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'कूल' कैसे दिखें?
'कूल' कैसे दिखें?
19 min
फटी हुई जींस पहनने, और बाल रंगवाने से कोई कूल नहीं हो जाता। कूलनेस बहुत अच्छी चीज़ है, परंतु कूल हो नहीं, और ख़ुद को कूल कहो — यह समस्या है। कूल होना आध्यात्मिक बात है। कूल होने का असली मतलब है कि तुम श्रीकृष्ण का ज्ञान जानो। श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा — तू विगत-ज्वर हो जा। जिसे ज्वर न चढ़े, जो आवेश और आवेग से मुक्त हो, वही वास्तव में कूल है।
आज की पीढ़ी क्यों बर्बाद हो रही है?
आज की पीढ़ी क्यों बर्बाद हो रही है?
12 min
आदमी बेहतर तब बनता है जब उसे अपनी कमियों का एहसास होता है, और यह एहसास दुख, असफलता, और निराशा से आता है। आज मेहनत और ज्ञान से ज़्यादा कीमत पैसे और स्टाइल की है, जिससे वर्तमान पीढ़ी को अपनी असफलता और अज्ञानता का दुख भी नहीं होता। जब तक उनका ऊँचाइयों से परिचय नहीं होगा, वे नीचे ही रहेंगे। इसलिए आज सही संगति की और गुण-ज्ञान अर्जित करने की बहुत आवश्यकता है, क्योंकि असली सुंदरता और मौज उसी में है।
कला और प्रतिभा की सही परिभाषा
कला और प्रतिभा की सही परिभाषा
13 min

प्रश्नकर्ता: कला क्या है? सिर्फ़ म्यूज़िक (संगीत), पोएट्री (कविता) या पेंटिंग (चित्रकारी) ही कला है? और, यू नो , इतनी प्रैक्टिकल (व्यावहारिक), प्रैग्मैटिक (व्यवहारमूलक) दुनिया के लिए, प्रैक्टिकली (व्यवहार में) कला का क्या कुछ यूज़ (उपयोग) है? डज़ इट लीड टू समथिंग (क्या कला से कुछ मिलता है)?

आचार्य प्रशांत:

On Education, Corporate Life and Career Progress
On Education, Corporate Life and Career Progress
32 min

Questioner: Good evening everyone, my name is Saurabh Sardana and you are watching the first episode of season 2, ‘Recast.’ I’m so glad to have you with me today, Acharya Prashant Ji. I’m pretty sure, that most of you that most of you sort of follow him on one of

Not Acting Is Not an Option
Not Acting Is Not an Option
4 min

Questioner: Sir, I am pursuing MSc in physics. After watching your videos and reading the Bhagavat Gita, I understand that whatever in this world we achieve to please ourselves does not really give us peace. I also find that doing science might be just pleasing myself or my ego. It

अपनी प्रतिभा का कैसे पता करूँ?
अपनी प्रतिभा का कैसे पता करूँ?
4 min

आचार्य प्रशांत: सवाल है, ‘ये टैलेंट, प्रतिभा नाम की चीज़ क्या होती है? और कैसे पता करूँ कि मुझेमें क्या प्रतिभा है?’

निशांत, जिसको तुम प्रतिभा बोलते हो, यह तो आदमी की बनाई हुई धारणा है न, तुम अगर भारत में हो और तुमको एक लकड़ी से एक गेंद को

ऐसी जवानी चाहिए
ऐसी जवानी चाहिए
4 min

प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी। मैं आजकल देख रहा हूँ कि युवाओं में बहुत हीनभावना बढ़ रही है और समय मिलता है, देश छोड़ देते हैं, आत्म गौरव जैसी चीज़ नहीं है। मैंने उपनिषद् का एक श्लोक पढ़ा था, वो मेरे जहन में बैठ गया है। मैं पढ़ना चाहता हूँ।

युवा

Hidden perversions || Neem Candies
Hidden perversions || Neem Candies
1 min

The fellow who watches child porn, is he really very different from a rapist? He is probably a bit cleverer but not really different. He adopts a relatively safer route. He says “I will please myself by watching the heinous act on the screen. I will be careful not to

The pride in winning || Neem Candies
The pride in winning || Neem Candies
1 min

You need not manage hurt; you need to keep playing on. Two things: one, there must be fun in the game; secondly, there must be a subtle pride at stake. Believe me, there is no player worth his name who has not played in pain, not played through pain. Believe

In such battles, even defeat is victory || Neem Candies
In such battles, even defeat is victory || Neem Candies
1 min

There is some worthy battle that deserves to be fought, but you are not accepting the challenge. Because you are not accepting the challenge, there is an intrinsic misery in life; self-respect is missing.One is not really able to admire oneself.That’s not at all a nice place to be in.

