जो ऊँचा है, सच्चा है, कीमती है; उसकी रक्षा करना हम सबका दायित्व है।

भारत इस अर्थ में थोड़ा सा विशेष राष्ट्र है। भारत का जो संविधान है, उदात्त है, उदार है, ऊँचा है। एक, एक कहाँ पर तो था, किसी कॉलेज में था, उन्होंने बुलाया था, वो वीडियो होगा अभी। जहाँ मैंने कहा था कि अगर तुम गौर से देखोगे, वहाँ (संविधान में) जो हमारा प्रीयम्बल (प्रस्तावना) है, मैंने उसको लेकर के, पूरा प्रीयम्बल लेकर के, पीछे स्लाईड (माइक्रोसॉफ्ट प्रसेंटेशन स्लाईड) चली थी। मैंने समझाया था कि देखो एक-एक बात जो यहाँ कही गई है, ये वास्तव में वेदांत है।

संविधान का प्रीयम्बल होता है, जानते हैं न? वी द पीपल ऑफ़ इंडिया… गिव टू अवर्सेल्व्ज़ दिस कॉंस्टिट्यूशन… दिस डे… (हम भारत के लोग… आज तारीख … को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत और आत्मार्पित करते हैं)। हम कहते हैं कि हम इन बातों पर चलेंगे। वो बस एक वाक्य है। वो जो पूरा प्रीयम्बल है, वो एक सिंगल सेंटेंस (अकेला वाक्य) है, उसको पढ़िएगा।

और ये अभी मुश्किल से शायद साल-दो-साल पहले की बात है, कहीं पर हुआ था।

श्रोता: एसआरसीसी काॅलेज।

आचार्य प्रशांत: हाॅं, दिल्ली का ये जो एसआरसीसी कॉलेज (श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स, दिल्ली विश्वविद्यालय) है।

तो इसलिए भारत रक्षा के योग्य है। हम नहीं कह रहे हैं कि तेरी खाल का रंग अलग है, तू जाएगा, उसके पीछे भाव क्या है? नाहम् देहास्मि, ये वेदांत है। तेरी खाल का रंग अलग है, कोई बात नहीं, चेतना तेरी वही है। हम कह रहे हैं कि जात-पात के आधार पर भेदभाव नहीं होगा, भाव क्या है वहाँ पर? फिर वही — मैं चेतना हूँ! स्त्री-पुरुष में भेदभाव नहीं होगा, मैं चेतना हूॅं! इसलिए भारत रक्षा के योग्य है।

और भारत रक्षा के योग्य इसलिए है क्योंकि अगर भारत सशक्त होगा तो हमारी उम्मीद ये है कि यही ऊँचे और उदार विचार पूरी दुनिया में फैल पाऍंगे। लिबर्टी (स्वतंत्रता), इक्वेलिटी (समता), फ्रेटरनिटी (बंधुता); हम बात कर रहे हैं इनकी। ‘और हम भाई हैं आपस में’, फ्रेटरनिटी (भाईचारा), क्यों? ‘क्योंकि एक ही माँ से हम आए हैं।’ कौनसी माॅं? प्रकृति! ये वेदांत है।

तो ये सेना का दायित्व है कि समझे कि भारत किस अर्थ में विशेष है, और क्यों रक्षा की जानी चाहिए। आज आप चीन को देखिए। मानिए कि चीन का पूरी दुनिया में साम्राज्य हो जाए, तो फिर पूरी दुनिया में क्या होगा? वही जो विचार आज चीन में है। और चीन में क्या विचार है? ‘तेरी बात की कोई कीमत नहीं।’ एक पार्टी, एक प्रमुख, एक विचार! बाकी आम आदमी क्या बोल रहा है, कोई मतलब ही नहीं है।

और उसके सामने भारत का संविधान देखिए। लोगों को नहीं समझ में आता है, लोग कहते हैं कि हम तो सेक्युलर (धर्मनिरपेक्ष) हैं न। साहब, हम सेक्युलर हैं पर हमारे संविधान में गीता बैठी हुई है। और चूॅंकि गीता हमारे संविधान में बैठी हुई है, इसलिए हम सेक्युलर हैं। लोग कहते हैं, ‘भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना है।’ क्या करोगे हिन्दू राष्ट्र बनाकर? तुम्हारा संविधान ही वेदांत है। तुम्हें हिन्दू राष्ट्र बनने की ज़रूरत क्या है?

