अय्याशी पूरी है, फिर भी 'बेचैनी’ क्यों है?

Acharya Prashant

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अय्याशी पूरी है, फिर भी 'बेचैनी’ क्यों है?
अय्याशी समाधान नहीं है। अय्याशी समाधान होती तो अमेरिका में सब एकदम प्रसन्न ही नहीं, आनन्दित होते। लेकिन मानसिक बीमारी जितनी भारत में है उससे ज़्यादा अमेरिका में पायी जाती है। सारी समस्या बस यही है कि आँखें बाहर देख पाती हैं, भीतर नहीं देख पाती | आदमी अय्याशी इसलिए नहीं करता कि उसे अय्याशी से प्यार है, आदमी अय्याशी इसलिए करता है क्योंकि वो भीतर से बहुत दुखी है। समस्या ये है कि अय्याशी कर-करके भी, कर-करके भी किसी का दुख दूर नहीं होता।अय्याशी तो पूरी कर रहे हो लेकिन उससे पा क्या रहे हो? अपनी ही ज़िन्दगी ख़राब कर रहे हो, अपना पूरा ग्रह तबाह कर रहे हो। यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

आचार्य प्रशांत: कोई अय्याशी कर रहा हो तो वो बाहर-बाहर से आपको दिखाई देगा कि ये बहुत अय्याशी कर रहा है। चार करोड़ की गाड़ी में चल रहा है, उसने अपना बहुत बड़ा महल बना लिया है, पैसे उड़ा रहा है। प्राइवेट जेट और ये जितनी चीज़ें होती हैं, अय्याशी के जो चिन्ह होते हैं, वो आपको सारे दिखाई देंगे। तो बाहर-बाहर से तो आपको दिखाई दे जाएगा कि अय्याशी चल रही है, लेकिन भीतर का जो खोखलापन और सूनापन है वो आपको कभी दिखाई देगा?

प्रश्नकर्ता: नहीं।

आचार्य: अमीरों की शादियाँ होंगी, उसमें दो-सौ करोड़ उड़ा दिये गये, वो दो-सौ करोड़ जो उड़ाये गये उसकी फोटो खींच ली जाएगी, लेकिन भीतर यहाँ अभी भी जो श्मशान गूँज रहा है उसकी फोटो खिंचती है कभी? उसकी फोटो खिंचती नहीं, उसकी फोटो आपके सामने आती नहीं, तो आपको कभी पता चलता नहीं कि इतनी अय्याशी करके भी ये आदमी कितना दुखी है।

सारी समस्या बस यही है कि आँखें बाहर देख पाती हैं, इधर नहीं देख पाती (भीतर की ओर इशारा करते हुए)। अय्याशी समाधान नहीं है। अय्याशी समाधान होती तो अमेरिका में सब एकदम प्रसन्न ही नहीं, आनन्दित होते। लेकिन मानसिक बीमारी जितनी भारत में है उससे ज़्यादा अमेरिका में पायी जाती है। हर चौथे दिन पढ़ते हो, कोई बन्दूक़ लेकर के गया और चालीस बच्चे मार दिये। घुस गया है, किनको मार रहा है? छोटे-छोटे, दुधमुँहे बच्चे को। जाकर के चालीस मार दिये।

या किसी शॉपिंग कॉम्प्लेक्स (खरीददारी की बड़ी दुकान) में कोई घुस गया है, बन्दूक़ लेकर मार रहा है। मार दिया है चलो वो भी बाद की बात है, इतनी बन्दूक़ें हैं क्यों वहाँ पर? ये क्या मानसिक स्वास्थ्य का लक्षण है कि हर आदमी बन्दूक़ रखकर चल रहा है, बोलो? जितना वहाँ पर कार्बन का एमिशन (उत्सर्जन) औसत आदमी करता है, उतना पूरे विश्व में कोई नहीं करता। अय्याशी तो पूरी कर रहे हो लेकिन उससे पा क्या रहे हो? अपनी ही ज़िन्दगी ख़राब कर रहे हो, अपना पूरा ग्रह तबाह कर रहे हो।