Lose the trivial battles || Neem Candies
Lose the trivial battles || Neem Candies
1 min

Real courage is needed only when you fight a real battle, and the real battle is against yourself.

Not all problems are worth facing. Most problems you must totally avoid, even if that means that you will be called a coward by others.

Not all battles are worth fighting. In

A message for youngsters ||Neem Candies
A message for youngsters ||Neem Candies
1 min

Unless the youth indulges in consumption, how will the markets sell? And the youth can absorb a lot, eat a lot, travel a lot, so it’s great to trap them.

Youth is not really a period where you are to make merry. Youth is the period when you are rushing

Champion even in defeat || Neem Candies
Champion even in defeat || Neem Candies
1 min

Remember, it is not situations that defeat you. Situations are just situations. A situation by definition is something outside of you, whereas defeat is something inside of you.

Situations can at worst be adverse, correct? And a situation is always external. The sense of defeat is an internal thing; that

जन्माष्टमी विशेष: औसत और साधारण ही रहना हो, तो छोड़ो कृष्ण को || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू
जन्माष्टमी विशेष: औसत और साधारण ही रहना हो, तो छोड़ो कृष्ण को || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू
11 min

आचार्य प्रशांत: हर उत्कृष्टता एक इशारा है, एक संकेत है। आसमान की ओर संकेत है और प्रकृति के विरुद्ध विद्रोह है। जब सबको एक जैसा होना चाहिए था तो कोई ख़ास हो कैसे गया? जो ख़ास हो गया, उसको तुम मानो कि वही अगर भगवान नहीं तो भगवत्ता का प्रतिनिधि

नौकरी और पैसे के बारे में कुछ अहम बातें || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2021)
नौकरी और पैसे के बारे में कुछ अहम बातें || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2021)
20 min

प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी, मेरा नाम शुभम है। मैं एक-डेढ़ साल से सुन रहा हूँ आपको। मैं कॉर्पोरेट नौकरी में हूँ, इंजीनियरिंग जॉब भी है तो मेरा सवाल ये था कि किसी भी काम में जाते हैं शुरुआत में तो वो नया होता है, उसके बाद वो दिनचर्या बन जाता

भारत आज भी अंधविश्वास से ग्रस्त क्यों – मूल कारण || आचार्य प्रशांत, गीता दीपोत्सव (2023)
भारत आज भी अंधविश्वास से ग्रस्त क्यों – मूल कारण || आचार्य प्रशांत, गीता दीपोत्सव (2023)
24 min

प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी! पहले मैं सोशल मीडिया पर ज़्यादा सक्रिय नहीं था। लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय आने के बाद, मैं थोड़ा ज़्यादा सक्रिय हो गया हूँ। तो मैं देखता हूँ, सोशल मीडिया पर आजकल बहुत सारे बाबा लोग हैं, जो अपना आधिकारिक ऐप बना लिये हैं। और ऐड के माध्यम

एक दिन कामयाब हो जाओगे || नीम लड्डू
एक दिन कामयाब हो जाओगे || नीम लड्डू
1 min

जीवन परिवर्तन के लिए जिसको मैं कहता हूँ ठंडी उर्जा, शाश्वत उत्साह चाहिए। एक भीतर ऐसी हार्दिक प्रेरणा चाहिए जो दसों साल थमे नहीं, कमे नहीं, मिटे नहीं। गर्म जोश में वो बात होती ही नहीं है। गर्म जोश के खिलाफ़ तो सावधान रहा करिए, वो फ़िल्मी होता है।

“मैं

कुछ पाने के लिए चालाक होना ज़रूरी है क्या? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)
कुछ पाने के लिए चालाक होना ज़रूरी है क्या? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)
6 min

प्रश्न: अगर हम चालाकी नहीं दिखाएँगे, तो क्या हमें कुछ नहीं मिलेगा?

आचार्य प्रशांत: चालाकी दिखाने वाले को क्या मिलता है? क्या मिलते देखा है?

प्रश्नकर्ता: जो नहीं दिखाते, उन्हें कुछ नहीं मिलता है।

आचार्य प्रशांत: जो चालाकी नहीं दिखाते, वैसे लोग तो शायद तुम्हारे संपर्क में आए ही नहीं।

जब हाथ फैलाओगे तो स्वतंत्र कैसे रह पाओगे? || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2012)
जब हाथ फैलाओगे तो स्वतंत्र कैसे रह पाओगे? || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2012)
5 min

प्रश्न: आचार्य जी, हम क्यों अपने माता-पिता के निर्णयों के आगे हथियार डाल देते हैं?