वो कहाँ से आ गया संविधान? कहाँ से आया, समझो तो। उसमें लिखा नहीं है भले ही कि ये वाक्य इस उपनिषद से आ रहा है, पर वो अपने आप में उपनिषद ही है। बस रेफ्रेंस (सन्दर्भ) देना बाकी रह गया था। पर वो दे दिया जाए तो लोग भड़क जाएँगे, कहेंगे, ‘ये तो धार्मिक ग्रंथ हो गया।’ वो धार्मिक ग्रंथ ही है। नहीं तो बताओ, बंधुत्व मनुष्य में हो कैसे सकता है? फ्रेटरनिटी (बंधुता) कहाँ से आ जाएगी?

जो बातें आपका संविधान कह रहा है न, वो आम आदमी के बस की ही नहीं हैं। हर तरीके की लिबर्टी (स्वतंत्रता), आपका संविधान आपको दे रहा है। कितने तरीके की फ्रीडम्स (स्वतंत्रताऍं) हो सकती हैं, वो विस्तार में लिख कर बता रहा है। ये भी फ्रीडम, ये भी फ्रीडम! और बस जब कोई बहुत आपात स्थिति हो जाएगी तब कुछ समय के लिए आपकी कोई फ्रीडम रोकी जा सकती है।

वो भी अगर गलत रोकी गई है, तो सुप्रीम कोर्ट मना कर सकता है। कहता है, ‘नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, रोक सकते!’ इतनी बड़ी बात है फ्रीडम, जो कि उच्चतम आध्यात्मिक बात होती है न? फ्रीडम क्या होती है? लिबरेशन (मुक्ति), उच्चतम आध्यात्मिक बात, मुक्ति! और देखिए आपका संविधान उसको कितना महत्व देता है।

और आपका संविधान कहता है, ‘प्रकृति की रक्षा करो।’ और आपका संविधान कहता है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण होना चाहिए। ये सारे मूल्य कहाँ से आ रहे हैं? ये अध्यात्म से आ रहे हैं। भारत अगर आध्यात्मिक देश नहीं रहा होता तो भारत का संविधान भी वैसा नहीं हो पाता, जैसा आज है।

चूॅंकि हम आध्यात्मिक लोग थे, इसलिए हम इतना उदार संविधान अपना पाए। लोगों को लगता है, ‘नहीं, संविधान तो हमारा दुनिया के बाकी काॅंस्टीट्यूशन्स से इंस्पायर्ड (अभिप्रेरित) है।’ नहीं, तुम्हारा संविधान तुम्हारी मिट्टी से उठा है, पागल। हम कहते हैं, ‘नहीं, नहीं, नहीं, पर वो तो जो आयरलैंड का था और जो यूएस का है…’

और लोग बिल्कुल तर्क के साथ बताते हैं, प्रमाण के साथ। कहते हैं, ‘देखो, भारत का संविधान इन-इन जगहों से है। और कुछ बातें तो बिल्कुल यहाँ से ली हैं। ब्रिटेन से ली हैं, कुछ बातें यहाँ से ली हैं।’ वो बातें ली होंगी, भाव सारा विशुद्ध, खालिस देशी है। हमारा है, हमारी मिट्टी का है।

नहीं तो हम रिपब्लिक (गणतांत्रिक) कैसे बन जाते? वहाँ पर तो आज भी क्वीन बैठी हुई है। हमने कहाँ यहाँ कोई किंग, क्वीन.. कुछ नहीं! हम सच्चे गणतंत्र हैं। गण माने? साधारण आदमी। सोचो, वहाँ आज भी.. कहाँ पर? ब्रिटेन में। वहाँ आज भी क्वीन बैठी हुई है, क्यों? क्योंकि परंपरा से रही है वही क्वीन। हमने कहा कि कोई क्वीन नहीं।

ये भाव जानते हो क्या है? सबसे ऊपर आत्मा है। और आत्मा सबके लिए एक बराबर है, तो कोई ऊँचा, कोई नीचा कैसे हो सकता है? क्या आत्मा पर किसी का कम, किसी का ज़्यादा अधिकार है? तो फिर हम किसी को किंग या क्वीन कैसे मान सकते हैं? ये वेदांत है। वेदांत के बिना रिपब्लिक होना बहुत मुश्किल है। जहाँ वेदांत नहीं है, वहाँ तो कोई-न-कोई मोनार्क (राजतंत्र) होगा-ही-होगा।

ये बात मेरी बहुत आसानी से नहीं पचेगी लोगों को। कहेंगे कि ये हर जगह वेदांत घुसेड़ देते हैं। आज इन्होंने संविधान में भी डाल दिया। अरे! मुझे दिख रहा है तो मैं क्या करूँ? मैं कहूँगा मुझे तो दिख रहा है। कहेंगे, ‘सावन के अंंधे को सब जगह हरा-ही-हरा दिखता है।’ अब हो सकता है ऐसा, है तो है!

