प्रश्नकर्ता: नमस्कार आचार्य जी, मेरा नाम कृष्णम वर्मा है। मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी में सेकंड ईयर का स्टूडेंट हूँ। मेरा आपसे सवाल है कि मेरा इंटरेस्ट हमेशा से स्पिरिचुअलिटी में रहा है। पर जब भी मैं स्पिरिचुअलिटी में ज़्यादा इंडल्ज हो जाता हूँ तो मेरा ध्यान स्टडी से थोड़ा घट जाता है और मैं थोड़ा ऐम्बिशस हो जाता हूँ। तो मैं जानना चाहता हूँ कि क्या मैं सही चाह रहा हूँ।
आचार्य प्रशांत: नहीं कुछ नहीं, गलत चाह रहे हो सब। जो भी पढ़ रहे हो उसको गहराई से समझना ही अध्यात्म है। तुम आइदर ऑर में आ गए। या तो यह या तो वो, 'अथवा'। तुम मुझे देख रहे हो अभी, या इस कमरे में जो रोशनी है उसको देख रहे हो? किसको देख रहे हो?
प्रश्नकर्ता: आपको।
आचार्य प्रशांत: पर मुझे क्या देख पाओगे अगर रोशनी नहीं होगी। अध्यात्म रोशनी है। उसको कभी नहीं देखा जाता। वो अपने आप में कोई फ़ील्ड नहीं होती। होता है पर उसकी मौजूदगी में जो कुछ देख रहे होते हैं वो साफ़ दिखाई देता है। कोई यहाँ बैठ के यह नहीं कहेगा कि वह रोशनी को देखने आया है। पर रोशनी ना हो तो कुछ नहीं दिखाई देगा, अध्यात्म वो चीज़ है।
आइदर ऑर थोड़ी होगा कि नहीं रोशनी को नहीं वक्ता को देखना है या वक्ता को देखना है तो रोशनी को नहीं देखना है। ऐसे ही समझ लो कि अध्यात्म बुनियाद की तरह होता है। फाउंडेशन की तरह, नीव। तो इमारत में कमरे अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन सब कमरे एक ही नीव पर खड़े होते हैं। वो दिखाई नहीं देती भले ही ज़मीन के नीचे जड़ की तरह होता है। अलग-अलग पत्तियाँ हो सकती हैं। पर उनकी जड़ साझी होती है। आइदर ऑर की बात नहीं है। तुम कुछ भी करोगे, कोई भी पत्ती हो, कोई भी फूल हो, उसके लिए क्या आवश्यक है? जड़। इमारत का कोई भी कमरा हो उसके लिए क्या ज़रूरी है? नीव। और यहाँ पर कुछ भी आपको देखना हो उसके लिए क्या ज़रूरी है? रोशनी। ये है स्पिरिचुअलिटी।
स्पिरिचुअलिटी अपने आप में अलग कोई फ़ील्ड थोड़ी होता है कि यहाँ इस ऑडिटोरियम में तो स्पीकर है और उस ऑडिटोरियम में रोशनी है। सो यू हैव टू चूज़ आइदर द स्पीकर ऑर द लाइट। कैसा लगेगा ये सुन के? पागलपन की बात है ना? रिश्ता हमेशा किसका है? एंड का है। ‘और’ आइदर ऑर नहीं, और कौन सा वाला और? हिंदी वाला ‘और,’ अंग्रेजी वाला ऑर नहीं चलेगा।
आप कुछ भी कर रहे हो आपको आध्यात्मिक होना पड़ेगा अगर उस क्षेत्र में आपको सफल होना है तो।
खिलाड़ी को होना पड़ेगा राजनेता को होना पड़ेगा, अभिनेता को होना पड़ेगा, गणितज्ञ को होना पड़ेगा। तुम बताओ जीवन का कोई क्षेत्र जहाँ तुम बेहतर हो सकते हो बिना आध्यात्मिक हुए? तुम अच्छे इंसान ही नहीं बन सकते बिना आध्यात्मिक हुए, तुम कुछ भी अच्छे क्या बनोगे बिना आध्यात्मिक हुए। ना अच्छे वैज्ञानिक बन पाओगे, ना नर्तक बन पाओगे, ना शिक्षक बन पाओगे, ना छात्र बन पाओगे। कुछ नहीं बन पाओगे। अच्छे इंसान ही नहीं बन सकते तो और अच्छा क्या बनोगे? आप कुछ भी पढ़ रहे हो...आप क्या पढ़ते हो?
प्रश्नकर्ता: सर, मैं कैट की प्रिपरेशन कर रहा हूँ।
आचार्य प्रशांत: नहीं वो तो कर रहे हो। और उसके अलावा?