आचार्य प्रशांत: तुम बताओ, तुमने डाले हैं।

प्रश्नकर्ता: बहुत कम लोग होते हैं जो अपने निर्णय ख़ुद लेते हैं, तक़रीबन १०-५ प्रतिशत।

आचार्य प्रशांत: देखो तुम हथियार नहीं डालते हो, तुम व्यापार करते हो।

तुम

अपनी क्षमता का कैसे पता करें? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)
अपनी क्षमता का कैसे पता करें? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)
14 min

श्रोता : आचार्य जी, हम अपने शरीर और मन को किस तरह से नियंत्रित कर सकते हैं? ग़लत चीज़ों की तरफ एकदम से खिंचे चले जाते हैं, और सही चीज़ से भागते हैं।

जैसे, हमने कोई दिनचर्या बनाई पढ़ाई के लिए, उसका पालन ही नहीं कर पाते कभी। ध्यान कहीं

लड़की होने का तनाव और बंदिशें || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2014)
लड़की होने का तनाव और बंदिशें || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2014)
5 min

प्रश्न : आचार्य जी, एक लड़की होने के कारण हमारे ऊपर बहुत सारी बंदिशें लगाई जाती हैं, जब भी अगर कुछ गलत होता है तो उसका इल्ज़ाम हम पर ही लगता है, क्या करूँ?

आचार्य प्रशांत : क्या नाम है?

श्रोता :- शिवांगी।

आचार्य प्रशांत : शिवांगी बैठो। शिवांगी ने

अपनी रुचियों को गंभीरता से मत ले लेना || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2012)
अपनी रुचियों को गंभीरता से मत ले लेना || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2012)
4 min

आचार्य प्रशांत : आपकी जो रुचियाँ हैं, वो आपके संस्कार से ही तो आती हैं ना? आपकी रुचियाँ कहाँ से आते हैं? रुचियों का स्रोत क्या है? भारत में गोरी चमड़ी पर बड़ा ज़ोर है ।

भारत में गोरी चमड़ी पर बड़ा ज़ोर है । ग़ुलामी बिलकुल छायी हुई है

सीख पाना मुश्किल क्यों? || (2018)
सीख पाना मुश्किल क्यों? || (2018)
9 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मैं आपकी सभी बातें पूर्ण रूप से ग्रहण नहीं कर पाता, मैं क्या करूँ?

आचार्य प्रशांत: तुम फँस इसीलिए जाते हो क्योंकि तुम्हें तकलीफ़ सिर्फ़ तब होती है जब ऊँचे काम खराब होते हैं, कि, "ऊँचा काम हो रहा था और मैं किसी निचले केंद्र में ही

आदमी की होशियारी किसी काम की नहीं || आचार्य प्रशान्त (2014)
आदमी की होशियारी किसी काम की नहीं || आचार्य प्रशान्त (2014)
12 min

आचार्य प्रशांत: कुछ भी संयोगवश नहीं है। पाँच उँगलियाँ भी हैं तुम्हारी, तो पाँच ही होनी थी, छह नहीं हो सकती। पूरी जो शरीर की विकास प्रक्रिया रही है, जिसमें अस्तित्व के एक एक अणु का योगदान है, उसने ये तय किया है कि पाँच उँगलियाँ हों, और इतना कद

तर्क निश्चित सिद्ध कर देंगे कि मेरे पास आना व्यर्थ है || (2015)
तर्क निश्चित सिद्ध कर देंगे कि मेरे पास आना व्यर्थ है || (2015)
3 min

प्रश्नकर्ता: मैं जीवन में जो भी कर रहा हूँ उस के विरुद्ध जब तर्क आते हैं तो और उन तर्कों को काटने के लिए मेरे पास तर्क नहीं होते, तो ख़ुद पर संदेह होता है। जीवन में संदेह कैसे कम करें?

आचार्य प्रशांत: जितने भी आपको तर्क दिए जाते हैं

विवेक का अर्थ क्या है? || आचार्य प्रशांत (2014)
विवेक का अर्थ क्या है? || आचार्य प्रशांत (2014)
20 min

वक्ता: विवेक क्या है? विवेक, विवेक का शाब्दिक अर्थ तो भेद करना ही है; अंतर करना। लेकिन किस-किस में अंतर करना? एक अंतर ये होता है कि एक ही आयाम, एक ही डायमेंशन की दो अलग-अलग इकाईयों में तुम अंतर करो, कि X एक्सिस है और उसमें तुम अंतर कर

मस्तमौला, हरफनमौला || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)
मस्तमौला, हरफनमौला || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)
8 min

प्रश्न: सर, हरफनमौला और मस्तमौला में अंतर क्या है?