पर मुझे तो ये पता है कि जैसे अ थिंग ऑफ ब्यूटी इज़ जॉय फॉरएवर (एक सुंदरता की चीज़ हमेशा के लिए आनंददायी होती है)! सत्यम् शिवम् सुन्दरम्! मुझे जहाँ ब्यूटी (सौंदर्य), सुंदरता दिखाई देती है, मुझे तो वहाँ शिव ही दिखाई देते हैं। सौ तरह के सौंदर्य नहीं होते। प्रकृति का सौंदर्य हो, कि गीता का सौंदर्य हो, कि संविधान का सौंदर्य हो, सौंदर्य एक ही होता है और एक ही जगह से आ सकता है, उसको आत्मा बोलते हैं।

तो अगर संविधान हमारा सुंदर है तो वो भी आत्मा से ही आ रहा है, वो उसी जगह से आ रहा है। इसको वेदांत बोला जाता है। तो सेना का काम सिर्फ़ सीमाओं की रक्षा नहीं है। सेना का काम है — राष्ट्र की रक्षा। और ये बात समझनी बहुत ज़रूरी है।

भारत जब पॉलिटिकल स्टेट (राजनैतिक राज्य) नहीं भी था, नेशन (राष्ट्र) तब भी था। जब पॉलिटिकली (राजनैतिक रूप से), इण्डिया कुछ था ही नहीं, नेशन इंडिया (भारत राष्ट्र) तब भी था। जब भारत सौ राज्यों में बॅंटा हुआ था, तब भी नेशन एक ही था, भारत। सेना का काम है नेशन (राष्ट्र) की रक्षा करना।

बिल्कुल हो सकता है, काल के संयोगों की बात है, कि कुछ ऐसा हो जाए कि राजनैतिक तौर पर भारत को पराधीन होना पड़े। होता रहता है, सब राष्ट्रों के साथ होता है, काल चक्र है। कभी बहुत ऊपर, कभी बहुत नीचे। लेकिन भारत स्वाधीन हो, पराधीन हो, अपने उच्चतम बिंदु पर हो, अपने न्यूनतम बिंदु पर हो; भारत राष्ट्र का आधार यदि दर्शन है, तो भारत राष्ट्र सदा उच्चतम रहेगा।

बस राष्ट्र का लेकिन आधार सही होना चाहिए। जिन राष्ट्रों का आधार गड़बड़ है, वो कहीं के नहीं रहते। वो बस फिर लड़ मरते हैं।

और राष्ट्रों के बड़े गड़बड़-गड़बड़ आधार होते हैं, बहुत! इस बात पर भी हो जाते हैं कि तुम दक्षिण वाले, हम उत्तर वाले, हम अलग-अलग रहेंगे। क्यों अलग-अलग रहोगे, कोई वाजिब कारण बताओ?

क्या वाजिब कारण है कि उत्तर कोरिया, दक्षिण से अलग है, बताओ? कोरिया तो एक देश है, बीच में उन्होंने एक रेखा खींच रखी है, क्यों खींच रखी है? उस राष्ट्र की कोई वजह है, कोई वजह नहीं है। एक परिवार है, वो वजह है। जिस दिन वो परिवार नहीं रहेगा, वो एक हो जाएँगे।

और दुनिया भर के जो बाकी देश हैं, उनकी साजिशें वजहें हैं। एक हिस्से को अमेरिका ने लपेट रखा है, एक को चीन ने, दोनों अपना-अपना प्रभुत्व छोड़ने को तैयार नहीं हैं। नहीं तो कोई वजह है कि ये दो अलग-अलग कंट्रीज़ (देश) हों? कोई वजह नहीं है।

भारत ऐसा राष्ट्र नहीं है। भारत के पास एक बहुत वाजिब वजह है होने की। काश कि वो वजह पूरे विश्व को मिले।

आपको अपने काम में ज़बरदस्त समझ होनी चाहिए और बड़ा गौरव होना चाहिए। आप किसी छोटी मोटी चीज़ की रक्षा नहीं कर रहे हो। जो जीवन में उच्चतम हो सकता है, आप उसकी रक्षा कर रहे हो।