इससे कुछ मिल रहा होता तो बुद्ध और महावीर अपना विलासितापूर्ण, वैभवपूर्ण जीवन छोड़कर के जंगल क्यों जाते भाई? नहीं मिल रहा न! लेकिन आपके इंफ्ल्युएंसर्स (प्रभावकारी व्यक्ति) और आपके जो आदर्श हैं, वो आपको लगातार यही बता रहे हैं कि इसी से मिल जाएगा, मिल जाएगा। भाई बुद्ध में तुझसे थोड़ी सी ज़्यादा तो अक़्ल रही होगी न? जब उन्हें नहीं मिला तो तुझे कैसे मिल जाएगा? लेकिन वो मोटिवेट (उत्तेजित) करने के लिए और इन्फ्लुएंस (प्रभावित) करने के लिए खड़ा हो जाता है।

और अब तो ये सब भी हैं, ये एंटरप्रेन्योर (उद्यमी) लोग भी हैं, शार्क टैंक (प्रतिस्पर्धा आधारित एक टीवी धारावाहिक) और तमाम दुनिया भर के सब चढ़े हुए हैं आपके ऊपर, जो आपको यही बता रहे हैं कि अगर पैसा आ गया तो तुझे वो मिल जाएगा जिसको तू अपने पैदा होने के पहले क्षण से तलाश रहा है। उनसे पूछो, 'तुम्हें मिल गया क्या?'

तुम जो भी हो, तुम राजनेता हो, तुम धनपति हो, जो भी हो, तुम्हें क्या मिल गया, सच-सच बताओ? और अगर तुम्हें इतना कुछ मिल गया है तो तुममें से ये आधे लोग पागल क्यों पकड़े जाते हैं? तुममें से ये आधे लोग जेल में क्यों नज़र आते हैं? तुम्हीं लोगों में ये इतनी आत्महत्याएँ क्यों होती हैं? इतने घपले क्यों करते हो तुम लोग?

पैसा तुम्हारे पास पहले ही था फिर भी तुमने बेईमानी की, इतने घपले करे। अब हो सकता है जेल नहीं गये, किसी विदेश में जाकर के मुँह छुपाकर के पड़े हुए हो। अगर तुम्हें वाक़ई सन्तुष्टि मिल गयी होती, तुम्हें भीतर का कुछ भी मिल गया होता, तो तुम्हें ये सब नारकीय काम करने की ज़रूरत पड़ती क्या?

तुम्हें कुछ नहीं मिला है। लेकिन हम जवान लोग हैं, हमारी उम्र है अठारह, बीस, बाईस, चौबीस साल की, तुम हमें बेवकूफ़ बना रहे हो! तुम हमें ग़लत रास्तों पर धकेल रहे हो! और बाज़ार का तो स्वार्थ है ही ये झूठी और काल्पनिक बातें बताने में। कहीं पर कोई डेवलपर नये अपार्टमेंट बना देता है, वो तुरन्त आपसे क्या बोलता है, ‘लाइफ़ बन जाएगी, ज़िन्दगी सुधर जाएगी जल्दी से आकर थ्री बीएचके (तीन कमरों का मकान) ले लो मेरा।’ थ्री बीएचके लेने से लाइफ़ बन जाएगी, ज़िन्दगी सुधर जाएगी!

मैं नहीं मना कर रहा कि घर कोई न ले। घर होना चाहिए, अच्छी बात है, सिर के ऊपर छत की ज़रूरत बिलकुल है। लेकिन ये बोलना कि ज़िन्दगी बन जाएगी, ये देखिए आप ठगी कर रहे हैं। सीधे-सीधे बोलिए घर है। घर, घर है। घर ज़िन्दगी नहीं बना देगा। हाँ, घर हम ख़रीद लेंगे, हमें घर की ज़रूरत होगी हम घर ख़रीद लेंगे, लेकिन अगर आप बोलेंगी, ‘देखो ये करते ही तुम्हें स्वर्ग सुख मिल जाएगा', तो ये बोलना ठीक नहीं है।

और वो तो ऐसे ही बोलते हैं लगभग कि स्वर्ग सुख मिल जाएगा, सबकुछ हो जाएगा, आसमानों में उड़ोगे। ‘रेमंड’ जो ये कोट वगैरह बनाता है, उसका विज्ञापन आया करता था पहले, तो वो बोलते थे, क्या? 'फॉर द कम्पलीट मैन’ (एक पूर्ण व्यक्ति के लिए)। माने मैं इसको उतार दूँ तो मैं इनकम्प्लीट मैन (अपूर्ण व्यक्ति) हो जाऊँगा?