वक्ता: एक ही बात है । देखो, मस्ती भी बटी हुई नहीं रहती है । मस्ती, भी तभी मस्ती है, जब वो लगातार है। अगर तुम्हारी मस्ती निर्भर है परिस्थितियों पर, तो ये बड़ी डरी-डरी मस्ती है। जो कांपती रहेगी कि

तुम मूल में निर्गुण हो || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)
तुम मूल में निर्गुण हो || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)
4 min

प्रश्न: सर, हर व्यक्ति में कोई मूल गुण होता है। उसे कैसे पहचानें?

वक्ता: शशांक ने कहा कि हर व्यक्ति में कोई मूल गुण होता है, उसे कैसे पहचानें? मूल जो होता है तुम्हारा, ‘केन्द्र’, ‘स्त्रोत’ इसका कोई गुण नहीं होता, वो निर्गुण है। उसका कोई गुण नहीं होता। वो

क़ाबिलियत मुताबिक़ प्रदर्शन || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
क़ाबिलियत मुताबिक़ प्रदर्शन || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
9 min

वक्ता: सवाल है कि अपनी काबिलियत पता है, ये भी पता है कि क्या कर के दिखा सकती हूँ, उसके बाद भी अगर सफलता नहीं मिलती तो क्या करूँ? तुम्हें काबिलियत पता है या फिर तुमने बस मान लिया है कि काबिलियत है? जिसको तुमने मान लिया है कि काबिलियत

न तुम, न तुम्हारा श्रम || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
न तुम, न तुम्हारा श्रम || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
12 min

प्रश्न: सर सफलता कैसे पाएँ?

वक्ता: तुम मुझे बताओ कि सफलता क्या है?

श्रोता: परिश्रम करने से सफलता मिलती है।

वक्ता: तुम कहना चाहते हो कि परिश्रम करने से सफलता मिलती है। यह पंखा देखो। यह कितना परिश्रम कर रहा है, परिश्रम करते-करते गरम हो गया है।

श्रोता: यह पंखा

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प्रश्नकर्ता: बहुत से लोग हैं जो फाउंटेनहेड पढ़कर जीवन में कोई बदलाव नहीं ला पाते हैं। और दूसरी तरफ़ बहुत ऐसे भी लोग हैं जो इस पुस्तक को पढ़ने के बाद विद्युतीकृत हो जाते हैं। आचार्य जी मैं दूसरे लोगों की श्रेणी में आने के लिए क्या कर सकता हूँ?