भारत यदि हारता है, भारत यदि पीछे रहता है, तो ये भारत का नहीं, पूरे विश्व का नुकसान है। हमने कहा तो, एशिया में कल चीन भारत पर चढ़ बैठे, ये सिर्फ़ भारत का नहीं नुकसान होगा, ये पूरी दुनिया के लिए खतरे की बात हो जाएगी। इसलिए नहीं कि चीनी गड़बड़ लोग हैं। इसलिए क्योंकि वो जो उन्होंने विचारधारा पकड़ी हुई है, वो मानव मात्र के लिए ज़हरीली है।

नहीं तो चीनियों ने एक समय पर बुद्ध के संदेश का स्वागत कितनी विनम्रता से करा था। चीनी गड़बड़ लोग नहीं हैं। किसी तरह गड़बड़ लोग नहीं है। कोई भी आदमी गड़बड़ नहीं होता।

हमको लगता है कि एक चीज़ होती है, इंसानियत। और एक चीज़ होती है, धर्म। हम कहते हैं, ‘धर्म की ज़रूरत नहीं है, इंसानियत पर्याप्त है।’ साहब, अगर इंसानियत सच्ची है, तो उसके केंद्र में धर्म बैठा होगा। भले ही आपको पता हो, चाहे न पता है।

नहीं तो इंसान माने क्या होता है? फिर तो इंसान वैसा ही है जैसे जंगल का कोई भी और पशु। जिसको आप ह्युमेनिटी (मानवता) बोलते हो, जो बात आज ह्यूमनिज़्म (मानवतावाद) करके चलती है — न हिंदू बनेगा, न मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा! ये जो हाइअर ह्यूमन वैल्यूज़ (उच्चतर मानवीय मूल्य) हैं, ये सब-की-सब कहाँ से आती हैं? जंगल से नहीं आती हैं, ये दर्शन से आती हैं, फिलोसॉफी से आती हैं।

पर ये बात हम सोचते नही हैं। हम बस कहते हैं, ‘इंसानियत के नाते!’ इंसानियत, ये इंसानियत क्या चीज़ होती है, बताइए ज़रा! और इस इंसानियत के क्या नियम होते हैं, बताइएगा? खोल के बताइएगा, विस्तार में? एक-एक बात जो आप लिखे हैं, बिल्कुल साफ़ करके बताइएगा।

पर हमारी आदत हो गई है, हेज़ी (धुंधली) बातें करने की, हेज़ी। ह्यूमन वैल्यूज़ (मानवीय मूल्य), ह्यूमन वैल्यूज़ क्या होती हैं? जितनी भी हाइअर ह्यूमन वैल्यूज़ (उच्चतर मानवीय मूल्य) हैं, वो वास्तव में सब स्प्रिचुअल वैल्यूज़ (आध्यात्मिक मूल्य) हैं।

फ्रीडम, लिबर्टी, उदाहरण के लिए हमारे संविधान का केंद्रीय तत्व हैं। और वो क्या है? कहाँ से आ रहा है? हमारा षड्दर्शन बोलता है — मुक्ति, मुक्ति, लिबरेशन! क्योंकि हमारा दर्शन बोलता है लिबरेशन, इसीलिए हमारा संविधान बोलता है — लिबर्टी, फ्रीडम!

ये बात हमें नहीं समझ में आती। हमें लगता है संविधान तो ह्यूमन वैल्यूज़ से आया है। नहीं साहब! संविधान के भी केंद्र में वेदांत है। वेदांत नहीं बोलना चाहते हो तो कह दो, ’हाई फिलोसॉफी (उच्च दर्शन)!’ ऐसे बोल दो।

अभी एक बड़ा तबका खड़ा हो गया है, वो कहते हैं, ‘रिलिजन इज़ बुलशिट, ह्युमेनिटी इज़ सफिशिऐंट (धर्म बकवास है, मानवता ही काफ़ी है)।’ मैं कहता हूँ, ’माइट बी, प्लीज़ इलेबरेट (हो सकता है, कृपया विस्तार में बताइए)।’ ये ह्युमेनिटी (मानवता) क्या होती है? वो आगे फिर बोल नहीं पाते। बिल्कुल एक वेग (अस्पष्ट), हेज़ी टर्म (अस्पष्ट शब्द) है ह्यूमेनिटी, इंसानियत, मानवता!