प्रश्नकर्ता: मैथ्स
आचार्य प्रशांत: मैथ्स, तो कैट और मैथ्स। अभी इनके कैट - कॉमन एडमिशन टेस्ट तो यह मैनेजमेंट की दिशा जाना चाहते हैं। मैनेजमेंट चीज़ क्या है यह अपने आप से पूछना अध्यात्म है। मेरा मैनेजमेंट से रिश्ता क्या है, यह अपने आप से पूछना अध्यात्म है। अध्यात्म यह नहीं है कि अभी तो मैं कैट का पेपर सॉल्व कर रहा था। उसको बंद करके वहाँ जाकर बोलूँगा हरि ओम। यह नहीं होता है अध्यात्म। मैं मैनेजमेंट में जाना चाहता हूँ। यह क्या फ़ील्ड है? प्रबंधन माने क्या? किस चीज़ को मैनेज करूँगा? और जहाँ मैनेज करने जाऊँगा वहाँ क्या चल रहा है? अच्छा क्या चल रहा है? अच्छा कोई ऐसी ऐक्टिविटी चल रही है जिससे प्रॉफिट जेनरेट होता है। उसी का नाम बिज़नेस है।
ठीक है। सारे बिज़नेसेस होते ही हैं प्रॉफिट जेनरेट करने के लिए। ठीक है, मैं मैनेजर बनूँगा वहाँ पर। अच्छा, तो मैं उस बिज़नेस की मदद करूँगा और ज़्यादा प्रॉफिट कमाने में, ठीक है। अच्छा वो प्रॉफिट किसको मिलेगा? मुझे तो सैलरी मिल जाएगी। जो प्रॉफिट है बहुत सारा वो कहाँ जाएगा? मुझे तो बस सैलरी मिलनी है। बाकी कहाँ जाएगा? अच्छा अच्छा अच्छा स्टेक होल्डर्स होते हैं। अच्छा तो उनके पास जाता है। अच्छा तो माने मैं जब कहूँगा कि मैं किसी कंपनी में काम कर रहा हूँ तो वास्तव में उस कंपनी के जो स्टेक होल्डर्स हैं माने जो जो शेयर होल्डर्स हैं टू बी मोर प्रिसाइज़ मैं उनके लिए काम कर रहा हूँ।
अच्छा तो मतलब मैं जितना भी वैल्यू ऐडिशन कर रहा हूँ वो सब किसी इंसान की जेब में जाएगा। अच्छा, तो वो क्या करेगा उस पैसे का? वो क्या करता है उस पैसे का? क्योंकि अगर मैं उसको ₹10 का वैल्यू ऐडिशन दूँगा तो सैलरी तो मुझे ₹1 ही देगा। बाकी तो सब मुनाफ़ा है जो उसकी जेब में जाएगा। वो करेगा क्या उस पैसे का? क्या करने वाला है? और साथ में हमें यह भी पता चला है कि जो टॉप 1% रिच लोग हैं पृथ्वी के वही ज़िम्मेदार हैं क्लाइमेट चेंज के ज़्यादा से ज़्यादा। तो मैं फिर करने क्या जा रहा हूँ? मैं ये करने क्या जा रहा हूँ? और मैं अपने आप को साथ ही साथ क्या बोलता हूँ? मैं अच्छा आदमी हूँ। मैं आध्यात्मिक आदमी हूँ और मैं क्लाइमेट ऐक्टिविस्ट भी हूँ।
जिनके पास मैं इतना पैसा दे रहा हूँ। वो उस पैसे का क्या करने वाले हैं? उसे उस क्या करेंगे? वो चैरिटेबल ऐक्टिविटी करेंगे? स्कूल कॉलेज अस्पताल बनाएँगे? इंस्टाग्राम में आचार्य प्रशांत के ऐड देंगे? क्या करेंगे? करने क्या वाले हैं?
प्रश्नकर्ता: ज़्यादा से ज़्यादा कार्बन इमिशन।
आचार्य प्रशांत: ज़्यादा से ज़्यादा कार्बन एमिशन। तो तुम कैट काहे के लिए लिख रहे हो? ये अध्यात्म है। नहीं तो यह सवाल कभी सामने नहीं आएगा। तुम वहाँ बैठ जाओ। कोई मंत्र फूंकना शुरू कर दो, उससे क्या होगा? ज़िंदगी के जो असली सवाल हैं उनका सामना तुम करना नहीं चाहते। किताब बंद करके कोने में जाकर कह रहे हो मैं ध्यान लगा रहा हूँ। ये ध्यान किस काम का है? जो कर रहे हो, जो ज़िंदगी सामने है, जो ज़मीन तुम्हारे पाँव के नीचे है, उस पर ध्यान लगाओ ना।
तो, यह तो हो गया मैनेजमेंट का क्षेत्र जिसके बारे में सवाल पूछने बहुत ज़रूरी हैं। और फिर पूछो कि मैं ऐसा हूँ क्या कि वहाँ पर जाकर यह करूँगा और आनंदित रहूँगा। मैं ऐसा हूँ क्या? मेरा क्या रिश्ता है इस क्षेत्र से? इस क्षेत्र को जान लिया। अब ख़ुद को भी तो जानना ज़रूरी है ना। फिर पूछो अच्छा अब मैं ख़ुद को जान रहा हूँ। इसको जान रहा हूँ। हमारी कितनी पटेगी भाई? हमारी कितनी पटेगी? कैन वी गो टुगेदर? यह अध्यात्म है।
उपनिषद् कहते हैं दो क्षेत्र होते हैं अध्यात्म के, दो शाखाएँ। एक इसको (बाहर की ओर इंगित करते हुए) जानना, एक इसको (ख़ुद की ओर इंगित करते हुए) जानना — एक संसार को जानना और एक अहंकार को जानना। जो इन दोनों को जान रहा है उपनिषद् कहते हैं ये है असली चैंपियन। यह मस्त जिएगा। ये इसी ज़िंदगी में बिल्कुल बादशाह की तरह जिएगा इसे कोई नहीं बांध सकता। उसको बोलते हैं जीवन मुक्त। क्या-क्या जानना है?
दुनिया को जानना और ख़ुद को जानना और इन दोनों का रिश्ता जानना है। बस यही अध्यात्म है।
तो इसमें यह कभी नहीं कहना चाहिए कि मैं अब ज़्यादा स्पिरिचुअल हो रहा हूँ तो मुझे दूसरी चीज़ के लिए टाइम नहीं मिलता। वो जिस भी दूसरी चीज़ की बात कर रहे हो उसको गहराई से जानना ही, तुम जिस भी क्षेत्र में हो उसको गहराई से जान लो। यही अध्यात्म है। अध्यात्म कोई अलग क्षेत्र नहीं है।