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The Truth cannot be objectified as a thing, place, person, or book. So, don't be too quick to accept your own assessments, judgments, likes, dislikes, and experiences. Whatever you're seeing is seen by "you" — the Ego — and you are no absolute. Everything must be available to enquiry, investigation, and questioning — and questioning cannot happen if you declare that you’ve already come to the Truth. Never believe that the journey has ended or that the ego itself is the Truth.
‘कर्म कर और फल की चिंता मत कर’ — क्या गीता में ऐसा लिखा है?
‘कर्म कर और फल की चिंता मत कर’ — क्या गीता में ऐसा लिखा है?
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गीता में पहली बात तो कहीं लिखा नहीं है कि "कर्म कर और फल की चिंता मत कर" — ऐसा कोई श्लोक नहीं है। श्रीकृष्ण बस ये कहते हैं: सही कर्म कर, बस। अगर आपने सही काम उठा लिया, तो फल की चिंता आएगी ही नहीं। आपने सही काम उठाया है या नहीं — ये आप इसी बात से जाँच सकते हो कि आपको भविष्य कितना याद आ रहा है। अगर आपको बार-बार ये सोचना पड़ रहा है कि इस काम से मुझे क्या मिलेगा, तो आपने काम गलत उठाया है।
‘अप्प दीपो भव’ – आख़िरी शब्द हैं
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गीता एक एलीट डॉक्यूमेंट है, उत्कृष्टता है इसमें। इससे प्यार वही कर पाएँगे, जिन्हें ऊँचाइयों से प्यार है, जिन्हें एक्सीलेंस चाहिए। और जिनको ऐसे ही बीच में पड़े रह जाना है — मिडियॉकर — उन्हें गीता रुचेगी ही नहीं। जीवन में जो भी ऊँचे-से-ऊँचा, श्रेष्ठ-से-श्रेष्ठतर हो सकता है, वो निष्काम कर्म से ही मिलेगा। घोर कर्म करना है, जज़्बे से खेलना है, दिल से चाहना है, डूबकर जीना है — ये श्रीकृष्ण का उपदेश है।
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ये रुपए पैसे का खेल ये आदमी द्वारा आदमी का शोषण। ये एक आदमी द्वारा ये मानकर दुख झेलना — कि मैं तो अमीर हूँ और दूसरे आदमी द्वारा ये मानकर दुख झेलना — कि मैं तो गरीब हूँ। तुम्हें ये सारा खेल समझ में आएगा कि ये कैसे चल रहा है। खेल के शिकार मत बनो, खेल के खिलाड़ी मत बनो। थोड़ा सा बाहर निकलो और इस खेल के दृष्टा बनो। ये खेल ऐसा है कि जो इसे खेलने लग जाते हैं उन्हें ये खेल कभी समझ में नहीं आता। ये खेल उन्हें खा जाता है, इस खेल को वही समझ सकता है जो इस खेल से थोड़ा बाहर आ गया है।
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Good spirituality is good economics. We do not know what to purchase. We do not know what really is valuable, even in the material domain. The punishment of not being spiritual is that you lead a very bad, a very ruined worldly life and that includes an economic life, a ruined economic life. It is not merely the person, even nations, actually the entire world suffers when the one making the economic decision is spiritually bankrupt.
जीवन को समृद्ध कैसे बनाएँ?
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दो ही चीज़ें होती हैं जो जीवन को समृद्ध करती हैं — तन के लिए व्यायाम, मन के लिए अध्यात्म। युवा होने का अर्थ होता है कि सुडौल शरीर हो, विराट हृदय और दुनिया की समझ। दुनिया की सारी क्रांतियाँ जवान लोगों ने की हैं; क्रांति का मतलब एक नया सृजन होता है। वो जवानी जो पढ़ती नहीं, लिखती नहीं, जो अपने आप को बोध से भरती नहीं — वो जवानी व्यर्थ ही जा रही है।
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Buddha had some core traits which remain the same today. A sharp mind and a certain curiosity in knowing the depths of life, not feeling that ‘I already know.’ Deep compassion, detachment, and an unending desire to reach the ultimate knowledge, not lazily concluding at one point. He shared his knowledge with the world. A practical man — raised an organization that became the dominant religion of the land. Today, in an age where religion has distorted, we need hundreds of Buddhas.
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बुद्ध ने जितना काम किया, उतना बहुत कम लोग ही कर पाए। उनके आंतरिक ज्ञान को तो एक तरफ़ रखो — जो उन्होंने भौतिक तल पर भी कर दिखाया, वह उस समय का बड़े-से-बड़ा आश्चर्य था। इतना बड़ा संघ उन्होंने खड़ा कर दिया था और उसकी व्यवस्था चलाते थे। बुद्ध एक तरह से उसके सीईओ थे। उसके बहुत विस्तृत और सूक्ष्म नियम-क़ायदे थे, जो बुद्ध ने स्वयं तय किए थे — जैसे आज की किसी भी संस्था में होते हैं। बड़े-से-बड़े वेदांतियों में महात्मा बुद्ध का नाम लिया जाना चाहिए।
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For those who already have a certain level of financial, social, intellectual, and familial attainment but are still not satisfied, the only thing that can fulfill them is forgetfulness towards their personal success. Serve a cause bigger than yourself, and there will be no time or opportunity to keep wondering whether your demands have been met. This is when you have really succeeded.
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कॉन्फ़िडेंस का मतलब ये नहीं होता कि आप भयमुक्त हो गए। कॉन्फ़िडेंस का मतलब होता है कि भीतर भय तो बिराजा ही हुआ है उसके ऊपर आप निर्भय दिखने की कोशिश कर रहे हो। अगर भीतर वो डर मौजूद नहीं होता तो आपको कॉन्फ़िडेंस की ज़रूरत पड़ती ही नहीं। डर छोड़ना आसान है, बस डर के साथ जो सुख सुविधाएँ मिलती हैं उनका लालच थोड़ा छोड़ दीजिए।
Does The Bhagavad Gita Support War?
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We often feel that the Mahabharata war was about avenging the atrocities that Duryodhana had been committing. But in fact, the war was to stop Duryodhana from wreaking havoc on the entire country in the future. If the state policies themselves promote Adharma, then the effect on the population would certainly be derogatory. Therefore, despite the likely great loss of lives, it was still important to fight the war.