क्या? क्या? मानवता क्या?

बोलते हैं, ‘नहीं, पर वो तो हमें दिल से, यानि भीतर से, पता होता है न अच्छे काम करना, यही तो मानवता है। किसी का दिल न दुखाना, यही तो मानवता है।’

आप थोड़ा और वेग (अस्पष्ट) हो जाइए – ‘अच्छे काम करना, दिल न दुखाना. .’ दिल क्या होता है? दिल माने क्या? रैंडम कान्सेप्ट्स (यादृच्छिक अवधारणाएँ) में बात कर रहे हो, ‘अच्छे काम करना!’ अच्छे काम की क्या परिभाषा है? और जैसे ही आप इन बातों में गहरे जाओगे, इसी को तो फिलोसॉफी (दर्शन) बोलते हैं न। कि अच्छा माने क्या? एथिक्स क्या है? वो फिलोसॉफी की एक ब्रांच (शाखा) है।

समझ में आ रही है बात?

तो आप अगर ये भी बोलते हो कि भारत का संविधान ह्यूमन वैल्यूज़ का, इंसानियत, मानवता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, तो वो जो ह्यूमन वैल्यूज़ हैं, वो भी वास्तव में स्प्रिचुअल वैल्यूज़ ही होती हैं। अगर आप स्प्रिचुअल नहीं हैं तो ह्यूमन वैल्यूज़ के नाम पर न जाने कौन-सा कचड़ा आप खड़ा कर दोगे।

बड़ा आनंद आए, कभी मुझे आप लोग अगर समय दे पाऍं, कि मैं संविधान को लूँ, उसके आर्टिकल्स, अनुच्छेदों को लूँ और बता पाऊँ कि देखो, ये जो लिखा हुआ है न, ये आर्टिकल, ये अनुच्छेद, ये संतों के किस भजन से आ रहा है। और ये जो है, ये, ये उपनिषद के किस श्लोक से आ रहा है। और ये जो पूरा सेक्शन (भाग) ही है, ये गीता का कौन-सा अध्याय है। तो आप लोग अगर कभी मौका दे पाए, तो मैं यह करके रखूँगा सामने।

हम सेक्युलर (धर्मनिरपेक्ष) भी इसीलिए हैं क्योंकि हम आध्यात्मिक हैं। जो आध्यात्मिक हो गया न, फिर वो धर्म के आधार पर बहुत नहीं चलता। लोगों को लगता है कि आध्यात्मिक होने का तो मतलब होता है और ज़्यादा अब तुम कट्टर धार्मिक हो जाओगे, उल्टी बात है। जो आध्यात्मिक हो गया, वो धर्म के आधार पर भेदभाव बंद कर देता है, ये सेक्युलरिज़म (धर्मनिरपेक्षता) है। सेक्युलरिज़म माने आध्यात्मिकता, वास्तव में।

जिसका धर्म अभी अधकचरा है, अधपका है, वो कट्टर हो जाता है। और जिसका धर्म पक जाता है, परिपक्व हो जाता है, वो धार्मिक भेदभाव आदि से ऊपर उठ जाता है। तो वास्तव में सच्ची धार्मिकता ही धर्मनिरपेक्षता के रूप में सामने आती है।

भारत चूँकि सच्चे अर्थों में धार्मिक रहा है, इसलिए धर्मनिरपेक्ष है। धर्मनिरपेक्ष का मतलब ये नहीं होता कि अब धर्म से कोई लेना-देना नहीं, धर्मनिरपेक्ष का मतलब होता है — हमारी धार्मिकता अब परवान चढ़ चुकी है, हम बहुत गहरे अर्थ में धार्मिक हो चुके हैं।

लोग कहेंगे, ‘क्या बोल रहे हो आप? सेक्युलर माने, डीपली रिलीजियस (गहरी धार्मिकता)?’ यस सर! अनलेस यू आर नॉट डीपली डीपली रिलीजियस, यू कैन नॉट बीसेक्युलर (जब तक आप बहुत गहराई से धार्मिक नहीं हैं, आप धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकते)।

और इसीलिए फिर आज धर्मनिरपेक्षता का भारत में इतना विरोध हो रहा है। क्योंकि जो लोग विरोध कर रहे हैं, उनकी धार्मिकता अभी कच्ची है, वेट बिहाइण्ड द ईयर्स (कानों के पीछे गीला - अपरिपक्व)! अभी वो पके नहीं है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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