(श्रोतागण ठहाका लगाकर हँसते हैं और तालियाँ बजाते हैं)

ठीक है, अच्छी बात है, हम आपका घर भी ले सकते हैं, आप कोट बनाते हो, हम कोट भी ले लेंगे आपका, लेकिन आप ये क्यों बोल रहे हो कि इससे पूर्णता आ जाएगी?

'पूर्णता' शब्द, देखो, पूरी दुनिया रख लो पर कुछ शब्दों को वेदान्त के लिए छोड़ दो। अभी शान्तिपाठ करा था न आपने, कम्पलीट माने? पूर्ण। और क्या बोला था शान्तिपाठ में? “पूर्णात्पूर्णमुदच्यते।“ पूर्ण की बात तो यहाँ हो रही है न, तुम क्यों पूर्ण शब्द को लेकर के बैठ गये। तुम बाज़ारू आदमी हो, अपना धन्धा चलाओ। इन शब्दों को हाथ मत लगाओ।

लेकिन वो इन्हीं शब्दों को हाथ लगाते हैं और उन्होंने आप के मन में पूरी कोशिश कर रखी है ये आदर्श बैठाने की कि सुख, भोग, अय्याशी, विलासिता, यही सबकुछ है। और आदमी अय्याशी इसलिए नहीं करता कि उसे अय्याशी से प्यार है, आदमी अय्याशी इसलिए करता है क्योंकि वो भीतर से बहुत दुखी है।

अय्याशी के साथ समस्या नैतिक नहीं है कि कोई आदमी अय्याश है तो अरे-अरे बुरा आदमी, गन्दा आदमी, छी-छी-छी। अय्याशी करके अगर उसका दुख दूर हो रहा होता तो मैं सबसे कहता सब अय्याश बन जाओ। समस्या ये है कि अय्याशी कर-करके भी, कर-करके भी किसी का दुख दूर नहीं होता। और ये तुम्हें कैसे पता चलेगा अगर राजा भर्तृहरि के अनुभवों से सीखने से तुमने बिलकुल तौबा कर रखी है? वो वही थे जिन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी अय्याशी को समर्पित कर रखी थी। उनको भी पूरी पैसिव इनकम थी, भई राजा हैं, राजा को क्या करना है!

राजा को तो मान लिया कि वो तो ईश्वर का प्रतिनिधि है। वो बैठा हुआ है अपना, लोग मेहनत कर-करके राजा की तिजोरी भर रहे हैं। और राजा भर्तृहरि तो विशेषकर विलासिता प्रिय थे। ये रानियाँ, ये धन-दौलत, तमाम तरह के उनके शौक़। और फिर जीवन ने दिया तगड़ा झटका, तब उनको समझ में आया कि बात बनती नहीं।

विलासिता उनकी इतनी चरम पर थी कि उन्होंने ग्रन्थ ही पूरा लिख डाला विलासिता पर, ‘श्रृंगार शतकम्' और उसमें उन्होंने पूरा बताया है कि किस-किस तरीक़े से विलासिता कर सकते हैं, रत्नों का क्या करना है। स्त्रियों के बारे में पूरा रसपूर्ण वर्णन कर रखा है। ये सब करा करते थे राजा। और फिर जीवन ने झटका दिया, तो उनकी जो अगली बात आयी वो थी ‘वैराग्य शतकम्’। और वहाँ पर उन्होंने ज़िन्दगी का सच लिखा है।

अय्याशी समाधान होती तो अमेरिका में सब एकदम प्रसन्न ही नहीं, आनन्दित होते। लेकिन मानसिक बीमारी जितनी भारत में है उससे ज़्यादा अमेरिका में पायी जाती है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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